Pishach Mochan Shradh 2022: Date, Time, Significance, Rituals

Pishach Mochan Shradh -

पिशाचमोचन श्राद्ध के दिन पिशाच यानि की प्रेत योनि में गये हुए पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि करने का विधान है. 06 दिसंबर 2022 को पिशाचमोचन श्राद्ध किया जाएग. इस तिथि पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व है. इस अवसर पर शांति के उपाय करने से प्रेत योनि व जिन्हें भूत-प्रेत से भय व्याप्त हो उन्हें पितर दोष से मुक्ति मिलती है. इस दोष की शांति हेतु शास्त्रों में पिशाचमोचन श्राद्ध को महत्वपुर्ण माना गया है. मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा पितरों की शांति व मुक्त्ति संभव होती है.

 

पिशाचमोचन श्राद्ध विधान

इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थय आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए. तिलक, आचमन के उपरांत पीतल या ताँबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखें.

 

हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प में व्यक्ति का नाम ले, जिसके लिए पिशाचमोचन श्राद्ध किया जा रहा हो. फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दें. इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है. तर्पण करने के उपरांत शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पणकार्य भगवान को अर्पण करें व पितर की शांति की कामना करें. पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है तथा भगवत कथा का श्रवण करते हुए शांति की कामना की जाती है.

 

पिशाच मोचन श्राद्ध महत्व

पिशाच मोचन श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करें तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं. जो अकाल मृत्यु व किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं उनके लिए यह श्राद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है. इस प्रकार इस दिन श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव मुक्ति पाता है.

 

यह समय पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है, इसलिए इस दिन में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं. इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है, इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.

Mokshada Ekadashi 2022: Know date, shubh muhurat, significance, puja vidhi

Mokshada Ekadashi Vrat 2022 -

मोक्षदा एकादशी व्रत मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। मोक्षदा एकादशी व्रत भगवान विष्णु को अति प्रिय है और कहते है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का पारण करता है वो मृत्यु के बाद सीधा बैकुंठ धाम जाता है। मोक्षदा एकादशी को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इससे व्रत रखने वाला सभी मोह बंधनों से मुक्त होता है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला व्रत ओर कोई नहीं है। मोक्षदा एकादशी पर श्रीहरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। आईए जानते है मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पारण का शुभ समय क्या है?

 

मोक्षदा एकादशी 2022 तिथि

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 03 दिसंबर 2022, दिन शनिवार को प्रात: 05 बजकर 39 मिनट पर हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 04 दिसंबर रविवार को प्रात: 05 बजकर 34 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर मोक्षदा एकादशी का व्रत 03 दिसंबर को रखा जाएगा।

 

मोक्षदा एकादशी व्रत पारण समय 

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत के पारण का समय 04 दिसंबर को दोपहर 01 बजकर 20 मिनट से दोपहर 03 बजकर 27 मिनट तक है।

 

मोक्षदा एकादशी का महत्व

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जो भी जातक पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

 

मोक्षदा एकादशी व्रत में इन नियमों का रखें ध्यान

जो लोग मोक्षदा एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उन्हें इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

मोक्षदा एकादशी को पूरे दिन व्रत रखकर, रात्रि में जागरण करते हुए श्री हरि विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

 

एकादशी व्रत को कभी हरि वासर समाप्त होने से पहले पारण नहीं करना चाहिए।

 

शास्त्रों में द्वादशी समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करना पाप के समान माना जाता है।

 

यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो रही हो तो इस स्थिति में सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

 

द्वादशी तिथि के दिन प्रातः पूजन व ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।

Masik Durga Ashtami Vrat 2022: Significance, Rituals and More

Masik Durga Ashtami -

सनातन धर्म में अष्टमी को महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा व व्रत किया जाता है। हर हिन्दू मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को देवी दुर्गा का मासिक व्रत भी कहा जाता है। सनातन कैलेण्डर के अनुसार अष्टमी एक माह में दो बार आती है एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में। शुक्ल पक्ष की अष्टमी में देवी दुर्गा का व्रत किया जाता है।

 

मासिक दुर्गा अष्टमी मुहूर्त

बुधवार, 30 नवंबर 2022 से लेकर 01 दिसंबर, दिन गुरूवार तक रहेगी

 

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि व्रत प्रारंभ 30 नवंबर 2022, दिन बुधवार, प्रात: 08 बजकर 58 मिनट से 01 दिसंबर 2022, दिन गुरूवार, प्रात: 7 बजकर 21 मिनट पर समापन होगा।

