Kumbha Sankranti 2023: Check date, Rituals and Shubh Muhurat

कुंभ संक्रांति 2023 -

कुंभ संक्रांति में भगवान सूर्य देव का राशि परिवर्तन होता है, जिसे कुंभ संक्रांति कहते है.. 13 फरवरी सोमवार के दिन भगवान सूर्य मकर से कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे.. कुंभ राशि में पहले से ही शनिदेव विराजमान है, ऐसे में कुंभ राशि में सूर्य देव के आगमन पर किन राशियों पर इसका प्रभाव शुभ और किन राशियों पर इसका प्रभाव अशुभ रहने वाला है, ये आगे जानेंगे..

भगवान सूर्य देव माह में 30 दिनों के बाद राशि परिवर्तन करते है, जिसे संक्रांति के रूप में पूजते है.. संक्रांति के दिन दान, स्नान, जप आदि का विशेष महत्व बताया गया है और ऐसे में याचक यदि संक्रांति के दिन दान, स्नान, जप करता है तो उसे कई गुणा यज्ञों की फल प्राप्ति होती है.. आईए जानते है कुंभ संक्रांति के दिन क्या-क्या करें…

 

कुंभ संक्रांति के दिन क्या करें?

  1. कुंभ संक्रांति के दिन प्रात:काल उठाकर गंगाजल से स्नान करें.. कहते है यदि इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करें तो याचक को कई कष्टों से मुक्ति मिलती है, बिमारियों का सामना नहीं करना पड़ता है, आरोग्य की प्राप्ति होती है..
  2. संक्रांति के दिन स्नान करने के बाद सूर्य देव की उपासना की जाती है, साथ ही इस दिन उनके मंत्रों का जाप किया जाता है.. घर में परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर से रोगों का नाश होता है, सकारात्मकता की वृद्धि होती है.. खुशहाली का माहौल रहता है..
  3. इस दिन खाद्य वस्तु, वस्त्रों का दान गरीबों को करने से दो-गुणा फल प्राप्त होता है, मान सम्मान में वृद्धि होती है.. मृत्यु के पश्चात धाम की प्राप्ति होती है..
  4. कुंभ संक्रांति के दिन यदि याचक सूर्य देव की बीज मंत्रों का जाप करता है, तो अनेक कार्यों में सफलता और वृद्धि होती है.. आने वाले सभी दुखों से छुटकारा मिलता है..

 

कुंभ संक्रांति मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार, सूर्य देव 13 फरवरी को ब्रह्म-मुहूर्त में 3 बजकर 41 मिनट पर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। सनातन धर्म में उदया तिथि की मान्यता अधिक होती है, अत: 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति है। इसी प्रकार पुण्य काल सुर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है.. इस अवधि में पूजा, जप, तप और दान कर सकते हैं..

Magha Purnima 2023: Shubh Muhurat, Puja Vidhi, Significance, and more

माघ पूर्णिमा 2023 -

सनातन धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है.. इस दिन सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि सभी देवतागण इस दिन पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते है.. पूर्णिमा पर स्नान, ध्यान, जप आदि का विशेष महत्व है। जो भी याचक इस दिन गंगा नदी में स्नान कर देवताओं का ध्यान करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु का दिन माना जाता है, इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष मंत्रों से पूजा की जाती है।

 

इस दिन देवी लक्ष्मी और चंद्रमा की खास पूजा का विधान है. इस साल माघ पूर्णिमा पर बेहद ही शुभ संयोग बन रहा है जो इस दिन के महत्व को दोगुना कर रहा है. इस दिन कुछ खास उपाय करने से मां लक्ष्मी साधक पर मेहरबान होती है. आइए जानते हैं माघ पूर्णिमा का मुहूर्त, महत्व और उपाय

माघी पूर्णिमा मुहूर्त

सनातन पंचाग के अनुसार माघी पूर्णिमा का आरंभ 4 फरवरी 2023 दिन शनिवार को रात्रि 09 बजकर 44 मिनट से होगा..

 

माघ पूर्णिमा का समापन 6 फरवरी 2023, दिन सोमवार रात्रि 11 बजकर 58 मिनट पर

 

स्नान का समय 5 फरवरी दिन रविवार को प्रात: 05 बजकर 27 मिनट से लेकर 06 बजकर 18 मिनट तक का है।

माघ पूर्णिमा महत्व

मघा नक्षत्र के नाम से ही माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति होती है. ऐसा माना गया है कि माघ माह में सभी देवता पृथ्वी पर आते हैं और मनुष्य रूप धारण करके प्रयाग में स्नान, दान और जप करते हैं. इसी प्रकार इस माह का महत्व अधिक बढ़ जाता है.. कहते है इस दिन लोग अगर प्रयाग या गंगा नदी में स्नान करते है तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. सनातन धर्म में वर्णन मिलता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है.

