शेर कैसे बना मां दुर्गा का वाहन?

मां दुर्गा का वाहन -

शेर का मां दुर्गा का वाहन बनने की कहानी तब शुरू होती है, जब देवी पार्वती घोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में पाने की कोशिश कर रही थी… सालों तक तप करने के बाद माता पार्वती को भोले भंडारी अपनी पत्नी के रूप में अपना लेते है… इसी बीच तपस्या की वजह से मां पार्वती का रंग काफी काला पड़ जाता था… एक दिन ऐसे ही बातचीत के दौरान भगवान शिव मां पार्वती को काली कह देते है, ये बात उन्हें पसंद नहीं आती… मां पार्वती नाराज होकर दोबारा तप करने के लिए चली जाती है.

 

माता पार्वती जब तपस्या कर रही थी, उसी समय वहां एक शेर घूमते-घूमते आ जाता है, माता को खाने की इच्छा रखने वाला शेर माता का तप पूर्ण होने की प्रतिक्षा करता है… समय बीतता जाता है और शेर इंतजार ही करता है… सालों बीत जाते है शेर को देवी का इंतजार करते-करते… जब भी वह देवी को खाने की इच्छा लेकर उनके पास जाता, तो उनके तप की तेज की वजह से वह पीछे हट जाता… कई बार कोशिशों के बावजूद भी शेर माता के नजदीक नहीं जा पाता और हार कर कोने में बैठ जाता है… माता पार्वती के कठोर तप से खुश होकर भगवान शिव प्रकट होते है और मां से मन चाहा वर मांगने को कहते है.

 

माता पार्वती कहती है, कि मुझे पहले की तरह अपना गोरा रंग वापस चाहिए… माता पार्वती के इस वर को भगवान शिव पूर्ण करते है…आशीर्वाद मिलते ही माता पार्वती नहाने के लिए चली जाती है, उनके नहाते ही उनके शरीर से एक और देवी का जन्म हो जाता है, जिनका नाम कौशिकी पड़ता है… नहाते समय उनके शरीर से काला रंग निकल जाता है और माता पार्वती का रंग पहले की तरह साफ हो जाता है… इसी वजह से माता पार्वती का नाम मां गौरी भी रखा जाता है… नहाने के कुछ देर बाद जब माता पार्वती बाहर आती है, तो उनकी नजर शेर पर पड़ती है, जो माता को खाने की प्रतिक्षा में भूखा ही एक कोने में बैठा था.

 

माता पार्वती भगवान शिव के पास जाती है और उनसे वरदान मांगती है… माता पार्वती कहती है कि हे नाथ… ये शेर सालों से मुझे भोजन के रूप में ग्रहण करने के लिए इंतजार कर रहा था, जितना तप मैंने किया है, उतना ही तप मेरे साथ इस शेर ने भी किया है… इसी वजह से आप इस शेर को वरदान के रूप में मेरी सवारी बना दीजिए… भगवान शिव ने माता पार्वती की इस बात से प्रसन्न होकर शेर को उनकी सवारी बना दी… आशीर्वाद मिलने के बाद माता शेर पर सवार हो गई और तभी से उनका नाम मां शेरावाली और मां दुर्गा पड़ गया.

Who is Dhumavati Devi and how popular is her worship?

Dhumavati Devi Story -

देवी पार्वती की पूजा हर सुहागन स्त्री अपने सुहाग की रक्षा और सौभाग्य वृद्धि के लिए करती हैं। लेकिन देवी पार्वती का ही एक ऐसा रूप है जिनकी पूजा करने से सुहागन स्त्रियां डरती हैं। इसकी एक बड़ी वजह है। दरअसल देवी पार्वती अपने इस रूप में एक विधवा स्त्री की तरह दिखती हैं और वैधव्य का प्रतीक मानी जाती हैं। सुहाग पर वैधव्य का प्रभाव ना हो इसलिए ही सुहागन स्त्रियां इनकी पूजा नहीं करती हैं। हलांकि दूर से इनके दर्शन करती हैं। देवी पार्वती के इस स्वरूप को धूमावती के नाम से जाना जाता है।

 

देवी पार्वती सुहागन से विधवा कैसे बनीं और क्यों धूमावती कहलाईं इसकी अजब-गजब कथा है। एक बार देवी पार्वती को बहुत तेज भूख लगती है और वह भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं। महादेव देवी पार्वती से कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहते हैं। भगवान शिव भोजन की तलाश में निकलते हैं। धीरे-धीरे समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती है। देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं। भूख से व्याकुल पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं।

 

शिव को निगलते ही देवी पार्वती का स्वरूप विधवा जैसा हो जाता है। दूसरी ओर शिव के गले में मौजूद भयंकर विष के कारण देवी पार्वती का शरीर धुंआ जैसा हो जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत विकृत और श्रृंगार विहीन दिखने लगता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी, धुएं से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। शंकर भगवान कहते हैं कि मुझे निगलने के कारण अब आप विधवा हो गई हैं इसलिए देवी अब आप इसी स्वरूप में पूजी जाएंगी। इस वजह से माता को धूमावती के नाम से जाना जाता है।

 

देवी धूमावती के साथ भगवान शिव की लीला

 

देवी पार्वती के इस स्वरूप के पीछे एक कथा यह भी है कि देवी पार्वती के मन में एक बार विधवा कैसी होती है यह जानने का विचार जगा और भगवान शिव से कहने लगीं कि वह वैधव्य को महसूस करना चाहती हैं। देवी पार्वती की इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए ही भगवान शिव ने यह लीला रची थी जिसमें उलझकर देवी पार्वती ने स्वयं ही महादेव को निगल लिया।

 

भयंकर स्वरूप देख डर जाते है लोग

 

माता धूमावती का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है। धार्मिक मान्यता है कि शंकर भगवान को खाने के कारण माता पार्वती विधवा हो गई थीं, इसलिए माता धूमावती का यह स्वरूप विधवा का है। केश बिखरे हुए हैं। माता धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश खुले रहते हैं। इनके रथ के ध्वज पर कौए का चिह्न है। इन्होंने हाथ में सूप धारण किया हुआ है। कौआ माता धूमावती का वाहन माना जाता है।