Phalguna Amavasya 2023 Date, Time And Pooja Vidhi

फाल्गुन अमावस्या 2023 -

सनातन धर्म में अमावस्या का पर्व का महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है.. ऐसे में फाल्गुन माह मे अमावस्या का पर्व 20 फरवरी 2023, दिन सोमवार को पड़ रहा है.. कहा जाता है अमावस्या का समय उसके दिन के अनुसार महत्वपूर्ण होता है.. इस बार फाल्गुन अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रही है, जिस कारण इसे सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाएगा.. फाल्गुन अमावस्या पर भगवान शिव, देवी पार्वती और पीपल के पेड़ की पूजा करी जाती है.. सुहागन महिलाएं इस दिन पति की दीघार्यु के लिए व्रत रखती है और पवित्र नदियों में स्नान कर व्रत का प्रारंभ करती है.. आईए जानते है फाल्गुन अमावस्या पर किस प्रकार सुहागन स्त्रियां करें भगवान शिव, देवी पार्वती और पीपल के पेड़ की पूजा और जानेंगे इस दिन किन कार्यों से बचना चाहिए..

 

फाल्गुन अमावस्या शुभ मुहूर्त

 

फाल्गुन अमावस्या मुहूर्त – 19 फरवरी 2023, दिन रविवार को शाम 04 बजकर 18 मिनट से आरंभ होकर 20 फरवरी दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक अमावस्या तिथि मान्य रहेगी..

 

उदया तिथि के अनुसार, फाल्गुन अमावस्या या सोमवती अमावस्या 20 फरवरी को होगी.. फाल्गुन अमावस्या परिघ योग और शिव योग में पड़ रही है.. 20 फरवरी को परिघ योग प्रात: काल से लेकर सुब​ह 11 बजकर 03 मिनट तक है, उसके बाद से शिव योग प्रारंभ हो रहा है..

फाल्गुन अमावस्या का महत्व

अमावस्या के दिन सुहागन महिलाएं पति की आयु लंबी करने के लिए व्रत रखती है.. इस दिन प्रात:काल उठकर पवित्र नदी में स्नान करने के बाद भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा कर व्रत का संकल्प ले.. इस दिन स्नान, दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.. शिव और गौरी की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का फल प्राप्त होता है.. स्नान के बाद पितरों का तर्पण, पिंडदान करने से पितर प्रसन्न रहते है और पितृ दोष मुक्त होता है.

 

रुद्र, अग्नि और ब्राह्मणों का पूजन करके उन्हें उड़द, दही और पूरी आदि का नैवेद्य अर्पण करें और स्वयं भी उन्हीं पदार्थों का एक बार सेवन करें.

 

शिव मंदिर में जाकर गाय के कच्चे दूध, दही, शहद से शिवजी का अभिषेक करें और उन्हें काले तिल अर्पित करें.

 

अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है.. अमावस्या के लिए शनि मंदिर में नीले पुष्ण अर्पित करें.. काले तिल, काले साबुत उड़द, कड़वा तेल, काजल और काला कपड़ा अर्पित करें.

Maha Shivratri in 2023: Date & Timing, Parana Time 

महाशिवरात्रि 2023 -

महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाएगा.. कहते है जब शिव और पार्वती का मिलन हुआ, उस समय सबसे ज्यादा काली रात्रि थी, सृष्टि का प्रारंभ भी महाशिवरात्रि के दिन हुआ था.. महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्त भगवान शिव औऱ देवी पार्वती का विवाह करवाते है.. भगवान शिव के मंदिरों में शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी होती है.. फाल्गुन माह में शिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी दिन शनिवार को मनाया जाएगा.

 

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भक्त पूरे दिन शिव की उपासना करते है, जलाभिषेक कर व्रत का आरंभ करते है.. कहते है शिवरात्रि के समय पूरी रात्रि हवन, यज्ञ होता है, क्योंकि उस समय भगवान शिव का विवाह माता गौरी के साथ होता है.. शिव और शक्ति के मिलन में पूरा ब्राह्मांड साक्षी होता है.. मंत्रों की ध्वनि, ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ ही यज्ञ से निकली हुई आहूती संसार को पवित्र करती है.. ऐसे समय भगवान शिव और माता पार्वती अपने भक्तों की पुकार सुन पृथ्वी पर आते है.

 

अक्सर लोगों को इस बात का ज्ञान नहीं होती कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा कैसे की जाएं.. पूजा के समय शिवलिंग पर क्या अर्पित किया जाएं.. किन चीजों में सावधानी बरतनी है और किन चीजों को नियम रूप से करना है, इस बात का आभास नहीं होता.. व्रत का प्रारंभ और पारण कैसे किया जाएं, ये सभी अहम जानकारी आपको आगे बताते है.. पहले जानते है महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त और शुभ संयोग

 

महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त –

वर्ष 2023 में महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी 2023 की रात्रि 8 बजकर 03 मिनट से शुरू होकर 19 फरवरी 2023 सायंकाल 4 बजकर 19 मिनट तक रहने वाला है.

 

यदि बात करें इस दिन के शुभ मुहूर्त की तो 18 फरवरी को सांयकाल 6 बजकर 41 मिनट से रात्रि 9 बजकर 47 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहेगा.. इसके बाद 18 फरवरी को ही रात्रि 9 बजकर 47 मिनट से रात्रि 12 बजकर 53 मिनट तक शुभ मुहूर्त रहने वाला है.. अगले दिन 19 फरवरी को रात्रि 12 बजकर 53 मिनट से सुबह तक 7 बजकर 06 मिनट तक शुभ मुहूर्त होगा. व्रत रखने वाले जातक 19 फरवरी 2023 की सुबह 6 बजकर 11 मिनट से दोपहर 2 बजकर 41 मिनट तक व्रत का पारण कर सकते हैं.

