Basant Panchami 2023: Date, history, significance, puja

बसंत पंचमी 2023 -

सनातन पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पचंमी का पर्व मनाया जाता है.. मुख्य रूप से ये पर्व ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित है.. शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है.. बसंत पंचमी से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है.. सनातन धर्म में मां सरस्वती की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि ये ज्ञान की देवी हैं.. मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली का भी आशीर्वाद मिलता है.. आइए जानते हैं नए साल में बसंत पंचमी की पूजा का मुहूर्त और बसंत पंचमी पूजा विधि…

 

बसंत पंचमी तिथि

पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से आरंभ होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी.. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी..

 

बसंत पंचमी पूजा

बसंत पंचमी वाले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साफ पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहनें, उसके बाद सरस्वती पूजा का संकल्प लें..

 

पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.. मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं, फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं..

 

इसके बाद पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें.. सरस्वती माता को गेंदे के फूल की माला पहनाएं..

 

माता को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं, इसके बाद सरस्वती वंदना एवं मंत्र से मां सरस्वती की पूजा करें.. आप चाहें तो पूजा के समय सरस्वती कवच का पाठ भी कर सकते हैं..

 

आखिर में हवन कुंड बनाकर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नमः: स्वाहा” मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें, फिर अंत में खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें..

 

पंचमी से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है.. सनातन धर्म में मां सरस्वती की उपासना का विशेष महत्व है, क्योंकि ये ज्ञान की देवी हैं.. मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली का भी आशीर्वाद मिलता है..

2023 Magha Gupt Navratri – Significance, Date & Celebrations

गुप्त नवरात्रि 2023 -

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते

 

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित: ।

 

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥

 

गुप्त नवरात्रि में गुप्त साधना करने से याचक देवी भगवती का विशेष फल प्राप्त करता है.. गुप्त नवरात्रि अन्य नवरात्री से भिन्न है, क्योंकि इसमें गुप्त साधना, तंत्र-मत्र की विद्याओं की पूजा की जाती है.. गुप्त नवरात्रि की साधना काली रात्रि में और श्मशान में की जाती है.. गुप्त नवरात्रि की साधना करने वाले याचक देवी को प्रसन्न करने और तमाम शक्तियां जागृत करने के लिए 9 दिनों तक दस महाविद्याओं की पूजा करते हैं.. ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि के समय ऋषि विश्वामित्र ने 9 दिनों तक दस महाविद्याओं की गुप्त रुप से अराधना कर देवी को प्रसन्न किया, जिसके बाद उनकी सिद्धियां इतनी प्रबल हो गई थी, कि उन्होनें अलग संसार का निर्माण किया था.

 

गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं. नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं.. सभी नवरात्रों में माता के सभी 51 शक्तिपीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं.. माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप से माता की भक्ति करने का विधान है.. आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है.. वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है, ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है.

 

माघ माह में गुप्त नवरात्रि की तिथि 22 जनवरी 2023, दिन रविवार से आरंभ होकर 30 जनवरी 2023, दिन सोमवार को समाप्त होगी.. अब जानते है, गुप्त रूप से साधना करने का मुहूप्त और दस महाविद्याओं के बारे में.

 

माघ गुप्त नवरात्रि मुहूर्त

सनातन पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 22 जनवरी 2023 को प्रात: 02 बजकर 22 मिनट पर आरंभ होगी और 22 जनवरी को ही रात 10 बजकर 27 मिनट पर प्रतिपदा तिथि का समापन भी है.. ऐसे में साधक 22 जनवरी को ही गुप्त साधनाओं की पूजा का आरंभ करेंगा.

 

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा

गुप्त नवरात्रि के दौरान मां भगवती के दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है।

 

  1. मां काली
  2. मां तारा
  3. मां षोडशी त्रिपुर सुंदरी
  4. मां भुवनेश्वरी
  5. मां छिन्नमस्ता
  6. मां भैरवी
  7. मां धूमावती
  8. मां बगला
  9. मां मातंगी
  10. मां कमला

 

गुप्त नवरात्रि का महत्व

गुप्त नवरात्रि विशेष रूप से तांत्रिक क्रियाओं, शक्ति साधना एवं महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है.. गुप्त नवरात्रि में देवी माँ के साधक बेहद कड़े नियमो के साथ व्रत एवं साधना करते हैं.. गुप्त नवरात्रि के दौरान लोग दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं इन शक्तियों को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक साधना करनी पड़ती है.. गुप्त नवरात्र के दौरान कई व्यक्ति महाविद्या यानि तंत्र साधना के लिए तारा देवी,मां काली, भुवनेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माता बगलामुखी, मातंगी, मां ध्रूमावती और कमला देवी की पूजा करते हैं.. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने अपनी खोयी हुयी शक्तियों को पाने के लिए नवरात्र में ही साधना की थी, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर अधिक समय देना माना गया है।

What is the date of Mauni Amavasya?

