Mrityu Aane Ke Sanket Jaane

मृत्यु आने के संकेत -

मृत्यु एक परम सत्य है। सहीं समय और नियति के अनुसार मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु और सामान्य मृत्यु में भी मनुष्य का समय निश्चित होता है। अकाल मृत्यु में व्यक्ति की उम्र पूर्ण होने से पूर्व ही वे मृत्यु को प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु में गंभीर बिमारी के कारण मृत्यु आना, किसी दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त होना, बुरे कर्म के कारण मृत्यु आना या किसी दुश्मन द्वारा मारे जाने पर मृत्यु को प्राप्त होना आदि। सामान्य मृत्यु में मनुष्य बिना किसी बिमारी या आपदा के मृत्यु को प्राप्त होता है, इसमें मनुष्य नियति द्वारा निश्चित एक उम्र और समय में अपना शरीर त्यागता है।

 

शिव पुराण में मृत्यु आने के संकेत

धार्मित ग्रंथों में युगों का जिस तरह बखान किया गया है उसी प्रकार शिव पुराण में भगवान शिव द्वारा मृत्यु आने के संकेतों को बताया गया है। इस बात का वर्णन स्वयं काल ने किया है, क्योंकि मृत्यु आने के संकेतों को मनुष्य पहचाने और वे सही कर्म की ओर अग्रसर हो जाएं। धर्म के मार्ग पर चलने वाले अपनी निश्चित समय-सीमा को पूरा करके ही मृत्युलोक को त्यागते है। वहीं अर्धम पर चलने वाले छल, लालसा, मोह, चोरी, द्वेष आदि में पड़ कर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते है। अब जानते है मृत्यु आने से पहले कौन-से संकेत हमें मिलते है।

 

  1. आसमान में सप्तऋषि ना दिखना

किसी मनुष्य को आसमान में सप्तऋषि यानि सात तारे मनुष्य को ना दिखाई दे, तो मृत्यु का संकेत मिलता है। ऐसे मनुष्य की मृत्यु आने वाले 5 से 6 महीने के अंदर हो जाती है।

 

  1. दिशाएं समझ ना आना

सूर्य और चंद्रमा के उदय और अस्त होने की दिशाएं यदि मनुष्य को समझ ना आएं तो वे मृत्यु के करीब माना जाता है। चारों दिशाओं में जब मनुष्य भ्रमित होने लगे और दिशाओं को समझने में बार-बार गलती करने लगे तो ये मृत्यु का संकेत है।

 

  1. शरीर का रंग फीका पड़ना

मनुष्य की मृत्यु जब पास आती है, तो शरीर का संचालन धीमा होने लगता है। शरीर पूर्ण रूप से कार्य करना बंद कर देता है। शरीर का रंग फीका पड़ने यानि की पीला पड़ने लगता है। बालों का झड़ना, ह्रदय धीमा पड़ना, सोचने की क्षमता कम होना आदि शरीर में काफी बदलाव देखने को मिलते है। ये आने वाली मृत्यु का संकेत माना जाता है।

 

  1. तारों का अदृश्य होना

मृत्यु के नजदीक आने पर मनुष्य को आसमान में तारे नहीं दिखते है, ध्रुव तारे को भी ना देख पाना एक तरह का संकेत माना जाता है। आसमान नीले की जगह लाल दिखना ये अकाल मृत्यु का संकेत होता है, ऐसे में व्यक्ति के पास कुछ ही समय शेष होता है, क्योंकि लाल आसमान का दिखना यमराज के आने का आगमन दिखना कहलाता है।

 

  1. परछाई ना दिखना

मृत्यु निकट है उसका एक संकेत परछाई ना दिखना है। धूप में, शीशे में, पानी में, तेल, घी, शाम के वक्त चलते समय सड़क पर परछाई का ना दिखना जल्द मृत्यु का संकेत है।

 

  1. नीली मक्खियां दिखना

मक्खियां का आस-पास घूमना एक आम बात है और आमतौर पर मक्खियों का रंग काला होता है, किंतु नीली मक्खियां जब आपको घेर ले तो ये एक अकाल मृत्यु का संकेत माना जाता है।

