Phalguna Amavasya 2023 Date, Time And Pooja Vidhi

फाल्गुन अमावस्या 2023 -

सनातन धर्म में अमावस्या का पर्व का महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है.. ऐसे में फाल्गुन माह मे अमावस्या का पर्व 20 फरवरी 2023, दिन सोमवार को पड़ रहा है.. कहा जाता है अमावस्या का समय उसके दिन के अनुसार महत्वपूर्ण होता है.. इस बार फाल्गुन अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रही है, जिस कारण इसे सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाएगा.. फाल्गुन अमावस्या पर भगवान शिव, देवी पार्वती और पीपल के पेड़ की पूजा करी जाती है.. सुहागन महिलाएं इस दिन पति की दीघार्यु के लिए व्रत रखती है और पवित्र नदियों में स्नान कर व्रत का प्रारंभ करती है.. आईए जानते है फाल्गुन अमावस्या पर किस प्रकार सुहागन स्त्रियां करें भगवान शिव, देवी पार्वती और पीपल के पेड़ की पूजा और जानेंगे इस दिन किन कार्यों से बचना चाहिए..

 

फाल्गुन अमावस्या शुभ मुहूर्त

 

फाल्गुन अमावस्या मुहूर्त – 19 फरवरी 2023, दिन रविवार को शाम 04 बजकर 18 मिनट से आरंभ होकर 20 फरवरी दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक अमावस्या तिथि मान्य रहेगी..

 

उदया तिथि के अनुसार, फाल्गुन अमावस्या या सोमवती अमावस्या 20 फरवरी को होगी.. फाल्गुन अमावस्या परिघ योग और शिव योग में पड़ रही है.. 20 फरवरी को परिघ योग प्रात: काल से लेकर सुब​ह 11 बजकर 03 मिनट तक है, उसके बाद से शिव योग प्रारंभ हो रहा है..

फाल्गुन अमावस्या का महत्व

अमावस्या के दिन सुहागन महिलाएं पति की आयु लंबी करने के लिए व्रत रखती है.. इस दिन प्रात:काल उठकर पवित्र नदी में स्नान करने के बाद भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा कर व्रत का संकल्प ले.. इस दिन स्नान, दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.. शिव और गौरी की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है.. स्नान के बाद पितरों का तर्पण, पिंडदान करने से पितर प्रसन्न रहते है और पितृ दोष मुक्त होता है.

 

रुद्र, अग्नि और ब्राह्मणों का पूजन करके उन्हें उड़द, दही और पूरी आदि का नैवेद्य अर्पण करें और स्वयं भी उन्हीं पदार्थों का एक बार सेवन करें.

 

शिव मंदिर में जाकर गाय के कच्चे दूध, दही, शहद से शिवजी का अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पित करें.

 

अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है.. अमावस्या के लिए शनि मंदिर में नीले पुष्ण अर्पित करें.. काले तिल, काले साबुत उड़द, कड़वा तेल, काजल और काला कपड़ा अर्पित करें.

सांपों की जीभ क्यों होती है कटी हुई?

सांपों की जीभ क्यों होती है कटी हुई -

ये तो हम सभी जानते है कि सांप की जीभ आगे से दो हिस्सों में बटी हुई होती है, किंतु ये ऐसी क्यों होती है इसका वर्णन महाभारत में उल्लेखित है.. वेदव्यास रचित महाभारत में इससे सम्बंधित एक बहुत ही रोचक कथा है जो इस प्रकार हैं.

 

महाभारत के अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं.. इनमें से कद्रू भी एक थी.. सभी नाग कद्रू की संतान थी.. महर्षि कश्यप की एक अन्य पत्नी का नाम विनता था, पक्षीराज गरुड़ विनता के ही पुत्र थे.. एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद घोड़ा देखा, उसे देखकर कद्रू ने कहा कि इस घोड़े की पूंछ काली है और विनता ने कहा कि घोड़े की पूंछ सफेद है.. इस बात पर दोनों में शर्त लगी.. तब कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटा कर घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे उसकी पूंछ काली नजर आए और वह शर्त जीत जाए.

 

कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया, तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो.. श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी.. शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई.

 

जब गरुड़ को पता चला कि उनकी मां दासी बन गई है तो उन्होंने कद्रू और उनके सर्प पुत्रों से पूछा कि तुम्हें मैं ऐसी कौन सी वस्तु लाकर दूं जिससे कि मेरी माता तुम्हारे दासत्व से मुक्त हो जाए.. तब सर्पों ने कहा कि तुम हमें स्वर्ग से अमृत लाकर दोगे तो तुम्हारी माता दासत्व से मुक्त हो जाएगी.