मौनी अमावस्या 2023 -

माघ माह की अमावस्या को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इस साल मौनी अमावस्या 21 जनवरी 2023, दिन शनिवार को है.. माघी यानी मौनी अमावस्या साल 2023 की पहली अमावस्या होगी.. मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर गंगा स्नान करने से व्यक्ति के पिछले और वर्तमान जन्म के पाप खत्म हो जाते हैं.. साल में यही एकमात्र अमावस्या है जिसमें मौन व्रत का विशेष महत्व है.. शास्त्रों के अनुसार मौनी अमावस्या पर मौन व्रत रखने से कई तरह के लाभ मिलते हैं. आइए जानते मौनी अमावस्या पर मौन व्रत का महत्व और लाभ.

 

मौनी अमावस्या 2023 मुहूर्त

माघ अमावस्या तिथि शुरू- 21 जनवरी 2023, सुबह 06 बजकर 17 मिनट पर

 

माघ अमावस्या तिथि समाप्त- 22 जनवरी 2023, सुबह 02 बजकर 22 मिनट

 

मौनी अमावस्या पर मौन व्रत करने के लाभ

 

पापों से मिलती है मुक्ति – मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर व्रत करने से व्यक्ति के भीतर के विकार नष्ट हो जाते हैं. इस दिन मौन व्रत का पालन करने वालों के वाणी दोष दूर हो जाते हैं. इंद्रियों पर काबू करने की शक्ति मिलती है. इस दिन मौन रहकर दान-स्नान करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिकता का विकास होता है..

 

कालसर्प और पितृदोष से मुक्ति – मौनी अमावस्या पर  मौन रहकर भगवान विष्णु की आराधना औरे पितरों की शांति के लिए तर्पण करने पर पितृ दोष और कालसर्प दोष खत्म हो जाता है. इस दिन मौन रहकर पूजा, भजन और मंत्र जाप करने से कई गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है..

 

16 गुना अधिक फल – मौनी अमावस्या पर मनु ऋषि का जन्म हुआ था. बुद्ध ने कहा है कि मौन व्रत उदासी, ग्लानि और दुख को निगल जाता है और आनंद और प्रेम को जन्म देता है. धार्मिक मान्यता है कि अगर मौनी अमावस्या पर दिनभर मौन व्रत नहीं रख सकते तो सवा घंटे का मौन व्रत करने से 16 गुना अधिक फल प्राप्त होता है.

 

मौनी अमावस्या पर स्नान महत्व

सनातन धर्म में गंगा स्नान को सबसे पवित्र स्नान माना गया है.. गंगा और अन्य नदियों के स्नान की पवित्रता का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है.. पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवों और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो समुंद्र से भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद हुआ और छीना-झपटी होने लगी. इसी दौरान कलश से अृमत की कुछ बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसी पवित्र नदियों में गिर गई. अमृत गिरने के कारण ही ये नदियां पवित्र हो गईं. यही कारण है कि पर्व-त्योहार, पूर्णिमा, अमावस्या और विशेष तिथियों में नदी स्नान और विशेषकर गंगा स्नान की परंपरा है..

 

मौनी अमावस्या के नियम

मौनी अमावस्या के दिन प्रातःकाल याचक को नंदी, सरोवर या पवित्र कुंड में स्नान करना चाहिए. इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दे.. मौनी अमावस्या पर व्रत का संकल्प लेने के बाद मौन रहने का प्रयास करें.. किसी भी व्यक्ति से बहस या अपशब्द ना कहें.. बेहतर हो की आप किसी की चुगली ना करें.. किसी से बुरा ना कहें और ना ही सुने.. इस दिन भूखे व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं. माघी अमावस्या के दिन अनाज, वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, पलंग, घी और गौशाला में गाय के लिए भोजन का दान करना चाहिए.. मान्यताओं के मुताबिक माघ अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है..

किस प्रकार बढ़ती ठंड में रखें सेहत का ध्यान?