Pishach Mochan Shradh 2022: Date, Time, Significance, Rituals

Pishach Mochan Shradh -

पिशाचमोचन श्राद्ध के दिन पिशाच यानि की प्रेत योनि में गये हुए पूर्वजों के निमित्त तर्पण आदि करने का विधान है. 06 दिसंबर 2022 को पिशाचमोचन श्राद्ध किया जाएग. इस तिथि पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व है. इस अवसर पर शांति के उपाय करने से प्रेत योनि व जिन्हें भूत-प्रेत से भय व्याप्त हो उन्हें पितर दोष से मुक्ति मिलती है. इस दोष की शांति हेतु शास्त्रों में पिशाचमोचन श्राद्ध को महत्वपुर्ण माना गया है. मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा पितरों की शांति व मुक्त्ति संभव होती है.

 

पिशाचमोचन श्राद्ध विधान

इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थय आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए. तिलक, आचमन के उपरांत पीतल या ताँबे के बर्तन में पानी लेकर उसमें दूध, दही, घी, शहद, कुमकुम, अक्षत, तिल, कुश रखें.

 

हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प में व्यक्ति का नाम ले, जिसके लिए पिशाचमोचन श्राद्ध किया जा रहा हो. फिर नाम लेते हुए जल को भूमि में छोड़ दें. इस प्रकार आगे कि विधि संपूर्ण कि जाती है. तर्पण करने के उपरांत शुद्ध जल लेकर सर्व प्रेतात्माओं की सदगति हेतु यह तर्पणकार्य भगवान को अर्पण करें व पितर की शांति की कामना करें. पीपल के वृक्ष पर भी जलार्पण किया जाता है तथा भगवत कथा का श्रवण करते हुए शांति की कामना की जाती है.

 

पिशाच मोचन श्राद्ध महत्व

पिशाच मोचन श्राद्ध कर्म द्वारा व्यक्ति अपने पितरों को शांति प्रदान करता है तथा उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि व्यक्ति अपने पितरों की मुक्ति एवं शांति हेतु श्राद्ध कर्म एवं तर्पण न करें तो उसे पितृदोष भुगतना पड़ता है और उसके जीवन में अनेक कष्ट उत्पन्न होने लगते हैं. जो अकाल मृत्यु व किसी दुर्घटना में मारे जाते हैं उनके लिए यह श्राद्ध महत्वपूर्ण माना जाता है. इस प्रकार इस दिन श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव मुक्ति पाता है.

 

यह समय पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है, इसलिए इस दिन में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं. इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है, इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.

Masik Durga Ashtami Vrat 2022: Significance, Rituals and More

Masik Durga Ashtami -

सनातन धर्म में अष्टमी को महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। अष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा व व्रत किया जाता है। हर हिन्दू मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को देवी दुर्गा का मासिक व्रत भी कहा जाता है। सनातन कैलेण्डर के अनुसार अष्टमी एक माह में दो बार आती है एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में। शुक्ल पक्ष की अष्टमी में देवी दुर्गा का व्रत किया जाता है।

 

मासिक दुर्गा अष्टमी मुहूर्त

बुधवार, 30 नवंबर 2022 से लेकर 01 दिसंबर, दिन गुरूवार तक रहेगी

 

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि व्रत प्रारंभ 30 नवंबर 2022, दिन बुधवार, प्रात: 08 बजकर 58 मिनट से 01 दिसंबर 2022, दिन गुरूवार, प्रात: 7 बजकर 21 मिनट पर समापन होगा।

 

इस प्रकार मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 30 नवंबर और 01 दिसंबर दोनों ही दिन मनाया जाएगा।

 

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का महत्व

मासिक दुर्गाष्टमी व्रत के दिन देवी दुर्गा का व्रत करने से जगदंबा माता की कृपा प्राप्त होती है. भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। घर में सुख-समृद्धि, धन-लक्ष्मी आती है। देवी दुर्गा अपने भक्तों से अथाह प्रेम करती है, इसलिए जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से देवी दुर्गा की पूजा करता है, उसके जीवन की सभी बाधाएं देवी खुद दूर करती है।