माघ पूर्णिमा उपाय

माघ पूर्णिमा के दिन रात्रि में अष्टलक्ष्मी की अष्टगंध, 11 कमलगट्‌टे चढ़ाने से धन से जुड़ी समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है. मां लक्ष्मी को पूर्णिमा की मध्यरात्रि एक-एक कर कमलगट्‌टा अर्पित करें और श्रीसूक्त का पाठ करें. माघ पूर्णिमा का ये महाउपाय साधक को अपार धन प्राप्ति का वरदान प्रदान करता है.

 

माघ पूर्णिमा पूजा-विधि

पूर्णिमा के दिन प्रात:काल उठकर स्नान करें, यदि संभव हो तो पवित्र नदियों में स्नान करें, इसका दो-गुणा फल प्राप्त होता है.. इसके अलावा याचक स्नान के पानी में गंगाजल मिश्रित कर स्नान कर सकते है।


स्नान के पश्चात साफ वस्त्र पहनकर घर के मंदिर में सभी देवी-देवताओं का गंगाजल से अभिषेक करें।


मंदिर में घी का दीपक जलाएं।


पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें, कहते है मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष फल प्राप्त होता है।


पूजा के पश्चात मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को भोग लगाएं, भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य रखें.. कहते है भगवान विष्णु तभी भोग ग्रहण करते है जब उसमें तुलसी के पत्ते शामिल हो।


श्रीहरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की आरती करें।


पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का महत्व अधिक माना जाता है, तो चंद्रोदय के समय उन्हें जल अर्पित करें। ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति और शुक्र सही होता है। सभी दोषों से भी मुक्ति मिलती है..


इस दिन दान करना लाभकारी होता है.. जरुरतमंद को इच्छानुसार दान करें।


गायों को घर का बना भोजन कराएं, ऐसा करने से धन और अन्न की समस्या से छुटकारा मिलता है।

 

Jaya Ekadashi 2023: Date, Muhurat, Vrat Vidhi, Katha

जया एकादशी 2023 -

सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि एकादशी व्रत करने से अनेकों गुणा फल की प्राप्ति होती है। साल में 24 से 26 एकादशी के व्रत होते है, जिनका अपना अलग महत्व होता है, वैसे ही जया एकादशी व्रत का अपना अलग महत्व है। यह एकादशी माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाएगा। जया एकादशी का व्रत नीच योनि, प्रेत, भूत आदि को नष्ट कर विशेष फल देता है। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन सात्विक रूप से एक समय फलहार करके भगवान विष्णु का स्मरण किया जाता है। जया एकादशी को भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है।

 

जया एकादशी का मुहूर्त

पंचांग के अनुसार जया एकादशी तिथि 31 जनवरी 2023 सुबह 11 बजकर 53 मिनट पर आरंभ होगी और 1 फरवरी 2023 को दोपहर बाद 02 बजकर 01 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. शास्त्रों में उदया तिथि के अनुसार ही एकादशी का व्रत मान्य होता है, इसलिए 1 फरवरी के दिन जया एकादशी का व्रत रखा जाएगा.

 

जया एकादशी की पूजा

जया एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसे में व्रत रखने वाले याचक को ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। फिर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें। यदि याचक पीले रंग के वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करता है तो देव प्रसन्न होते है, क्योंकि भगवान विष्णु की प्रिय रंग पीला है। पूजा के समय भगवान को पीली चीजों का भोग लगाएं और चढ़ाएं। ऐसे में पीला अंगोछा सामर्थयनुसार दान करें, पीले पुष्प और फल चढ़ाएं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और जो फल और मिष्ठान भगवान को भोग लगाया है उसे प्रसाद के रूप में बांटे.. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। एकादशी के दिन याचक कुछ भी खाने से पहले किसी को या मंदिर में जाकर दान अवश्य करें.. ऐसा करने से देव प्रसन्न होते है, क्योंकि इस दिन दान की मान्यता अधिक होती है..

 

जया एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय स्वर्गलोक पर नंदन वन में उत्सव चल रहा था.. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष उपस्थित थे.. उत्सव में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं.. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था.. इसी बीच पुष्पवती की नज़र माल्यवान पर पड़ी और वह मोहित हो गई.. पुष्पवती सभा की मर्यादाओं को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी, जिससे माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो.. माल्यवान गंधर्व कन्या के नृत्य को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादाओं से भटक गया, जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये..

 

स्वर्ग के राजा इन्द्रदेव को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध आया और उन्होंने दोनों को स्वर्गलोक से निकालकर मृत्युलोक पर जीवन व्यतीत करने का श्राप दिया.. मृत्यु लोक में नीच पिशाच योनि में दोनों को जन्म मिला.. श्राप के कारण दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास स्थान बन गया.. पिशाच योनि में रहकर दोनों ने बहुत कष्ट झेला.. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे.. उस दिन उन्होनें भोजन ना करके केवल फलहार पर रहे.. रात्रि के समय दोनों को ठंड लगने के कारण निद्रा नहीं आई और ठंड के कारण उनकी मृत्यु हो गई.. जाने – अनजाने में जया एकादशी के दिन दोनों ने फलहार करके रात को जागकर एकादशी का व्रत समपूर्ण कर लिया था, जिस कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई.. अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर और गुणवती हो गए और स्वर्गलोक में उन्हें स्थान मिल गया..