Health Tips -

बढ़ती ठंड से बचने के लिए और अपने स्वास्थय को ठंड से सुरक्षित रखने के लिए आज हम कुछ उपाय लेकर आएं है। सेहतमंद रहने के लिए मौसम के अनुकूल रहना आवश्यक है। सर्दियों में स्वस्थ रहना चुनौती भरा होता है। इन दिनों कम तापमान, अधिक नम मौसम और कोहरा होने के कारण वातावरण खराब हो जाता है। सर्दियों में प्रदूषण का स्तर अधिक रहता है। हानिकारक कण भी सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे जो लोग किसी बीमारी से पहले से ही झूझ रहे हैं, उनकी परेशानी और बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त सर्दियों में मौसम के अनुसार होने वाली बीमारियों के संक्रमण की आशंका भी अधिक रहती है। बढ़ती ठंड को देखते हुए खांसी, जुकाम, सरदर्द, शरीर दर्द, बुखार, गला दर्द जैसी तमाम बिमारियों का लोग शिकार हो जाते है। ऐसे में आपको घर से निकलने से पहले मास्क लगाना जरूरी है। जहरीली हवा सेहतमंद लोगों पर भी बुरा प्रभाव डालती है, इसलिए सर्दी से बचने के लिए कुछ नियम और उपाय करने की आपको आवश्यकता है। जानें कौन-कौन से है वो नियम और उपाय

सर्दियों में त्वचा हो जाती है खराब

सर्दी के मौसम में त्वचा शुष्क हो जाती है और रूखापन आ जाता है, इसलिए नहाने के बाद शरीर में किसी तेल या क्रीम का प्रयोग जरूर करें, जिससे त्वचा को पर्याप्त पोषण मिल सके। हाथों पर दिन में 3 से 4 बार क्रीम अवश्य लगाएं, जिससे हाथों का नरमी मिले और रंग फीका ना पड़े। पुराने नुस्खों की बात करें तो नारियल का तेल लगाना शरीर के रूखेपन को भी दूर करता है और रंग भी निखारता है।

बढ़ जाती हैं जोड़ों की समस्याएं

सर्दियों में लोग अधिक चिकनाई वाला खाना व मसालेदार चीजों का सेवन करते हैं, जिससे शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं और ज्यादातर लोग व्यायाम से दूरी बना लेते हैं। जिस कारण वजन बढ़ने की समस्या होती है। वजन बढ़ने के कारण इसका असर जोड़ों पर भी पड़ता है। यदि सर्दी में धूप कम या कई दिनों तक शरीर को नहीं मिल पाती तो इससे विटामिन-डी की कमी होती है, जो जोड़ों में दर्द, अकड़न व गठिया की परेशानी बढ़ाती है।  ऐसे में शारीरिक गतिविधि होना अनिवार्य है। हो सके तो शरीर के वजन को संतुलित करें। अधिक उम्र वाले लोग आराम करें या योग करें जिससे जोड़ो की समस्या ठीक हो सके।

ध्यान दें खानपान पर

वर्तमान समय में जंकफूड का हर कोई दीवाना है, जिस कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं मिल पाता। हरी सब्जियों व मौसमी फलों का सेवन अधिक करने से शरीर संतुलित रहता है। हो सके तो अधिक मसाले व तेल वाले भोजन को अनदेखा करें, क्योंकि इससे ब्लडप्रेशर, कोलेस्ट्राल व शुगर लेवल बढ़ने की अत्यधिक संभावना रहती है। पानी पर्याप्त मात्रा में पिएं और यदि संभव हो तो हल्का गुनगुना पानी पीना शुरू करें।

योग है जरूरी

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सुबह जल्दी उठने के अलावा योग भी जरूरी माना जाता है। योग से शरीर में उत्पन्न हो रहे बैकटीरिया दूर रहते है, शरीर का संतुलन सही रहता है और किसी भी प्रकार की कोई बिमारियां नहीं लगती। जॉब पर जाने वाले लोगों के पास पर्याप्त समय नहीं होता जिससे वे जिम या बाहर जाकर एक्सरसाइज कर सकें, लेकिन कुछ आसान या व्यायाम घर में ही करने से शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।

फैशन को करें इग्नोर और पहने गर्म कपड़े

लोगों के शरीर का तापमान भिन्न-भिन्न होता है, ऐसे में सर्दी की शुरूआत में कुछ लोग गर्म कपड़े पहनना शुरू कर देते है, तो कई लोग सर्दी के मध्यम में इसकी शुरूआत करते है। शरीर के तापमान को स्थिर रखने के लिए गर्म कपड़े अवश्य पहनें, खानपान सहीं रखें। ठंड अधिक होने पर बेवजह घर से बाहर ना निकले। इसके अलावा ऐसे रूम हीटर का भी प्रयोग किया जा सकता है, जिसके प्रयोग से कमरे में ऑक्सीजन कम न हो।