 

इस प्रकार मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 30 नवंबर और 01 दिसंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा।

 

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का महत्व

मासिक दुर्गाष्टमी व्रत के दिन देवी दुर्गा का व्रत करने से जगदंबा माता की कृपा प्राप्त होती है. भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। घर में सुख-समृद्धि, धन-लक्ष्मी आती है। देवी दुर्गा अपने भक्तों से अथाह प्रेम करती है, इसलिए जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से देवी दुर्गा की पूजा करता है, उसके जीवन की सभी बाधाएं देवी खुद दूर करती है।

 

दुर्गा अष्टमी पूजा विधि

दुर्गा अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान के पानी में थोड़ा गंगाजल डालकर स्नान करें।

 

लकड़ी की चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।

 

फिर मां दुर्गा के मंत्र का जाप करते हुए उनकी प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।

 

लाल या उधल के फूल, सिंदूर, अक्षत, नैवेद्य, सिंदूर, फल, मिठाई आदि से मां दुर्गा के सभी रूपों की पूजा करें।

 

फिर धूप-दीप जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और आरती करना न भूलें।

 

इसके बाद हाथ जोड़कर देवी दुर्गा के सामने व्रत का संकल्प ले।

Why did Brahma Test Krsna?

Shri Krishna And Brahma Story -

यह बात तब की है जब श्री कृष्ण अपने बाल्यावस्था में थे यानी यह कहानी श्री कृष्ण के बचपन की है। उस समय ब्रह्मा जी को पता चला कि भगवान विष्णु स्वयं श्री कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं, तो उनके मन में श्री कृष्ण के दर्शन करने का विचार आया। वह ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर आए और देखा कि अपने सिर पर मोर मुकुट को धारण किए एक बालक गायों और ग्वालों के साथ मिट्टी में खेल रहा है।

 

यह दृश्य देखकर ब्रह्मा जी को विश्वास नहीं हुआ कि यह बालक विष्णु जी का अवतार है, लेकिन बच्चे के चेहरे पर अतुल्य तेज था। यह देखकर ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की परीक्षा लेने का विचार किया।

 

उन्होंने सबसे पहले गायों को वहां से उठा लिया। फिर जब श्री कृष्ण गायों को देखने के लिए गए, तो उन्होंने वहां खेल रहे ग्वालों को भी उठा लिया और अपने साथ ब्रह्मलोक ले गए। जब इसके कुछ देर बाद वह पृथ्वी पर वापस आए, तो वहां का माहौल देखकर चौंक गए, क्योंकि जिन बच्चों और गायों को वे अपने साथ ब्रह्मलोक ले गए थे, वो तो श्री कृष्ण के साथ पृथ्वी पर खेल रहे थे। यह देखकर उन्होंने ध्यान लगाकर ब्रह्मलोक की स्थिति जाननी चाही। उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि सभी बालक और गायें ब्रह्मलोक में ही हैं।

 

यह सब देखकर उन्हें श्री कृष्ण की लीला समझ आ गई और उन्होंने हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी। साथ ही प्रार्थना की, कि प्रभु मुझे अपने असली रूप के दर्शन दें। तब श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी को अपना विराट रूप दिखाया। श्री कृष्ण के उस रूप के दर्शन करने के लिए कई और ब्रह्मा भी वहां पर आए गए। उन ब्रह्मा में कुछ तीन सिर के, कुछ चार सिर के, तो कुछ सौ सिर के थे।

 

अपने अलावा अन्य ब्रह्मा को देखकर ब्रह्मदेव ने श्री कृष्ण के विराट रूप से पूछा कि प्रभु यह कैसी लीला है आपकी। इस पर उन्होंने कहा कि हे ब्रह्मदेव इस जगत में केवल आप ही एक ब्रह्मा नहीं हैं। जगत में कई सारे ब्रह्मांड हैं, जहां पर कई सारे ब्रह्मदेव मौजूद हैं और प्रत्येक का अपना-अपना कार्य है। यह सुनकर ब्रह्मदेव ने उन्हें शीश झुकाकर नमस्कार किया और वापस ब्रहमलोक में चले गए.

What is the Secret of Lord Shiva’s Third Eye?