 

देवराज इंद्र ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह प्रश्न पूछा.. माल्यवान ने देवराज इंद्र को जया एकादशी के व्रत की सारी बात बताई और फिर भगवान ने उन्हें पिशाच योनि से मुक्त कर दिया.. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें..

 

श्रीकृष्ण ने भी जया एकादशी के महत्व में बताया, कि इस दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से हरि विष्णु की पूजा करें..

Padmanabhaswamy Temple History

पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल -

केरल राज्य की राजधानी तिरुवंनतपुरम में स्थित भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति का स्थान, जिसे पद्मनाभस्वामी मंदिर के रूप में जाना जाता है। मंदिर में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति का स्वरूप निद्रारूपी यानि शेषनाग की शैय्या पर लेटी हुई है, जिसमें उनकी नाभि से एक कमलपुष्प निकला है और उसपर भगवान ब्रह्मा विराजित है। मंदिर में केरल और द्रविड़ वास्तुशिल्प शैली का प्रयोग हुआ है। भगवान विष्णु का ये मंदिर दुनिया में सबसे धनी मंदिरों में माना जाता है, क्योंकि अभी तक का खजाना कुल 2 लाख करोड़ से अधिक पाया गया है, जिसको सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में मंदिर की सम्पत्ति घोषित किया था, लेकिन एक राज या रहस्य इस मंदिर का अभी भी तहखाने-बी के पीछे छिपा हुआ है, जिसको खोलने की हिम्मत आज तक किसी से नहीं हुई, इसके पीछे का कारण है “दरवाजे पर दो सर्प पहरेदार के होने का”..

 

मंदिर के दरवाजों के नाम भी रखे गए है, जिसमें कुल 6 दरवाजे है। इनमें से 5 दरवाजों को खोलकर उसके खजानों का आकंलन कर लिया गया है, लेकिन छठे दरवाजे को गुप्त रखने का आदेश खुद कोर्ट की तरफ से दिया गया है, जिसे तहखाना–बी कहा गया है। मंदिर के इस दरवाजे को खोलने की हिम्मत यदि कोई करता है तो उसे मृत्यु प्राप्त होती है। तहखाना–बी तीन दरवाजों से सुरक्षित बताया जाता है। पहला जालीदार दरवाजा, दूसरा लकड़ी का दरवाजा और तीसरा लोहे का दरवाजा जिस पर दो भयावह दिखने वाले सर्प बने हुए है। चाह कर भी कोई व्यक्ति उस तीसरे दरवाजे को खोलने का साहस नहीं दिखा पाता और वापस चला जाता है, जिसने भी उस दरवाजे को खोलने की कोशिश की है उसकी मृत्यु कुछ दिनों में हो गई है.. कहते है कि तीसरा दरवाजा स्वयं खुलेगा जब पृथ्वी का विनाश पास होगा।

 

अब बढ़ते है इसके इतिहास की ओर.. बताया जाता है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास 8वीं सदी पुराना है और भगवान विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में से एक है, जिसको भारत का दिव्य देसम भी कहा जाता है.. दिव्य देसम को भगवान विष्णु का सबसे पवित्र निवास स्थान माना जाता है।

 

इतिहास के कुछ पन्नों में प्रसिद्ध राजा मार्तंड वर्मा के बारें में भी जानकारी मिलती है, जिन्हें त्रावणकोर के प्रसिद्ध राजा के रूप में जाना जाता है। राजा मार्तंड के समयकाल में मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था, केवल मूर्ति स्थित थी, जिसके दर्शनमात्र से ही राजा ने मंदिर के निर्माण का आदेश दिया और मंदिर में मुरजपम और भद्र दीपम त्यौहारों की शुरुआत की गई। मुरजपम का अर्थ है- प्रार्थना का मंत्रोच्चार करना।

 

इतिहास के कुछ पन्नों को पलट कर देखें तो वर्ष 1750 में, राजा मार्तंड वर्मा ने त्रावणकोर राज्य, भगवान पद्मनाभ को समर्पित किया था। विचित्र बात तो ये है कि राजा मार्तंड वर्मा ने उस समयकाल में राज परिवार को भगवान की ओर से राज्य पर शासन करने का अधिकार दिया.. राजा और आम जनता खुद दास या सेवक के रुप में सेवा करने के लिए भगवान के आगे नतमस्तक हो गए। उसी समय से यह परम्परा चली आ रही है कि भविष्य में त्रावणकोर का जो भी राजा होगा, उसके नाम से पहले पद्मनाभ दास रखा जाएगा। कहते है त्रावणकोर राज्य की ओर से जो भी दान पद्मनाभस्वामी को दिया जाता है उसे त्रिपड़ीदानम कहा जाता है।

 