Magh Mela 2023 – Dates, History, Significance

माघ मेला 6 जनवरी से 18 फरवरी -

माघ मेले का प्रारंभ हर साल पौष पूर्णिमा के बाद से होता है. साल 2023 में पौष पूर्णिमा 6 जनवरी दिन शुक्रवार को थी. माघ मेला पूरे माह तक मनाया जाता है, जो अब 6 जनवरी पौष पूर्णिमा से आरंभ होकर 18 फरवरी महाशिवरात्रि तक रहेगा, इसलिए माघ मास का पहला स्नान पौष पूर्णिमा पर किया जाता है.. सनातन धर्म में इस मास का विशेष महत्व है। इस मास में सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष विधान बताया गया है। इसके साथ ही स्नान दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वहीं दूसरी ओर प्रयागराज में पौष पूर्णिमा के साथ माघ स्नान आरंभ हो जाते हैं जो महाशिवरात्रि के साथ समाप्त होते हैं।

माघ मेले का त्यौहार हिंदु लोगों के लिए बहुत महत्व होता है.. माघ मेला तीन पवित्र नदियों में स्नान करने से पूर्ण माना जाता है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती नदी जिन्हें त्रिवेणी संगम नदी भी कहते है जो प्रयागराज में स्थित है.. माघ मेला मुख्यतौर पर 45 दिन तक चलता है, जो जनवरी और फरवरी के मध्य मनाया जाता है.. भक्तों की भीड़ नदी के तट के पास अपने टेंटों में वास करते है, जब तक मेला चलता है तब तक वे नदी के पास ही रहते है.. भक्तों की भीड़ इस समय उपवास कर सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लेते है.. सायंकाल के समय नदी के पास हजारों की संख्या में भक्त दिए जलाते है और नदी में प्रवाहित करते है.. माघ मेले के समय स्नान करने से पूर्व लोग मुंडन करवा लेते है.. इन दिनों में श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगाते हैं. अब जानते है माघ स्नान का क्या महत्व है और माघ माह में स्नान की प्रमुख तिथियों कब है?

माघ स्नान में पड़ने वाले प्रमुख स्नान

पौष पूर्णिमा- 6 जनवरी 2023

मकर संक्रांति-14 या 15 जनवरी 2023

मौनी अमावस्या- 21 जनवरी 2023

माघी पूर्णिमा- 5 फरवरी 2023

महाशिवरात्रि- 18 फरवरी 2023

प्रयागराज के माघ मेले का है विशेष महत्व

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के तट पर हर साल माघ स्नान का आयोजन किया जाता है। हिंदू पुराणों में भी इस स्नान का वर्णन मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, तीर्थों का राजा प्रयागराज है। यहां पर स्नान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और हर कष्ट से निजात मिल जाती है।

माघ मेले का इतिहास

माघ मेला एक प्रमुख हिंदू धार्मिक त्योहार है जो भगवान ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांड के निर्माण का उत्साह मनाने के लिए किया जाता है.. माघ मेले के त्योहार में विभिन्न यज्ञ, प्रार्थना और अनुष्ठान शामिल है, जिनका उद्देश्य ब्रह्मांड के निर्माण के स्त्रोत का उत्साह मनाना और उसकी प्रशंसा करना है.. त्रिवेणी संगम तट पर मेले का आयोजन होता है, जिसे तीर्थ स्थलों के राजा तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता है..

4 युगों के बराबर माघ मेला

कहते है 45 दिन का लगने वाला माघ मेला 4 युगों के बराबर होता है.. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग.. मुख्य रूप से जो लोग कल्पवास का पालन करते है उन्हें कल्पवासी के रुप में जाना जाता है.. साथ ही वे अपने पिछले जन्म के बुरे कर्मों से मुक्ति प्राप्त करते है.. सभी अनुष्ठानों का पूर्ण रुप से पालन करना मनुष्य को जन्म-मरण के चक्रों से मुक्ति प्रदान करता है, साथ ही कर्म के चक्र से भी बच जाता है..

इन दिनों ये काम अवश्य करें

  1. पवित्र स्नान

45 दिन तक चलने वाला माघ मेले में पवित्र तीर्थों पर स्नान करने से हजारों गुणा पूण्यों की प्राप्ति होती है.. मकर संक्रांति, पूर्णिमा, अमावस्या, बसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के समय पवित्र नदियों में स्नान करें..