 

दुर्गा अष्टमी पूजा विधि

दुर्गा अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान के पानी में थोड़ा गंगाजल डालकर स्नान करें।

 

लकड़ी की चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।

 

फिर मां दुर्गा के मंत्र का जाप करते हुए उनकी प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।

 

लाल या उधल के फूल, सिंदूर, अक्षत, नैवेद्य, सिंदूर, फल, मिठाई आदि से मां दुर्गा के सभी रूपों की पूजा करें।

 

फिर धूप-दीप जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और आरती करना न भूलें।

 

इसके बाद हाथ जोड़कर देवी दुर्गा के सामने व्रत का संकल्प ले।

How Lord Krishna Crush the Pride of Satyabhama?

Shri Krishna And Satyabhama Story -

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे, तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थी। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थी?

 

द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरूड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया औऱ वे भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?

 

भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है, ऐसा सोचकर उन्होनें गरूड़ से कहा कि हे गरूड़। तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे है। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।

 

इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं औऱ स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।

मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।

 

भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ। भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे है। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।

 

हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा?  फिर गरूड़ अकेले ही महल पहुंच गए. महल पहुंचकर गरूड़ देखते है कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे है। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया।

 

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र, तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?  क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु, आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। ये सुनकर भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे।

 

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया- हे प्रभु। आज आपने माता-सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है? अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ जी तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। इस प्रकार श्री कृष्ण ने एक ही बार में तीनों का अंहकार खत्म किया.

Why did Lord Krishna ask for the dust of Radha’s feet?

Shri Krishna And Radha Rani Story -

राधा और कृष्ण के प्रेम के बारे में कौन नहीं जानता है। कहते हैं कि कृष्ण और राधा का विवाह नहीं हो पाया था, लेकिन दोनों में इतना प्रेम था कि आज भी दोनों का नाम एक साथ लिया जाता है। श्री कृष्ण का राधा के लिए प्रेम और राधा का श्री कृष्ण के लिए समर्पण देखते ही बनता था। शायद इसलिए अपने आपको सबसे बड़ा भक्त कहने वाले नारद मुनी को राधा से जलन होने लगी थी। यह बात श्री कृष्ण अच्छी तरह से जानते थे।

 

एक दिन राधा के बारे में बात करने के लिए नारद मुनी श्री कृष्ण के पास आए। यह बात श्री कृष्ण को पता चल गई थी। जैसे ही नारद मुनी वहां पहुंचे, तो श्री कृष्ण उन्हें देखकर अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। नादर मुनी ने श्री कृष्ण से पूछा कि क्या हुआ प्रभु आप ऐसे अपने सिर को पकड़ कर क्यों बैठे हैं।

 

श्री कृष्ण ने कहा, “हे नारद मुनी, मेरा सिर दर्द कर रहा है।” नारद मुनी ने पूछा, “प्रभु इसको दूर करने का उपाय क्या है?”

 

तब श्री कृष्ण ने कहा, “अगर मैं अपने सबसे बड़े भक्त का चरणामृत पी लूं, तो इसे दूर किया जा सकता है।” तब नारद मुनी सोचने लगे कि सबसे बड़ा भक्त तो मैं हूं, लेकिन अगर में अपना चरणामृत दूंगा, तो मुझे नरक जाने जितना पाप लगेगा। मैं प्रभु को अपना चरणामृत नहीं दे सकता।

 

कुछ देर सोचने के बाद उनके मन में राधा का विचार आया और वे सोचने लगे कि लोग राधा को भी तो श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं, इसलिए क्यों न उनके पास जाकर पूछा जाए। ऐसा सोचकर वह राधा के पास गए और उन्हें सारी बात बता दी।

 

