How Lord Krishna Crush the Pride of Satyabhama?

Shri Krishna And Satyabhama Story -

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे, तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थी। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थी?

 

द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरूड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया औऱ वे भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?

 

भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है, ऐसा सोचकर उन्होनें गरूड़ से कहा कि हे गरूड़। तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे है। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।

 

इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं औऱ स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।

मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।

 

भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ। भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे है। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।

 

हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा?  फिर गरूड़ अकेले ही महल पहुंच गए. महल पहुंचकर गरूड़ देखते है कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे है। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया।

 

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र, तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?  क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु, आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। ये सुनकर भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे।

 

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया- हे प्रभु। आज आपने माता-सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है? अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ जी तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। इस प्रकार श्री कृष्ण ने एक ही बार में तीनों का अंहकार खत्म किया.

Why did Brahma Test Krsna?

Shri Krishna And Brahma Story -

यह बात तब की है जब श्री कृष्ण अपने बाल्यावस्था में थे यानी यह कहानी श्री कृष्ण के बचपन की है। उस समय ब्रह्मा जी को पता चला कि भगवान विष्णु स्वयं श्री कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं, तो उनके मन में श्री कृष्ण के दर्शन करने का विचार आया। वह ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर आए और देखा कि अपने सिर पर मोर मुकुट को धारण किए एक बालक गायों और ग्वालों के साथ मिट्टी में खेल रहा है।

 

यह दृश्य देखकर ब्रह्मा जी को विश्वास नहीं हुआ कि यह बालक विष्णु जी का अवतार है, लेकिन बच्चे के चेहरे पर अतुल्य तेज था। यह देखकर ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की परीक्षा लेने का विचार किया।

 

उन्होंने सबसे पहले गायों को वहां से उठा लिया। फिर जब श्री कृष्ण गायों को देखने के लिए गए, तो उन्होंने वहां खेल रहे ग्वालों को भी उठा लिया और अपने साथ ब्रह्मलोक ले गए। जब इसके कुछ देर बाद वह पृथ्वी पर वापस आए, तो वहां का माहौल देखकर चौंक गए, क्योंकि जिन बच्चों और गायों को वे अपने साथ ब्रह्मलोक ले गए थे, वो तो श्री कृष्ण के साथ पृथ्वी पर खेल रहे थे। यह देखकर उन्होंने ध्यान लगाकर ब्रह्मलोक की स्थिति जाननी चाही। उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि सभी बालक और गायें ब्रह्मलोक में ही हैं।

 

यह सब देखकर उन्हें श्री कृष्ण की लीला समझ आ गई और उन्होंने हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगी। साथ ही प्रार्थना की, कि प्रभु मुझे अपने असली रूप के दर्शन दें। तब श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी को अपना विराट रूप दिखाया। श्री कृष्ण के उस रूप के दर्शन करने के लिए कई और ब्रह्मा भी वहां पर आए गए। उन ब्रह्मा में कुछ तीन सिर के, कुछ चार सिर के, तो कुछ सौ सिर के थे।

 

अपने अलावा अन्य ब्रह्मा को देखकर ब्रह्मदेव ने श्री कृष्ण के विराट रूप से पूछा कि प्रभु यह कैसी लीला है आपकी। इस पर उन्होंने कहा कि हे ब्रह्मदेव इस जगत में केवल आप ही एक ब्रह्मा नहीं हैं। जगत में कई सारे ब्रह्मांड हैं, जहां पर कई सारे ब्रह्मदेव मौजूद हैं और प्रत्येक का अपना-अपना कार्य है। यह सुनकर ब्रह्मदेव ने उन्हें शीश झुकाकर नमस्कार किया और वापस ब्रहमलोक में चले गए.

What is the Secret of Lord Shiva’s Third Eye?

Secret Of Lord Shiva Third Eye -

भगवान शिव जी की हर प्रतिमा में उनके मस्तक पर एक आंख दिखाई देती है. इसे भोलेनाथ की तीसरी आंख कहते हैं. भगवान शिव के मस्तक पर तीसरी आंख है, इसलिए उन्हें त्रिलोचन भी कहा जाता है. वैसे क्या आप जानते हैं कि शिव जी को यह तीसरी आंख कैसे प्राप्त हुई. इस घटना के पीछे भी एक कहानी है, जिसमें शिव जी की तीसरी आंख का रहस्य और महत्व दोनों पता चलता है.