  1. हवन

इस अवधि में यदि याचक हवन करता है, तो देवताओं का आशीर्वाद रहता है.. संत, भिक्षु को हवन के बाद दिए जाने वाला दान कई कष्टों का निवारण करता है.. याचक के घर में फल, फूल, मिठाई आदि से भंडार भरा रहता है..

  1. अर्घ्य

अर्घ्य देना एक दीर्घ आयु और स्वस्थ जीवन का प्रसाद कहा जाता है, कहते है भक्त हर सुबह यदि पवित्र नदी में स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देता है उसपर भगवान सूर्य नारायण की कृपा रहती है..

  1. अन्नदान

अन्नदान एक महाकल्पाण के रूप में देखा जाता है, यदि याचक संतों, भिक्षुओं, गरीब लोगों और जरूरतमंद को अन्नदान करता है, तो उसके घर में अन्न देवता का वास हमेशा रहता है..

14 या 15 जनवरी? कब है मकर संक्रांति 2023 में

15 जनवरी 2023 मकर संक्रांति -

नए साल 2023 में मकर संक्रांति की तिथि में परिवर्तन हुआ है.. हर साल मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है, जिसकी तिथि 13 जनवरी होती है, लेकिन साल 2023 में तिथियों में परिवर्तन के कारण और मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी को मनाया जा रहा है, जिसके कारण मकर संक्रांति का पर्व एक दिन बाद 15 जनवरी 2023, दिन रविवार को मनाया जाएगा. रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही उत्तरायण का प्रारंभ होगा. मकर संक्रांति के अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान करना या फिर घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने से पूण्यों की प्राप्ति होती है. स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा कर मकर संक्रांति का दान करें. इस दिन दान करने से कई गुना पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. ज्योतिषाचार्यों के कथन के अनुसार मकर संक्रांति पर दान करने से सूर्य, शनि समेत 6 ग्रहों से जुड़े दोष दूर होते हैं. ये सभी ग्रह शुभ फल प्रदान करते हैं. आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति पर किन वस्तुओं का दान करना ग्रहों और भाग्य की प्रबलता के लिए उत्तम है.

 

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त

15 जनवरी को मकर संक्रांति पर सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 46 मिनट तक मकर संक्रांति का पुण्यकाल रहेगा. इस अवधि में स्नान, दान-धर्म के कार्य बहुत ही शुभ माने जाते हैं. चूंकि मकर संक्रांति का पर्व रविवार के दिन पड़ रहा है तो इससे त्योहार का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है, क्योंकि यह वार सूर्य देव को ही समर्पित है. इसके अलावा, इस दिन दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा और और दोपहर 02 बजकर 16 मिनट से लेकर दोपहर 02 बजकर 58 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा.

 

किन वस्तुओं का करें दान?

 

  1. तिल का दान

मकर संक्रांति के अवसर पर हर व्यक्ति को स्नान के बाद तिल का दान करना चाहिए. हो सके तो इस दिन आप काले तिल का दान करें. यदि काला तिल नहीं है तो सफेद तिल ही दान करें. ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा से धन और धान्य बढ़ता है और शनि दोष भी दूर होता है. कहा जाता है कि जब सूर्य देव मकर संक्रांति पर शनि देव के घर पहुंचे थे तो शनि देव ने काले तिल से उनका स्वागत किया था.

 

  1. गुड़ का दान

मकर संक्रांति के दिन गुड़ का दान अवश्य करें. इस एक दान से आपके तीन ग्रहों सूर्य, गुरु और शनि के दोष दूर होते हैं. गुड़ को गुरु ग्रह से संंबंधित मानते हैं. सूर्य को प्रबल करने के लिए भी गुड़ का दान होता है. मकर संक्रांति के दिन गुड़ और काले तिल से बने लड्डू का दान किया जाता है.

 

  1. कंबल का दान

मकर संक्रांति के अवसर पर पूजा के बाद गरीबों को कंबल और गर्म कपड़ों का दान अपनी क्षमता के अनुसार करना चाहिए. यदि आप ऐसा करते हैं तो आपकी कुंडली में राहु ग्रह से जुड़े दोष दूर होंगे और उसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे.

 

यदि आप मकर संक्रांति पर चावल, खिचड़ी, गुड़, काला तिल और कंबल का दान करते हैं तो सूर्य, शनि, बुध, गुरु, चंद्रमा और राहु ग्रह से जुड़े दोष दूर होंगे और भाग्य मजबूत होगा. इन वस्तुओं के अलावा आप अपनी राशि के अनुसार भी वस्तुओं का दान कर सकते हैं.

