Five mysterious temples of Lord Shiva –

Five mysterious temples of Lord Shiva -

भोलेशंकर की महिमा को समझ पाना किसी के वश की बात नहीं, क्योंकि धर्मशास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है. बात करें वर्तमान समय की तो शिव भक्त शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते है। शिव मंदिर में जा कर जलाभिषेक करना हो या फिर कावंड़ यात्रा से शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करना हो। हम इस लेख के जरिए बात करेंगे शिव के उन मंदिरों के बारें में जो रहस्यमई भी है और उनमें मिलने वाली विचित्र चीजें आपको शिव के वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगी।

 

इस मंदिर का रहस्य समझ से परे

 

गढ़मुक्तेश्वर स्थित प्राचीन गंगा मंदिर का भी रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया हैं. मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर प्रत्येक वर्ष एक अंकुर उभरता है. जिसके फूटने पर भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की आकृतियां निकलती हैं. इस विषय पर काफी रिसर्च वर्क भी हुआ लेकिन शिवलिंग पर अंकुर का रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया है. यही नहीं मंदिर की सीढ़ियों पर अगर कोई पत्थर फेंका जाए तो जल के अंदर पत्थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है. ऐसा महसूस होता है कि जैसे गंगा मंदिर की सीढ़ियों को छूकर गुजरी हों. यह किस वजह से होता है यह भी आज तक कोई नहीं जान पाया हैं.

 

तपते पहाड़ पर AC जैसी ठंडक वाला शिव मंदिर

 

टिटलागढ़ उड़ीसा का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता है. इसी जगह पर एक कुम्हड़ा पहाड़ है, जिसपर स्थापित है यह अनोखा शिव मंदिर. पथरीली चट्टानों के चलते यहां पर प्रचंड गर्मी होती है, लेकिन मंदिर में गर्मी के मौसम का कोई असर नहीं होता है. यहां AC से भी ज्यादा ठंड होती है. हैरानी का विषय यह है कि यहां प्रचंड गर्मी के चलते मंदिर परिसर के बाहर भक्तों के लिए 5 मिनट खड़ा होना भी दुश्वार होता है, लेकिन मंदिर के अंदर कदम रखते हैं. AC से भी ज्यादा ठंडी हवाओं का अहसास होने लगता है. हालांकि यह वातावरण केवल मंदिर परिसर तक ही रहता है. बाहर आते ही प्रचंड गर्मी परेशान करने लगती है. इसके पीछे क्या रहस्य है आज कर कोई नहीं जान पाया है.

 

शिव के इस मंदिर में गूंजती है सरगम

 

तमिलनाडु में 12वीं सदी में चोल राजाओं ने ‘ ऐरावतेश्वर मंदिर’ का निर्माण करवाया था. बता दें कि यह बेहद ही अद्भुत मंदिर है. यहां की सीढ़ियों पर संगीत गूंजता है. बता दें कि इस मंदिर को बेहद खास वास्तुशैली में बनाया गया है. मंदिर की खास बात है तीन सीढ़ियां. जिनपर जरा सा भी तेज पैर रखने पर संगीत की अलग-अलग ध्वनि सुनाई देने लगती है, लेकिन इस संगीत के पीछे क्या रहस्य है, इसको कोई नहीं जान पाया. ये मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है. मंदिर की स्थापना को लेकर स्थानीय किवंदतियों के अनुसार यहां देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत ने शिव जी की पूजा की थी. इस वजह से इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्वर मंदिर हो गया. यह भी उल्लेख मिलता है कि मृत्यु के राजा यम जो कि एक ऋषि द्वारा शापित थे और शरीर जलन से पीड़ित थे. इसके बाद वह इसी मंदिर में आए परिसर में बने पवित्र जल से स्नान कर भोलेनाथ की पूजा की. इसके बाद वह पूर्ण रुप से स्वस्थ हो गए. यही वजह है कि मंदिर में यम की भी छवि अंकित है. यह मंदिर महान जीवंत चोल मंदिरों के रुप में जाना जाता है, साथ ही इसे यूनेस्को की ओर से वैश्विक धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है.

 

यहां भोलेनाथ ने कराया था राजा को बोध

 

बोधेश्वर महादेव मंदिर की अद्भुत कथा है, कथा मिलती है कि नेवल के राजा को पंचमुखी शिवलिंग, नंदी और नवग्रह स्थापित करने का बोध स्वयं भोलेनाथ ने कराया था. इसी के चलते मंदिर का नाम भी बोधेश्वर महादेव मंदिर पड़ा. कहा जाता है कि जब राज्यकर्मी रथ पर शिव, नंदी और नवग्रह को लेकर जा रहे थे तभी वह रथ राजधानी में प्रवेश करते ही भूमि में धसने लगा. इसके बाद तमाम प्रयास किए गये लेकिन रथ नहीं निकल सका. फिर राजा ने उसी स्थान पर सभी प्रतिमाओं की स्थापना करवा दी. तभी से ही भक्त बोधेश्वर मंदिर में असाध्य बीमारियों की अर्जियां लगाने पहुंचने लगे. कहा जाता है कि इस शिवलिंग के सच्चे मन से स्पर्श मात्र से ही भक्तों की बीमारियां दूर हो जाती हैं. यही नहीं भोले के पंचमुखी शिवलिंग मंदिर में अर्धरात्रि में दर्जनों सांप पंचमुखी शिवलिंग को स्पर्श करने आते हैं. फिर वापस जंगल में ही लौट जाते हैं. कहा जाता है कि आज तक इन सापों ने किसी भी स्थानीय नागरिक को कोई क्षति नहीं पहुंचाई है. वह केवल शिवलिंग को स्पर्श करके वापस लौट जाते हैं.