Secret Of Lord Shiva Third Eye -

भगवान शिव जी की हर प्रतिमा में उनके मस्तक पर एक आंख दिखाई देती है. इसे भोलेनाथ की तीसरी आंख कहते हैं. भगवान शिव के मस्तक पर तीसरी आंख है, इसलिए उन्हें त्रिलोचन भी कहा जाता है. वैसे क्या आप जानते हैं कि शिव जी को यह तीसरी आंख कैसे प्राप्त हुई. इस घटना के पीछे भी एक कहानी है, जिसमें शिव जी की तीसरी आंख का रहस्य और महत्व दोनों पता चलता है.

 

एक समय की बात है. भगवान शिव कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहे थे, तभी देवी पार्वती वहां आईं और उन्होनें मजाक-मजाक में अपने दोनों हाथों से अपने भगवान शिव की आंखों को ढक दिया. देवी पार्वती को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनके इस मजाक का क्या परिणाम होगा.

 

जैसे ही देवी पार्वती जी ने भगवान शिव की आंखों को ढका, वैसे ही पूरी सृष्टि में अंधेरा छा गया. देवी-देवता गण, मनुष्य, जानवर आदि सभी अंधेरे से घबरा उठे. तपस्या में लीन शिव जी को अंदाजा हुआ कि देवी पार्वती जी की ठिठोली से लोगों में भय उत्पन्न हो गया है. लोगों की हालत देखकर भगवान शिव ने अपने मस्तक पर एक आंख उत्पन्न कर ली. भगवान शिव की तीसरी आंख खुलते ही सारे लोकों में उजाला हो गया. तब से शिव जी की तीसरी आंख को प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. भगवान शिव इस घटना के बाद पार्वती जी को बताते हैं कि उनकी दो आंखे पूरी सृष्टि की पालनहार हैं और तीसरी आंख प्रलय का कारण. शास्त्रों में भी कहा गया है कि जब भी भगवान शिव अपनी तीसरी आंख खोलेंगे, तब संसार को विनाश का सामना करना होगा.

 

Sankashti Chaturthi 2022: Day, date, time, rituals and significance

Sankashti Chaturthi 2022 -

साल 2022 का आखिरी महीना दिसंबर शुरू हो चुका है, 9 दिसंबर 2022 से पौष माह आरंभ होगा. हर माह में भगवान गणेश की प्रिय चतुर्थी 2 बार आती है। पहली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, जिसे हम संकष्टी चतुर्थी कहते है और दूसरी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी जिसे हम वरद विनायक चतुर्थी कहते है। पौष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 11 दिसंबर 2022, दिन रविवार को है। आईए जानते है संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन कौन-से उपाय करें?

 

संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त

 

सनातन पंचागं के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 11 दिसंबर 2022 को शाम 04 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 12 दिसंबर 2022 को शाम 06 बजकर 48 मिनट पर किया जाएगा.

 

चंद्रोदय का समय – 11 दिसंबर 2022 को रात 08 बजकर 11 मिनट पर

 

संकष्टी चतुर्थी महत्व

 

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत जीवन में सौभाग्य की वृद्धि करता है. मान्यता है कि इस दिन एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी गणपति को तिल के लड्‌डू, दूर्वा अर्पित करने से ज्ञान और ऐश्वर्य, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है. कहते है जो लोग पौष माह की संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखकर गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करते है और फिर चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं उन्हें दीर्धायु का वरदान मिलता है. संकष्टी चतुर्थी पर दिनभर व्रत रखा जाता है और रात के समय में चंद्र देव की पूजा करते हैं और उनको अर्घ्य अर्पित करके पारण करते हैं. इसके साथ ही यह व्रत पूर्ण होता है. इस व्रत में चंद्रमा की पूजा महत्वपूर्ण है, इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है.

Vivah Panchami 2022 : Date, Significance, Ritual & Story

Vivah Panchami 2022 -

श्रीराम विवाह पंचमी का पर्व साल 2022 में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान श्री राम ने माता सीता के साथ इस दिन विवाह किया था, जिसे हम विवाहोत्सव और विवाह पंचमी के रूप में मनाते है। भगवान श्री राम चेतना के प्रतीक हैं और माता सीता प्रकृति शक्ति की, इसलिए चेतना और प्रकृति का मिलन होने से यह दिन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह करवाना बहुत शुभ माना जाता है। साल 2022 में विवाह पंचमी का पर्व 28 नवंबर, दिन सोमवार को पड़ रहा है। आईए जानते है विवाह पंचमी का शुभ मुहूर्त और महत्व।

 

विवाह पंचमी की तिथि

सनातन पंचांग के अनुसार, साल 2022 में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की विवाह पंचमी 27 नवंबर 2022 को शाम 04 बजकर 25 मिनट से प्रारंभ होकर अगले दिन 28 नवंबर 2022 को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट पर समापन होगा. उदिया तिथि के चलते विवाह पंचमी 28 नवंबर को मनाई जाएगी.