मूर्ति का स्वरूप

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति का स्वरूप ओर कहीं देखने को नहीं मिलेगा। प्रतिमा को बनाने में करीब 12008 शालिग्राम का इस्तेमाल किया गया था, जिसे नेपाल की नदी गंधकी के किनारे से लाया गया था। मंदिर के गर्भगृह में एक चट्टान है, जहां मुख्य प्रतिमा जो लगभग 18 फीट लंबी बताई जाती है वहां स्थित है। मंदिर के तीन मुख्य दरवाजों में से भगवान विष्णु की पूरी प्रतिमा को देखा जा सकता है। पहले दरवाजे से भगवान विष्णु का मुख और सीना दिखाई देता है, दूसरे दरवाजे से उनकी नाभि से निकला कमलपुष्प जिस पर ब्रह्मा जी विराजित है दिखता है, तीसरे दरवाजे से भगवान विष्णु का पैर दिखाई देता है।

 

पहनावा

मंदिर में भक्तों को दर्शन करने के लिए उनके वस्त्रों के हिसाब से प्रवेश दिया जाता है। पुरुषों को धोती या मुंडु में तथा महिलाओं को साड़ी में प्रवेश दिया जाता है। मंदिर के बाहर स्टोल भी लगाया जाता है जहां सुविधानुसार रेंट पर भी धोती उपलब्ध कराई जाती है। महत्वपूर्ण बात ये है कि यहां केवल हिंदुओं का ही प्रवेश है।

February 2023 Vrat And Festivals List

फरवरी 2023 व्रत एवं त्यौहारों की लिस्ट -

फरवरी माह की शुरुआत माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से हो रही है.. साथ ही महीने की शुरुआत में ही भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी भी पड़ रही है.. इसके बाद प्रदोष व्रत, माघ पूर्णिमा, कुंभ संक्रांति, विजया एकादशी और महाशिवरात्रि जैसे पावन पर्व भी फरवरी माह में आने वाले है.. फरवरी माह का महीना इन सब पर्व और त्यौहारों के लिए विशेष है क्योंकि ये धार्मिक दृष्टि से फलदाई भी है.. ग्रहों और नक्षत्रों का परिवर्तन भी इस माह में देखा जा रहा है.. अब आईए जानते है फरवरी में किस दिन कौन सा पर्व है और उसका क्या महत्व है…

 

फरवरी माह 2023 के व्रत एवं त्योहार

 

1 फरवरी 2023, बुधवार, जया एकादशी

सनातन धर्म में जया एकादशी का खास महत्व होता है. माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ‘जया एकादशी’ कहते हैं. साल 2023 में जया एकादशी का व्रत 1 फरवरी दिन बुधवार को रखा जाएगा. इस दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. जया एकादशी को “भूमि एकादशी” और “भीष्म एकादशी” के रूप में भी जाना जाता है.

 

2 फरवरी 2023, गुरुवार, प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आती है, जिसमें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत रखा जाता है.. प्रदोष व्रत मुख्य रूप से शिव व्रत माना जाता है.. इसमें भक्त भगवान शिव के लिए व्रत रखते है, मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र और जलाभिषेक करते है.. मुख्यरुप से प्रदोष व्रत सायंकाल पर पूर्ण किया जाता है..

 

5 फरवरी 2023, रविवार, माघ पूर्णिमा व्रत, रविदास जयंती

माघ महीने की पूर्णिमा तिथि बेहद खास होती है। इस तिथि को माघ या माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान श्री हर‍ि विष्‍णु गंगाजल में वास करते हैं इसलिए इस दिन गंगा स्‍नान का विशेष महत्‍व है। जो भक्त इस दिन श्रद्धा और विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करता है, उस पर श्रीहरि की विशेष कृपा बनी रहती है। साथ ही इस दिन रविदास जयंती भी मनाई जाएगा।

 

9 फरवरी 2023, गुरुवार, संकष्टी चतुर्थी

भगवान गणेश की प्रिय संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकट हरने वाली चतुर्थी भी कहते है, वह फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में 9 फरवरी के दिन पड़ रही है.. महीने में दो बार पड़ने वाली चतुर्थी में एक संकष्टी और दूसरी विनायक चतुर्थी होती है.. शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की गणना के अनुसार चुतर्थी में 15 दिन का अंतर आ जाता है.. कहा जाता है जो भी याचक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का स्मरण कर व्रत करता है और पूर्ण विधि से उनकी पूजा करता है, भगवान स्वयं उसे सभी दोषों, विघ्नों, नकारात्मकता से दूर कर देते है..

 

13 फरवरी 2023, सोमवार, कुंभ संक्रांति और कालाष्टमी

13 फरवरी को सूर्य देव कुभ राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे हम कुंभ संक्रांति के रूप में देखते है.. कुंभ राशि में पहले से ही शनि देव विराजमान है, जहां अब सूर्य देव भी प्रवेश करने वाले है.. सूर्य देव को शनिदेव का शत्रु कहा जाता है ऐसे में कई राशियों के लिए यह जोड़ शुभ और कई राशियों के लिए अशुभ होने वाला है..

 

कालाष्टमी का पर्व हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाती है.. इस दिन शिव भक्त कालभैरव की पूजा करते है, जिसे शिव का दूसरा स्वरूप कहा जाता है..