 

अद्भुत है तमिलनाडु का यह मंदिर

 

तमिलनाडु में बसा बृहदीश्वर मंदिर भी अद्भुत है. यहां स्थापित शिवलिंग का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है. बता दें कि इस मंदिर में प्रवेश द्वार पर ही बाबा नंदी स्थापित हैं. उनकी मूर्ति भी एक ही पत्थर से निर्मित है. इस मंदिर का आर्किटेक्ट बेहद शानदार है. यहां लाइट बंद होने के बाद भी भक्त शिवलिंग के दर्शन कर सकते हैं. इसके पीछे का कारण यह है कि यहां पर सूर्य की रोशनी सीधे नंदी बाबा पर पड़ती है. उसका रिफ्लेक्शन सीधे शिवलिंग पर पड़ता है और इस तरह से शिवलिंग साफ-साफ नजर आता है.

 

शिवजी का यह मंदिर भी है रहस्यमई

 

छत्तीसगढ़ के मरोदा गांव में भोलेनाथ का एक अनोखा मंदिर स्थित है. इस मंदिर का नाम भूतेश्वर मंदिर है. मंदिर में स्थापित शिवलिंग का आकार हर दिन 6 इंच से 8 इंच बढ़ता है. बता दें कि इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जल लहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है. यहीं स्थान भूतेश्वरनाथ भकुरा महादे के नाम से जाना जाता है. ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. पुराणों में भी इस भूतेश्वर नाथ शिवलिंग को देखने के लिए यूं तो यहां हर समय ही मेला लगा रहता है लेकिन सावन में यहां लंबी कतारें लगती हैं.

7 Unsolved and Hidden Mysteries of Lord Shiva

Hidden Mysteries of Lord Shiva -

 

  1. शिव की कितनी पत्नियां थी?

भगवान शंकर का विवाह सर्वप्रथम प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से हुआ फिर जब वे यज्ञकुंड में कूदकर भस्म हो गई, तब उन्होनें दूसरा जन्म लिया और हिमवान की पुत्री पार्वती कहलाई. कहते है कि गंगा, काली और उमा भी शिव की पत्नियां थीं, लेकिन वास्तव में शिव के साथ पार्वती का ही नाम लिया जाता है.

 

  1. कितने हैं शिव के पुत्र?

भगवान शिव ने पार्वती से विवाह करने के बाद कार्तिकेय नाम का एक पुत्र प्राप्त किया. भगवान गणेश तो माता पार्वती के उबटन से बने थे. सुकेश नामक एक अनाथ बालक को शिव-पार्वती ने पाला था. जलंधर शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था. अय्यप्पा शिव और मोहिनी के संयोग से जन्मे थे. भूमा उनके ललाट के पसीने की बूंद से जन्मे थे. अंधक और खुजा नामक 2 पुत्र और थे जिसके बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है. शिव पुराण में भगवान शिव के परिवार का पूर्ण रुप से और विस्तार में उल्लेख मिलता है.

 

  1. शिव के कितने शिष्य?

शिव के प्रमुख 7 शिष्य है जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है. इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई. शिव ने ही गुरू और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी. शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्त्राक्ष, महेंद्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे. शिव के शिष्यों में वशिष्ठ और अगस्त्य मुनि का नाम भी लिया जाता है.

 

  1. क्या शिव ही बुद्ध थे?

बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था. उन्होनें पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों को उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर.

 

  1. क्या शिव और शंकर एक ही हैं?

कई पुराणों के अनुसार भगवान शंकर को शिव इसलिए कहते हैं कि वे निराकार शिव के समान हैं. निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के 2 नाम बताते हैं. असल में दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं. शंकर को हमेशा तपस्वी रुप में दिखाया जाता है, कई जगह तो शंकर तो शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है. अत: शिव और शंकर 2 अलग-अलग सत्ताएं है. माना जाता है कि महेश यानि की नंदी और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं. रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं. इस तरह से शिव के अलग अलग अस्तित्व बताएं जाते है.

 

  1. हर काल में शिव

भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं, वे सतयुग में समुद्र मंथन के समय भी थे और त्रेता के राम के समय भी. द्वापर युग की महाभारत काल में भी शिव थे और कलिकाल में विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है. भविष्य पुराण के अनुसार राजा हर्षवर्धन को भगवान शिव ने मरुभूमि पर दर्शन दिए थे. कलियुग में भगवान शिव के दर्शन का उल्लेख भविष्य पुराण में बताया गया है, लेकिन कहीं भी इसका उल्लेख किया नहीं जाता हैं.

 

  1. वनवासी और आदिवासियों के देवता?

भारत के असुर, दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, आदिवासी और सभी वनवासियों के आराध्य देव शिव ही हैं, कहा जाता है कि शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है. सभी दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपात, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव धर्म से जुड़े हुए हैं. चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की ही परंपरा से ही माने जाते है।