 

महाशिवरात्रि पर क्या करें, क्या नहीं?

 

  1. महाशिवरात्रि के दिन काले रंग के कपड़े पहनना शुभ नहीं माना जाता.. ऐसे में जातक हल्के रंग के कपड़े पहन कर पूजा करें
  2. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चढ़ाने वाला भोग ग्रहण करना अशुभ माना जाता है.. ऐसे करने से धन हानि और बीमारियां घर में प्रवेश करती है..
  3. शिवलिंग पर तुलसी ना चढ़ाएं, ना ही पाउडर और पैकेट वाले दूध से अभिषेक करना चाहिए.. शिवलिंग पर हमेशा शीतल यानि ठंडा दूध ही चढ़ाए..
  4. शिवलिंग पर अभिषेक करने के लिए प्लास्टिक और स्टील के बर्तनों का उपयोग ना करें.. ऐसे में जातक सोना, चांदी या कांसे के बने हुए बर्तनों का प्रयोग करें..
  5. भगवान शिव को केतकी और चंपा का फूल ना चढाएं, क्योंकि स्वयं शिव ने ही इन फूलों को श्रापित किया था, यदि जातक इन फूलों का प्रयोग पूजा में करता है तो पूजा खंडित मानी जाती है..
  6. महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले जातक फल और दूध का आहार ग्रहण करें और अगले दिन व्रत का पारण करें.. हो सके तो सूर्यास्त के बाद कूछ भी ग्रहण ना करें..
  7. भगवान शिव की पूजा में टूटे हुए चावलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.. पूजा के समय अक्षत चावल, बिना टूटे ही अर्पित करें..
  8. शिवलिंग पर सबसे पहले पंचामृत चढ़ाना चाहिए. पंचामृत यानी दूध, गंगाजल, केसर, शहद और जल से बना हुआ मिश्रण. जो लोग चार प्रहर की पूजा करते हैं उन्हें पहले प्रहर का अभिषेक जल, दूसरे प्रहर का अभिषेक दही, तीसरे प्रहर का अभिषेक घी और चौथे प्रहर का अभिषेक शहद से करना चाहिए..
  9. भगवान शिव को दूध, गुलाब जल, चंदन, दही, शहद, घी, चीनी और जल का प्रयोग करते हुए तिलक लगाएं. भोलेनाथ को वैसे तो कई फल अर्पित किए जा सकते हैं, लेकिन शिवरात्रि पर बेर जरूर अर्पित करें, क्योंकि बेर को चिरकाल का प्रतीक माना जाता है..
  10. ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति पर केवल सफेद रंग के ही फूल ही चढ़ाने चाहिए. क्योंकि भोलेनाथ को सफेद रंग के ही फूल प्रिय हैं. शिवरात्रि पर भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए चंदन का टीका लगा सकते हैं. शिवलिंग पर कभी भी कुमकुम का तिलक ना लगाएं. हालांकि भक्तजन मां पार्वती और भगवान गणेश की मूर्ति पर कुमकुम का टीका लगा सकते हैं.
  11. इस दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए. जल्दी उठ जाएं और बिना स्नान किए कुछ भी ना खाएं. व्रत नहीं है तो भी बिना स्नान किए भोजन ग्रहण नहीं करें..

2023 Vijaya Ekadashi Vrat, fasting date and Parana time

Vijaya Ekadashi 2023 -

विजया एकादशी का व्रत हर साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है.. एकादशी का पर्व भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है, जो समस्त समस्याओं को दूर सिर्फ एकादशी व्रत के माध्यम से करते है.. हर माह में दो एकादशी के व्रत होते है, एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की.. सभी एकादशी का फल भी उसे के अनुसार श्रीहरि विष्णु देते है.. विजया एकादशी का व्रत, सभी बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का फल देती है.. विजया एकादशी की कथा भी भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है, जिसमें उन्होनें रावण का वध कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी.. आईए अब जानते है विजया एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, महत्व और कथा..

 

विजया एकादशी मुहूर्त और तिथि

 

विजया एकादशी की तिथि – एकादशी तिथि का प्रारंभ 16 फरवरी दिन गुरूवार को होगा और इसी दिन याचक एकादशी का व्रत रख सकता है.. एकादशी तिथि का पारण अगले दिन 17 फरवरी दिन शुक्रवार को होगा..

 

विजया एकादशी मुहूर्त – व्रत आरंभ 16 फरवरी प्रात: 05 बजकर 32 मिनट से लेकर… व्रत पारण 17 फरवरी प्रात: 02 बजकर 49 मिनट पर  

 

विजया एकादशी महत्व

वैसे तो सभी एकादशी के अपने अलग-अलग महत्व है, किंतु विजया एकादशी का प्रभाव वर्तमान और पूर्व जन्म के सभी पापों को नष्ट कर देता है.. विजया एकादशी का व्रत करने से श्रीहरि विष्णु याचक के सभी कष्टों को समाप्त कर देते है, बुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देते है.. शत्रुओं को परास्त करते है तथा याचक की इच्छा को पूर्ण करते है.. कहते है विजया एकादशी के व्रत का वर्णन पद्मपुराण और स्कंद पुराण में किया गया है.. प्राचीन काल में भी राजा और महाराजा युद्ध से पहले विजया एकादशी के व्रत को कर युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए श्रीहरि विष्णु का आशीर्वाद लिया करते थे..