 

अपने पराक्रम से गरुड़ स्वर्ग से अमृत कलश ले आए और उसे कुशा यानि एक प्रकार की धारदार घास पर रख दिया.. अमृत पीने से पहले जब सर्प स्नान करने गए तभी देवराज इंद्र अमृत कलश लेकर पुन: स्वर्ग लौट गए.. यह देखकर सांपों ने उस घास को चाटना शुरू कर दिया जिस पर अमृत कलश रखा था, सर्पौं को लगा कि इस स्थान पर थोड़ा अमृत का अंश अवश्य होगा, लेकिन घास नौकीली होने के कारण सभी सर्पो के जीभ के दो टुकड़े हो गए.

Maha Shivratri in 2023: Date & Timing, Parana Time 

महाशिवरात्रि 2023 -

महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाएगा.. कहते है जब शिव और पार्वती का मिलन हुआ, उस समय सबसे ज्यादा काली रात्रि थी, सृष्टि का प्रारंभ भी महाशिवरात्रि के दिन हुआ था.. महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्त भगवान शिव औऱ देवी पार्वती का विवाह करवाते है.. भगवान शिव के मंदिरों में शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी होती है.. फाल्गुन माह में शिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी दिन शनिवार को मनाया जाएगा.

 

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भक्त पूरे दिन शिव की उपासना करते है, जलाभिषेक कर व्रत का आरंभ करते है.. कहते है शिवरात्रि के समय पूरी रात्रि हवन, यज्ञ होता है, क्योंकि उस समय भगवान शिव का विवाह माता गौरी के साथ होता है.. शिव और शक्ति के मिलन में पूरा ब्राह्मांड साक्षी होता है.. मंत्रों की ध्वनि, ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ ही यज्ञ से निकली हुई आहूती संसार को पवित्र करती है.. ऐसे समय भगवान शिव और माता पार्वती अपने भक्तों की पुकार सुन पृथ्वी पर आते है.

 

अक्सर लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं होती कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा कैसे की जाएं.. पूजा के समय शिवलिंग पर क्या अर्पित किया जाएं.. किन चीजों में सावधानी बरतनी है और किन चीजों को नियम रूप से करना है, इस बात का आभास नहीं होता.. व्रत का प्रारंभ और पारण कैसे किया जाएं, ये सभी अहम जानकारी आपको आगे बताते है.. पहले जानते है महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त और शुभ संयोग

 

महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त –

वर्ष 2023 में महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी 2023 की रात्रि 8 बजकर 03 मिनट से शुरू होकर 19 फरवरी 2023 सायंकाल 4 बजकर 19 मिनट तक रहने वाला है.

 

यदि बात करें इस दिन के शुभ मुहूर्त की तो 18 फरवरी को सांयकाल 6 बजकर 41 मिनट से रात्रि 9 बजकर 47 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा.. इसके बाद 18 फरवरी को ही रात्रि 9 बजकर 47 मिनट से रात्रि 12 बजकर 53 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहने वाला है.. अगले दिन 19 फरवरी को रात्रि 12 बजकर 53 मिनट से सुबह तक 7 बजकर 06 मिनट तक शुभ मुहूर्त होगा. व्रत रखने वाले जातक 19 फरवरी 2023 की सुबह 6 बजकर 11 मिनट से दोपहर 2 बजकर 41 मिनट तक व्रत का पारण कर सकते हैं.

 

महाशिवरात्रि पर क्या करें, क्या नहीं?

 

