Mrityu Aane Ke Sanket Jaane

मृत्यु आने के संकेत -

मृत्यु एक परम सत्य है। सहीं समय और नियति के अनुसार मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु और सामान्य मृत्यु में भी मनुष्य का समय निश्चित होता है। अकाल मृत्यु में व्यक्ति की उम्र पूर्ण होने से पूर्व ही वे मृत्यु को प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु में गंभीर बिमारी के कारण मृत्यु आना, किसी दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त होना, बुरे कर्म के कारण मृत्यु आना या किसी दुश्मन द्वारा मारे जाने पर मृत्यु को प्राप्त होना आदि। सामान्य मृत्यु में मनुष्य बिना किसी बिमारी या आपदा के मृत्यु को प्राप्त होता है, इसमें मनुष्य नियति द्वारा निश्चित एक उम्र और समय में अपना शरीर त्यागता है।

 

शिव पुराण में मृत्यु आने के संकेत

धार्मित ग्रंथों में युगों का जिस तरह बखान किया गया है उसी प्रकार शिव पुराण में भगवान शिव द्वारा मृत्यु आने के संकेतों को बताया गया है। इस बात का वर्णन स्वयं काल ने किया है, क्योंकि मृत्यु आने के संकेतों को मनुष्य पहचाने और वे सही कर्म की ओर अग्रसर हो जाएं। धर्म के मार्ग पर चलने वाले अपनी निश्चित समय-सीमा को पूरा करके ही मृत्युलोक को त्यागते है। वहीं अर्धम पर चलने वाले छल, लालसा, मोह, चोरी, द्वेष आदि में पड़ कर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते है। अब जानते है मृत्यु आने से पहले कौन-से संकेत हमें मिलते है।

 

  1. आसमान में सप्तऋषि ना दिखना

किसी मनुष्य को आसमान में सप्तऋषि यानि सात तारे मनुष्य को ना दिखाई दे, तो मृत्यु का संकेत मिलता है। ऐसे मनुष्य की मृत्यु आने वाले 5 से 6 महीने के अंदर हो जाती है।

 

  1. दिशाएं समझ ना आना

सूर्य और चंद्रमा के उदय और अस्त होने की दिशाएं यदि मनुष्य को समझ ना आएं तो वे मृत्यु के करीब माना जाता है। चारों दिशाओं में जब मनुष्य भ्रमित होने लगे और दिशाओं को समझने में बार-बार गलती करने लगे तो ये मृत्यु का संकेत है।

 

  1. शरीर का रंग फीका पड़ना

मनुष्य की मृत्यु जब पास आती है, तो शरीर का संचालन धीमा होने लगता है। शरीर पूर्ण रूप से कार्य करना बंद कर देता है। शरीर का रंग फीका पड़ने यानि की पीला पड़ने लगता है। बालों का झड़ना, ह्रदय धीमा पड़ना, सोचने की क्षमता कम होना आदि शरीर में काफी बदलाव देखने को मिलते है। ये आने वाली मृत्यु का संकेत माना जाता है।

 

  1. तारों का अदृश्य होना

मृत्यु के नजदीक आने पर मनुष्य को आसमान में तारे नहीं दिखते है, ध्रुव तारे को भी ना देख पाना एक तरह का संकेत माना जाता है। आसमान नीले की जगह लाल दिखना ये अकाल मृत्यु का संकेत होता है, ऐसे में व्यक्ति के पास कुछ ही समय शेष होता है, क्योंकि लाल आसमान का दिखना यमराज के आने का आगमन दिखना कहलाता है।

 

  1. परछाई ना दिखना

मृत्यु निकट है उसका एक संकेत परछाई ना दिखना है। धूप में, शीशे में, पानी में, तेल, घी, शाम के वक्त चलते समय सड़क पर परछाई का ना दिखना जल्द मृत्यु का संकेत है।

 

  1. नीली मक्खियां दिखना

मक्खियां का आस-पास घूमना एक आम बात है और आमतौर पर मक्खियों का रंग काला होता है, किंतु नीली मक्खियां जब आपको घेर ले तो ये एक अकाल मृत्यु का संकेत माना जाता है।