 

16 फरवरी 2023, गुरुवार, विजया एकादशी

भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में 16 फरवरी को पड़ रही है.. एक वर्ष में 24 से 26 एकादशी के व्रत होते है और सभी एकादशी का अपना विशेष महत्व है.. ऐसे ही विजया एकादशी का भी विशेष महत्व है. इसमें किसी कार्य पर विजय प्राप्त करना, शत्रु के खिलाफ विजय प्राप्त करना जैसा संदेश दिया जाता है…

 

18 फरवरी 2023, शनिवार, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है.. हर माह में एक मासिक शिवरात्रि आती है, जिसमें से दो शिवरात्रि को मुख्यरुप से महाशिवरात्रि के रूप से देखा जाता है, इस दिन शिव भक्त शिवरात्रि का व्रत रखकर भगवान शिव को प्रसन्न करते है, साथ ही मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते है..

 

प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आती है, जिसमें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत रखा जाता है.. प्रदोष व्रत मुख्य रूप से शिव व्रत माना जाता है.. प्रदोष व्रत में दिन की मान्यता अलग मानी जाती है.. यदि प्रदोष व्रत सोमवार के दिन आता है तो उसे सोम प्रदोषम व्रत कहते है.. मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को भूमा प्रदोषम के रुप में मानते है.. शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहते है…

 

20 फरवरी 2023, सोमवार, फाल्गुन अमावस्या

धार्मिक मान्यता है कि जीवन में सुख और शांति के लिए फाल्गुन अमावस्या का व्रत रखा जाता है तथा इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण व श्राद्ध भी किया जाता है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, यदि अमावस्या सोम, मंगल, गुरु या शनिवार के दिन हो तो, यह सूर्यग्रहण से भी अधिक फल देने वाली होती है.

 

21 फरवरी 2023, मंगलवार, चंद्र दर्शन

चंद्र दर्शन का महत्व सनातन धर्म में अधिक माना जाता है.. चंद्र दर्शन अमावस्या के बाद दर्शन करने को कहते है.. इस दिन चंद्र देव की पूजा की जाती है.. चंद्र को शांति, उन्नति, ज्ञान, बुद्धि और मन का देवता माना जाता है, जिसका कुंडली में चंद्र ग्रह खराब हो उसके इस दिन चंद्र देव की पूजा अवश्य करनी चाहिए..

 

23 फरवरी 2023, गुरूवार, वरद चतुर्थी

वरद चतुर्थी भगवान गणेश की प्रिय चतुर्थी को कहते है.. वरद चतुर्थी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाएगी.. इस दिन याचक भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत कर उनकी पूजा-अर्चना करते है..

 

27 फरवरी 2023, सोमवार, दुर्गा अष्टमी व्रत, होलाष्टक

दुर्गा अष्टमी का पर्व देवी दुर्गा को समर्पित होता है.. इस दिन देवी दुर्गा की विशेष रूप से पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है.. दुर्गा अष्टमी शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाती है.. दुर्गा अष्टमी को मासिक अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है..

 

होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से शुरू हो जाता है, जो होलिका दहन के दिन तक रहती है.. साल 2023 में होलाष्टक 27 फरवरी 2023 की अष्टमी से आरंभ होकर, 08 मार्च की पूर्णिमा तक रहेगी..

 

28 फरवरी 2023, मंगलवार, रोहिणी व्रत

जैन समुदाय द्वारा किया जाने वाला रोहिणी व्रत पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध व्रत है.. रोहिणी व्रत भगवान वासुपूज्य जी को समर्पित होता है.. इस शुभ अवसर पर रोहिणी देवी के साथ साथ भगवान वासुपूज्य जी की विधिवत पूजा की जाती है.. यह व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा भिन्न होता है..

What to do on Rath Saptami 2023?

Rath Saptami 2023 -

सनातन धर्म में सूर्य देव की उपासना बहुत अधिक मानी जाती है, क्योंकि भगवान सूर्य व्यक्ति को रोग मुक्त, भय मुक्त और आरोग्य जीवन का आशीर्वाद देते है. व्यक्ति प्रात: उठकर स्नान आदि कर सूर्य देव को अर्घ्य देता है.. कहते है उनकी पूजा के लिए सबसे उत्तम दिन रथ सप्तमी माना जाता है.. रथ सप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन है.. मान्यता है कि इस दिन स्नान-दान, हवन इत्यादि करने से व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है.. आइए जानते हैं कब मनाया जाएगा रथ सप्तमी पर्व..

 

रथ सप्तमी पूजा मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारंभ 27 जनवरी 2023 के दिन प्रातः 07:40 मिनट पर होगा.. इस तिथि का अंत 28 जनवरी 2023 के दिन सुबह 07:13 मिनट पर होगा.. उदया तिथि के अनुसार यह पर्व 28 जनवरी 2023 के दिन मनाया जाएगा.. इस दिन अरुणोदय के समय में पवित्र स्नान का विशेष महत्व है, इसलिए रथ सप्तमी के दिन स्नान मुहूर्त, ब्रह्म मुहूर्त में प्रात: 04:24 मिनट से 05:51 तक रहेगा..