  1. महाशिवरात्रि के दिन काले रंग के कपड़े पहनना शुभ नहीं माना जाता.. ऐसे में जातक हल्के रंग के कपड़े पहन कर पूजा करें
  2. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चढ़ाने वाला भोग ग्रहण करना अशुभ माना जाता है.. ऐसे करने से धन हानि और बीमारियां घर में प्रवेश करती है..
  3. शिवलिंग पर तुलसी ना चढ़ाएं, ना ही पाउडर और पैकेट वाले दूध से अभिषेक करना चाहिए.. शिवलिंग पर हमेशा शीतल यानि ठंडा दूध ही चढ़ाए..
  4. शिवलिंग पर अभिषेक करने के लिए प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों का उपयोग ना करें.. ऐसे में जातक सोना, चांदी या कांसे के बने हुए बर्तनों का प्रयोग करें..
  5. भगवान शिव को केतकी और चंपा का फूल ना चढाएं, क्योंकि स्वयं शिव ने ही इन फूलों को श्रापित किया था, यदि जातक इन फूलों का प्रयोग पूजा में करता है तो पूजा खंडित मानी जाती है..
  6. महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले जातक फल और दूध का आहार ग्रहण करें और अगले दिन व्रत का पारण करें.. हो सके तो सूर्यास्त के बाद कूछ भी ग्रहण ना करें..
  7. भगवान शिव की पूजा में टूटे हुए चावलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.. पूजा के समय अक्षत चावल, बिना टूटे ही अर्पित करें..
  8. शिवलिंग पर सबसे पहले पंचामृत चढ़ाना चाहिए. पंचामृत यानी दूध, गंगाजल, केसर, शहद और जल से बना हुआ मिश्रण. जो लोग चार प्रहर की पूजा करते हैं उन्हें पहले प्रहर का अभिषेक जल, दूसरे प्रहर का अभिषेक दही, तीसरे प्रहर का अभिषेक घी और चौथे प्रहर का अभिषेक शहद से करना चाहिए..
  9. भगवान शिव को दूध, गुलाब जल, चंदन, दही, शहद, घी, चीनी और जल का प्रयोग करते हुए तिलक लगाएं. भोलेनाथ को वैसे तो कई फल अर्पित किए जा सकते हैं, लेकिन शिवरात्रि पर बेर जरूर अर्पित करें, क्योंकि बेर को चिरकाल का प्रतीक माना जाता है..
  10. ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति पर केवल सफेद रंग के ही फूल ही चढ़ाने चाहिए. क्योंकि भोलेनाथ को सफेद रंग के ही फूल प्रिय हैं. शिवरात्रि पर भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए चंदन का टीका लगा सकते हैं. शिवलिंग पर कभी भी कुमकुम का तिलक ना लगाएं. हालांकि भक्तजन मां पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति पर कुमकुम का टीका लगा सकते हैं.
  11. इस दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए. जल्दी उठ जाएं और बिना स्नान किए कुछ भी ना खाएं. व्रत नहीं है तो भी बिना स्नान किए भोजन ग्रहण नहीं करें..

2023 Vijaya Ekadashi Vrat, fasting date and Parana time

Vijaya Ekadashi 2023 -

विजया एकादशी का व्रत हर साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है.. एकादशी का पर्व भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है, जो समस्त समस्याओं को दूर सिर्फ एकादशी व्रत के माध्यम से करते है.. हर माह में दो एकादशी के व्रत होते है, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की.. सभी एकादशी का फल भी उसे के अनुसार श्रीहरि विष्णु देते है.. विजया एकादशी का व्रत, सभी बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का फल देती है.. विजया एकादशी की कथा भी भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है, जिसमें उन्होनें रावण का वध कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी.. आईए अब जानते है विजया एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, महत्व और कथा..

 

विजया एकादशी मुहूर्त और तिथि

 

विजया एकादशी की तिथि – एकादशी तिथि का प्रारंभ 16 फरवरी दिन गुरूवार को होगा और इसी दिन याचक एकादशी का व्रत रख सकता है.. एकादशी तिथि का पारण अगले दिन 17 फरवरी दिन शुक्रवार को होगा..

 

विजया एकादशी मुहूर्त – व्रत आरंभ 16 फरवरी प्रात: 05 बजकर 32 मिनट से लेकर… व्रत पारण 17 फरवरी प्रात: 02 बजकर 49 मिनट पर  

 

विजया एकादशी महत्व

वैसे तो सभी एकादशी के अपने अलग-अलग महत्व है, किंतु विजया एकादशी का प्रभाव वर्तमान और पूर्व जन्म के सभी पापों को नष्ट कर देता है.. विजया एकादशी का व्रत करने से श्रीहरि विष्णु याचक के सभी कष्टों को समाप्त कर देते है, बुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देते है.. शत्रुओं को परास्त करते है तथा याचक की इच्छा को पूर्ण करते है.. कहते है विजया एकादशी के व्रत का वर्णन पद्मपुराण और स्कंद पुराण में किया गया है.. प्राचीन काल में भी राजा और महाराजा युद्ध से पहले विजया एकादशी के व्रत को कर युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए श्रीहरि विष्णु का आशीर्वाद लिया करते थे..

 

विजया एकादशी पूजा विधि

 

विजया एकादशी व्रत में याचक को सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में उठना चाहिए.. गंगाजल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें..

 

मंदिर को स्वच्छ कर श्रीहरि विष्णु को स्नान करवाएं, फिर उन्हें पीले वस्त्र प्रदान करें..

 

मंदिर में मूर्ति स्थापित करने से पहले कलश पर आम से पत्तों से घेरा बना ले, इसके बाद नारियल पर कलावा बांध कर कलश पर रखें और मंदिर में मूर्ति स्थापित करें..

 

घी का दीपक जलाएं और भगवान को सात्विक भोग लगाएं, भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य रखें.. एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में जल बिल्कुल भी ना डाले, कहते है कि देवी तुलसी रविवार और एकादशी के दिन निर्जला व्रत करती हैं, जिससे वे कुछ भी ग्रहण नहीं करती.. एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में पानी डालने से उनका व्रत खंडित हो जाता है, जिस कारण देवी तुलसी, श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी आपसे रुष्ट हो सकते है..

