Why 2023 Will Be The Worst Year EVER???

साल 2023 का रहस्य -

नए साल का उत्सव हर कोई मनाता है, नए साल में क्या कुछ नया करना है इसकी तैयारी (प्लानिंग) हर कोई करता है, नए साल में लोग प्रण लेते है, कि जो पिछले साल रह गया वो अगले साल कर लेंगे, लेकिन नए साल के अंकों का अनुमान सकारात्मक रहेगा या नकारात्मक ये कोई नहीं समझ पाता.. जी हां हम बात कर रहे है साल के अंकों का, जो एक अलग ही संदेश लेकर आता है, ज्योतिष इस गणना को जान और समझ पाते है किंतु आम व्यक्ति नहीं समझ पाता.

 

ज्योतिषी गणना के मुताबिक देखा जाएं तो 2023 = 2+0+2+3 = कुल 7 अंकों का बनता है.. 7वां अंक आमतौर पर छाया ग्रह केतु को दर्शाता है.. केतु ग्रह एक रूप में स्वरभानु नामक दानव के सिर का धड़ है.. यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था और इसे एक छाया ग्रह के तौर पर देखा जाता है.. माना जाता है कि इसका लोगों के जीवन और पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है.. कुछ मनुष्यों के लिये ये ग्रह प्रसिद्धि पाने का सहायक होता है.. केतु ग्रह की छवि की बात करें तो, ये सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दर्शया जाता है, जिसमें से रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है.. केतु ग्रह को अच्छाई और बुराई दोनों के रुप से जोड़ा जाता है.. जन्म के समय कुंडली में केतु ग्रह की स्थिति पर निर्भर करता है, कि ग्रहों का योग शुभ है या अशुभ.. अब 2023 का योग 7 है, इसलिए इस वर्ष गुप्त यानि की छुपे हुए शत्रुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और ग्रह की स्थिति के आधार पर व्यक्ति ऐसे समय सफल भी होते हैं.. शत्रुओं की सफलता के साथ-साथ ये साल गुप्त रोगों में, कर्जों में वृद्धि भी करेगा.. तंत्र और मन्त्र में भी वृद्धि के आसार होंगे, क्योंकि ये भी गुप्त क्रियाएं, यानि गुप्त कार्य हैं.. कुल मिलाकर इस वर्ष किसी भी प्रकार की छिपी हुई गतिविधियों में वृद्धि होगी.

 

निवारण कैसे करें/ कैसे बचें?

सभी ग्रहों की तरह केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के उपाय भी हैं.. कहते है काला कुत्ता, ग्रह केतु का प्रिय है, उन्हें प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को दूध पिलाएं या खाना खिलाएं और यह कार्य सूर्यास्त के बाद करना चाहिए या आप सूर्यास्त के बाद केतु बीज मंत्र – ॐ स्रां श्रीं स्रौं सः केतवे नमः का 108 बार जाप कर सकते हैं.

Magh Mela 2023 – Dates, History, Significance

माघ मेला 6 जनवरी से 18 फरवरी -

माघ मेले का प्रारंभ हर साल पौष पूर्णिमा के बाद से होता है. साल 2023 में पौष पूर्णिमा 6 जनवरी दिन शुक्रवार को थी. माघ मेला पूरे माह तक मनाया जाता है, जो अब 6 जनवरी पौष पूर्णिमा से आरंभ होकर 18 फरवरी महाशिवरात्रि तक रहेगा, इसलिए माघ मास का पहला स्नान पौष पूर्णिमा पर किया जाता है.. सनातन धर्म में इस मास का विशेष महत्व है। इस मास में सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष विधान बताया गया है। इसके साथ ही स्नान दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वहीं दूसरी ओर प्रयागराज में पौष पूर्णिमा के साथ माघ स्नान आरंभ हो जाते हैं जो महाशिवरात्रि के साथ समाप्त होते हैं।