Paush Amavasya 2022 Date & Muhurat

Paush Amavasya 2022 -

पौष अमावस्या 23 दिसंबर 2022, दिन शुक्रवार को है. पौष अमावस्या साल 2022 की आखिरी अमावस्या होगी. सनातन पंचाग के अनुसार पौष मास में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को पौष अमावस्या मनाई जाती है। इस अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहते हैं। धार्मिक रूप से अमावस्या के दिन स्नान-दान का बड़ा ही महत्व है। मान्यता के आधार पर इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर जाकर स्नान-दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण भी किया जाता है। पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए व्रत किया जाता है। पौष मास में इस दिन भगवान सूर्य की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं पौष अमावस्या  का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि।

 

पौष अमावस्या तिथि और मुहूर्त

 

पौष अमावस्या तिथि आरंभ: 22 दिसम्बर 2022, गुरुवार, सायं 07:13 मिनट से

पौष अमावस्या तिथि समाप्त: 23 दिसम्बर 2022, शुक्रवार, दोपहर 03:46 मिनट तक

पौष अमावस्या तिथि: उदयातिथि के कारण 23 दिसम्बर 2022, शुक्रवार को ही अमावस्या मानी जाएगी

 

पौष अमावस्या का महत्व

सनातन धर्म में पौष के महीने को बहुत ही फलदायी और उच्च पुण्य देने वाला बताया गया है। धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन के लिए यह माह श्रेष्ठ है। इस दिन उपवास करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, भूत, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पक्षियों और जानवरों की भी आत्मा को शांति मिलती है।

 

पौष अमावस्या पूजा विधि

 

सुबह गंगा में स्नान करें और उसके बाद तांबें के पात्र में सूर्य देव को गंगा जल से अर्घ्य दें। सूर्य को लाल पुष्प जरूर चढ़ाएं।  पितरों का श्राद्ध करें और उनके नाम से अपने सामर्थ के अनुसार दान करें।

 

पौष अमावस्या के दिन पितरों और पूर्वजों की आत्माओं का तर्पण किया जाता है।

 

इस दिन पवित्र नदी, या जलाशय में डुबकी लगाएं और भगवान सूर्य को जल चढ़ाने के बाद पितरों का तर्पण करें।

 

तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर उसमें लाल चंदन और लाल फूल डालकर सूर्य देव को जल चढ़ाएं।

 

अगर गंगा स्नान नहीं करने जा पा रहे हैं, तो पानी में गंगा जल मिलकर भी स्नान कर सकते हैं।

 

पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें और गरीबों को दान-दक्षिणा दें।

 

पीपल के पेड़ के नीचे देघी घी का दीपक जलाएं।

 

वहीं इस दिन मछलियों को आटा खिलाना शुभ माना गया है।

 

पौष अमावस्या पर न करें ये कार्य

किसी का अनादर नहीं करना चाहिए।

 

झूठ नहीं बोलना चाहिए।

 

मदिरा और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

किसी को अपशब्द न कहें।

Saphala Ekadashi 2022 Vrat Date, Rituals and Significance

Safla Ekadashi 2022 -

9 दिसंबर 2022 से पौष माह की शुरूआत हो रही है.. साल 2022 की आखिरी एकादशी कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली है, जिसे सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है.. सफला एकादशी का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि ये एकादशी का फल व्यक्ति के नाम के अनुसार उसे फल दान करता है। व्यक्ति अपने ज्ञान, विवेक और कार्य के अनुसार सफलता प्राप्त करता है। भगवान श्री हरि विष्णु एकादशी का फल उनके गुण के अनुसार प्रदान करते है। नारायण व्यक्ति को सफला एकादशी का फल भाग्य और उसकी इच्छानुसार देते है। तो आईए जानते है सफला एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और किन बातों का रखना है ध्यान?

 

सफला एकादशी शुभ मुहूर्त

 

एकादशी तिथि प्रारम्भ – 19 दिसम्बर, दिन सोमवार प्रात: 03 बजकर 32 मिनट से

 

एकादशी तिथि समाप्त – 20 दिसम्बर, दिन मंगलवार प्रातः 02 बजकर 32 मिनट तक

 

व्रत पारण समय- 20 दिसम्बर, दिन मंगलवार सुबह 08 बजकर 05 मिनट से 09 बजकर 13 मिनट के बीच

 

सफला एकादशी व्रत कथा

पुद्मपुराण के अनुसार चंपावती नगरी के राजा महिष्मान का राज्य था. राजा के पांच पुत्र थे जिसमें सबसे बड़ा बेटा लुंभक चरित्रहीन था, वह हमेशा पाप कर्मों में लिप्त रहता था. नशा करना, तामसिक भोजन करना, वैश्यावृति, जुआं, ब्राह्मणों का अनादर और देवताओं की निंदा करना उसकी आदत बन चुकी थी. राजा ने परेशान होकर उसे राज्य से बेदखल कर दिया.