 

एक समय की बात है. भगवान शिव कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहे थे, तभी देवी पार्वती वहां आईं और उन्होनें मजाक-मजाक में अपने दोनों हाथों से अपने भगवान शिव की आंखों को ढक दिया. देवी पार्वती को जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनके इस मजाक का क्या परिणाम होगा.

 

जैसे ही देवी पार्वती जी ने भगवान शिव की आंखों को ढका, वैसे ही पूरी सृष्टि में अंधेरा छा गया. देवी-देवता गण, मनुष्य, जानवर आदि सभी अंधेरे से घबरा उठे. तपस्या में लीन शिव जी को अंदाजा हुआ कि देवी पार्वती जी की ठिठोली से लोगों में भय उत्पन्न हो गया है. लोगों की हालत देखकर भगवान शिव ने अपने मस्तक पर एक आंख उत्पन्न कर ली. भगवान शिव की तीसरी आंख खुलते ही सारे लोकों में उजाला हो गया. तब से शिव जी की तीसरी आंख को प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. भगवान शिव इस घटना के बाद पार्वती जी को बताते हैं कि उनकी दो आंखे पूरी सृष्टि की पालनहार हैं और तीसरी आंख प्रलय का कारण. शास्त्रों में भी कहा गया है कि जब भी भगवान शिव अपनी तीसरी आंख खोलेंगे, तब संसार को विनाश का सामना करना होगा.

 

श्री कृष्ण को क्यों लगा गौ हत्या का पाप?

Shri Krishna Story -

यह बात उस समय की है जब कृष्ण नन्हे से बालक थे. वह अपने नन्द बाबा की गाय-भैंसों को चराया करते थे. उस समय मामा कंस बाल कृष्ण को मारने का प्रयास करते रहते थे. एक बार कंस ने बाल कृष्ण को मारने के लिए अरिष्टासुर नाम के एक राक्षस को भेजा. अरिष्टासुर, श्री कृष्ण की ताकत को जानता था, इसलिए उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए अलग तरीका अपनाया।

 

अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप बनाया और गाय के झुंड में शामिल हो गया। झुंड में शामिल होकर वह कृष्ण को मारने का मौका देखने लगा। जब उसे श्री कृष्ण पर वार करने का कोई मौका नहीं मिला, तो उसने कृष्ण के दोस्तों को मारना शुरू कर दिया। जब श्री कृष्ण ने अपने बाल सखाओं की यह हालत देखी, तो उन्हें पता चल गया कि यह किसी राक्षस का काम है। फिर क्या था, भगवान कृष्ण ने गाय रूपी अरिष्टासुर की टांग पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया, जिससे उसकी मौत हो गई.

 

जब राधा रानी को इस घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने कहा, “कान्हा तुमने गोहत्या की है, जो घोर पाप है. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए तुम्हें सारे तीर्थों की यात्रा करनी होगी.  “श्री कृष्ण को राधा की बात सही लगी, लेकिन सभी तीर्थों की यात्रा करना लगभग नामुमकिन था. इस समस्या का समाधान पाने के लिए श्री कृष्ण नारद मुनि के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का समाधान पूछा, नारद मुनि ने कहा,  प्रभु आप सब तीर्थों को यह आदेश दो कि वे पानी के रूप में आपके पास आ जाएं. फिर आप उस पानी में स्नान कर लेना, इससे आपके ऊपर से गोहत्या का पाप उतर जायेगा”. श्री कृष्ण ने ऐसा ही किया, उन्होंने सारे तीर्थों को बृजधाम बुलाया और पानी के रूप में एक कुंड में भर लिया. इस कुंड को श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से खोद कर बनाया था. सभी तीर्थों का पानी, बनाए गए कुंड में रख दिया और स्नान करने के बाद श्री कृष्ण के ऊपर से गोहत्या का पाप उतर गया.

 

ऐसा कहा जाता है कि मथुरा से कुछ दूरी पर एक गांव है, जिसका नाम अरिता है. इस गांव में आज भी श्री कृष्ण के द्वारा बनाया गया कुंड मौजूद है।

Why should we read the Shiv Puran?