 

एकादशी के दिन केवल एक बार ही फलाहार करें, रातभर में विष्णुजी के नाम का जागरण कर या फिर उनके नाम की माला का जाप कर अगले दिन प्रात: व्रत का पारण किया जाता है.. एकादशी व्रत के पारण के समय याचक मंदिर में या किसी जरुरतमंद को कुछ दान करें..

 

विजया एकादशी व्रत कथा

 

कथा के अनुसार जब रावण ने देवी सीता का हरण किया था, तब उन्हें खोजने के लिए श्रीराम की सेना समुंद्रतट के किनारे पहुंचे, श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी से प्रश्न किया, कि हम सभी इस समुंद्र को कैसे पार करेंगे.. लक्ष्मण जी ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, आप सब जानते हैं.. यहां से आधा योजन दूरी पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए..

 

लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए.. मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषिवर, मैं अपनी सेना सहित आपके पास सहायता के लिए आया हूं और अपनी पत्नी देवी सीता की खोज के लिए लंका जा रहा हूं.. आप कृपा करके समुंद्र पार करने का कोई मार्ग बताईए… वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुंद्र भी अवश्य पार कर लेंगे.. वकदालभ्य ऋषि के कहे अनुसार श्रीराम ने एकादशी का व्रत किया, जिस प्रकार उन्होनें बड़ी आसानी से समुद्र पार किया और रावण का अंत किया..

किस समय बैठती है विद्या देवी सरस्वती हमारी जुबान पर?

विद्या देवी सरस्वती -

हम अक्सर अपने बड़े बुजुर्गों के मुंह से सुनते हैं कि हमें हमेशा शुभ और सकारात्मक बातें करनी चाहिए. बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि किसी भी मनुष्य को अपशब्द और नकारात्मक बातें नहीं करनी चाहिए क्योंकि क्या पता उस समय उनके मुंह पर मां सरस्वती विराजमान हो और वह नकारात्मक बातें सच हो जाए… आइए जानते है कि क्या ऐसा सच में संभंव होता है? यदि होता है तो किस समय माता सरस्वती हमारी जुबान पर आसीन होती है? यह बात केवल कोरी कल्पना नहीं है और ऐसा वास्तव में देखा गया है.

 

जैसा कि हम सभी जानते हैं माता सरस्वती बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी है. वह शब्द की माधुर्य और ज्ञानवती है. वीणा वादिनी सरस्वती ने ही सर्वप्रथम सृष्टि में स्वर भरे हैं, ऐसी मान्यता है कि माता सरस्वती से सर्वप्रथम “स” स्वर की उत्पत्ति हुई और इसी वजह से संसार के सभी नदी, नालों और पक्षियों को आवाज मिली.

 

यह भी बेहद लोकप्रिय मान्यता है कि पूरे 1 दिन यानी 24 घंटे में एक समय ऐसा आता है जब प्रत्येक मनुष्य के जुबान पर माता सरस्वती स्वयं आसीन होती है. इस विषय में ऐसा कहा जाता है कि इस समय उपरांत जो भी शब्द मनुष्य बोलता है वह सच हो जाते हैं.

 

मित्रों धर्म पुराणों के अनुसार रात्रि के 3:10 से 3:15 के 5 मिनट यह ऐसे होते हैं जो प्रत्येक मनुष्य की जुबान पर माता सरस्वती स्वयं होती है. अब आप सोचेंगे, कि इस समय तो कोई जागता ही नहीं है… तो इस बात का क्या आशय हुआ? लेकिन ऐसा नहीं है यह वह चरम सीमा समय है जब हमें किसी भी परिस्थिति में किसी प्रकार के अपशब्द या नकारात्मक बातों का वर्णन नहीं करना है. लेकिन इसका असर प्रातः काल तक रहता है इसलिए आपको प्रातः कालीन यानी कि सूर्योदय से पहले और सूर्योदय के कुछ समय बाद भी किसी प्रकार के एक शब्द या नकारात्मक बातों का वर्णन नहीं करना है. यदि आप किसी के लिए बुरा कह रहे है तो वे सच हो जाता है… किंतु वहीं नकारात्मक शब्द पुन: लौटकर वापस आपके पास ही आते है.

 

यदि आप इस समय के उपरांत बिना कुछ इस्छा के मां सरस्वती का स्मरण कर ले, तो मां सरस्वती अत्यधिक प्रसन्न होकर आपको शुभ कार्यों के लिए आशीर्वाद देकर जाती है… इस समय के उपरांत बहुत से पंडित, ऋषि-मुनि यज्ञ कर रहे होते है, यज्ञ के दौरान ऋषि-मुनि जिस भी देवता का आवाहन करते है वे प्रकट हो जाते है.