 

पिता ने राज्य से बाहर निकाल दिया तो लुंभक जंगल में रहने लगा. एक बार भीषण ठंडी की वजह से वह रात में सो नहीं पाया. रातभर ठंड में कांपता रहा जिसके कारण वह मूर्छित हो गया. उस दिन पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि थी. अगले दिन जब होश आया तो अपने पाप कर्मों पर पछतावा हुआ और उसने जंगल से कुछ फल इक्ट्‌ठा किए और पीपल के पेड़ के पास रखकर भगवान विष्णु का स्मरण किया.

भयानक पड़ती सर्द के कारण उसे नींद नहीं आई, वह जागरण कर श्रीहरि की आराधना में लीन था. ऐसे में अनजाने में उसने सफला एकादशी का व्रत पूरा कर लिया.

 

सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से उसने धर्म का मार्ग अपना लिया और सत्कर्म करने लगा. राजा महिष्मान को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने लुंभक को राज्य में वापस बुलाकर राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी. कहते हैं तभी से सफला एकादशी का व्रत किया जाता है. ये सर्वकार्य सिद्ध करने वाली एकादशी मानी जाती है.

 

सफला एकादशी के नियम

एकादशी व्रत के दिन भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिन व्यक्ति को चावल का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दिन व्यक्ति को सादे भोजन का सेवन करना चाहिए। इस दिन खाने में प्याज लहसुन का प्रयोग वर्जित है। इस दिन मांसाहार का सेवन करना पाप की श्रेणी में आता है।

 

व्रत के दिन व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और मन को शांत रखना चाहिए। एकादशी तिथि के दिन अपने मुख से अपशब्दों का प्रयोग ना करें और विवादों से दूरी बना लें। साथ ही मन में श्रद्धाभाव जागृत रखने के लिए पूजा में लिप्त रहे या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप निरंतर मन ही मन करते रहें।

 

एकादशी व्रत के दिन व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद ही व्रत का संकल्प लें और दोपहर या शाम के समय व्यक्ति को नहीं सोना चाहिए, एकादशी के दिन झूठ न बोलें।

 

एकादशी तिथि के दिन व्यक्ति को तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है और भगवान विष्णु इस कार्य से क्रोधित हो जाते हैं। साथ ही इस दिन घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ इस दिन लकड़ी के दातुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 

इस दिन भूल से भी बाल या नाखून काटने की गलती ना करें। साथ ही इस दिन घर में झाड़ू का प्रयोग ना करें। इससे चींटी या किसी छोटे जीव की मृत्यु का और जीव हत्या का भय निरंतर बना रहता है। साथ ही इस दिन सामर्थ्य के अनुसार किसी गरीब को जरूरत की चीजों का दान जरूर करें।

Five mysterious temples of Lord Shiva –

Five mysterious temples of Lord Shiva -

भोलेशंकर की महिमा को समझ पाना किसी के वश की बात नहीं, क्योंकि धर्मशास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है. बात करें वर्तमान समय की तो शिव भक्त शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते है। शिव मंदिर में जा कर जलाभिषेक करना हो या फिर कावंड़ यात्रा से शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करना हो। हम इस लेख के जरिए बात करेंगे शिव के उन मंदिरों के बारें में जो रहस्यमई भी है और उनमें मिलने वाली विचित्र चीजें आपको शिव के वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगी।

 

इस मंदिर का रहस्य समझ से परे

 

गढ़मुक्तेश्वर स्थित प्राचीन गंगा मंदिर का भी रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया हैं. मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर प्रत्येक वर्ष एक अंकुर उभरता है. जिसके फूटने पर भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की आकृतियां निकलती हैं. इस विषय पर काफी रिसर्च वर्क भी हुआ लेकिन शिवलिंग पर अंकुर का रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया है. यही नहीं मंदिर की सीढ़ियों पर अगर कोई पत्थर फेंका जाए तो जल के अंदर पत्थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है. ऐसा महसूस होता है कि जैसे गंगा मंदिर की सीढ़ियों को छूकर गुजरी हों. यह किस वजह से होता है यह भी आज तक कोई नहीं जान पाया हैं.

