जया एकादशी 2023 -

सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि एकादशी व्रत करने से अनेकों गुणा फल की प्राप्ति होती है। साल में 24 से 26 एकादशी के व्रत होते है, जिनका अपना अलग महत्व होता है, वैसे ही जया एकादशी व्रत का अपना अलग महत्व है। यह एकादशी माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाएगा। जया एकादशी का व्रत नीच योनि, प्रेत, भूत आदि को नष्ट कर विशेष फल देता है। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन सात्विक रूप से एक समय फलहार करके भगवान विष्णु का स्मरण किया जाता है। जया एकादशी को भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है।

 

जया एकादशी का मुहूर्त

पंचांग के अनुसार जया एकादशी तिथि 31 जनवरी 2023 सुबह 11 बजकर 53 मिनट पर आरंभ होगी और 1 फरवरी 2023 को दोपहर बाद 02 बजकर 01 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. शास्त्रों में उदया तिथि के अनुसार ही एकादशी का व्रत मान्य होता है, इसलिए 1 फरवरी के दिन जया एकादशी का व्रत रखा जाएगा.

 

जया एकादशी की पूजा

जया एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसे में व्रत रखने वाले याचक को ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। फिर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें। यदि याचक पीले रंग के वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करता है तो देव प्रसन्न होते है, क्योंकि भगवान विष्णु की प्रिय रंग पीला है। पूजा के समय भगवान को पीली चीजों का भोग लगाएं और चढ़ाएं। ऐसे में पीला अंगोछा सामर्थयनुसार दान करें, पीले पुष्प और फल चढ़ाएं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और जो फल और मिष्ठान भगवान को भोग लगाया है उसे प्रसाद के रूप में बांटे.. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। एकादशी के दिन याचक कुछ भी खाने से पहले किसी को या मंदिर में जाकर दान अवश्य करें.. ऐसा करने से देव प्रसन्न होते है, क्योंकि इस दिन दान की मान्यता अधिक होती है..

 

जया एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय स्वर्गलोक पर नंदन वन में उत्सव चल रहा था.. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष उपस्थित थे.. उत्सव में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं.. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था.. इसी बीच पुष्पवती की नज़र माल्यवान पर पड़ी और वह मोहित हो गई.. पुष्पवती सभा की मर्यादाओं को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी, जिससे माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो.. माल्यवान गंधर्व कन्या के नृत्य को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादाओं से भटक गया, जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये..

 

स्वर्ग के राजा इन्द्रदेव को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध आया और उन्होंने दोनों को स्वर्गलोक से निकालकर मृत्युलोक पर जीवन व्यतीत करने का श्राप दिया.. मृत्यु लोक में नीच पिशाच योनि में दोनों को जन्म मिला.. श्राप के कारण दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास स्थान बन गया.. पिशाच योनि में रहकर दोनों ने बहुत कष्ट झेला.. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे.. उस दिन उन्होनें भोजन ना करके केवल फलहार पर रहे.. रात्रि के समय दोनों को ठंड लगने के कारण निद्रा नहीं आई और ठंड के कारण उनकी मृत्यु हो गई.. जाने – अनजाने में जया एकादशी के दिन दोनों ने फलहार करके रात को जागकर एकादशी का व्रत समपूर्ण कर लिया था, जिस कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई.. अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर और गुणवती हो गए और स्वर्गलोक में उन्हें स्थान मिल गया..

 

देवराज इंद्र ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह प्रश्न पूछा.. माल्यवान ने देवराज इंद्र को जया एकादशी के व्रत की सारी बात बताई और फिर भगवान ने उन्हें पिशाच योनि से मुक्त कर दिया.. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें..

 

श्रीकृष्ण ने भी जया एकादशी के महत्व में बताया, कि इस दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से हरि विष्णु की पूजा करें..