 

विजया एकादशी पूजा विधि

 

विजया एकादशी व्रत में याचक को सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में उठना चाहिए.. गंगाजल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें..

 

मंदिर को स्वच्छ कर श्रीहरि विष्णु को स्नान करवाएं, फिर उन्हें पीले वस्त्र प्रदान करें..

 

मंदिर में मूर्ति स्थापित करने से पहले कलश पर आम से पत्तों से घेरा बना ले, इसके बाद नारियल पर कलावा बांध कर कलश पर रखें और मंदिर में मूर्ति स्थापित करें..

 

घी का दीपक जलाएं और भगवान को सात्विक भोग लगाएं, भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य रखें.. एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में जल बिल्कुल भी ना डाले, कहते है कि देवी तुलसी रविवार और एकादशी के दिन निर्जला व्रत करती हैं, जिससे वे कुछ भी ग्रहण नहीं करती.. एकादशी के दिन तुलसी के पौधे में पानी डालने से उनका व्रत खंडित हो जाता है, जिस कारण देवी तुलसी, श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी आपसे रुष्ट हो सकते है..

 

एकादशी के दिन केवल एक बार ही फलाहार करें, रातभर में विष्णुजी के नाम का जागरण कर या फिर उनके नाम की माला का जाप कर अगले दिन प्रात: व्रत का पारण किया जाता है.. एकादशी व्रत के पारण के समय याचक मंदिर में या किसी जरुरतमंद को कुछ दान करें..

 

विजया एकादशी व्रत कथा

 

कथा के अनुसार जब रावण ने देवी सीता का हरण किया था, तब उन्हें खोजने के लिए श्रीराम की सेना समुंद्रतट के किनारे पहुंचे, श्रीराम जी ने लक्ष्मण जी से प्रश्न किया, कि हम सभी इस समुंद्र को कैसे पार करेंगे.. लक्ष्मण जी ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, आप सब जानते हैं.. यहां से आधा योजन दूरी पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए..

 

लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए.. मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषिवर, मैं अपनी सेना सहित आपके पास सहायता के लिए आया हूं और अपनी पत्नी देवी सीता की खोज के लिए लंका जा रहा हूं.. आप कृपा करके समुंद्र पार करने का कोई मार्ग बताईए… वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुंद्र भी अवश्य पार कर लेंगे.. वकदालभ्य ऋषि के कहे अनुसार श्रीराम ने एकादशी का व्रत किया, जिस प्रकार उन्होनें बड़ी आसानी से समुद्र पार किया और रावण का अंत किया..

Kumbha Sankranti 2023: Rashifal

कुंभ संक्रांति पर राशि-प्रभाव -

ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार फरवरी 2023 का माह काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है, क्योंकि इसमें सूर्य का गोचर मकर से कुंभ राशि में होने वाला है, साथ ही महाशिवरात्रि का पावन पर्व भी इसी माह में है.. ग्रहों के राजा सूर्य देव का राशि परिवर्तन होने जा रहा है, ऐसे में कई राशियों के लिए ये परिवर्तन शुभ और कई राशियों के लिए ये परिवर्तन अशुभ बताया जा रहा है..

 

कुंभ राशि में शनिदेव पहले से ही विराजित है और सूर्य देव को शनिदेव का शत्रु कहा जाता है.. एक ही राशि में दो शत्रुओं का होना क्या कोई अशुभ संकेत पैदा करेगा, इसकी जानकारी आपको आगे बताएंगे.. शत्रु योग का समय 14 मार्च 2023 तक रहने वाला है.. ऐसे में इन दिनों 12 राशियों पर इसका प्रभाव क्या रहेगा आईए जानते है..

 

मेष राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मेष राशि वालों को फरवरी माह में वाहन, भूमि, क्रय-विक्रय से लाभ होगा, यश में वृद्धि होगी.. अटके हुए धन की वापसी हो सकती है.. अगर आप किसी कार्य में सफलता पाने का प्रयास कर रहे हैं, तो आपका कार्य पूर्ण हो सकता है.. फरवरी माह मेष राशि के जातकों के लिए शुभ है..

वृषभ राशि- ज्योतिष गणना के अनुसार वृषभ राशि वाले के लिए फरवरी माह अनुकूल रहने वाला है. इस दौरान वृषभ राशि वालों को कोई सुखद समाचार प्राप्त हो सकता है.. आय में वृद्धि हो सकती है.. शेयर मार्केट में निवेश करने से मुनाफा हो सकता है.. व्यापारियों के लिए ये माह शुभ और मुनाफा प्राप्त करने वाला बन रहा है..

मिथुन राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मिथुन राशि के जातकों के लिए यह माह थोड़ा मुश्किल भरा रहने वाला है.. मेहनत के बाद फल प्राप्त होने का अनुमान लगाया जा रहा है. कार्यक्षेत्र में बाधा उत्पन्न हो सकती है, कोई भी कार्य सावधानी के साथ करें..

कर्क राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार कर्क राशि के जातकों के लिए यह माह सामान्य रहेगा, क्योंकि आर्थिक स्थिति बेहतर रहने का अनुमान इस माह के काफी शुभ है.. मित्रों के साथ अपने संबंध बेहतर रखें, क्योंकि उनके सहयोग से कारोबार में वृद्धि हो सकती है.. शनि की ढैय्या चल रही है, तो कोई कार्य यदि आप करेंगे तो उसमें सफलता के आसार अत्यधिक होंगे..