शिव पुराण की महिमा -

भगवान शिव को भोले के रूप में भी जाना जाता है। शिव भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए तमाम तरह के उपाय करते है, किंतु क्या आप जानते है? शिव को प्रसन्न करने के लिए केवल उनके नाम का स्मरण ही पर्याप्त है। भगवान शिव अपने प्रिय भक्तों पर कृपा करने के लिए उनके द्वारा प्रकट प्रेम और दया ही देखते है। शिव पुराण में भी लिखित है, कि यदि शिव को प्रसन्न करना है तो केवल उनके नाम का जाप या शिव पुराण का पाठ ही काफी है। सोमवार का दिन भगवान शिव और देव चंद्रमा के रुप में पूजा जाता है, कहते है भगवान शिव ने चंद्रमा पर विशेष कृपा की, और उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया। चंद्रमा को श्राप से मुक्त कर उन्हें निरोगी और सुंदर काया का वरदान दिया, इसलिए भगवान शिव और चंद्रमा का पूजन काफी लाभकारी सिद्ध होता है। आईए अब आपको बताते है शिव पुराण पढ़ने के क्या-क्या फायदे होते है।

 

शैव मत संप्रदाय के लिए यह पवित्र ग्रंथ है। इस धार्मिक ग्रंथ में शिव महिमा का वर्णन है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिव पुराण का पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। शिव पुराण को करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है, यदि कोई दुश्मन आपको नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहा है तो वह अपने आप ही शांत हो जाता है। यदि दांपत्य जीवन में संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा है तो शिव पुराण का पाठ करने से जल्द ही संतान सुख प्राप्त होता है, क्योंकि एक प्रचलित कथा के अनुसार जब जामवंती ने श्रीकृष्ण से संतान की इच्छा प्रकट की, तब श्रीकृष्ण ने शिव की तपस्या कर सांब को प्राप्त किया, इसलिए निसंतान भी शिव पुराण का पाठ कर महादेव से आशीर्वाद ले सकते है। यदि किसी के कार्यों में बाधा आती है तो शिव पुराण का पाठ करें।

 

सोमवार के दिन शिव पूजा में शिव पुराण का पाठ किया जाए तो भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं, लेकिन कई बार हम अज्ञानतावश शिव पुराण को पढ़ते समय सावधानी नहीं बरतते हैं, जिसका वास्तविक फल हमें प्राप्त नहीं हो पाता है। इसलिए शिव पुराण को पढ़ते समय हमें कुछ जरूरी सावधानियां अवश्य ही बरतनी चाहिए। 

 

शिव पुराण को पढ़ने के नियम

  1. शिव पुराण को पढ़ने से पहले मन और तन दोनों ही शुद्ध होने चाहिए।
  2. स्नान के बाद नए एवं साफ वस्त्र धारण करें
  3. किसी के प्रति कोई द्वेश ना रखें
  4. किसी भी व्यक्ति का अनादर ना करें
  5. सात्विक आहार ग्रहण करें, तामसिक आहार और पदार्थ का त्याग करें
  6. किसी की निंदा, चुगली या किसी भी तरह का पाप ना करें
  7. शिव पुराण का पाठ करने से पहले या बाद में किसी का दिल ना दुखाएं।

Sankashti Chaturthi 2022: Day, date, time, rituals and significance

Sankashti Chaturthi 2022 -

साल 2022 का आखिरी महीना दिसंबर शुरू हो चुका है, 9 दिसंबर 2022 से पौष माह आरंभ होगा. हर माह में भगवान गणेश की प्रिय चतुर्थी 2 बार आती है। पहली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, जिसे हम संकष्टी चतुर्थी कहते है और दूसरी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी जिसे हम वरद विनायक चतुर्थी कहते है। पौष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 11 दिसंबर 2022, दिन रविवार को है। आईए जानते है संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इस दिन कौन-से उपाय करें?

 

संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त

 

सनातन पंचागं के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 11 दिसंबर 2022 को शाम 04 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 12 दिसंबर 2022 को शाम 06 बजकर 48 मिनट पर किया जाएगा.