 

तो यदि आप भी मां सरस्वती का आशीर्वाद चाहते है तो बताएं गए समय पर उनको याद करें और मनवांछित फल की प्राप्ति करें.

श्री कृष्ण और सुखिया मालिन की कहानी

श्री कृष्ण और सुखिया मालिन की कहानी -

ये बात उस समय की है जब श्रीकृष्ण बालक के रूप में थे. श्रीकृष्ण का मनमोहक चेहरा देखने के लिए दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते थे. मईया यशोदा हमेशा नन्हें बालक कान्हा की नजर उतारती रहती थी. ब्रजधाम, मथुरा, बरसाना के लोग कान्हा के सुंदर रूप का ही वर्णन करते रहते थे. ब्रजधाम में एक सुखिया नाम की मालिन आती थी. वह फल, फूल और सब्जी बेचकर अपना गुजारा किया करती थी. ब्रजधाम में सुखिया जब भी गोपियों से मिलती, तो वो उनसे नन्दलाला के बारे में पूछा करती थीं. बाल कृष्ण की लीला सुनने में सुखिया को बहुत आनंद आता था. उसका मन भी बाल कृष्ण के दर्शन करने को तरसता था. सुखिया, श्री कृष्ण को देखने के लिए घंटों तक नन्द बाबा के महल के सामने खड़ी रहती थी, लेकिन उसे श्री कृष्ण के कभी दर्शन नहीं हो पाते थे और शाम होते ही वे निराश होकर वापस अपने घर चली जाती. रात को खाना खाते वक्त भी वे नन्दलाला के बारे में सोचा करती थी.

 

भगवान कृष्ण तो अंतर्यामी हैं, उन्हें तो सब पता चल ही जाता था. जब उन्हें पता चला कि सुखिया उनकी परम भक्त है, तो उन्होंने सुखिया को दर्शन देने का निर्णय लिया. अगले दिन सुखिया ने नन्द महल के सामने आवाज दी, “फल ले लो फल”… सुखिया की आवाज सुनकर श्री कृष्ण दौड़े चले आए. नन्दलाल को अपने सामने देखकर सुखिया की खुशी का कोई ठिकाना न रहा. सुखिया ने नन्हे कृष्ण को बहुत से फल दे दिए. नन्दलाल उस समय बहुत छोटे थे तो उनके हाथ में फल नहीं आ पाते थे, फिर भी श्रीकृष्ण को सुखिया का परम प्रेम बेहद ही पसंद आया.

 

फल की कीमत चुकाने के लिए श्री कृष्ण बार-बार महल के अंदर जाते और मुट्ठी भर कर अनाज लाने की कोशिश करते, लेकिन सारा अनाज रास्ते में ही बिखर जाता था. सुखिया को भगवान कृष्ण दो चार दाने ही दे पाए. सुखिया के मन में इस बात का कोई मलाल न था. वह तो बहुत खुश थी कि आज उसने अपने हाथों से भगवान को फल दिए और उन्होंने वो फल खाए.

 

सुखिया मुस्कुराती हुई अपने घर पहुंची. उसकी फल की टोकरी खाली थी, क्योंकि वो सारे फल श्री कृष्ण को दे आई थी. घर जाकर उसने टोकरी अपने सिर से उतारी तो पाया कि उसकी टोकरी हीरे जवाहरात से भरी हुई है. सुखिया समझ गई कि यह भगवान की लीला है. उसने मन ही मन बाल गोपाल को धन्यवाद दिया. इस तरह श्री कृष्ण ने अपनी परम भक्त सुखिया का उद्धार किया.

Kumbha Sankranti 2023: Rashifal

कुंभ संक्रांति पर राशि-प्रभाव -

ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार फरवरी 2023 का माह काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है, क्योंकि इसमें सूर्य का गोचर मकर से कुंभ राशि में होने वाला है, साथ ही महाशिवरात्रि का पावन पर्व भी इसी माह में है.. ग्रहों के राजा सूर्य देव का राशि परिवर्तन होने जा रहा है, ऐसे में कई राशियों के लिए ये परिवर्तन शुभ और कई राशियों के लिए ये परिवर्तन अशुभ बताया जा रहा है..

 

कुंभ राशि में शनिदेव पहले से ही विराजित है और सूर्य देव को शनिदेव का शत्रु कहा जाता है.. एक ही राशि में दो शत्रुओं का होना क्या कोई अशुभ संकेत पैदा करेगा, इसकी जानकारी आपको आगे बताएंगे.. शत्रु योग का समय 14 मार्च 2023 तक रहने वाला है.. ऐसे में इन दिनों 12 राशियों पर इसका प्रभाव क्या रहेगा आईए जानते है..