सिंह राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार सिंह राशि के जातकों के लिए यह माह मध्यकाल में बेहतर होगा.. घरेलु समस्याओं का समाधान हो सकता है, रुका हुआ धन वापस आ सकता है.. व्यापार के कार्य में वृद्धि हो सकती है..

कन्या राशि- ज्योतिष गणना के अनुसार कन्या राशि के जातकों के लिए यह माह शुभ और अशुभ दोनों हो सकता है.. नौकरी की तलाश करने वालों को सफलता मिल सकती है.. घर-परिवार के सदस्यों की सेहत का ध्यान रखना होगा, खुद की सेहत का भी ध्यान आपको इस समय ज्यादा देना होगा.. खान-पान में अनदेखी ना करें, इससे कोई बिमारी उत्पन्न हो सकती है.. किसी कार्य को करने से शुभ संकेत या संदेश प्राप्त हो सकते है..

तुला राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार तुला राशि के जातकों के लिए ये माह अशुभ रहेगा.. किया हुआ कार्य असफल होगा.. किसी अपने या सगे संबंधियों से विश्वासघात होने की संभावना है.. धन हानि हो सकती है.. मेहनत का परिणाम सुख नहीं देगा, स्वास्थय के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है..

वृश्चिक राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार वृश्चिक राशि के जातकों के लिए ये माह शुभ संदेश देगा.. यदि आप भूमि, भवन, वाहन को खरीदने का सोच रहे है, तो ये समय उचित है.. धन वृद्धि के योग है, किसी व्यापार में निवेश सफल होगा..

धनु राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार धनु राशि के जातकों के लिए ये माह काफी शुभ और धन वृद्धि के आसार का रहने वाला है.. यदि धनु राशि के जातक निवेश का सोच रहे है, तो इसमें वृद्धि के आसार अत्यधिक है.. शेयर मार्केट से जुड़े लोगों को मुनाफा हो सकता है..

मकर राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मकर राशि के जातकों के लिए ये माह मानसिक कष्ट दे सकता है.. राशि परिवर्तन के कारण आपको स्वास्थय से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है.. घर-परिवार के लोगों का समर्थन मिलेगा, संतान को लेकर चिंता हो सकती है..

कुंभ राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार कुंभ राशि के जातकों के लिए फरवरी माह शुभ संकेतों से भरा है.. महत्वपूर्ण यात्रा पर जा सकते है.. किसी कार्य को शुरू करने पर सफलता के आसार अधिक है.. आय में वृद्धि होगी, व्यापारियों को मुनाफा होगा.. कार्यक्षेत्र में नए पद का निमंत्रण मिल सकता है..

मीन राशि – ज्योतिष गणना के अनुसार मीन राशि के जातकों के लिए फरवरी माह शुभ है.. इस माह में संतान पक्ष में वृद्धि हो सकती है.. आय में वृद्धि हो सकती है, नए कार्यों को लेकर चिंता खत्म होगी.. कहीं से शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है..

Kalashtami 2023 February: Date ,Time, Significance

कालाष्टमी 2023 -

कालाष्टमी का पर्व भगवान शिव के रूप को समर्पित है, जिसे शिव भक्त श्रद्धा के साथ मनाते है.. कालाष्टमी को काल भैरव अष्टमी के रूप में भी मनाते है.. वैसे तो कालाष्टमी हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है, किंतु सभी माह का अपना अलग महत्व है.. फरवरी माह में कालाष्टमी फाल्गुन माह की अष्टमी तिथि को है जो 13 फरवरी दिन सोमवार को पड़ रही है.. सोमवार का दिन भगवान शिव का माना जाता है और ऐसे में उन्हीं के दूसरे रूप कालभैरव का दिन भी है.. शिव भक्तों के लिए ये दिन काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है, क्योंकि शिव पूजा के साथ-साथ वह कालाष्टमी की पूजा भी कर सकते है।

 

कालभैरव ने दुष्टों का संघार करने के लिए रौद्र रुप धारण किया था, जिन्हें शिव का स्वरुप कहा जाता है..

 

कालाष्टमी पूजा मुहूर्त एवं तिथि

कालाष्टमी तिथि, दिन सोमवार, 13 फरवरी 2023

 

कालाष्टमी फाल्गुन माह, कृष्ण अष्टमी

 

कालाष्टमी मुहूर्त – 13 फरवरी, दिन सोमवार सुबह 9 बजकर 46 मिनट से – 14 फरवरी, दिन मंगलवार, सुबह 9 बजकर 04 मिनट तक

 

काल रूप अंधकार रूपी कहा जाता है, जिसे रात्रि में पूजा जाता है.. ऐसे में कालाष्टमी की पूजा अष्टमी तिथि की रात्रि को ही की जाएगी..