माघ मेले का त्यौहार हिंदु लोगों के लिए बहुत महत्व होता है.. माघ मेला तीन पवित्र नदियों में स्नान करने से पूर्ण माना जाता है, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती नदी जिन्हें त्रिवेणी संगम नदी भी कहते है जो प्रयागराज में स्थित है.. माघ मेला मुख्यतौर पर 45 दिन तक चलता है, जो जनवरी और फरवरी के मध्य मनाया जाता है.. भक्तों की भीड़ नदी के तट के पास अपने टेंटों में वास करते है, जब तक मेला चलता है तब तक वे नदी के पास ही रहते है.. भक्तों की भीड़ इस समय उपवास कर सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लेते है.. सायंकाल के समय नदी के पास हजारों की संख्या में भक्त दिए जलाते है और नदी में प्रवाहित करते है.. माघ मेले के समय स्नान करने से पूर्व लोग मुंडन करवा लेते है.. इन दिनों में श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगाते हैं. अब जानते है माघ स्नान का क्या महत्व है और माघ माह में स्नान की प्रमुख तिथियों कब है?

माघ स्नान में पड़ने वाले प्रमुख स्नान

पौष पूर्णिमा- 6 जनवरी 2023

मकर संक्रांति-14 या 15 जनवरी 2023

मौनी अमावस्या- 21 जनवरी 2023

माघी पूर्णिमा- 5 फरवरी 2023

महाशिवरात्रि- 18 फरवरी 2023

प्रयागराज के माघ मेले का है विशेष महत्व

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के तट पर हर साल माघ स्नान का आयोजन किया जाता है। हिंदू पुराणों में भी इस स्नान का वर्णन मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, तीर्थों का राजा प्रयागराज है। यहां पर स्नान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और हर कष्ट से निजात मिल जाती है।

माघ मेले का इतिहास

माघ मेला एक प्रमुख हिंदू धार्मिक त्योहार है जो भगवान ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मांड के निर्माण का उत्साह मनाने के लिए किया जाता है.. माघ मेले के त्योहार में विभिन्न यज्ञ, प्रार्थना और अनुष्ठान शामिल है, जिनका उद्देश्य ब्रह्मांड के निर्माण के स्त्रोत का उत्साह मनाना और उसकी प्रशंसा करना है.. त्रिवेणी संगम तट पर मेले का आयोजन होता है, जिसे तीर्थ स्थलों के राजा तीर्थराज के नाम से भी जाना जाता है..

4 युगों के बराबर माघ मेला

कहते है 45 दिन का लगने वाला माघ मेला 4 युगों के बराबर होता है.. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग.. मुख्य रूप से जो लोग कल्पवास का पालन करते है उन्हें कल्पवासी के रुप में जाना जाता है.. साथ ही वे अपने पिछले जन्म के बुरे कर्मों से मुक्ति प्राप्त करते है.. सभी अनुष्ठानों का पूर्ण रुप से पालन करना मनुष्य को जन्म-मरण के चक्रों से मुक्ति प्रदान करता है, साथ ही कर्म के चक्र से भी बच जाता है..

इन दिनों ये काम अवश्य करें

  1. पवित्र स्नान

45 दिन तक चलने वाला माघ मेले में पवित्र तीर्थों पर स्नान करने से हजारों गुणा पूण्यों की प्राप्ति होती है.. मकर संक्रांति, पूर्णिमा, अमावस्या, बसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के समय पवित्र नदियों में स्नान करें..

  1. हवन

इस अवधि में यदि याचक हवन करता है, तो देवताओं का आशीर्वाद रहता है.. संत, भिक्षु को हवन के बाद दिए जाने वाला दान कई कष्टों का निवारण करता है.. याचक के घर में फल, फूल, मिठाई आदि से भंडार भरा रहता है..

  1. अर्घ्य

अर्घ्य देना एक दीर्घ आयु और स्वस्थ जीवन का प्रसाद कहा जाता है, कहते है भक्त हर सुबह यदि पवित्र नदी में स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देता है उसपर भगवान सूर्य नारायण की कृपा रहती है..

  1. अन्नदान

अन्नदान एक महाकल्पाण के रूप में देखा जाता है, यदि याचक संतों, भिक्षुओं, गरीब लोगों और जरूरतमंद को अन्नदान करता है, तो उसके घर में अन्न देवता का वास हमेशा रहता है..