कब है लोहड़ी? जानें सहीं तिथि, मुहूर्त, पौराणिक महत्व

लोहड़ी 2023 -

लोहड़ी का पर्व भारत में बहुत ही हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है, वैसे तो ये पर्व पंजाब का मुख्य और प्रसिद्ध पर्व है किंतु इसे समान्य तौर पर सभी मनाते है. लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है, इसमें परिवार और समाज आपस में एकजुट होकर अग्नि के फेरे लेते है और प्रसिद्ध लोक गीत गाते है.. कहा जाता है कि लोहड़ी के दिन पंजाबी और हरियाणवी लोगों में अलग ही तरह की तैयारी चल रही होती है.. यह देश के उत्तर प्रान्त में ज्यादा मनाया जाता हैं. इन दिनों पुरे देश में पतंगों का ताता लगा रहता हैं और भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता हैं. बता दें कि लोहड़ी का पर्व साल 2023 में 14 जनवरी दिन शनिवार को पड़ रहा है.. लोहड़ी मनाने का शुभ मुहूर्त रात्रि 8 बजकर 57 मिनट का है.

 

लोहड़ी के दिन प्रकृति में परिवर्तन

लोहड़ी का त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ- साथ मनाये जाते हैं जैसे लोहड़ी में कहा जाता हैं कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती हैं इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते है.. साथ ही इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता हैं. खेतों में अनाजों की बढ़ोतरी होती हैं और मौसम में हरियाली छाई रहती हैं.. जिस खुशी में ये पर्व मनाया जाता है..

 

लोहड़ी पर्व की पौराणिक कथा

पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता हैं. कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया था. उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता हैं और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिये जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता हैं. इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओ को बाँटा जाता हैं.

 

यदि हम बात करें लोहड़ी की ऐतिहासिक कथा कि तो, इस पर्व को दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता हैं. यह कथा अकबर के शासनकाल की हैं उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था, इसे पंजाब का नायक कहा जाता था. उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं. वहां लड़कियों को बेचा जाता था, तब दुल्ला भट्टी ने इस का विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक इस दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया और इस दिन को विजय के दिन के रूप में लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं.

 

इन्ही पौराणिक एवम एतिहासिक कारणों के चलते पंजाब प्रान्त में लोहड़ी का उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता हैं.

January 2023 Vrat & Tyohar List

जनवरी 2023 व्रत एवं त्यौहार लिस्ट -

साल 2023 जनवरी का महीना पौष माह से शुरू होकर माघ माह में समाप्त हो रहा है. नए साल के सबसे पहले माह यानी जनवरी में मासिक शिवरात्रि, पौष पुत्रदा एकादशी, षटतिला एकादशी, मकर संक्रांति, बसंत पंचमी और पोंगल जैसे कई महत्वपूर्ण दिवस, व्रत और त्योहार पड़ रहे हैं. आईए जानते है इन सभी त्योहारों का महत्व और तिथि के बारें में…

 

2 जनवरी, सोमवार- पौष पुत्रदा एकादशी

पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इस दिन सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. स्त्री वर्ग में इस व्रत का बड़ा प्रचलन और महत्व है. इस व्रत के प्रभाव से संतान की रक्षा भी होती है.

 

4 जनवरी, बुधवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं. यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत एक साल में कई बार आता है.

 

6 जनवरी, शुक्रवार- पौष पूर्णिमा व्रत

सनातन धर्म और भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा तिथि का बड़ा महत्व है. पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा को प्रिय होती है और इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है. हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है.

 

10 जनवरी, मंगलवार- संकट चौथ

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी. संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’. इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है. पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है. इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं. संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है.

 

14 जनवरी, शनिवार- लोहड़ी

सनातन पंचांग के अनुसार पौष माह में यह त्योहार कृत्तिक नक्षत्र में मनाया जा रहा है. लोहड़ी का पर्व मुख्य रूप से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उत्तर भारत के कई राज्यों में भी लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला लोहड़ी का त्योहार किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. मान्यता है कि लोहड़ी पर्व नए अन्न के तैयार होने और फसल कटाई की खुशी में मनाया जाता है.

 

15 जनवरी, रविवार- मकर संक्रांति, पोंगल, उत्तरायण

सनातन धर्म में मकर संक्रांति एक प्रमुख पर्व है. भारत के विभिन्न इलाकों में इस त्यौहार को स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है. हर वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है. इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है. ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है.