 

कालाष्टमी महत्व

कहते है कि भगवान शिव ने समस्त दुष्टों का नाश करने के लिए काल भैरव का रूप धारण किया था, जिसे कालभैरव जयंती या कालाष्टमी के रूप में पूजा जाता है। कालाष्टमी के दिन यदि कोई याचक श्रद्धापूर्वक कालभैरव की पूजा करता है, तो वह तमाम कष्टों और आने वाली विपदा से छुटकारा पाता है। कालभैरव की पूजा अष्टमी तिथि की रात्रि को की जाती है, याचक कालभैरव की कृपा पाने के लिए रात्रि के समय कालभैरव मंत्र से उन्हें प्रसन्न करें और अनुष्ठान करें। अकाल मृत्यु और यदि कुंडली में राहु या केतु किसी नकारात्मक दिशा में है तो उससे भी छुटकारा कालभैरव की पूजा से किया जा सकता है। कालाष्टमी के दिन कालभैरव का ये मंत्र आपको दिलाएगा सभी समस्याओं से निजात, करें इसकी 108 माला.

 

काल भैरव मंत्र

ओम भयहरणं च भैरव:

ओम कालभैरवाय नम:

ओम ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं

ओम भ्रं कालभैरवाय फट्

Kumbha Sankranti 2023: Check date, Rituals and Shubh Muhurat

कुंभ संक्रांति 2023 -

कुंभ संक्रांति में भगवान सूर्य देव का राशि परिवर्तन होता है, जिसे कुंभ संक्रांति कहते है.. 13 फरवरी सोमवार के दिन भगवान सूर्य मकर से कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे.. कुंभ राशि में पहले से ही शनिदेव विराजमान है, ऐसे में कुंभ राशि में सूर्य देव के आगमन पर किन राशियों पर इसका प्रभाव शुभ और किन राशियों पर इसका प्रभाव अशुभ रहने वाला है, ये आगे जानेंगे..

भगवान सूर्य देव माह में 30 दिनों के बाद राशि परिवर्तन करते है, जिसे संक्रांति के रूप में पूजते है.. संक्रांति के दिन दान, स्नान, जप आदि का विशेष महत्व बताया गया है और ऐसे में याचक यदि संक्रांति के दिन दान, स्नान, जप करता है तो उसे कई गुणा यज्ञों की फल प्राप्ति होती है.. आईए जानते है कुंभ संक्रांति के दिन क्या-क्या करें…

 

कुंभ संक्रांति के दिन क्या करें?

  1. कुंभ संक्रांति के दिन प्रात:काल उठाकर गंगाजल से स्नान करें.. कहते है यदि इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करें तो याचक को कई कष्टों से मुक्ति मिलती है, बिमारियों का सामना नहीं करना पड़ता है, आरोग्य की प्राप्ति होती है..
  2. संक्रांति के दिन स्नान करने के बाद सूर्य देव की उपासना की जाती है, साथ ही इस दिन उनके मंत्रों का जाप किया जाता है.. घर में परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर से रोगों का नाश होता है, सकारात्मकता की वृद्धि होती है.. खुशहाली का माहौल रहता है..
  3. इस दिन खाद्य वस्तु, वस्त्रों का दान गरीबों को करने से दो-गुणा फल प्राप्त होता है, मान सम्मान में वृद्धि होती है.. मृत्यु के पश्चात धाम की प्राप्ति होती है..
  4. कुंभ संक्रांति के दिन यदि याचक सूर्य देव की बीज मंत्रों का जाप करता है, तो अनेक कार्यों में सफलता और वृद्धि होती है.. आने वाले सभी दुखों से छुटकारा मिलता है..

 

कुंभ संक्रांति मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार, सूर्य देव 13 फरवरी को ब्रह्म-मुहूर्त में 3 बजकर 41 मिनट पर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। सनातन धर्म में उदया तिथि की मान्यता अधिक होती है, अत: 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति है। इसी प्रकार पुण्य काल सुर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है.. इस अवधि में पूजा, जप, तप और दान कर सकते हैं..

Magha Purnima 2023: Shubh Muhurat, Puja Vidhi, Significance, and more

माघ पूर्णिमा 2023 -

सनातन धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है.. इस दिन सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि सभी देवतागण इस दिन पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते है.. पूर्णिमा पर स्नान, ध्यान, जप आदि का विशेष महत्व है। जो भी याचक इस दिन गंगा नदी में स्नान कर देवताओं का ध्यान करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु का दिन माना जाता है, इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष मंत्रों से पूजा की जाती है।

 

इस दिन देवी लक्ष्मी और चंद्रमा की खास पूजा का विधान है. इस साल माघ पूर्णिमा पर बेहद ही शुभ संयोग बन रहा है जो इस दिन के महत्व को दोगुना कर रहा है. इस दिन कुछ खास उपाय करने से मां लक्ष्मी साधक पर मेहरबान होती है. आइए जानते हैं माघ पूर्णिमा का मुहूर्त, महत्व और उपाय

माघी पूर्णिमा मुहूर्त

सनातन पंचाग के अनुसार माघी पूर्णिमा का आरंभ 4 फरवरी 2023 दिन शनिवार को रात्रि 09 बजकर 44 मिनट से होगा..

 

माघ पूर्णिमा का समापन 6 फरवरी 2023, दिन सोमवार रात्रि 11 बजकर 58 मिनट पर

 

स्नान का समय 5 फरवरी दिन रविवार को प्रात: 05 बजकर 27 मिनट से लेकर 06 बजकर 18 मिनट तक का है।

माघ पूर्णिमा महत्व

मघा नक्षत्र के नाम से ही माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति होती है. ऐसा माना गया है कि माघ माह में सभी देवता पृथ्वी पर आते हैं और मनुष्य रूप धारण करके प्रयाग में स्नान, दान और जप करते हैं. इसी प्रकार इस माह का महत्व अधिक बढ़ जाता है.. कहते है इस दिन लोग अगर प्रयाग या गंगा नदी में स्नान करते है तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. सनातन धर्म में वर्णन मिलता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है.