 

चंद्रोदय का समय – 11 दिसंबर 2022 को रात 08 बजकर 11 मिनट पर

 

संकष्टी चतुर्थी महत्व

 

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत जीवन में सौभाग्य की वृद्धि करता है. मान्यता है कि इस दिन एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी गणपति को तिल के लड्‌डू, दूर्वा अर्पित करने से ज्ञान और ऐश्वर्य, सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है. कहते है जो लोग पौष माह की संकष्टी चतुर्थी पर व्रत रखकर गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करते है और फिर चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं उन्हें दीर्धायु का वरदान मिलता है. संकष्टी चतुर्थी पर दिनभर व्रत रखा जाता है और रात के समय में चंद्र देव की पूजा करते हैं और उनको अर्घ्य अर्पित करके पारण करते हैं. इसके साथ ही यह व्रत पूर्ण होता है. इस व्रत में चंद्रमा की पूजा महत्वपूर्ण है, इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है.

क्या वाकई अक्रूर जी ने देखा श्रीकृष्ण का दिव्य रूप?

अक्रूर जी और श्री कृष्ण की कहानी -

बात उस समय की है जब श्री कृष्ण का जन्म नहीं हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु की आकाशवाणी को सुनकर अपने पिता राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया और खुद राजा बन बैठा… अक्रूर जी उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे। रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे और इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका… इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण अपना गुरु भी मानते थे।

 

जब कंस ने नारद मुनी के मुंह से सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर को अपने पास बुलाया, उसने अक्रूर के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया… अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को अपना परिचय दिया और कंस के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में उन्हें बताया… साथ ही आकाशवाणी के बारे में भी श्रीकृष्ण को बताया कि उन्हीं के हाथों कंस का वध होगा।

 

अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पड़े. रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में काफी जानकारियां दी. इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था. मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण और कंस का मलयुद्ध हुआ जिसमें श्रीकृष्ण के द्वारा कंस का वध हुआ और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बैठा दिया और अक्रूर को हस्तिनापुर भेज दिया.

 

कुछ समय के बाद कृष्ण ने अपनी द्वारका नगरी का निर्माण किया. द्वारका में अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए, जिसमें लिखा था कि पांडवों का कौरवों के साथ युद्ध होने वाला है जिसमें उन्हें श्रीकृष्ण की सहायता चाहिए. इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सके।

 

कहा जाता है कि अक्रूर जी के पास एक स्यमंतक नामक मणि थी. वह मणि सूर्य देव के द्वारा प्रकट की गई थी, स्यमंतक मणि जिस भी जगह रहती थी, वहां पर कभी भी अकाल नहीं पड़ता था। महाभारत के युद्ध के बाद अक्रूर जी श्री कृष्ण के साथ द्वारका आ गए थे. जब तक अक्रूर जी द्वारका में रहे, तब तक वहां खेतों में अच्छी फसल होती रही, लेकिन उनके जाते ही वहां अकाल पड़ गया। द्वारिकावासियों को लगा कि श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि चुराई है जिससे उन्होनें कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा दिया. मणि को वापस लाने के लिए श्री कृष्ण ने अक्रूर जी से वापस द्वारका आने का आग्रह किया और नगरवासियों के सामने स्यमंतक मणि दिखाई, जिसके बाद श्री कृष्ण पर लगा स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप गलत साबित हुआ। वे मणि द्वारका में छोड़ अक्रूर जी ब्रह्म तत्व में लीन हो गए थे। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के दिव्य दर्शन अर्जून के बाद अक्रूर जी ने ही किए थे और उसके बाद ही उन्होनें कंस का साथ छोड़ श्रीकृष्ण का साथ दिया था.

Why did Lord Krishna ask for the dust of Radha’s feet?

Shri Krishna And Radha Rani Story -

राधा और कृष्ण के प्रेम के बारे में कौन नहीं जानता है। कहते हैं कि कृष्ण और राधा का विवाह नहीं हो पाया था, लेकिन दोनों में इतना प्रेम था कि आज भी दोनों का नाम एक साथ लिया जाता है। श्री कृष्ण का राधा के लिए प्रेम और राधा का श्री कृष्ण के लिए समर्पण देखते ही बनता था। शायद इसलिए अपने आपको सबसे बड़ा भक्त कहने वाले नारद मुनी को राधा से जलन होने लगी थी। यह बात श्री कृष्ण अच्छी तरह से जानते थे।