 

18 जनवरी, बुधवार- षटतिला एकादशी

षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. कुछ लोग बैकुण्ठ रूप में भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन 6 प्रकार से तिलों का उपोयग किया जाता है. इनमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.

 

19 जनवरी, गुरुवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)

प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. इस व्रत में भगवान शिव कि पूजा की जाती है. हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दी गयी है. ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है. वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है.

 

20 जनवरी, शुक्रवार- मासिक शिवरात्रि

शिवरात्रि शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है. सनातन पंचाग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष के 14वें दिन को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. यह पर्व न केवल उपासक को अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है, बल्कि उसे क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान और लालच जैसी भावनाओं को रोकने में भी मदद करता है.

 

21 जनवरी, शनिवार- मौनी अमावस्या/माघ अमावस्या

सनातन पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या कहते हैं. इस दिन मनुष्य को मौन रहना चाहिए और गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों, जलाशय अथवा कुंड में स्नान करना चाहिए. धार्मिक मान्यता के अनुसार मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है. इसलिए इस दिन मौन रहकर व्रत करने वाले व्यक्ति को मुनि पद की प्राप्ति होती है.

 

26 जनवरी, गुरुवार- बसंत पंचमी

बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. आज ही के दिन से भारत में वसंत ऋतु का आरम्भ होता है. इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है. बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है. इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है.

Paush Amavasya 2022 Date & Muhurat

Paush Amavasya 2022 -

पौष अमावस्या 23 दिसंबर 2022, दिन शुक्रवार को है. पौष अमावस्या साल 2022 की आखिरी अमावस्या होगी. सनातन पंचाग के अनुसार पौष मास में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को पौष अमावस्या मनाई जाती है। इस अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहते हैं। धार्मिक रूप से अमावस्या के दिन स्नान-दान का बड़ा ही महत्व है। मान्यता के आधार पर इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर जाकर स्नान-दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण भी किया जाता है। पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए व्रत किया जाता है। पौष मास में इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं पौष अमावस्या  का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि।

 

पौष अमावस्या तिथि और मुहूर्त

 

पौष अमावस्या तिथि आरंभ: 22 दिसम्बर 2022, गुरुवार, सायं 07:13 मिनट से

पौष अमावस्या तिथि समाप्त: 23 दिसम्बर 2022, शुक्रवार, दोपहर 03:46 मिनट तक

पौष अमावस्या तिथि: उदयातिथि के कारण 23 दिसम्बर 2022, शुक्रवार को ही अमावस्या मानी जाएगी

 

पौष अमावस्या का महत्व

सनातन धर्म में पौष के महीने को बहुत ही फलदायी और उच्च पुण्य देने वाला बताया गया है। धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन के लिए यह माह श्रेष्ठ है। इस दिन उपवास करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, भूत, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पक्षियों और जानवरों की भी आत्मा को शांति मिलती है।

 

पौष अमावस्या पूजा विधि

 

सुबह गंगा में स्नान करें और उसके बाद तांबें के पात्र में सूर्य देव को गंगा जल से अर्घ्य दें। सूर्य को लाल पुष्प जरूर चढ़ाएं।  पितरों का श्राद्ध करें और उनके नाम से अपने सामर्थ के अनुसार दान करें।

 

पौष अमावस्या के दिन पितरों और पूर्वजों की आत्माओं का तर्पण किया जाता है।

 

इस दिन पवित्र नदी, या जलाशय में डुबकी लगाएं और भगवान सूर्य को जल चढ़ाने के बाद पितरों का तर्पण करें।

 

तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर उसमें लाल चंदन और लाल फूल डालकर सूर्य देव को जल चढ़ाएं।

 

अगर गंगा स्नान नहीं करने जा पा रहे हैं, तो पानी में गंगा जल मिलकर भी स्नान कर सकते हैं।

 

पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें और गरीबों को दान-दक्षिणा दें।

 

पीपल के पेड़ के नीचे देघी घी का दीपक जलाएं।

 

वहीं इस दिन मछलियों को आटा खिलाना शुभ माना गया है।

 

पौष अमावस्या पर न करें ये कार्य

किसी का अनादर नहीं करना चाहिए।

 

झूठ नहीं बोलना चाहिए।

 