 

तपते पहाड़ पर AC जैसी ठंडक वाला शिव मंदिर

 

टिटलागढ़ उड़ीसा का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता है. इसी जगह पर एक कुम्हड़ा पहाड़ है, जिसपर स्थापित है यह अनोखा शिव मंदिर. पथरीली चट्टानों के चलते यहां पर प्रचंड गर्मी होती है, लेकिन मंदिर में गर्मी के मौसम का कोई असर नहीं होता है. यहां AC से भी ज्यादा ठंड होती है. हैरानी का विषय यह है कि यहां प्रचंड गर्मी के चलते मंदिर परिसर के बाहर भक्तों के लिए 5 मिनट खड़ा होना भी दुश्वार होता है, लेकिन मंदिर के अंदर कदम रखते हैं. AC से भी ज्यादा ठंडी हवाओं का अहसास होने लगता है. हालांकि यह वातावरण केवल मंदिर परिसर तक ही रहता है. बाहर आते ही प्रचंड गर्मी परेशान करने लगती है. इसके पीछे क्या रहस्य है आज कर कोई नहीं जान पाया है.

 

शिव के इस मंदिर में गूंजती है सरगम

 

तमिलनाडु में 12वीं सदी में चोल राजाओं ने ‘ ऐरावतेश्वर मंदिर’ का निर्माण करवाया था. बता दें कि यह बेहद ही अद्भुत मंदिर है. यहां की सीढ़ियों पर संगीत गूंजता है. बता दें कि इस मंदिर को बेहद खास वास्तुशैली में बनाया गया है. मंदिर की खास बात है तीन सीढ़ियां. जिनपर जरा सा भी तेज पैर रखने पर संगीत की अलग-अलग ध्वनि सुनाई देने लगती है, लेकिन इस संगीत के पीछे क्या रहस्य है, इसको कोई नहीं जान पाया. ये मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है. मंदिर की स्थापना को लेकर स्थानीय किवंदतियों के अनुसार यहां देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत ने शिव जी की पूजा की थी. इस वजह से इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्वर मंदिर हो गया. यह भी उल्लेख मिलता है कि मृत्यु के राजा यम जो कि एक ऋषि द्वारा शापित थे और शरीर जलन से पीड़ित थे. इसके बाद वह इसी मंदिर में आए परिसर में बने पवित्र जल से स्नान कर भोलेनाथ की पूजा की. इसके बाद वह पूर्ण रुप से स्वस्थ हो गए. यही वजह है कि मंदिर में यम की भी छवि अंकित है. यह मंदिर महान जीवंत चोल मंदिरों के रुप में जाना जाता है, साथ ही इसे यूनेस्को की ओर से वैश्विक धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है.

 

यहां भोलेनाथ ने कराया था राजा को बोध

 

बोधेश्वर महादेव मंदिर की अद्भुत कथा है, कथा मिलती है कि नेवल के राजा को पंचमुखी शिवलिंग, नंदी और नवग्रह स्थापित करने का बोध स्वयं भोलेनाथ ने कराया था. इसी के चलते मंदिर का नाम भी बोधेश्वर महादेव मंदिर पड़ा. कहा जाता है कि जब राज्यकर्मी रथ पर शिव, नंदी और नवग्रह को लेकर जा रहे थे तभी वह रथ राजधानी में प्रवेश करते ही भूमि में धसने लगा. इसके बाद तमाम प्रयास किए गये लेकिन रथ नहीं निकल सका. फिर राजा ने उसी स्थान पर सभी प्रतिमाओं की स्थापना करवा दी. तभी से ही भक्त बोधेश्वर मंदिर में असाध्य बीमारियों की अर्जियां लगाने पहुंचने लगे. कहा जाता है कि इस शिवलिंग के सच्चे मन से स्पर्श मात्र से ही भक्तों की बीमारियां दूर हो जाती हैं. यही नहीं भोले के पंचमुखी शिवलिंग मंदिर में अर्धरात्रि में दर्जनों सांप पंचमुखी शिवलिंग को स्पर्श करने आते हैं. फिर वापस जंगल में ही लौट जाते हैं. कहा जाता है कि आज तक इन सापों ने किसी भी स्थानीय नागरिक को कोई क्षति नहीं पहुंचाई है. वह केवल शिवलिंग को स्पर्श करके वापस लौट जाते हैं.