Hindu Temples of India: Sugandha Shaktipeeth, Bangladesh

सुगंधा शक्तिपीठ मंदिर -

देवी सती के आत्मदाह की कई प्रौराणिक कथाओं के बारे में सुना होगा.. भगवान शिव के अपमान में देवी सती ने अग्नि स्नान कर लिया था.. जिसके बाद भगवान शिव देवी सती की जलती दाह को लेकर पूरे पृथ्वी के चक्कर काटे, जिस बीच भगवान विष्णु ने शिव के दुख को दूर करने के लिए देवी सती के शरीर के टुकड़े अपने सुदर्शन चक्र से कर दिए.. अब ऐसे में देवी सती के शरीर के जितने भी भाग हुए वे अलग अलग दिशाओं में जा गिरे, जिसे हम शक्ति के नाम से शक्तिपीठ कहते है.. देवी सती के शरीर के एक अंग भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में जा गिरा.. जहां सुंगधा नदी के तट के पास स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है. शैव धर्म में यह एक महत्वपूर्ण घटना है जिसके परिणामस्वरूप सती देवी के स्थान पर श्री पार्वती का उदय हुआ और शिव को गृहस्थश्रमी (गृह धारक) बना दिया जिससे गणपति और सुब्रह्मण्य की उत्पत्ति हुई।

 

देवी सती के शरीर के अंग 51 हुए, जिसे 51 शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता हैं, जो संस्कृत के 51 अक्षरों से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक मंदिर में शक्ति और कालभैरव के मंदिर हैं और ज्यादातर प्रत्येक मंदिर शक्ति और कालभैरव के अलग-अलग नामों से जाना गया.. कहते हैं सुंगधा या सुनंदा स्थान पर सती माता की नासिका या नाक गिरी थी. यहां की देवी सुनंदा और शिव त्र्यम्बक के नाम से प्रसिद्ध हैं, इसलिए इस पीठ को सुनंदा पीठ भी कहा जाता है.

 

अलौकिक है मंदिर की बनावट

यह मंदिर पत्थर का बना हुआ है. मंदिर की पत्थर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की तस्वीर ख़ूबसूरती से प्रदर्शित की गई हैं. शिव चतुर्दशी पर यहाँ मेला लगता है. इसके अलावा नवरात्र पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. शिव रात्रि के समय मंदिर में विशाल आरती का आयोजन किया जाता है.. कहते है सुनंदा शक्तिपीठ का वर्णन ज्यादातर कहीं उपलब्ध नहीं कराया गया, जिस वजह से शिव और देवी पार्वती के भक्तों को मंदिर के बारे में पता नहीं है..

 

ऐसा है देवी का स्वरूप

सुनंदा शक्तिपीठ में स्थापित देवी सती की जो पुरानी मूर्ति थी, वो अब चोरी हो चुकी है. उसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित की गई है. प्राचीन मूर्ति अब तक अज्ञात है. वर्तमान में देवी उग्रतारा की मूर्ति है, जिन्हें सुगंध की देवी के रूप में पूजा जाता है.

 

मंदिर की प्रचलित कथा

शिकारपुर गांव में पंचानन चक्रवर्ती नाम के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे. एक बार उनके सपने में, मां काली ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मैं सुगंधा के गर्भ में शिलारूप में हूँ, तुम मुझे वहां से निकाल कर ले आओ और मेरी पूजा करो. पंचानन चक्रवर्ती ने ऐसा ही किया. वो सपने में आये स्थान पर गया, वहां से मूर्ति लाकर स्थापित की और पूजा करना शुरू कर दिया. इसके बाद वहां के स्थानीय लोग भी आने लगे और मां की पूजा करने लगे. इस तरह से ये  पवित्र स्थान लोकप्रिय हुआ.