माघ पूर्णिमा उपाय

माघ पूर्णिमा के दिन रात्रि में अष्टलक्ष्मी की अष्टगंध, 11 कमलगट्‌टे चढ़ाने से धन से जुड़ी समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है. मां लक्ष्मी को पूर्णिमा की मध्यरात्रि एक-एक कर कमलगट्‌टा अर्पित करें और श्रीसूक्त का पाठ करें. माघ पूर्णिमा का ये महाउपाय साधक को अपार धन प्राप्ति का वरदान प्रदान करता है.

 

माघ पूर्णिमा पूजा-विधि

पूर्णिमा के दिन प्रात:काल उठकर स्नान करें, यदि संभव हो तो पवित्र नदियों में स्नान करें, इसका दो-गुणा फल प्राप्त होता है.. इसके अलावा याचक स्नान के पानी में गंगाजल मिश्रित कर स्नान कर सकते है।


स्नान के पश्चात साफ वस्त्र पहनकर घर के मंदिर में सभी देवी-देवताओं का गंगाजल से अभिषेक करें।


मंदिर में घी का दीपक जलाएं।


पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें, कहते है मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष फल प्राप्त होता है।


पूजा के पश्चात मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु को भोग लगाएं, भोग में तुलसी के पत्ते अवश्य रखें.. कहते है भगवान विष्णु तभी भोग ग्रहण करते है जब उसमें तुलसी के पत्ते शामिल हो।


श्रीहरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की आरती करें।


पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का महत्व अधिक माना जाता है, तो चंद्रोदय के समय उन्हें जल अर्पित करें। ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति और शुक्र सही होता है। सभी दोषों से भी मुक्ति मिलती है..


इस दिन दान करना लाभकारी होता है.. जरुरतमंद को इच्छानुसार दान करें।


गायों को घर का बना भोजन कराएं, ऐसा करने से धन और अन्न की समस्या से छुटकारा मिलता है।

 

Jaya Ekadashi 2023: Date, Muhurat, Vrat Vidhi, Katha

जया एकादशी 2023 -

सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि एकादशी व्रत करने से अनेकों गुणा फल की प्राप्ति होती है। साल में 24 से 26 एकादशी के व्रत होते है, जिनका अपना अलग महत्व होता है, वैसे ही जया एकादशी व्रत का अपना अलग महत्व है। यह एकादशी माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाएगा। जया एकादशी का व्रत नीच योनि, प्रेत, भूत आदि को नष्ट कर विशेष फल देता है। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन सात्विक रूप से एक समय फलहार करके भगवान विष्णु का स्मरण किया जाता है। जया एकादशी को भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है।

 

जया एकादशी का मुहूर्त

पंचांग के अनुसार जया एकादशी तिथि 31 जनवरी 2023 सुबह 11 बजकर 53 मिनट पर आरंभ होगी और 1 फरवरी 2023 को दोपहर बाद 02 बजकर 01 मिनट पर समाप्त हो जाएगी. शास्त्रों में उदया तिथि के अनुसार ही एकादशी का व्रत मान्य होता है, इसलिए 1 फरवरी के दिन जया एकादशी का व्रत रखा जाएगा.

 

जया एकादशी की पूजा

जया एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसे में व्रत रखने वाले याचक को ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। फिर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करें। यदि याचक पीले रंग के वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की पूजा करता है तो देव प्रसन्न होते है, क्योंकि भगवान विष्णु की प्रिय रंग पीला है। पूजा के समय भगवान को पीली चीजों का भोग लगाएं और चढ़ाएं। ऐसे में पीला अंगोछा सामर्थयनुसार दान करें, पीले पुष्प और फल चढ़ाएं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और जो फल और मिष्ठान भगवान को भोग लगाया है उसे प्रसाद के रूप में बांटे.. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। एकादशी के दिन याचक कुछ भी खाने से पहले किसी को या मंदिर में जाकर दान अवश्य करें.. ऐसा करने से देव प्रसन्न होते है, क्योंकि इस दिन दान की मान्यता अधिक होती है..

 

जया एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय स्वर्गलोक पर नंदन वन में उत्सव चल रहा था.. इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष उपस्थित थे.. उत्सव में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं.. सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था.. इसी बीच पुष्पवती की नज़र माल्यवान पर पड़ी और वह मोहित हो गई.. पुष्पवती सभा की मर्यादाओं को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी, जिससे माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो.. माल्यवान गंधर्व कन्या के नृत्य को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादाओं से भटक गया, जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये..

 

स्वर्ग के राजा इन्द्रदेव को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध आया और उन्होंने दोनों को स्वर्गलोक से निकालकर मृत्युलोक पर जीवन व्यतीत करने का श्राप दिया.. मृत्यु लोक में नीच पिशाच योनि में दोनों को जन्म मिला.. श्राप के कारण दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास स्थान बन गया.. पिशाच योनि में रहकर दोनों ने बहुत कष्ट झेला.. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे.. उस दिन उन्होनें भोजन ना करके केवल फलहार पर रहे.. रात्रि के समय दोनों को ठंड लगने के कारण निद्रा नहीं आई और ठंड के कारण उनकी मृत्यु हो गई.. जाने – अनजाने में जया एकादशी के दिन दोनों ने फलहार करके रात को जागकर एकादशी का व्रत समपूर्ण कर लिया था, जिस कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई.. अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर और गुणवती हो गए और स्वर्गलोक में उन्हें स्थान मिल गया..