 

विवाह पंचमी पर शुभ योग

अभिजित मुहूर्त – सुबह 11:53 – दोपहर 12:36

अमृत काल – शाम 05 बजकर 21 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 49 मिनट तक

सर्वार्थि सिद्धि योग –  सुबह 10 बजकर 29 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 55 मिनट तक

रवि योग – सुबह 10 बजकर 29 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 55 मिनट तक

 

विवाह पंचमी पर कैसे कराएं राम-सीता का विवाह?

प्रातः काल स्नान करके श्री राम विवाह का संकल्प लें, फिर विवाह के कार्यक्रम का आरम्भ करें. भगवान राम और माता सीता की प्रतिकृति की स्थापना करें. भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें या तो इनके समक्ष बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें या “ॐ जानकीवल्लभाय नमः” का जप करें. इसके बाद माता सीता और भगवान राम का गठबंधन करें. उनकी आरती करें, साथ ही गांठ लगे वस्त्रों को अपने पास सुरक्षित रख लें.

 

क्यों खास है विवाह पंचमी?

अगर विवाह होने में बाधा आ रही हो तो वो समस्या दूर हो जाती है. मनचाहे विवाह का वरदान भी मिलता है. वैवाहिक जीवन की समस्याओं का अंत भी हो जाता है. इस दिन भगवान राम और माता सीता की संयुक्त रूप से उपासना करने से विवाह होने में आ रही बाधाओं का नाश होता है. इस दिन बालकाण्ड में भगवान राम और माता सीता जी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ होता है. इस दिन सम्पूर्ण रामचरित-मानस का पाठ करने से भी पारिवारिक जीवन सुखमय होता है.

Utpanna Ekadashi 2022 Vrat Date, puja timing and significance

उत्पन्ना एकादशी 2022 -

सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोग एकादशी व्रत को खास महत्व देते हैं.. एकादशी व्रत का पालन कर भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है.. मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है.. साल 2022 में उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर, दिन रविवार को पड़ रही है.. एकादशी का व्रत बेहद पवित्र और खास होता है, इसलिए इस व्रत के नियम का विशेष ध्यान रखा जाता है.. आइए जानते हैं कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा और इसके लिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि क्या है?

 

उत्पन्ना एकादशी 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त

 

उत्पन्ना एकादशी 20 नवंबर 2022, दिन रविवार

 

एकादशी तिथि आरंभ – 19 नवम्बर को प्रात: 10 बजकर 29 मिनटे से आरंभ

 

एकादशी तिथि समाप्त – 20 नवम्बर को प्रात: 10 बजकर 41 मिनट तक

 

21 नवंबर को पारण का समय – प्रात: 06 बजकर 48 मिनट से 08 बजकर 56 मिनट तक

 

उत्पन्ना एकादशी पारण

उत्पन्ना एकादशी व्रत का पारण 21 नवंबर, 2022 को किया जाएगा. एकादशी के व्रत का समापन पारण कहलाता है.. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है. एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी होता है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है.

 

उत्पन्ना एकादशी व्रत नियम

एकादशी का व्रत कठिन व्रतों में से एक है. मान्यता है कि एकादशी का व्रत दशमी तिथि की शाम सूर्यास्त के बाद से ही शुरु हो जाता है. वहीं एकादशी व्रत का समापन द्वादशी तिथि पर किया जाता है, इसलिए उत्पन्ना एकादशी के व्रत के दौरान व्रत नियम का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ऐसे में व्रती दशमी तिथि पर सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें. इस दिन तामसिक भोजन से परहेज करें और सात्विक और हल्का आहार लें.

 

उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि

उत्पन्ना एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लें. 

 

इसके बाद मंदिर में भगवान विष्णु जी के सामने घी का दीपक जलाएं. फल-फूल आदि से पूजन करें.

 

उत्पन्ना एकादशी पर पूरे दिन उपवास रखकर श्रीहरि का ध्यान करें. एकादशी व्रत के दौरान दिन में सोना नहीं चाहिए.

 

द्वादशी तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद फिर से पूजन करें.  

गरीबों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें. इसके बाद ही एकादशी व्रत का पारण करें.