14 या 15 जनवरी? कब है मकर संक्रांति 2023 में

15 जनवरी 2023 मकर संक्रांति -

नए साल 2023 में मकर संक्रांति की तिथि में परिवर्तन हुआ है.. हर साल मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है, जिसकी तिथि 13 जनवरी होती है, लेकिन साल 2023 में तिथियों में परिवर्तन के कारण और मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी को मनाया जा रहा है, जिसके कारण मकर संक्रांति का पर्व एक दिन बाद 15 जनवरी 2023, दिन रविवार को मनाया जाएगा. रविवार का दिन भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही उत्तरायण का प्रारंभ होगा. मकर संक्रांति के अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान करना या फिर घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने से पूण्यों की प्राप्ति होती है. स्नान के बाद सूर्य देव की पूजा कर मकर संक्रांति का दान करें. इस दिन दान करने से कई गुना पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. ज्योतिषाचार्यों के कथन के अनुसार मकर संक्रांति पर दान करने से सूर्य, शनि समेत 6 ग्रहों से जुड़े दोष दूर होते हैं. ये सभी ग्रह शुभ फल प्रदान करते हैं. आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति पर किन वस्तुओं का दान करना ग्रहों और भाग्य की प्रबलता के लिए उत्तम है.

 

मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त

15 जनवरी को मकर संक्रांति पर सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 46 मिनट तक मकर संक्रांति का पुण्यकाल रहेगा. इस अवधि में स्नान, दान-धर्म के कार्य बहुत ही शुभ माने जाते हैं. चूंकि मकर संक्रांति का पर्व रविवार के दिन पड़ रहा है तो इससे त्योहार का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है, क्योंकि यह वार सूर्य देव को ही समर्पित है. इसके अलावा, इस दिन दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 52 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा और और दोपहर 02 बजकर 16 मिनट से लेकर दोपहर 02 बजकर 58 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा.

 

किन वस्तुओं का करें दान?

 

  1. तिल का दान

मकर संक्रांति के अवसर पर हर व्यक्ति को स्नान के बाद तिल का दान करना चाहिए. हो सके तो इस दिन आप काले तिल का दान करें. यदि काला तिल नहीं है तो सफेद तिल ही दान करें. ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा से धन और धान्य बढ़ता है और शनि दोष भी दूर होता है. कहा जाता है कि जब सूर्य देव मकर संक्रांति पर शनि देव के घर पहुंचे थे तो शनि देव ने काले तिल से उनका स्वागत किया था.

 

  1. गुड़ का दान

मकर संक्रांति के दिन गुड़ का दान अवश्य करें. इस एक दान से आपके तीन ग्रहों सूर्य, गुरु और शनि के दोष दूर होते हैं. गुड़ को गुरु ग्रह से संंबंधित मानते हैं. सूर्य को प्रबल करने के लिए भी गुड़ का दान होता है. मकर संक्रांति के दिन गुड़ और काले तिल से बने लड्डू का दान किया जाता है.

 

  1. कंबल का दान

मकर संक्रांति के अवसर पर पूजा के बाद गरीबों को कंबल और गर्म कपड़ों का दान अपनी क्षमता के अनुसार करना चाहिए. यदि आप ऐसा करते हैं तो आपकी कुंडली में राहु ग्रह से जुड़े दोष दूर होंगे और उसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे.

 

यदि आप मकर संक्रांति पर चावल, खिचड़ी, गुड़, काला तिल और कंबल का दान करते हैं तो सूर्य, शनि, बुध, गुरु, चंद्रमा और राहु ग्रह से जुड़े दोष दूर होंगे और भाग्य मजबूत होगा. इन वस्तुओं के अलावा आप अपनी राशि के अनुसार भी वस्तुओं का दान कर सकते हैं.

कब है लोहड़ी? जानें सहीं तिथि, मुहूर्त, पौराणिक महत्व

लोहड़ी 2023 -

लोहड़ी का पर्व भारत में बहुत ही हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है, वैसे तो ये पर्व पंजाब का मुख्य और प्रसिद्ध पर्व है किंतु इसे समान्य तौर पर सभी मनाते है. लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है, इसमें परिवार और समाज आपस में एकजुट होकर अग्नि के फेरे लेते है और प्रसिद्ध लोक गीत गाते है.. कहा जाता है कि लोहड़ी के दिन पंजाबी और हरियाणवी लोगों में अलग ही तरह की तैयारी चल रही होती है.. यह देश के उत्तर प्रान्त में ज्यादा मनाया जाता हैं. इन दिनों पुरे देश में पतंगों का ताता लगा रहता हैं और भिन्न-भिन्न मान्यताओं के साथ इन दिनों त्यौहार का आनंद लिया जाता हैं. बता दें कि लोहड़ी का पर्व साल 2023 में 14 जनवरी दिन शनिवार को पड़ रहा है.. लोहड़ी मनाने का शुभ मुहूर्त रात्रि 8 बजकर 57 मिनट का है.