 

अद्भुत है तमिलनाडु का यह मंदिर

 

तमिलनाडु में बसा बृहदीश्वर मंदिर भी अद्भुत है. यहां स्थापित शिवलिंग का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है. बता दें कि इस मंदिर में प्रवेश द्वार पर ही बाबा नंदी स्थापित हैं. उनकी मूर्ति भी एक ही पत्थर से निर्मित है. इस मंदिर का आर्किटेक्ट बेहद शानदार है. यहां लाइट बंद होने के बाद भी भक्त शिवलिंग के दर्शन कर सकते हैं. इसके पीछे का कारण यह है कि यहां पर सूर्य की रोशनी सीधे नंदी बाबा पर पड़ती है. उसका रिफ्लेक्शन सीधे शिवलिंग पर पड़ता है और इस तरह से शिवलिंग साफ-साफ नजर आता है.

 

शिवजी का यह मंदिर भी है रहस्यमई

 

छत्तीसगढ़ के मरोदा गांव में भोलेनाथ का एक अनोखा मंदिर स्थित है. इस मंदिर का नाम भूतेश्वर मंदिर है. मंदिर में स्थापित शिवलिंग का आकार हर दिन 6 इंच से 8 इंच बढ़ता है. बता दें कि इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जल लहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है. यहीं स्थान भूतेश्वरनाथ भकुरा महादे के नाम से जाना जाता है. ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. पुराणों में भी इस भूतेश्वर नाथ शिवलिंग को देखने के लिए यूं तो यहां हर समय ही मेला लगा रहता है लेकिन सावन में यहां लंबी कतारें लगती हैं.

Pishach Mochan Shradh 2022: Date, Time, Significance, Rituals

Pishach Mochan Shradh -

पिशाचमोचन श्राद्ध के दिन पिशाच यानि की प्रेत योनि में गये हुए पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि करने का विधान है. 06 दिसंबर 2022 को पिशाचमोचन श्राद्ध किया जाएग. इस तिथि पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व है. इस अवसर पर शांति के उपाय करने से प्रेत योनि व जिन्हें भूत-प्रेत से भय व्याप्त हो उन्हें पितर दोष से मुक्ति मिलती है. इस दोष की शांति हेतु शास्त्रों में पिशाचमोचन श्राद्ध को महत्वपुर्ण माना गया है. मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा पितरों की शांति व मुक्त्ति संभव होती है.

 

पिशाचमोचन श्राद्ध विधान

इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थय आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए. तिलक, आचमन के उपरांत पीतल या ताँबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखें.

 

हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प में व्यक्ति का नाम ले, जिसके लिए पिशाचमोचन श्राद्ध किया जा रहा हो. फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दें. इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है. तर्पण करने के उपरांत शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पणकार्य भगवान को अर्पण करें व पितर की शांति की कामना करें. पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है तथा भगवत कथा का श्रवण करते हुए शांति की कामना की जाती है.

 

पिशाच मोचन श्राद्ध महत्व

पिशाच मोचन श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करें तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं. जो अकाल मृत्यु व किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं उनके लिए यह श्राद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है. इस प्रकार इस दिन श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव मुक्ति पाता है.

 

यह समय पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है, इसलिए इस दिन में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं. इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है, इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.

Mokshada Ekadashi 2022: Know date, shubh muhurat, significance, puja vidhi

Mokshada Ekadashi Vrat 2022 -

मोक्षदा एकादशी व्रत मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। मोक्षदा एकादशी व्रत भगवान विष्णु को अति प्रिय है और कहते है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का पारण करता है वो मृत्यु के बाद सीधा बैकुंठ धाम जाता है। मोक्षदा एकादशी को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इससे व्रत रखने वाला सभी मोह बंधनों से मुक्त होता है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला व्रत ओर कोई नहीं है। मोक्षदा एकादशी पर श्रीहरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। आईए जानते है मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पारण का शुभ समय क्या है?