 

एक दिन राधा के बारे में बात करने के लिए नारद मुनी श्री कृष्ण के पास आए। यह बात श्री कृष्ण को पता चल गई थी। जैसे ही नारद मुनी वहां पहुंचे, तो श्री कृष्ण उन्हें देखकर अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। नादर मुनी ने श्री कृष्ण से पूछा कि क्या हुआ प्रभु आप ऐसे अपने सिर को पकड़ कर क्यों बैठे हैं।

 

श्री कृष्ण ने कहा, “हे नारद मुनी, मेरा सिर दर्द कर रहा है।” नारद मुनी ने पूछा, “प्रभु इसको दूर करने का उपाय क्या है?”

 

तब श्री कृष्ण ने कहा, “अगर मैं अपने सबसे बड़े भक्त का चरणामृत पी लूं, तो इसे दूर किया जा सकता है।” तब नारद मुनी सोचने लगे कि सबसे बड़ा भक्त तो मैं हूं, लेकिन अगर में अपना चरणामृत दूंगा, तो मुझे नरक जाने जितना पाप लगेगा। मैं प्रभु को अपना चरणामृत नहीं दे सकता।

 

कुछ देर सोचने के बाद उनके मन में राधा का विचार आया और वे सोचने लगे कि लोग राधा को भी तो श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं, इसलिए क्यों न उनके पास जाकर पूछा जाए। ऐसा सोचकर वह राधा के पास गए और उन्हें सारी बात बता दी।

 

राधा ने जैसे ही सुना एक बर्तन में अपने पैर धोकर चरणामृत नारद मुनी को देते हुए कहा, “हे मुनीराज मुझे नहीं पता कि मैं उनकी कितनी बड़ी भक्त हूं, लेकिन मुझे यह पता है कि श्री कृष्ण को अपना चरणामृत देने से मुझे नरक में जाने जितना पाप लगेगा और मुझे नरक जितनी यातना सहन करनी पड़ेगी। मुनीवर वह सब मैं सहन कर सकती हूं, लेकिन अपने स्वामी को पीड़ा में नहीं देख सकती। यह चरणामृत ले जाकर आप उन्हें दे दें।”

 

राधा की बात सुनकर नारद मुनी का सारा घमंड चूर-चूर हो गया और उनको पता चल गया कि राधा ही सबसे बड़ी भक्त हैं और श्री कृष्ण ने यह लीला मुझे समझाने के लिए ही रची थी। जब नारद मुनी राधा के पास से वापस आ रहे थे, तो उनके मुख से केवल राधा के नाम की ही धुन सुनाई दे रही थी।

 

जब वे श्री कृष्ण के पास पहुंचे, तो देखा कि श्री कृष्ण उनको देखकर केवल मुस्कुराए जा रहे हैं और नारद मुनी ने भी सारी बात को समझ कर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा “राधे-राधे।”

Festival Of Naag Diwali 2022

Naag Panchami 2022 -

नाग पंचमी की पौराणिक कथा में बहनों का महत्व अधिक माना जाता है। दरअसल काफी सालों पहले एक नगर में सेठ के 7 पुत्र थे और उस सेठ ने अपने सभी पुत्रों को अच्छे संस्कार देकर पाला पोसा था। सेठ ने सभी सातों पुत्रों का विवाह समय रहते कर दिया था। सातों बहुए भी काफी संस्कारी थी, लेकिन उन सब में सबसे छोटी वाली बहु अधिक संस्कारी, ज्ञानी और बुद्धिमान थी। एक दिन सबसे बड़ी वाली बहु ने अपनी सभी देवरानियों को घर को लोपने के लिए पीली मिट्टी जंगल से लाने के लिए कहा। जेठानी समेत सभी देवरानी जंगल के लिए निकल गए और खुरपी से मिट्टी खोदना चालू कर दिया।

 