 

लोहड़ी के दिन प्रकृति में परिवर्तन

लोहड़ी का त्यौहार प्रकृति में होने वाले परिवर्तन के साथ- साथ मनाये जाते हैं जैसे लोहड़ी में कहा जाता हैं कि इस दिन वर्ष की सबसे लम्बी अंतिम रात होती हैं इसके अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते है.. साथ ही इस समय किसानों के लिए भी उल्लास का समय माना जाता हैं. खेतों में अनाजों की बढ़ोतरी होती हैं और मौसम में हरियाली छाई रहती हैं.. जिस खुशी में ये पर्व मनाया जाता है..

 

लोहड़ी पर्व की पौराणिक कथा

पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता हैं. कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया था. उसी दिन को एक पश्चाताप के रूप में प्रति वर्ष लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता हैं और इसी कारण घर की विवाहित बेटी को इस दिन तोहफे दिये जाते हैं और भोजन पर आमंत्रित कर उसका मान सम्मान किया जाता हैं. इसी ख़ुशी में श्रृंगार का सामान सभी विवाहित महिलाओ को बाँटा जाता हैं.

 

यदि हम बात करें लोहड़ी की ऐतिहासिक कथा कि तो, इस पर्व को दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता हैं. यह कथा अकबर के शासनकाल की हैं उन दिनों दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था, इसे पंजाब का नायक कहा जाता था. उन दिनों संदलबार नामक एक जगह थी, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं. वहां लड़कियों को बेचा जाता था, तब दुल्ला भट्टी ने इस का विरोध किया और लड़कियों को सम्मानपूर्वक इस दुष्कर्म से बचाया और उनकी शादी करवाकर उन्हें सम्मानित जीवन दिया और इस दिन को विजय के दिन के रूप में लोहड़ी के गीतों में गाया जाता हैं और दुल्ला भट्टी को याद किया जाता हैं.

 

इन्ही पौराणिक एवम एतिहासिक कारणों के चलते पंजाब प्रान्त में लोहड़ी का उत्सव उल्लास के साथ मनाया जाता हैं.

Temples which inspired design of Indian Parliament

चौसठ योगिनी मंदिर -

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। यहां पर कई प्राचीन और चमत्कारी मंदिर हैं। इनमें कई मंदिर बेहद रहस्यमयी हैं जिनमें मध्य प्रदेश का चौसठ योगिनी मंदिर भी शामिल है। भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं। ओडिशा और मध्य प्रदेश में दो मंदिर हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्राचीन और रहस्यमयी है। भारत के सभी चौसठ योगिनी मंदिरों में यह इकलौता मंदिर है जो अभी तक स्थित और देखने में ठीक है। मुरैना में स्थित यह मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए दुनियाभर में जाना जाता था। इस रहस्यमयी मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहते थे। यहां पर दुनियाभर से लाखों तांत्रिक तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने के लिए आते थे। आईए जानते हैं मरैना में स्थित प्राचीन और रहस्यमयी चौसठ योगिनी मंदिर के बारे में।

 

मध्यप्रदेश का प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर गोलाकार है और इसमें 64 कमरे हैं। इन सभी 64 कमरों में भव्य शिवलिंग स्थापित है। मितावली गांव में बना यह रहस्यमयी मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस अद्भुत मंदिर का निर्माण करीब 100 फीट की ऊंचाई पर किया गया है और पहाड़ी पर स्थित यह गोलाकार मंदिर किसी उड़न तश्तरी की तरह नजर आता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के बीच में एक खुले मंडप का निर्माण किया गया है जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 700 साल पुराना है। 

 