मदिरा और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

किसी को अपशब्द न कहें।

Saphala Ekadashi 2022 Vrat Date, Rituals and Significance

Safla Ekadashi 2022 -

9 दिसंबर 2022 से पौष माह की शुरूआत हो रही है.. साल 2022 की आखिरी एकादशी कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली है, जिसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है.. सफला एकादशी का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि ये एकादशी का फल व्यक्ति के नाम के अनुसार उसे फल दान करता है। व्यक्ति अपने ज्ञान, विवेक और कार्य के अनुसार सफलता प्राप्त करता है। भगवान श्री हरि विष्णु एकादशी का फल उनके गुण के अनुसार प्रदान करते है। नारायण व्यक्ति को सफला एकादशी का फल भाग्य और उसकी इच्छानुसार देते है। तो आईए जानते है सफला एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और किन बातों का रखना है ध्यान?

 

सफला एकादशी शुभ मुहूर्त

 

एकादशी तिथि प्रारम्भ – 19 दिसम्बर, दिन सोमवार प्रात: 03 बजकर 32 मिनट से

 

एकादशी तिथि समाप्त – 20 दिसम्बर, दिन मंगलवार प्रातः 02 बजकर 32 मिनट तक

 

व्रत पारण समय- 20 दिसम्बर, दिन मंगलवार सुबह 08 बजकर 05 मिनट से 09 बजकर 13 मिनट के बीच

 

सफला एकादशी व्रत कथा

पुद्मपुराण के अनुसार चंपावती नगरी के राजा महिष्मान का राज्य था. राजा के पांच पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा बेटा लुंभक चरित्रहीन था, वह हमेशा पाप कर्मों में लिप्त रहता था. नशा करना, तामसिक भोजन करना, वैश्यावृति, जुआं, ब्राह्मणों का अनादर और देवताओं की निंदा करना उसकी आदत बन चुकी थी. राजा ने परेशान होकर उसे राज्य से बेदखल कर दिया.

 

पिता ने राज्य से बाहर निकाल दिया तो लुंभक जंगल में रहने लगा. एक बार भीषण ठंडी की वजह से वह रात में सो नहीं पाया. रातभर ठंड में कांपता रहा जिसके कारण वह मूर्छित हो गया. उस दिन पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि थी. अगले दिन जब होश आया तो अपने पाप कर्मों पर पछतावा हुआ और उसने जंगल से कुछ फल इक्ट्‌ठा किए और पीपल के पेड़ के पास रखकर भगवान विष्णु का स्मरण किया.

भयानक पड़ती सर्द के कारण उसे नींद नहीं आई, वह जागरण कर श्रीहरि की आराधना में लीन था. ऐसे में अनजाने में उसने सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया.

 

सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से उसने धर्म का मार्ग अपना लिया और सत्कर्म करने लगा. राजा महिष्मान को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने लुंभक को राज्य में वापस बुलाकर राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी. कहते हैं तभी से सफला एकादशी का व्रत किया जाता है. ये सर्वकार्य सिद्ध करने वाली एकादशी मानी जाती है.

 

सफला एकादशी के नियम

एकादशी व्रत के दिन भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिन व्यक्ति को चावल का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दिन व्यक्ति को सादे भोजन का सेवन करना चाहिए। इस दिन खाने में प्याज लहसुन का प्रयोग वर्जित है। इस दिन मांसाहार का सेवन करना पाप की श्रेणी में आता है।

 

व्रत के दिन व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और मन को शांत रखना चाहिए। एकादशी तिथि के दिन अपने मुख से अपशब्दों का प्रयोग ना करें और विवादों से दूरी बना लें। साथ ही मन में श्रद्धाभाव जागृत रखने के लिए पूजा में लिप्त रहे या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप निरंतर मन ही मन करते रहें।

 

एकादशी व्रत के दिन व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद ही व्रत का संकल्प लें और दोपहर या शाम के समय व्यक्ति को नहीं सोना चाहिए, एकादशी के दिन झूठ न बोलें।

 

एकादशी तिथि के दिन व्यक्ति को तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है और भगवान विष्णु इस कार्य से क्रोधित हो जाते हैं। साथ ही इस दिन घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ इस दिन लकड़ी के दातुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 

इस दिन भूल से भी बाल या नाखून काटने की गलती ना करें। साथ ही इस दिन घर में झाड़ू का प्रयोग ना करें। इससे चींटी या किसी छोटे जीव की मृत्यु का और जीव हत्या का भय निरंतर बना रहता है। साथ ही इस दिन सामर्थ्य के अनुसार किसी गरीब को जरूरत की चीजों का दान जरूर करें।