 

मेष राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मेष राशि वालों को फरवरी माह में वाहन, भूमि, क्रय-विक्रय से लाभ होगा, यश में वृद्धि होगी.. अटके हुए धन की वापसी हो सकती है.. अगर आप किसी कार्य में सफलता पाने का प्रयास कर रहे हैं, तो आपका कार्य पूर्ण हो सकता है.. फरवरी माह मेष राशि के जातकों के लिए शुभ है..

वृषभ राशि- ज्योतिष गणना के अनुसार वृषभ राशि वाले के लिए फरवरी माह अनुकूल रहने वाला है. इस दौरान वृषभ राशि वालों को कोई सुखद समाचार प्राप्त हो सकता है.. आय में वृद्धि हो सकती है.. शेयर मार्केट में निवेश करने से मुनाफा हो सकता है.. व्यापारियों के लिए ये माह शुभ और मुनाफा प्राप्त करने वाला बन रहा है..

मिथुन राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मिथुन राशि के जातकों के लिए यह माह थोड़ा मुश्किल भरा रहने वाला है.. मेहनत के बाद फल प्राप्त होने का अनुमान लगाया जा रहा है. कार्यक्षेत्र में बाधा उत्पन्न हो सकती है, कोई भी कार्य सावधानी के साथ करें..

कर्क राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार कर्क राशि के जातकों के लिए यह माह सामान्य रहेगा, क्योंकि आर्थिक स्थिति बेहतर रहने का अनुमान इस माह के काफी शुभ है.. मित्रों के साथ अपने संबंध बेहतर रखें, क्योंकि उनके सहयोग से कारोबार में वृद्धि हो सकती है.. शनि की ढैय्या चल रही है, तो कोई कार्य यदि आप करेंगे तो उसमें सफलता के आसार अत्यधिक होंगे..

सिंह राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार सिंह राशि के जातकों के लिए यह माह मध्यकाल में बेहतर होगा.. घरेलु समस्याओं का समाधान हो सकता है, रुका हुआ धन वापस आ सकता है.. व्यापार के कार्य में वृद्धि हो सकती है..

कन्या राशि- ज्योतिष गणना के अनुसार कन्या राशि के जातकों के लिए यह माह शुभ और अशुभ दोनों हो सकता है.. नौकरी की तलाश करने वालों को सफलता मिल सकती है.. घर-परिवार के सदस्यों की सेहत का ध्यान रखना होगा, खुद की सेहत का भी ध्यान आपको इस समय ज्यादा देना होगा.. खान-पान में अनदेखी ना करें, इससे कोई बिमारी उत्पन्न हो सकती है.. किसी कार्य को करने से शुभ संकेत या संदेश प्राप्त हो सकते है..

तुला राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार तुला राशि के जातकों के लिए ये माह अशुभ रहेगा.. किया हुआ कार्य असफल होगा.. किसी अपने या सगे संबंधियों से विश्वासघात होने की संभावना है.. धन हानि हो सकती है.. मेहनत का परिणाम सुख नहीं देगा, स्वास्थय के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है..

वृश्चिक राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार वृश्चिक राशि के जातकों के लिए ये माह शुभ संदेश देगा.. यदि आप भूमि, भवन, वाहन को खरीदने का सोच रहे है, तो ये समय उचित है.. धन वृद्धि के योग है, किसी व्यापार में निवेश सफल होगा..

धनु राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार धनु राशि के जातकों के लिए ये माह काफी शुभ और धन वृद्धि के आसार का रहने वाला है.. यदि धनु राशि के जातक निवेश का सोच रहे है, तो इसमें वृद्धि के आसार अत्यधिक है.. शेयर मार्केट से जुड़े लोगों को मुनाफा हो सकता है..

मकर राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मकर राशि के जातकों के लिए ये माह मानसिक कष्ट दे सकता है.. राशि परिवर्तन के कारण आपको स्वास्थय से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है.. घर-परिवार के लोगों का समर्थन मिलेगा, संतान को लेकर चिंता हो सकती है..

कुंभ राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार कुंभ राशि के जातकों के लिए फरवरी माह शुभ संकेतों से भरा है.. महत्वपूर्ण यात्रा पर जा सकते है.. किसी कार्य को शुरू करने पर सफलता के आसार अधिक है.. आय में वृद्धि होगी, व्यापारियों को मुनाफा होगा.. कार्यक्षेत्र में नए पद का निमंत्रण मिल सकता है..

मीन राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मीन राशि के जातकों के लिए फरवरी माह शुभ है.. इस माह में संतान पक्ष में वृद्धि हो सकती है.. आय में वृद्धि हो सकती है, नए कार्यों को लेकर चिंता खत्म होगी.. कहीं से शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है..