 

मोक्षदा एकादशी 2022 तिथि

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 03 दिसंबर 2022, दिन शनिवार को प्रात: 05 बजकर 39 मिनट पर हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 04 दिसंबर रविवार को प्रात: 05 बजकर 34 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर मोक्षदा एकादशी का व्रत 03 दिसंबर को रखा जाएगा।

 

मोक्षदा एकादशी व्रत पारण समय 

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत के पारण का समय 04 दिसंबर को दोपहर 01 बजकर 20 मिनट से दोपहर 03 बजकर 27 मिनट तक है।

 

मोक्षदा एकादशी का महत्व

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जो भी जातक पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

 

मोक्षदा एकादशी व्रत में इन नियमों का रखें ध्यान

जो लोग मोक्षदा एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उन्हें इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

मोक्षदा एकादशी को पूरे दिन व्रत रखकर, रात्रि में जागरण करते हुए श्री हरि विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

 

एकादशी व्रत को कभी हरि वासर समाप्त होने से पहले पारण नहीं करना चाहिए।

 

शास्त्रों में द्वादशी समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करना पाप के समान माना जाता है।

 

यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो रही हो तो इस स्थिति में सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

 

द्वादशी तिथि के दिन प्रातः पूजन व ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।

Masik Durga Ashtami Vrat 2022: Significance, Rituals and More

Masik Durga Ashtami -

सनातन धर्म में अष्टमी को महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा व व्रत किया जाता है। हर हिन्दू मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को देवी दुर्गा का मासिक व्रत भी कहा जाता है। सनातन कैलेण्डर के अनुसार अष्टमी एक माह में दो बार आती है एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में। शुक्ल पक्ष की अष्टमी में देवी दुर्गा का व्रत किया जाता है।

 

मासिक दुर्गा अष्टमी मुहूर्त

बुधवार, 30 नवंबर 2022 से लेकर 01 दिसंबर, दिन गुरूवार तक रहेगी

 

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि व्रत प्रारंभ 30 नवंबर 2022, दिन बुधवार, प्रात: 08 बजकर 58 मिनट से 01 दिसंबर 2022, दिन गुरूवार, प्रात: 7 बजकर 21 मिनट पर समापन होगा।

 

इस प्रकार मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 30 नवंबर और 01 दिसंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा।

 

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का महत्व

मासिक दुर्गाष्टमी व्रत के दिन देवी दुर्गा का व्रत करने से जगदंबा माता की कृपा प्राप्त होती है. भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। घर में सुख-समृद्धि, धन-लक्ष्मी आती है। देवी दुर्गा अपने भक्तों से अथाह प्रेम करती है, इसलिए जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से देवी दुर्गा की पूजा करता है, उसके जीवन की सभी बाधाएं देवी खुद दूर करती है।

 

दुर्गा अष्टमी पूजा विधि

दुर्गा अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान के पानी में थोड़ा गंगाजल डालकर स्नान करें।

 

लकड़ी की चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।

 

फिर मां दुर्गा के मंत्र का जाप करते हुए उनकी प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।

 

लाल या उधल के फूल, सिंदूर, अक्षत, नैवेद्य, सिंदूर, फल, मिठाई आदि से मां दुर्गा के सभी रूपों की पूजा करें।

 

फिर धूप-दीप जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और आरती करना न भूलें।

 

इसके बाद हाथ जोड़कर देवी दुर्गा के सामने व्रत का संकल्प ले।

19 Avatars of Lord Shiva

All 19 Avatars of Lord Shiva -

सतयुग से कलयुग तक भगवान विष्णु ने पाप को नष्ट करने के लिए और धर्म स्थापित करने के लिए अनेकों अवतार लिए, उन्हीं के साथ शेष नाग ने भी अपने समय में अलग-अलग अवतार से भगवान विष्णु की सहायता की.. इन सभी के बीच क्या आप ये जानते है कि भोलेनाथ जो भगवान विष्णु को अपना अराध्य मानते है उन्होनें कितने अवतार लिए? शिव ने अपने ही जीवन चक्र को चलाने के लिए भी अनेकों अवतार लिए जो इस कहानी में वर्णित है.