मिट्टी निकालते समय बड़ी बहू ने एक नाग को देखा और खुरपी लेकर उसे मारने के लिए उठी, ये देख सबसे छोटी वाली बहू ने अपनी जेठानी को रोका और कहने लगी कि उसकी कोई गलती नहीं है, हम ही जंगल में उसके स्थान पर आए है। सबसे छोटी वाली बहू ने नाग से माफी मांगी औऱ कहा कि आप एक जगह पर बैठ जाइए, मैं आपके लिए दूध लेकर आती हूं, लेकिन घर के कामों में व्यस्त होने के कारण छोटी बहू भूल गई… अचानक रात को सबसे छोटी वाली बहू को याद आया कि उसने नाग को इंतजार करने के लिए बोला था। वो तुरंत दूध लेकर नाग के पास गई, तो देखा कि नाग उसी जगह पर प्रतीक्षा कर रहा था। सबसे छोटी वाली बहू ने नाग से कहा… कि भैया मुझे क्षमा करें, मैं आपके पास आना भूल गई। ये सुनकर नाग ने कहा कि तुमने मुझे भैया कहा है इसलिए मैं तुमहें क्षमा करता हूं। नहीं तो अबतक मैं तुम्हें डस चुका होता। आज के बाद में तुम हमेशा के लिए मेरी बहन रहोगी। अब तुम अपने भाई से कोई वरदान मांग लो। मैं तुमसे बहुत खुश हूं।’

 

इतना सब सुनने के बाद छोटी बहु ने नाग को बोला, ‘मेरा कोई भी सगा भाई नहीं है, इसलिए मैंने आपको भाई कहा… अब से आप मेरे भाई हो औऱ मेरी रक्षा करना आपका फर्ज है। बस यही वरदान मुझे आपसे चाहिए।’ इतना कह कर छोटी बहू वापस अपने घर आ गई, कुछ समय बाद सभी बहुए अपने-अपने मायके जा रही थी औऱ सबसे छोटी वाली बहु को कहा कि तुम्हारा तो कोई भाई ही नहीं है तुम कहा जाओगी? ये बात सुनकर छोटी बहु दुखी हो गई और रोने लगी… बहन को दुखी देख नाग मनुष्य का रूप लेकर अपनी बहन के घर आय़ा और सेठ को कहा कि मैं अपनी बहन को कुछ दिनों के लिए अपने घर ले जाने आया हूं, आप उसको जाने की अनुमति दे। सेठ जी ने कहा कि छोटी बहु का कोई भाई नहीं है, तो तुम उसको अपनी बहन क्यों बता रहे हो, तभी नाग ने कहा कि मैं दूर का भाई हूं, इसलिए अपनी बहन को ले जाने आया हूं। सेठ जी ने छोटी बहू को जाने की अनुमति दे दी। नाग ने अपनी बहन से पूछा कि तुम मुझे भूल तो नहीं गई हो ना?  तो बहन ने कहा कि आपको मैं कैसे भूल सकती हूं आपने तो मुझे अपनी बहन माना है और उसी का मैं पालन कर रही हूं… नाग अपनी बहन को लेकर अपनी माता के पास गया और कहा कि मां ये मेरी  बहन है औऱ हमारे पास कुछ समय के लिए रहने आई है। मां ने खुशी-खुशी उसको अपने साथ रखा और खूब प्यार दिया। एक बार नाग की मां नाग को दूध पिला रही थी, तभी छोटी बहु ने कहा कि अब से ये कार्य मैं करूंगी, तभी मां ने खुश होकर ये कार्य उसको सौप दिया… छोटी बहु को पता नहीं था कि उसका भाई गर्म दूध नहीं पिता है और भूलवश उसने अपने भाई को गर्म दूध दे दिया जिसके कारण उसका फन्न जल गया। ये देख नाग की मां को गुस्सा आय़ा और उसने छोटी बहू को डसना का सोचा, ये देख नाग ने अपनी मां को समझाया कि उसे ये नहीं पता था, उसकी बहन से भूल हुई है। फिर नाग की मां का गुस्सा शांत हुआ और उसने छोटी बहू को घर जाते समय काफी धन दिया… जब सभी बहुओं ने देखा कि छोटी बहु को खूब सारा धन मिला, तो वो आश्चर्यचकित रह गई… थोड़ी देर बाद छोटी बहू का भाई अपनी बहन के लिए एक सुंदर सा हार लेकर आया, जिसको देखकर सब हैरान रह गए… उस हार के चर्चे पूरे गांव में फैल गए थे… तभी उस गांव की रानी ने वो हार अपने महल में लाने के लिए, सैनिक सेठ के घर जाकर उस हार को लेकर रानी को दे दिया…