 

देवराज इंद्र ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह प्रश्न पूछा.. माल्यवान ने देवराज इंद्र को जया एकादशी के व्रत की सारी बात बताई और फिर भगवान ने उन्हें पिशाच योनि से मुक्त कर दिया.. इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें..

 

श्रीकृष्ण ने भी जया एकादशी के महत्व में बताया, कि इस दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से हरि विष्णु की पूजा करें..

February 2023 Vrat And Festivals List

फरवरी 2023 व्रत एवं त्यौहारों की लिस्ट -

फरवरी माह की शुरुआत माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से हो रही है.. साथ ही महीने की शुरुआत में ही भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी भी पड़ रही है.. इसके बाद प्रदोष व्रत, माघ पूर्णिमा, कुंभ संक्रांति, विजया एकादशी और महाशिवरात्रि जैसे पावन पर्व भी फरवरी माह में आने वाले है.. फरवरी माह का महीना इन सब पर्व और त्यौहारों के लिए विशेष है क्योंकि ये धार्मिक दृष्टि से फलदाई भी है.. ग्रहों और नक्षत्रों का परिवर्तन भी इस माह में देखा जा रहा है.. अब आईए जानते है फरवरी में किस दिन कौन सा पर्व है और उसका क्या महत्व है…

 

फरवरी माह 2023 के व्रत एवं त्योहार

 

1 फरवरी 2023, बुधवार, जया एकादशी

सनातन धर्म में जया एकादशी का खास महत्व होता है. माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ‘जया एकादशी’ कहते हैं. साल 2023 में जया एकादशी का व्रत 1 फरवरी दिन बुधवार को रखा जाएगा. इस दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. जया एकादशी को “भूमि एकादशी” और “भीष्म एकादशी” के रूप में भी जाना जाता है.

 

2 फरवरी 2023, गुरुवार, प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आती है, जिसमें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत रखा जाता है.. प्रदोष व्रत मुख्य रूप से शिव व्रत माना जाता है.. इसमें भक्त भगवान शिव के लिए व्रत रखते है, मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र और जलाभिषेक करते है.. मुख्यरुप से प्रदोष व्रत सायंकाल पर पूर्ण किया जाता है..

 

5 फरवरी 2023, रविवार, माघ पूर्णिमा व्रत, रविदास जयंती

माघ महीने की पूर्णिमा तिथि बेहद खास होती है। इस तिथि को माघ या माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान श्री हर‍ि विष्‍णु गंगाजल में वास करते हैं इसलिए इस दिन गंगा स्‍नान का विशेष महत्‍व है। जो भक्त इस दिन श्रद्धा और विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करता है, उस पर श्रीहरि की विशेष कृपा बनी रहती है। साथ ही इस दिन रविदास जयंती भी मनाई जाएगा।

 

9 फरवरी 2023, गुरुवार, संकष्टी चतुर्थी

भगवान गणेश की प्रिय संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकट हरने वाली चतुर्थी भी कहते है, वह फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में 9 फरवरी के दिन पड़ रही है.. महीने में दो बार पड़ने वाली चतुर्थी में एक संकष्टी और दूसरी विनायक चतुर्थी होती है.. शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की गणना के अनुसार चुतर्थी में 15 दिन का अंतर आ जाता है.. कहा जाता है जो भी याचक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का स्मरण कर व्रत करता है और पूर्ण विधि से उनकी पूजा करता है, भगवान स्वयं उसे सभी दोषों, विघ्नों, नकारात्मकता से दूर कर देते है..

 

13 फरवरी 2023, सोमवार, कुंभ संक्रांति और कालाष्टमी

13 फरवरी को सूर्य देव कुभ राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे हम कुंभ संक्रांति के रूप में देखते है.. कुंभ राशि में पहले से ही शनि देव विराजमान है, जहां अब सूर्य देव भी प्रवेश करने वाले है.. सूर्य देव को शनिदेव का शत्रु कहा जाता है ऐसे में कई राशियों के लिए यह जोड़ शुभ और कई राशियों के लिए अशुभ होने वाला है..

 

कालाष्टमी का पर्व हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाती है.. इस दिन शिव भक्त कालभैरव की पूजा करते है, जिसे शिव का दूसरा स्वरूप कहा जाता है..

 

16 फरवरी 2023, गुरुवार, विजया एकादशी

भगवान विष्णु की प्रिय एकादशी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में 16 फरवरी को पड़ रही है.. एक वर्ष में 24 से 26 एकादशी के व्रत होते है और सभी एकादशी का अपना विशेष महत्व है.. ऐसे ही विजया एकादशी का भी विशेष महत्व है. इसमें किसी कार्य पर विजय प्राप्त करना, शत्रु के खिलाफ विजय प्राप्त करना जैसा संदेश दिया जाता है…

 

18 फरवरी 2023, शनिवार, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में पूजा जाता है.. हर माह में एक मासिक शिवरात्रि आती है, जिसमें से दो शिवरात्रि को मुख्यरुप से महाशिवरात्रि के रूप से देखा जाता है, इस दिन शिव भक्त शिवरात्रि का व्रत रखकर भगवान शिव को प्रसन्न करते है, साथ ही मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते है..