इस मंदिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने 1323 ई में करवाया था। इस मंदिर में सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा दी जाती थी जिसका यह मुख्य केंद्र था। कहा जाता है कि यह भगवान शिव का मंदिर है जिसकी वजह से लोग तंत्र-मंत्र सीखने के लिए यहां आते थे।

 

चौसठ योगिनी मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग और देवी योगिनी की मूर्ति स्थापित थी जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम चौसठ योगिनी रखा गया था। कहते है कि इस मंदिर से कई मूर्तियां चोरी हो गई थी, जिसके चलते अब बची मूर्तियों को दिल्ली स्थित संग्राहलय में रख दिया गया है। 101 खंभों वाले इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्राचीन ऐतिहसिक स्मारक घोषित किया हुआ है।

 

बताया जाता है कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के आधार पर ही भारतीय संसद को बनवाया था, लेकिन यह बात ना किसी किताब में लिखी गई है और ना ही संसद की वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी दी गई है। भारतीय संसद न सिर्फ इस मंदिर से मिलती है बल्कि इसके अंदर लगे खंबे भी मंदिर के खंभों की तरह ही दिखते हैं।

 

स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी यह मंदिर भगवान शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका है। इस मंदिर में किसी को भी रात में रुकने की अनुमित नहीं है। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध चौसठ योगिनी मंदिर में भगवान शिव की योगिनियों को जागृति करने का कार्य होता था। मान्याता है कि चौसठ योगिनी मंदिर में मां काली का अवतार हैं। घोर नाम के राक्षस के साथ युद्ध लड़ते हुए माता आदिशक्ति काली ने इस रुप को धारण किया था। यह रहस्यमयी मंदिर इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी मशहूर है।

Mata Mansa Devi Temple | Places of Interest

मनसा देवी मंदिर -

देवी दुर्गा के दर्शन के लिए भक्त कहां कहां नहीं पहुंचते.. नवरात्र के पावन पर्व पर मंदिरों में लाखों की तादाद देखने को मिलती है.. आज हम जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे है वह एक सिद्ध मंदिर है जहां पर भक्त अपनी मुरादे खुद देवी को बताने के लिए दूर-दूर से आते है.. पंचकूला में स्थित सालों पुराना सिद्ध मंदिर, जिसे माता मनसा देवी के नाम से जाना जाता है.. माता मनसा देवी का मंदिर बड़ा ही प्रभावशाली है, क्योंकि यहां भक्त यदि अपने मन की बात ना भी कहे तो भी माता मनसा देवी उसकी मनोकामना पूर्ण कर देती है, क्योंकि माता को केवल भक्त के प्रेम की लालसा होती है.. इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यहां चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में भव्य मेला लगता है, जिसमें लाखों की तादाद में श्रध्दालु माता मनसा देवी के दर्शन के लिए आते हैं.. यहां लोग माता से अपनी मनोकामना को पुरा करने के लिए आशिर्वाद लेते हैं.. माना जाता है कि माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है।

 

माता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्ध शक्तिपीठों का.. माता मनसा देवी के सिद्ध शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ साल पहले बनवाया था, मंदिर के निर्माण में चार साल लगे..

 

मंदिर की नक्काशी सफेद संगमरमर से की गई है.. मंदिर के मुख्य द्वार से ही माता की मूर्ति दिखाई देती है.. मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है, ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी और सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं.. मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित है..

 

मंदिर का रहस्य, 3 किमी लम्बी गुफा

मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था.. कहा जाता है कि जिस जगह पर आज मां मनसा देवी का मंदिर है, यहां पर सती माता के मस्तक के आगे का हिस्सा गिरा था.. मनीमाजरा के राजा गोपालदास ने अपने किले से मंदिर तक एक गुफा बनवाई थी, जो लगभग 3 किलोमीटर लंबी है.. वे रोज इसी गुफा से मां सती के दर्शन के लिए अपनी रानी के साथ जाते थे। जब तक राजा दर्शन नहीं करते थे, तब तक मंदिर के कपाट नहीं खुलते थे।

 