राधा ने जैसे ही सुना एक बर्तन में अपने पैर धोकर चरणामृत नारद मुनी को देते हुए कहा, “हे मुनीराज मुझे नहीं पता कि मैं उनकी कितनी बड़ी भक्त हूं, लेकिन मुझे यह पता है कि श्री कृष्ण को अपना चरणामृत देने से मुझे नरक में जाने जितना पाप लगेगा और मुझे नरक जितनी यातना सहन करनी पड़ेगी। मुनीवर वह सब मैं सहन कर सकती हूं, लेकिन अपने स्वामी को पीड़ा में नहीं देख सकती। यह चरणामृत ले जाकर आप उन्हें दे दें।”

 

राधा की बात सुनकर नारद मुनी का सारा घमंड चूर-चूर हो गया और उनको पता चल गया कि राधा ही सबसे बड़ी भक्त हैं और श्री कृष्ण ने यह लीला मुझे समझाने के लिए ही रची थी। जब नारद मुनी राधा के पास से वापस आ रहे थे, तो उनके मुख से केवल राधा के नाम की ही धुन सुनाई दे रही थी।

 

जब वे श्री कृष्ण के पास पहुंचे, तो देखा कि श्री कृष्ण उनको देखकर केवल मुस्कुराए जा रहे हैं और नारद मुनी ने भी सारी बात को समझ कर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा “राधे-राधे।”

Why is Maa Durga always riding a Lion?

Devi Durga -

शेर का मां दुर्गा का वाहन बनने की कहानी तब शुरू होती है, जब देवी पार्वती घोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में पाने की कोशिश कर रही थी. सालों तक तप करने के बाद माता पार्वती को भोले भंडारी अपनी पत्नी के रूप में अपना लेते है. इसी बीच तपस्या की वजह से मां पार्वती का रंग काफी काला पड़ जाता था. एक दिन ऐसे ही बातचीत के दौरान भगवान शिव मां पार्वती को काली कह देते है, ये बात उन्हें पसंद नहीं आती. मां पार्वती नाराज होकर दोबारा तप करने के लिए चली जाती है.

 

माता पार्वती जब तपस्या कर रही थी, उसी समय वहां एक शेर घूमते-घूमते आ जाता है, माता को खाने की इच्छा रखने वाला शेर माता का तप पूर्ण होने की प्रतिक्षा करता है. समय बीतता जाता है और शेर इंतजार ही करता है. सालों बीत जाते है शेर को देवी का इंतजार करते-करते. जब भी वह देवी को खाने की इच्छा लेकर उनके पास जाता, तो उनके तप की तेज की वजह से वह पीछे हट जाता. कई बार कोशिशों के बावजूद भी शेर माता के नजदीक नहीं जा पाता और हार कर कोने में बैठ जाता है. माता पार्वती के कठोर तप से खुश होकर भगवान शिव प्रकट होते है और मां से मन चाहा वर मांगने को कहते है.

 

माता पार्वती कहती है, कि मुझे पहले की तरह अपना गोरा रंग वापस चाहिए. माता पार्वती के इस वर को भगवान शिव पूर्ण करते है. आशीर्वाद मिलते ही माता पार्वती नहाने के लिए चली जाती है, उनके नहाते ही उनके शरीर से एक और देवी का जन्म हो जाता है, जिनका नाम कौशिकी पड़ता है. नहाते समय उनके शरीर से काला रंग निकल जाता है और माता पार्वती का रंग पहले की तरह साफ हो जाता है. इसी वजह से माता पार्वती का नाम मां गौरी भी रखा जाता है. नहाने के कुछ देर बाद जब माता पार्वती बाहर आती है, तो उनकी नजर शेर पर पड़ती है, जो माता को खाने की प्रतिक्षा में भूखा ही एक कोने में बैठा था.

