जितिया व्रत कथा -

नर्मदा नदी के पास “कंचनबटी” नाम का एक नगर हुआ करता था, वहां राजा मलयकेतु का शासन था। कंचनबटी नगर के पास बालुहटा नामक जगह थी, जिसके पास में एक बड़ा-सा पेड़ था। उस पेड़ के नीचे एक चील और एक गीदड़ रहता था। दोनों में गहरी दोस्ती थी। महिलाओं को जितिया व्रत रखता देख उन दोनों ने भी प्रण लिया कि वो भी इस व्रत को रखेंगे। चील और गीदड़ ने श्री जीऊतवाहन भगवान को मन में याद कर कहा कि “हम आपकी पूजा और व्रत पूरी विधि के साथ करेंगे”… व्रत का दिन आते ही चील औऱ गीदड़ दोनों ने व्रत आऱंभ किया, लेकिन पास में ही किसी धनवान व्यापारी की मौत हो गई थी और उसका अंतिम संस्कार करने लिए उसे बालुहटा लाया गया।

 

व्रत के दिन गीदड़ ने मरे हुए व्यक्ति को देखा, तो उसके मन में उस मांस को खाने की अभिलाशा जगी। वो खुद को रोक नहीं पाया और मांस खाकर व्रत खंडित कर दिया। उस व्यापारी के शव को चील ने भी देखा था, लेकिन उसने व्रत के कारण उसे नहीं खाया। इसके कुछ समय पश्चात चील और गीदड़ दोनों का अगला जन्म हुआ जिसमें वो दोनों कंचनवटी के भास्कर नामक ब्राह्मण के घर में बेटी के रूप में पैदा हुई। चील का जन्म बड़ी बहन नाम शीलवती और गीदड़ का जन्म उसकी छोटी बहन नाम कपुरावती के रूप में हुआ। शीलवती (बड़ी बहन) की शादी बुद्धिसेन नामक लड़के से हुई और कपुरावती (छोटी बहन) की शादी कंचनवटी के राजा मलयकेतु से हुई।

 

बड़ी बहन शीलवती को 7 पुत्र हुए, तो वहीं छोटी बहन कपुरावती को संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाया। कपुरावती के घर जितने भी संतान हुए वे उसी दिन मर जाते। ऐसा होते-होते कपुरावती काफी परेशान हो गई। शीलवती के सातों पुत्र कपुरावती के महल में कार्य करते थे, लेकिन कपुरावती ने जलन के कारण अपने पति को कह कर बड़ी बहन के सातों पुत्रों के सर कटवाकर उन्हें लाल रंग के कपड़े से ढक कर एक बर्तन में अपनी बड़ी बहन के घर भिजवा दिए।

 

भगवान जीऊतवाहन ये सारी प्रक्रिया देख रहे थे। उन्होंने रास्ते में ही सातों भाइयों के सिर को धड़ से जोड़ा और अमृत पिलाकर जिंदा कर दिया और बर्तन में भगवान जीऊतवाहन ने फल भर दिए। उधर, कुपरावती अपनी दीदी के घर से शोक समाचार मिलने का इंतजार कर रही थी, जब संदेश नहीं आया, तो वो खुद ही शीलवती के घर चली गई, वहां अपनी दीदी के सारे बेटों को जिंदा देख हैरान रह गई। कुपरावती ने अपनी बड़ी बहन वो सारी बात बताई जो उसने उनके बेटों के साथ की थी। बड़ी बहन शीलवती ने अपनी छोटी बहन कुपरावती को उसके पिछले जन्म के बारे सारी बात बताई और उसी पेड़ को पास ले गई, जहां वो दोनों पहले रहा करते थे। कुपरावती का व्रत खंडित होने के कारण ये सारी दिक्कते उसके जीवन में आई। इस बात का कुपरावती को बड़ा पछतावा हुआ और उसने उसी समय अपना दम तोड़ दिया। कुपरावती के पति को जब जानकारी मिली तो उसने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार उसी पेड़ के नीचे किया। जितिया व्रत कथा से हमें यहीं सीख मिलती है कि बुरे कर्म कभी पिछा नहीं छोड़ते, उसका फल भोगना ही पड़ता है।