 

प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आती है, जिसमें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत रखा जाता है.. प्रदोष व्रत मुख्य रूप से शिव व्रत माना जाता है.. प्रदोष व्रत में दिन की मान्यता अलग मानी जाती है.. यदि प्रदोष व्रत सोमवार के दिन आता है तो उसे सोम प्रदोषम व्रत कहते है.. मंगलवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को भूमा प्रदोषम के रुप में मानते है.. शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहते है…

 

20 फरवरी 2023, सोमवार, फाल्गुन अमावस्या

धार्मिक मान्यता है कि जीवन में सुख और शांति के लिए फाल्गुन अमावस्या का व्रत रखा जाता है तथा इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण व श्राद्ध भी किया जाता है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, यदि अमावस्या सोम, मंगल, गुरु या शनिवार के दिन हो तो, यह सूर्यग्रहण से भी अधिक फल देने वाली होती है.

 

21 फरवरी 2023, मंगलवार, चंद्र दर्शन

चंद्र दर्शन का महत्व सनातन धर्म में अधिक माना जाता है.. चंद्र दर्शन अमावस्या के बाद दर्शन करने को कहते है.. इस दिन चंद्र देव की पूजा की जाती है.. चंद्र को शांति, उन्नति, ज्ञान, बुद्धि और मन का देवता माना जाता है, जिसका कुंडली में चंद्र ग्रह खराब हो उसके इस दिन चंद्र देव की पूजा अवश्य करनी चाहिए..

 

23 फरवरी 2023, गुरूवार, वरद चतुर्थी

वरद चतुर्थी भगवान गणेश की प्रिय चतुर्थी को कहते है.. वरद चतुर्थी फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाएगी.. इस दिन याचक भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत कर उनकी पूजा-अर्चना करते है..

 

27 फरवरी 2023, सोमवार, दुर्गा अष्टमी व्रत, होलाष्टक

दुर्गा अष्टमी का पर्व देवी दुर्गा को समर्पित होता है.. इस दिन देवी दुर्गा की विशेष रूप से पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है.. दुर्गा अष्टमी शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मनाई जाती है.. दुर्गा अष्टमी को मासिक अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है..

 

होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन से शुरू हो जाता है, जो होलिका दहन के दिन तक रहती है.. साल 2023 में होलाष्टक 27 फरवरी 2023 की अष्टमी से आरंभ होकर, 08 मार्च की पूर्णिमा तक रहेगी..

 

28 फरवरी 2023, मंगलवार, रोहिणी व्रत

जैन समुदाय द्वारा किया जाने वाला रोहिणी व्रत पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध व्रत है.. रोहिणी व्रत भगवान वासुपूज्य जी को समर्पित होता है.. इस शुभ अवसर पर रोहिणी देवी के साथ साथ भगवान वासुपूज्य जी की विधिवत पूजा की जाती है.. यह व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा भिन्न होता है..

What to do on Rath Saptami 2023?

Rath Saptami 2023 -

सनातन धर्म में सूर्य देव की उपासना बहुत अधिक मानी जाती है, क्योंकि भगवान सूर्य व्यक्ति को रोग मुक्त, भय मुक्त और आरोग्य जीवन का आशीर्वाद देते है. व्यक्ति प्रात: उठकर स्नान आदि कर सूर्य देव को अर्घ्य देता है.. कहते है उनकी पूजा के लिए सबसे उत्तम दिन रथ सप्तमी माना जाता है.. रथ सप्तमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन है.. मान्यता है कि इस दिन स्नान-दान, हवन इत्यादि करने से व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है.. आइए जानते हैं कब मनाया जाएगा रथ सप्तमी पर्व..

 

रथ सप्तमी पूजा मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का प्रारंभ 27 जनवरी 2023 के दिन प्रातः 07:40 मिनट पर होगा.. इस तिथि का अंत 28 जनवरी 2023 के दिन सुबह 07:13 मिनट पर होगा.. उदया तिथि के अनुसार यह पर्व 28 जनवरी 2023 के दिन मनाया जाएगा.. इस दिन अरुणोदय के समय में पवित्र स्नान का विशेष महत्व है, इसलिए रथ सप्तमी के दिन स्नान मुहूर्त, ब्रह्म मुहूर्त में प्रात: 04:24 मिनट से 05:51 तक रहेगा..

 

रथ सप्तमी महत्व

पुराणों और शास्त्रों में उल्लेखित है कि रथ सप्तमी सभी नकारात्मकता को दूर करने के लिए बेहद ही शुभ दिन माना जाता है.. कहते है रथ सप्तमी के दिन यदि याचक पवित्र नदियों में स्नान करके, सूर्य देव को अर्घ्य देता है तो उसे आरोग्य होने का वरदान प्राप्त होता है.. सूर्य देव की उपासना करने से स्वास्थय संबंधी सभी समस्याएं दूर होती है और ग्रह दोषों से छुटकारा मिलता है..

 

रथ सप्तमी के नियम

रथ सप्तमी के नियमों का पालन याचक को करना आवश्यक होता है.. इस दिन याचक को पूरे दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.. सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए.. प्रात:काल उठकर सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए.. घर का माहौल शांतिपूर्ण होना चाहिए.. किसी भी व्यक्ति के साथ वाद-विवाद करने से बचना चाहिए.. मांस-मदिरा और तामसिक चीजों से इस दिन दूर रहे, नहीं तो व्यक्ति पापों का भागी होता है.. इन दिन का महत्व और अधिक करने के लिए याचक किसी की मदद करें या फिर किसी जरुरतमंद को दान करें. ऐसा करने से व्यक्ति भविष्य में आने वाली किसी बड़ी बिमारी से निजात या छुटकारा पाता है..