 

  1. वीरभद्र अवतार भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था… जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया… उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रकट हुए… शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया…
  1. पिप्पलाद अवतार मानव जीवन में भगवान शिव के इस अवतार का बड़ा महत्व है… शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका… ये अवतार शिव का दूसरा अवतार था…
  1. नंदी अवतार भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं… भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है… नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है।
  1. भैरव अवतार शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है।
  1. अश्वत्थामा महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे… ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं… शिवमहापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है…
  1. शरभावतार शरभावतार भगवान शंकर का छटा अवतार है… शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी का है.. पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था… इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था।
  1. गृहपति अवतार भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति अवतार… विश्वानर नाम के मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती की इच्छा थी कि उन्हें शिव के समान पुत्र प्राप्ति हो… मुनि विश्वनार ने काशी में भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की और घोर तप किया… उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए… कहते हैं, पितामह ब्रह्म! ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।
  1. ऋषि दुर्वासा भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया… उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया…
  1. हनुमान जी भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है… इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धारण किया था…
  1. वृषभ अवतार भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था… इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था…
  1. यतिनाथ अवतार भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था… उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े…
  1. कृष्णदर्शन अवतार भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है… इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है।
  1. अवधूत अवतार भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था।
  1. भिक्षुवर्य अवतार भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर का काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।
  1. सुरेश्वर अवतार भगवान शंकर का सुरेश्वर यानि इंद्र अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है… इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया…
  1. किरात अवतार इस अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी…
  1. सुनटनर्तक अवतार पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।
  1. ब्रह्मचारी अवतार दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी  को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया।
  2. यक्ष अवतार – यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था।

Jivitputrika Vrat : Do You Know The Story Behind This Fast

जितिया व्रत कथा -

नर्मदा नदी के पास “कंचनबटी” नाम का एक नगर हुआ करता था, वहां राजा मलयकेतु का शासन था। कंचनबटी नगर के पास बालुहटा नामक जगह थी, जिसके पास में एक बड़ा-सा पेड़ था। उस पेड़ के नीचे एक चील और एक गीदड़ रहता था। दोनों में गहरी दोस्ती थी। महिलाओं को जितिया व्रत रखता देख उन दोनों ने भी प्रण लिया कि वो भी इस व्रत को रखेंगे। चील और गीदड़ ने श्री जीऊतवाहन भगवान को मन में याद कर कहा कि “हम आपकी पूजा और व्रत पूरी विधि के साथ करेंगे”… व्रत का दिन आते ही चील औऱ गीदड़ दोनों ने व्रत आऱंभ किया, लेकिन पास में ही किसी धनवान व्यापारी की मौत हो गई थी और उसका अंतिम संस्कार करने लिए उसे बालुहटा लाया गया।

 

व्रत के दिन गीदड़ ने मरे हुए व्यक्ति को देखा, तो उसके मन में उस मांस को खाने की अभिलाशा जगी। वो खुद को रोक नहीं पाया और मांस खाकर व्रत खंडित कर दिया। उस व्यापारी के शव को चील ने भी देखा था, लेकिन उसने व्रत के कारण उसे नहीं खाया। इसके कुछ समय पश्चात चील और गीदड़ दोनों का अगला जन्म हुआ जिसमें वो दोनों कंचनवटी के भास्कर नामक ब्राह्मण के घर में बेटी के रूप में पैदा हुई। चील का जन्म बड़ी बहन नाम शीलवती और गीदड़ का जन्म उसकी छोटी बहन नाम कपुरावती के रूप में हुआ। शीलवती (बड़ी बहन) की शादी बुद्धिसेन नामक लड़के से हुई और कपुरावती (छोटी बहन) की शादी कंचनवटी के राजा मलयकेतु से हुई।

 

बड़ी बहन शीलवती को 7 पुत्र हुए, तो वहीं छोटी बहन कपुरावती को संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाया। कपुरावती के घर जितने भी संतान हुए वे उसी दिन मर जाते। ऐसा होते-होते कपुरावती काफी परेशान हो गई। शीलवती के सातों पुत्र कपुरावती के महल में कार्य करते थे, लेकिन कपुरावती ने जलन के कारण अपने पति को कह कर बड़ी बहन के सातों पुत्रों के सर कटवाकर उन्हें लाल रंग के कपड़े से ढक कर एक बर्तन में अपनी बड़ी बहन के घर भिजवा दिए।

 