 

रथ सप्तमी महत्व

पुराणों और शास्त्रों में उल्लेखित है कि रथ सप्तमी सभी नकारात्मकता को दूर करने के लिए बेहद ही शुभ दिन माना जाता है.. कहते है रथ सप्तमी के दिन यदि याचक पवित्र नदियों में स्नान करके, सूर्य देव को अर्घ्य देता है तो उसे आरोग्य होने का वरदान प्राप्त होता है.. सूर्य देव की उपासना करने से स्वास्थय संबंधी सभी समस्याएं दूर होती है और ग्रह दोषों से छुटकारा मिलता है..

 

रथ सप्तमी के नियम

रथ सप्तमी के नियमों का पालन याचक को करना आवश्यक होता है.. इस दिन याचक को पूरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.. सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए.. प्रात:काल उठकर सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए.. घर का माहौल शांतिपूर्ण होना चाहिए.. किसी भी व्यक्ति के साथ वाद-विवाद करने से बचना चाहिए.. मांस-मदिरा और तामसिक चीजों से इस दिन दूर रहे, नहीं तो व्यक्ति पापों का भागी होता है.. इन दिन का महत्व और अधिक करने के लिए याचक किसी की मदद करें या फिर किसी जरुरतमंद को दान करें. ऐसा करने से व्यक्ति भविष्य में आने वाली किसी बड़ी बिमारी से निजात या छुटकारा पाता है..

Basant Panchami 2023: Date, history, significance, puja

बसंत पंचमी 2023 -

सनातन पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पचंमी का पर्व मनाया जाता है.. मुख्य रूप से ये पर्व ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित है.. शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है.. बसंत पंचमी से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है.. सनातन धर्म में मां सरस्वती की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि ये ज्ञान की देवी हैं.. मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली का भी आशीर्वाद मिलता है.. आइए जानते हैं नए साल में बसंत पंचमी की पूजा का मुहूर्त और बसंत पंचमी पूजा विधि…

 

बसंत पंचमी तिथि

पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से आरंभ होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी.. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी..

 

बसंत पंचमी पूजा

बसंत पंचमी वाले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साफ पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहनें, उसके बाद सरस्वती पूजा का संकल्प लें..

 

पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.. मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं, फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं..

 

इसके बाद पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें.. सरस्वती माता को गेंदे के फूल की माला पहनाएं..

 

माता को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं, इसके बाद सरस्वती वंदना एवं मंत्र से मां सरस्वती की पूजा करें.. आप चाहें तो पूजा के समय सरस्वती कवच का पाठ भी कर सकते हैं..

 

आखिर में हवन कुंड बनाकर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नमः: स्वाहा” मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें, फिर अंत में खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें..

 

पंचमी से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है.. सनातन धर्म में मां सरस्वती की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि ये ज्ञान की देवी हैं.. मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली का भी आशीर्वाद मिलता है..

2023 Magha Gupt Navratri – Significance, Date & Celebrations

गुप्त नवरात्रि 2023 -

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते

 

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित: ।

 

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥

 

गुप्त नवरात्रि में गुप्त साधना करने से याचक देवी भगवती का विशेष फल प्राप्त करता है.. गुप्त नवरात्रि अन्य नवरात्री से भिन्न है, क्योंकि इसमें गुप्त साधना, तंत्र-मत्र की विद्याओं की पूजा की जाती है.. गुप्त नवरात्रि की साधना काली रात्रि में और श्मशान में की जाती है.. गुप्त नवरात्रि की साधना करने वाले याचक देवी को प्रसन्न करने और तमाम शक्तियां जागृत करने के लिए 9 दिनों तक दस महाविद्याओं की पूजा करते हैं.. ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि के समय ऋषि विश्वामित्र ने 9 दिनों तक दस महाविद्याओं की गुप्त रुप से अराधना कर देवी को प्रसन्न किया, जिसके बाद उनकी सिद्धियां इतनी प्रबल हो गई थी, कि उन्होनें अलग संसार का निर्माण किया था.

 

गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं. नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं.. सभी नवरात्रों में माता के सभी 51 शक्तिपीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं.. माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप से माता की भक्ति करने का विधान है.. आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है.. वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है, ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है.

 

माघ माह में गुप्त नवरात्रि की तिथि 22 जनवरी 2023, दिन रविवार से आरंभ होकर 30 जनवरी 2023, दिन सोमवार को समाप्त होगी.. अब जानते है, गुप्त रूप से साधना करने का मुहूप्त और दस महाविद्याओं के बारे में.

 

माघ गुप्त नवरात्रि मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 22 जनवरी 2023 को प्रात: 02 बजकर 22 मिनट पर आरंभ होगी और 22 जनवरी को ही रात 10 बजकर 27 मिनट पर प्रतिपदा तिथि का समापन भी है.. ऐसे में साधक 22 जनवरी को ही गुप्त साधनाओं की पूजा का आरंभ करेंगा.