 

अपने भाई का दिया हार, किसी ओर को देने के बाद वो खूब रोई और ये देखकर नाग ने उस हार को सांप में बदल दिया… रानी ने तुरंत वो हार अपने गले से निकालकर फेक दिया और उस सेठ को बुलाने का आदेश दिया… सेठ और छोटी बहू दोनों महल गए, जिसके बाद हार के बारें में छोटी बहु ने कहा कि ये मुझे मेरे नाग भाई ने दिया है अगर कोई दूसरा इसको धारण करेगा तो ये सांप में बदल जाएगा… इतना सुनने के बाद रानी के उस सर्प को पहनने के लिए कहा… जैसे ही छोटी बहु ने वो सर्प को अपने गले में पहना, तो वो वापस हार बन गया… ये देख रानी को यकीन हुआ और उसने छोटी बहु को वो हार वापस कर दिया और खूब धन देकर भेजा… तभी नाग देवता प्रकट हुए और कहा कि ये मेरी बहन है अगर किसी ने उसे दुखी किया तो मैं उस को डस कर मार दूंगा… तभी से ये प्रथा चलती आ रही है कि जो भी महिला नाग देवता की पूजा पूरी श्रद्धा से करती है नाग देवता उनको रक्षा सदैव करते है…

Vivah Panchami 2022 : Date, Significance, Ritual & Story

Vivah Panchami 2022 -

श्रीराम विवाह पंचमी का पर्व साल 2022 में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान श्री राम ने माता सीता के साथ इस दिन विवाह किया था, जिसे हम विवाहोत्सव और विवाह पंचमी के रूप में मनाते है। भगवान श्री राम चेतना के प्रतीक हैं और माता सीता प्रकृति शक्ति की, इसलिए चेतना और प्रकृति का मिलन होने से यह दिन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन भगवान श्री राम और माता सीता का विवाह करवाना बहुत शुभ माना जाता है। साल 2022 में विवाह पंचमी का पर्व 28 नवंबर, दिन सोमवार को पड़ रहा है। आईए जानते है विवाह पंचमी का शुभ मुहूर्त और महत्व।

 

विवाह पंचमी की तिथि

सनातन पंचांग के अनुसार, साल 2022 में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की विवाह पंचमी 27 नवंबर 2022 को शाम 04 बजकर 25 मिनट से प्रारंभ होकर अगले दिन 28 नवंबर 2022 को दोपहर 01 बजकर 35 मिनट पर समापन होगा. उदिया तिथि के चलते विवाह पंचमी 28 नवंबर को मनाई जाएगी.

 

विवाह पंचमी पर शुभ योग

अभिजित मुहूर्त – सुबह 11:53 – दोपहर 12:36

अमृत काल – शाम 05 बजकर 21 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 49 मिनट तक

सर्वार्थि सिद्धि योग –  सुबह 10 बजकर 29 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 55 मिनट तक

रवि योग – सुबह 10 बजकर 29 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 06 बजकर 55 मिनट तक

 

विवाह पंचमी पर कैसे कराएं राम-सीता का विवाह?

प्रातः काल स्नान करके श्री राम विवाह का संकल्प लें, फिर विवाह के कार्यक्रम का आरम्भ करें. भगवान राम और माता सीता की प्रतिकृति की स्थापना करें. भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें या तो इनके समक्ष बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें या “ॐ जानकीवल्लभाय नमः” का जप करें. इसके बाद माता सीता और भगवान राम का गठबंधन करें. उनकी आरती करें, साथ ही गांठ लगे वस्त्रों को अपने पास सुरक्षित रख लें.

 

क्यों खास है विवाह पंचमी?

अगर विवाह होने में बाधा आ रही हो तो वो समस्या दूर हो जाती है. मनचाहे विवाह का वरदान भी मिलता है. वैवाहिक जीवन की समस्याओं का अंत भी हो जाता है. इस दिन भगवान राम और माता सीता की संयुक्त रूप से उपासना करने से विवाह होने में आ रही बाधाओं का नाश होता है. इस दिन बालकाण्ड में भगवान राम और माता सीता जी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ होता है. इस दिन सम्पूर्ण रामचरित-मानस का पाठ करने से भी पारिवारिक जीवन सुखमय होता है.