Date, Time, Significance, Kaal Bhairav Jayanti 2022

श्री काल भैरव जयंती 2022 -

देवों के देव भगवान शंकर ने भी धरती पर अनेकों अवतार लिए, जिसमें से एक अवतार उनका रौद्र रूप है जिसे काल भैरव के नाम से जाना जाता है. वैसे तो हर माह कालाष्टमी आती है लेकिन कहते हैं कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शिव ने काल भैरव का रूप धारण किया जिसे काल भैरव के नाम से जाना जाता है.. कहते है कि शत्रु और ग्रह बाधा दूर करने के लिए काल भैरव की पूजा बहुत उत्तम मानी गई है. आइए जानते हैं काल भैरव जंयती की तिथि, पूजा मुहूर्त और महत्व.

 

काल भैरव जयंती तिथि

काल भैरव जयंती साल 2022 में 16 नवंबर, दिन बुधवार  को मनाई जाएगी. इस दिन शिव के रौद्र रूप का पूजन करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और तमाम रोग, दोष दूर होते हैं. जीवन में कभी बुरी शक्तियां हावी नहीं होती.

 

काल भैरव जयंती मुहूर्त  

सनातन पंचांग के अनुसार काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, 16 नवंबर 2022, प्रात: 05 बजकर 49 से शुरू होगी. अष्टमी तिथि समाप्त 17 नवंबर 2022 को सुबह 07 बजकर 57 पर होगी.

 

ब्रह्म मुहूर्त – 05 बजकर 02 मिनट से 05 बजकर 54 मिनट

 

अमृत काल मुहूर्त – 05 बजकर 12 मिनट से 06 बजकर 59 मिनट

 

निशिता काल मुहूर्त – 16 नवंबर, दिन बुधवार, रात 11 बजकर 45 मिनट से 17 नवंबर, दिन गुरूवार, प्रात: 12 बजकर 38 मिनट तक

 

काल भैरव पूजा महत्व

काल भैरव जयंती पर महादेव के रौद्र रूप की पूजा से भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. भैरव शब्द का अर्थ है रक्षा करने वाला, इन्हें दंडपाणि की उपाधि भी दी गई है. कहते हैं अच्छे कर्म करने वालों पर काल भैरव मेहरबान रहते हैं लेकिन जो अनैतिक कार्य करता है, तो काल भैरव के प्रकोप से बच भी नहीं पाता. काल भैरव का वाहन कुत्ता माना गया है. मान्यता है कि काल भैरव को प्रसन्न करना है तो काल भैरव जयंती के दिन विशेषकर काले कुत्ते को भोजन खिलाना चाहिए. इससे आकस्मिक संकटों से काल भैरव रक्षा करते हैं. वहीं जो इस दिन मध्यरात्रि में चौमुखी दीपक लगाकर भैरव चालीसा का पाठ करता है उसके जीवन में शनि और राहु के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं.

Sankashti Chaturthi 2022: Day, date, time, rituals and significance

संकष्टी चतुर्थी 2022 -

साल में आने वाली संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी का महत्व सनातन धर्म में अत्यधिक माना जाता है, क्योंकि दोनों चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा का विधान है.. हर माह में दो चतुर्थी आती है, एक संकष्टी चतुर्थी जो कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर आती है और दूसरी विनायक चतुर्थी जो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर आती है.. भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा – अर्चना करने पर उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामना निर्विघ्न पूर्ण होते है.. बप्पा भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके सभी संकट दूर कर देते हैं. नवंबर माह में संकष्टी चतुर्थी का व्रत 12 नवंबर को रखा जाएगा.

9 नवंबर, दिन बुधवार के दिन से मार्गशीर्ष माह की शुरुआत होगी और इसी माह की 12 तारीख को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा. आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त और मंत्र जाप आदि के बारे में.

 

संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त 2022  

संकष्टी चतुर्थी के व्रत का पारण चंद्रोदय के बाद चंद्र दर्शन और पूजा के बाद ही किया जाता है. बता दें कि चतुर्थी तिथि का आरंभ 11 नवंबर 2022 रात 08 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 12 नवंबर 2022 रात 10 बजकर 25 मिनट तक होगा. इस दिन चंद्रोदय का समय रात 8 बजकर 21 मिनट बताया जा रहा है.

 

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की कृपा पाने के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. इस दिन विधि-विधान से पूजन किया जाता है. मार्गशीर्ष माह की संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस दिन मंदिर में जाकर गणेश जी की पूजा की जाती है. कहते हैं कि पूजा के दौरान गणेश जी को मोदक का भोग लगाया जाता है. इससे वे जल्द प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.