कैसे प्राप्त हुआ भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र?

भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति -

एक बार की बात है, राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था… कोई भी धार्मिक कार्य करना मुश्किल हो गया था… राक्षसों ने पूरी पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था… राक्षस स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमाना चाहते थे, देवराज इंद्र उस समय स्वर्ग के राजा थे, वो स्वर्ग के सभी देवतागणों को लेकर भगवान विष्णु के पास गए… उन्होनें भगवान विष्णु से प्रार्थना की और कहा कि हे प्रभु, आप ही हमें राक्षसों के प्रकोप से मुक्ति दीजिए… भगवान विष्णु देवताओं की दशा देख भी रहे थे और सब समझ भी रहे थे, उन्हें ज्ञात था कि इस समस्या का समाधान वो खुद नहीं बल्कि भगवान शिव कर सकते है.

 

भगवान विष्णु, भगवान शिव को अपना आराध्य मानते है और भगवान शिव, भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते है… देवताओं के सहायता करने के लिए भगवान विष्णु ने हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर भगवान शिव की घोर तपस्या में विलीन हो गए… भगवान विष्णु, भगवान शिव के एक हजार नामों का जाप करने लगे, हर नाम के साथ उन्होने एक कमल का फूल चढ़ाने का संकल्प लिया… ये सब देख भगवान शिव ने सोचा कि क्यों ना आज मैं अपने आराध्य भगवान विष्णु की परीक्षा लूं, उन्हें ज्ञात था कि देवताओं पर मुसीबत आई है और भगवान विष्णु उनकी सहायता के लिए मेरा तप कर रहे है.

 

भगवान शिव ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए एक हजार कमल के फूल में से एक कमल का फूल गायब कर दिया… भगवान विष्णु शिव की तपस्या में लीन होने के कारण उन्हें इस बात की अनुभूति नहीं हुई और वो तपस्या करते रहे… भगवान विष्णु तपस्या करते समय भगवान शिव का एक नाम पुकारते और एक कमल का फूल चढ़ाते, जब अंतिम नाम की बारी आई तो भगवान विष्णु ने देखा कि कमल एक कम पढ़ गया, अगर कमल नहीं चढ़ाते तो उनकी तपस्या और संकल्प भंग हो जाएगा, इसलिए भगवान विष्णु ने कमल की जगह अपनी एक आंख चढ़ा दी.

 

भगवान शिव ने जब भगवान विष्णु जी की इस भक्ति को देखा, तो भावुक हो गए और प्रसन्न होकर प्रकट हुए, भगवान शिव ने भगवान विष्णु जी को वरदान मांगने को कहा… भगवान विष्णु ने कहा कि हे आराध्य, आप सब जानते है, राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण किया है उनका संहार करने के लिए आप ही अजय शस्त्र प्रदान कर सकते है, वरदान के रूप में मुझे वो शस्त्र दीजिए… भगवान शिव ने विष्णु जी को अजय शस्त्र के रूप में सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जिससे भगवान विष्णु ने सभी राक्षसों का वध उस चक्र के माध्यम से किया… सुदर्शन चक्र एकमात्र ऐसा शस्त्र है जिससे किसी भी राक्षस को मारा जा सकता है, सभी शस्त्रों का स्वामी है सुदर्शन चक्र.

शेर कैसे बना मां दुर्गा का वाहन?

मां दुर्गा का वाहन -

शेर का मां दुर्गा का वाहन बनने की कहानी तब शुरू होती है, जब देवी पार्वती घोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में पाने की कोशिश कर रही थी… सालों तक तप करने के बाद माता पार्वती को भोले भंडारी अपनी पत्नी के रूप में अपना लेते है… इसी बीच तपस्या की वजह से मां पार्वती का रंग काफी काला पड़ जाता था… एक दिन ऐसे ही बातचीत के दौरान भगवान शिव मां पार्वती को काली कह देते है, ये बात उन्हें पसंद नहीं आती… मां पार्वती नाराज होकर दोबारा तप करने के लिए चली जाती है.

 

माता पार्वती जब तपस्या कर रही थी, उसी समय वहां एक शेर घूमते-घूमते आ जाता है, माता को खाने की इच्छा रखने वाला शेर माता का तप पूर्ण होने की प्रतिक्षा करता है… समय बीतता जाता है और शेर इंतजार ही करता है… सालों बीत जाते है शेर को देवी का इंतजार करते-करते… जब भी वह देवी को खाने की इच्छा लेकर उनके पास जाता, तो उनके तप की तेज की वजह से वह पीछे हट जाता… कई बार कोशिशों के बावजूद भी शेर माता के नजदीक नहीं जा पाता और हार कर कोने में बैठ जाता है… माता पार्वती के कठोर तप से खुश होकर भगवान शिव प्रकट होते है और मां से मन चाहा वर मांगने को कहते है.