 

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा

गुप्त नवरात्रि के दौरान मां भगवती के दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है।

 

  1. मां काली
  2. मां तारा
  3. मां षोडशी त्रिपुर सुंदरी
  4. मां भुवनेश्वरी
  5. मां छिन्नमस्ता
  6. मां भैरवी
  7. मां धूमावती
  8. मां बगला
  9. मां मातंगी
  10. मां कमला

 

गुप्त नवरात्रि का महत्व

गुप्त नवरात्रि विशेष रूप से तांत्रिक क्रियाओं, शक्ति साधना एवं महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है.. गुप्त नवरात्रि में देवी माँ के साधक बेहद कड़े नियमो के साथ व्रत एवं साधना करते हैं.. गुप्त नवरात्रि के दौरान लोग दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक साधना करनी पड़ती है.. गुप्त नवरात्र के दौरान कई व्यक्ति महाविद्या यानि तंत्र साधना के लिए तारा देवी,मां काली, भुवनेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माता बगलामुखी, मातंगी, मां ध्रूमावती और कमला देवी की पूजा करते हैं.. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने अपनी खोयी हुयी शक्तियों को पाने के लिए नवरात्र में ही साधना की थी, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर अधिक समय देना माना गया है।

What is the date of Mauni Amavasya?

मौनी अमावस्या 2023 -

माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस साल मौनी अमावस्या 21 जनवरी 2023, दिन शनिवार को है.. माघी यानी मौनी अमावस्या साल 2023 की पहली अमावस्या होगी.. मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान करने से व्यक्ति के पिछले और वर्तमान जन्म के पाप खत्म हो जाते हैं.. साल में यही एकमात्र अमावस्या है जिसमें मौन व्रत का विशेष महत्व है.. शास्त्रों के अनुसार मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखने से कई तरह के लाभ मिलते हैं. आइए जानते मौनी अमावस्या पर मौन व्रत का महत्व और लाभ.

 

मौनी अमावस्या 2023 मुहूर्त

माघ अमावस्या तिथि शुरू- 21 जनवरी 2023, सुबह 06 बजकर 17 मिनट पर

 

माघ अमावस्या तिथि समाप्त- 22 जनवरी 2023, सुबह 02 बजकर 22 मिनट

 

मौनी अमावस्या पर मौन व्रत करने के लाभ

 

पापों से मिलती है मुक्ति – मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर व्रत करने से व्यक्ति के भीतर के विकार नष्ट हो जाते हैं. इस दिन मौन व्रत का पालन करने वालों के वाणी दोष दूर हो जाते हैं. इंद्रियों पर काबू करने की शक्ति मिलती है. इस दिन मौन रहकर दान-स्नान करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिकता का विकास होता है..

 

कालसर्प और पितृदोष से मुक्ति – मौनी अमावस्या पर  मौन रहकर भगवान विष्णु की आराधना औरे पितरों की शांति के लिए तर्पण करने पर पितृ दोष और कालसर्प दोष खत्म हो जाता है. इस दिन मौन रहकर पूजा, भजन और मंत्र जाप करने से कई गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है..

 

16 गुना अधिक फल – मौनी अमावस्या पर मनु ऋषि का जन्म हुआ था. बुद्ध ने कहा है कि मौन व्रत उदासी, ग्लानि और दुख को निगल जाता है और आनंद और प्रेम को जन्म देता है. धार्मिक मान्यता है कि अगर मौनी अमावस्या पर दिनभर मौन व्रत नहीं रख सकते तो सवा घंटे का मौन व्रत करने से 16 गुना अधिक फल प्राप्त होता है.

 

मौनी अमावस्या पर स्नान महत्व

सनातन धर्म में गंगा स्नान को सबसे पवित्र स्नान माना गया है.. गंगा और अन्य नदियों के स्नान की पवित्रता का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है.. पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवों और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो समुंद्र से भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद हुआ और छीना-झपटी होने लगी. इसी दौरान कलश से अृमत की कुछ बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसी पवित्र नदियों में गिर गई. अमृत गिरने के कारण ही ये नदियां पवित्र हो गईं. यही कारण है कि पर्व-त्योहार, पूर्णिमा, अमावस्या और विशेष तिथियों में नदी स्नान और विशेषकर गंगा स्नान की परंपरा है..

 

मौनी अमावस्या के नियम

मौनी अमावस्या के दिन प्रातःकाल याचक को नंदी, सरोवर या पवित्र कुंड में स्नान करना चाहिए. इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दे.. मौनी अमावस्या पर व्रत का संकल्प लेने के बाद मौन रहने का प्रयास करें.. किसी भी व्यक्ति से बहस या अपशब्द ना कहें.. बेहतर हो की आप किसी की चुगली ना करें.. किसी से बुरा ना कहें और ना ही सुने.. इस दिन भूखे व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं. माघी अमावस्या के दिन अनाज, वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, पलंग, घी और गौशाला में गाय के लिए भोजन का दान करना चाहिए.. मान्यताओं के मुताबिक माघ अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है..