भगवान जीऊतवाहन ये सारी प्रक्रिया देख रहे थे। उन्होंने रास्ते में ही सातों भाइयों के सिर को धड़ से जोड़ा और अमृत पिलाकर जिंदा कर दिया और बर्तन में भगवान जीऊतवाहन ने फल भर दिए। उधर, कुपरावती अपनी दीदी के घर से शोक समाचार मिलने का इंतजार कर रही थी, जब संदेश नहीं आया, तो वो खुद ही शीलवती के घर चली गई, वहां अपनी दीदी के सारे बेटों को जिंदा देख हैरान रह गई। कुपरावती ने अपनी बड़ी बहन वो सारी बात बताई जो उसने उनके बेटों के साथ की थी। बड़ी बहन शीलवती ने अपनी छोटी बहन कुपरावती को उसके पिछले जन्म के बारे सारी बात बताई और उसी पेड़ को पास ले गई, जहां वो दोनों पहले रहा करते थे। कुपरावती का व्रत खंडित होने के कारण ये सारी दिक्कते उसके जीवन में आई। इस बात का कुपरावती को बड़ा पछतावा हुआ और उसने उसी समय अपना दम तोड़ दिया। कुपरावती के पति को जब जानकारी मिली तो उसने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार उसी पेड़ के नीचे किया। जितिया व्रत कथा से हमें यहीं सीख मिलती है कि बुरे कर्म कभी पिछा नहीं छोड़ते, उसका फल भोगना ही पड़ता है।

Who is Dhumavati Devi and how popular is her worship?

Dhumavati Devi Story -

देवी पार्वती की पूजा हर सुहागन स्त्री अपने सुहाग की रक्षा और सौभाग्य वृद्धि के लिए करती हैं। लेकिन देवी पार्वती का ही एक ऐसा रूप है जिनकी पूजा करने से सुहागन स्त्रियां डरती हैं। इसकी एक बड़ी वजह है। दरअसल देवी पार्वती अपने इस रूप में एक विधवा स्त्री की तरह दिखती हैं और वैधव्य का प्रतीक मानी जाती हैं। सुहाग पर वैधव्य का प्रभाव ना हो इसलिए ही सुहागन स्त्रियां इनकी पूजा नहीं करती हैं। हलांकि दूर से इनके दर्शन करती हैं। देवी पार्वती के इस स्वरूप को धूमावती के नाम से जाना जाता है।

 

देवी पार्वती सुहागन से विधवा कैसे बनीं और क्यों धूमावती कहलाईं इसकी अजब-गजब कथा है। एक बार देवी पार्वती को बहुत तेज भूख लगती है और वह भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं। महादेव देवी पार्वती से कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहते हैं। भगवान शिव भोजन की तलाश में निकलते हैं। धीरे-धीरे समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती है। देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं। भूख से व्याकुल पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं।

 

शिव को निगलते ही देवी पार्वती का स्वरूप विधवा जैसा हो जाता है। दूसरी ओर शिव के गले में मौजूद भयंकर विष के कारण देवी पार्वती का शरीर धुंआ जैसा हो जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत विकृत और श्रृंगार विहीन दिखने लगता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी, धुएं से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। शंकर भगवान कहते हैं कि मुझे निगलने के कारण अब आप विधवा हो गई हैं इसलिए देवी अब आप इसी स्वरूप में पूजी जाएंगी। इस वजह से माता को धूमावती के नाम से जाना जाता है।

 

देवी धूमावती के साथ भगवान शिव की लीला

 

देवी पार्वती के इस स्वरूप के पीछे एक कथा यह भी है कि देवी पार्वती के मन में एक बार विधवा कैसी होती है यह जानने का विचार जगा और भगवान शिव से कहने लगीं कि वह वैधव्य को महसूस करना चाहती हैं। देवी पार्वती की इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए ही भगवान शिव ने यह लीला रची थी जिसमें उलझकर देवी पार्वती ने स्वयं ही महादेव को निगल लिया।

 

भयंकर स्वरूप देख डर जाते है लोग

 

माता धूमावती का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है। धार्मिक मान्यता है कि शंकर भगवान को खाने के कारण माता पार्वती विधवा हो गई थीं, इसलिए माता धूमावती का यह स्वरूप विधवा का है। केश बिखरे हुए हैं। माता धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश खुले रहते हैं। इनके रथ के ध्वज पर कौए का चिह्न है। इन्होंने हाथ में सूप धारण किया हुआ है। कौआ माता धूमावती का वाहन माना जाता है।