 

माता पार्वती कहती है, कि मुझे पहले की तरह अपना गोरा रंग वापस चाहिए… माता पार्वती के इस वर को भगवान शिव पूर्ण करते है…आशीर्वाद मिलते ही माता पार्वती नहाने के लिए चली जाती है, उनके नहाते ही उनके शरीर से एक और देवी का जन्म हो जाता है, जिनका नाम कौशिकी पड़ता है… नहाते समय उनके शरीर से काला रंग निकल जाता है और माता पार्वती का रंग पहले की तरह साफ हो जाता है… इसी वजह से माता पार्वती का नाम मां गौरी भी रखा जाता है… नहाने के कुछ देर बाद जब माता पार्वती बाहर आती है, तो उनकी नजर शेर पर पड़ती है, जो माता को खाने की प्रतिक्षा में भूखा ही एक कोने में बैठा था.

 

माता पार्वती भगवान शिव के पास जाती है और उनसे वरदान मांगती है… माता पार्वती कहती है कि हे नाथ… ये शेर सालों से मुझे भोजन के रूप में ग्रहण करने के लिए इंतजार कर रहा था, जितना तप मैंने किया है, उतना ही तप मेरे साथ इस शेर ने भी किया है… इसी वजह से आप इस शेर को वरदान के रूप में मेरी सवारी बना दीजिए… भगवान शिव ने माता पार्वती की इस बात से प्रसन्न होकर शेर को उनकी सवारी बना दी… आशीर्वाद मिलने के बाद माता शेर पर सवार हो गई और तभी से उनका नाम मां शेरावाली और मां दुर्गा पड़ गया.

Kalashtami 2023 February: Date ,Time, Significance

कालाष्टमी 2023 -

कालाष्टमी का पर्व भगवान शिव के रूप को समर्पित है, जिसे शिव भक्त श्रद्धा के साथ मनाते है.. कालाष्टमी को काल भैरव अष्टमी के रूप में भी मनाते है.. वैसे तो कालाष्टमी हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है, किंतु सभी माह का अपना अलग महत्व है.. फरवरी माह में कालाष्टमी फाल्गुन माह की अष्टमी तिथि को है जो 13 फरवरी दिन सोमवार को पड़ रही है.. सोमवार का दिन भगवान शिव का माना जाता है और ऐसे में उन्हीं के दूसरे रूप कालभैरव का दिन भी है.. शिव भक्तों के लिए ये दिन काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है, क्योंकि शिव पूजा के साथ-साथ वह कालाष्टमी की पूजा भी कर सकते है।

 

कालभैरव ने दुष्टों का संघार करने के लिए रौद्र रुप धारण किया था, जिन्हें शिव का स्वरुप कहा जाता है..

 

कालाष्टमी पूजा मुहूर्त एवं तिथि

कालाष्टमी तिथि, दिन सोमवार, 13 फरवरी 2023

 

कालाष्टमी फाल्गुन माह, कृष्ण अष्टमी

 

कालाष्टमी मुहूर्त – 13 फरवरी, दिन सोमवार सुबह 9 बजकर 46 मिनट से – 14 फरवरी, दिन मंगलवार, सुबह 9 बजकर 04 मिनट तक

 

काल रूप अंधकार रूपी कहा जाता है, जिसे रात्रि में पूजा जाता है.. ऐसे में कालाष्टमी की पूजा अष्टमी तिथि की रात्रि को ही की जाएगी..

 

कालाष्टमी महत्व

कहते है कि भगवान शिव ने समस्त दुष्टों का नाश करने के लिए काल भैरव का रूप धारण किया था, जिसे कालभैरव जयंती या कालाष्टमी के रूप में पूजा जाता है। कालाष्टमी के दिन यदि कोई याचक श्रद्धापूर्वक कालभैरव की पूजा करता है, तो वह तमाम कष्टों और आने वाली विपदा से छुटकारा पाता है। कालभैरव की पूजा अष्टमी तिथि की रात्रि को की जाती है, याचक कालभैरव की कृपा पाने के लिए रात्रि के समय कालभैरव मंत्र से उन्हें प्रसन्न करें और अनुष्ठान करें। अकाल मृत्यु और यदि कुंडली में राहु या केतु किसी नकारात्मक दिशा में है तो उससे भी छुटकारा कालभैरव की पूजा से किया जा सकता है। कालाष्टमी के दिन कालभैरव का ये मंत्र आपको दिलाएगा सभी समस्याओं से निजात, करें इसकी 108 माला.

 

काल भैरव मंत्र

ओम भयहरणं च भैरव:

ओम कालभैरवाय नम:

ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं

ओम भ्रं कालभैरवाय फट्