किस प्रकार बढ़ती ठंड में रखें सेहत का ध्यान?

Health Tips -

बढ़ती ठंड से बचने के लिए और अपने स्वास्थय को ठंड से सुरक्षित रखने के लिए आज हम कुछ उपाय लेकर आएं है। सेहतमंद रहने के लिए मौसम के अनुकूल रहना आवश्यक है। सर्दियों में स्वस्थ रहना चुनौती भरा होता है। इन दिनों कम तापमान, अधिक नम मौसम और कोहरा होने के कारण वातावरण खराब हो जाता है। सर्दियों में प्रदूषण का स्तर अधिक रहता है। हानिकारक कण भी सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे जो लोग किसी बीमारी से पहले से ही झूझ रहे हैं, उनकी परेशानी और बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त सर्दियों में मौसम के अनुसार होने वाली बीमारियों के संक्रमण की आशंका भी अधिक रहती है। बढ़ती ठंड को देखते हुए खांसी, जुकाम, सरदर्द, शरीर दर्द, बुखार, गला दर्द जैसी तमाम बिमारियों का लोग शिकार हो जाते है। ऐसे में आपको घर से निकलने से पहले मास्क लगाना जरूरी है। जहरीली हवा सेहतमंद लोगों पर भी बुरा प्रभाव डालती है, इसलिए सर्दी से बचने के लिए कुछ नियम और उपाय करने की आपको आवश्यकता है। जानें कौन-कौन से है वो नियम और उपाय

सर्दियों में त्वचा हो जाती है खराब

सर्दी के मौसम में त्वचा शुष्क हो जाती है और रूखापन आ जाता है, इसलिए नहाने के बाद शरीर में किसी तेल या क्रीम का प्रयोग जरूर करें, जिससे त्वचा को पर्याप्त पोषण मिल सके। हाथों पर दिन में 3 से 4 बार क्रीम अवश्य लगाएं, जिससे हाथों का नरमी मिले और रंग फीका ना पड़े। पुराने नुस्खों की बात करें तो नारियल का तेल लगाना शरीर के रूखेपन को भी दूर करता है और रंग भी निखारता है।

बढ़ जाती हैं जोड़ों की समस्याएं

सर्दियों में लोग अधिक चिकनाई वाला खाना व मसालेदार चीजों का सेवन करते हैं, जिससे शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं और ज्यादातर लोग व्यायाम से दूरी बना लेते हैं। जिस कारण वजन बढ़ने की समस्या होती है। वजन बढ़ने के कारण इसका असर जोड़ों पर भी पड़ता है। यदि सर्दी में धूप कम या कई दिनों तक शरीर को नहीं मिल पाती तो इससे विटामिन-डी की कमी होती है, जो जोड़ों में दर्द, अकड़न व गठिया की परेशानी बढ़ाती है।  ऐसे में शारीरिक गतिविधि होना अनिवार्य है। हो सके तो शरीर के वजन को संतुलित करें। अधिक उम्र वाले लोग आराम करें या योग करें जिससे जोड़ो की समस्या ठीक हो सके।

ध्यान दें खानपान पर

वर्तमान समय में जंकफूड का हर कोई दीवाना है, जिस कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं मिल पाता। हरी सब्जियों व मौसमी फलों का सेवन अधिक करने से शरीर संतुलित रहता है। हो सके तो अधिक मसाले व तेल वाले भोजन को अनदेखा करें, क्योंकि इससे ब्लडप्रेशर, कोलेस्ट्राल व शुगर लेवल बढ़ने की अत्यधिक संभावना रहती है। पानी पर्याप्त मात्रा में पिएं और यदि संभव हो तो हल्का गुनगुना पानी पीना शुरू करें।

योग है जरूरी

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सुबह जल्दी उठने के अलावा योग भी जरूरी माना जाता है। योग से शरीर में उत्पन्न हो रहे बैकटीरिया दूर रहते है, शरीर का संतुलन सही रहता है और किसी भी प्रकार की कोई बिमारियां नहीं लगती। जॉब पर जाने वाले लोगों के पास पर्याप्त समय नहीं होता जिससे वे जिम या बाहर जाकर एक्सरसाइज कर सकें, लेकिन कुछ आसान या व्यायाम घर में ही करने से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।

फैशन को करें इग्नोर और पहने गर्म कपड़े

लोगों के शरीर का तापमान भिन्न-भिन्न होता है, ऐसे में सर्दी की शुरूआत में कुछ लोग गर्म कपड़े पहनना शुरू कर देते है, तो कई लोग सर्दी के मध्यम में इसकी शुरूआत करते है। शरीर के तापमान को स्थिर रखने के लिए गर्म कपड़े अवश्य पहनें, खानपान सहीं रखें। ठंड अधिक होने पर बेवजह घर से बाहर ना निकले। इसके अलावा ऐसे रूम हीटर का भी प्रयोग किया जा सकता है, जिसके प्रयोग से कमरे में ऑक्सीजन कम न हो।