 

माता पार्वती भगवान शिव के पास जाती है और उनसे वरदान मांगती है. माता पार्वती कहती है कि हे नाथ. ये शेर सालों से मुझे भोजन के रूप में ग्रहण करने के लिए इंतजार कर रहा था, जितना तप मैंने किया है, उतना ही तप मेरे साथ इस शेर ने भी किया है. इसी वजह से आप इस शेर को वरदान के रूप में मेरी सवारी बना दीजिए. भगवान शिव ने माता पार्वती की इस बात से प्रसन्न होकर शेर को उनकी सवारी बना दी. आशीर्वाद मिलने के बाद माता शेर पर सवार हो गई और तभी से उनका नाम मां शेरावाली और मां दुर्गा पड़ गया.

Why couldn’t Kubera satisfy Lord Ganesha’s hunger?

Ganesh Aur Kuber Katha -

हिन्दू धर्म के अनुसार कुबेर धन और वैभव के देवता हैं। माना जाता है कि उनके पास ढेर सारा धन है और यह आपने सुना ही होगा कि जरूरत से अधिक पैसा व्यक्ति को अंधा बना देता है। बिलकुल ऐसा ही कुछ धन के देवता कुबेर के साथ भी हुआ। उन्हें लगने लगा कि तीनों लोकों में सबसे ज्यादा धन उन्हीं के पास है और उन्हें इस बात पर घमंड होने लगा।

 

एक दिन अपने धन का दिखावा करने के लिए धन के देवता कुबेर ने महाभोज का आयोजन किया। इस महाभोज में उन्होंने सभी देवतागण को बुलाया। कार्यक्रम का न्योता लेकर वो कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास भी गए और उन्हें विशेष अतिथि के रूप में आने का न्योता दिया।

 

भगवान शिव ने एक बार में कुबेर जी के घमंड को भांप लिया और फिर सोचा कि इसे सही पाठ पढ़ाना जरूरी है। यह सोचकर उन्होंने कुबेर से कहा, “कुबेर, हमें तुम्हारा न्योता स्वीकार है, लेकिन किसी जरूरी काम के कारण हम महाभोज में नहीं आ पाएंगे, किंतु तुम चिंता न करो। हमारी जगह, हमारा पुत्र गणेश तुम्हारे महाभोज में जरूर आएगा।

 

भगवान शिव की बात सुनकर कुबेर खुशी-खुशी वहां से चले गए।

 

महाभोज का दिन आ गया। सभी देवतागण कुबेर के घर पधारने लगे। भगवान श्री गणेश भी समय से कार्यक्रम में पहुंच गए। जैसे ही भोजन शुरू हुआ, भगवान गणेश ने सारा भोजन खत्म कर दिया। जब कुबेर ने बाकी मेहमानों के लिए फिर से भोजन बनवाया, तो गणपति ने फिर से सारा भोजन खा लिया। भगवान गणेश कुबेर की रसोई में रखा सारा खाना खत्म करते जा रहे थे, लेकिन उनकी भूख शांत ही नहीं हो रही थी। धीरे-धीरे करके कुबेर के पास मौजूद सभी खाने की चीजें खत्म हो गईं, तो उन्होंने भगवान गणेश से कहा, “प्रभु और खाना आने में समय लगेगा। तब तक आप बैठ जाइए।” इस पर भगवान गणेश ने कहा, “अगर तुमने मुझे अभी भोजन नहीं दिया, तो मैं तुम्हारे महल में रखी हर चीज खा जाऊंगा।”

 

इतना सुनते ही कुबेर घबरा गए और भगवान शिव के पास पहुंच गए. कुबेर देवता ने भगवान शिव को सारी आपबीती बताई, तब भगवान शिव ने कहा कि कभी भी धन का घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि धन की लालसा कभी किसी का पेट नहीं भर सकती। इतना सब सुनकर कुबेर देवता ने भगवान शिव से माफी मांगी और माता पार्वती ने कुबेर जी को आटे का घोल दिया जिसको पीने से भगवान गणेश की भूख शांत हुई, कुबेर देवता को अपनी गलती का एहसास हो गया था, कुबेर जी ने भगवान गणेश के पैरों में गिर गए और उनसे माफी मांग ली और कहां कि मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूं और प्रण लेता हूं कि कभी भी धन का घमंड नहीं करूंगा.