मनसा देवी की कथा और महत्व

मनसा देवी मंदिर के साथ कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। मनसा देवी की कथा की बार करें तो यह हमे उस समय ले जाती है जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह किया था। उनके विवाह के कुछ समय पश्चात दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव जी को अपमानित करने के लिए उन्हें छोड़कर बाकी सभी देवी देवतायों को आमंत्रित किया। लेकिन उसके बाबजूद देवी सती उस यज्ञ में पहुच जाती है जहाँ उनको और शिव जी को आपमान क्या जाता है और अपने पति के खिलाफ अपने पिता के शब्दों को बर्दाश्त करने में सक्षम नहीं होने पर देवी सती उसी अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दे देती है, लेकिन जब इस घटना की सूचना शिव जी को मिलती है तो वह दुखी और क्रोधित हो जाते है और वीरभद्र को पैदा करके संहार करते हुए दक्ष का वध कर देते है। उसके बाद देवी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगते है जिससे ब्रम्हांड पर सर्वनाश का खतरा मडराने लगता है। इसी से चिंतित होकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर के टुकड़े कर देते है जो जाकर धरती के अलग अलग हिस्सों में गिरते है। और बाद में देवी सती के शरीर के गिरे उन्हें टुकडो वाली जगहों पर उनके सम्मान में एक शक्ति पीठ का निर्माण किया जाता है। ठीक उसी प्रकार माना जाता है इस स्थान पर देवी सती का सर गिरा था जिनके सम्मान में यहाँ मनसा देवी मंदिर की स्थापना की गयी थी।

January 2023 Vrat & Tyohar List

जनवरी 2023 व्रत एवं त्यौहार लिस्ट -

साल 2023 जनवरी का महीना पौष माह से शुरू होकर माघ माह में समाप्त हो रहा है. नए साल के सबसे पहले माह यानी जनवरी में मासिक शिवरात्रि, पौष पुत्रदा एकादशी, षटतिला एकादशी, मकर संक्रांति, बसंत पंचमी और पोंगल जैसे कई महत्वपूर्ण दिवस, व्रत और त्योहार पड़ रहे हैं. आईए जानते है इन सभी त्योहारों का महत्व और तिथि के बारें में…

 

2 जनवरी, सोमवार- पौष पुत्रदा एकादशी

पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इस दिन सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. स्त्री वर्ग में इस व्रत का बड़ा प्रचलन और महत्व है. इस व्रत के प्रभाव से संतान की रक्षा भी होती है.

 

4 जनवरी, बुधवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

प्रदोष व्रत को हम त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जानते हैं. यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत एक साल में कई बार आता है.

 

6 जनवरी, शुक्रवार- पौष पूर्णिमा व्रत

सनातन धर्म और भारतीय जनजीवन में पूर्णिमा तिथि का बड़ा महत्व है. पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा को प्रिय होती है और इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है. हिन्दू धर्म ग्रन्थों में पौष पूर्णिमा के दिन दान, स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है.

 

10 जनवरी, मंगलवार- संकट चौथ

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी. संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’. इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है. पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है. इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं. संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है.

 

14 जनवरी, शनिवार- लोहड़ी

सनातन पंचांग के अनुसार पौष माह में यह त्योहार कृत्तिक नक्षत्र में मनाया जा रहा है. लोहड़ी का पर्व मुख्य रूप से दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उत्तर भारत के कई राज्यों में भी लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व मनाया जाने वाला लोहड़ी का त्योहार किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. मान्यता है कि लोहड़ी पर्व नए अन्न के तैयार होने और फसल कटाई की खुशी में मनाया जाता है.

 

15 जनवरी, रविवार- मकर संक्रांति, पोंगल, उत्तरायण

सनातन धर्म में मकर संक्रांति एक प्रमुख पर्व है. भारत के विभिन्न इलाकों में इस त्यौहार को स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है. हर वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है. इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है. ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है.

 

18 जनवरी, बुधवार- षटतिला एकादशी

षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. कुछ लोग बैकुण्ठ रूप में भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन 6 प्रकार से तिलों का उपोयग किया जाता है. इनमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.

 

19 जनवरी, गुरुवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)

प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. इस व्रत में भगवान शिव कि पूजा की जाती है. हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दी गयी है. ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है. वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है.

 

20 जनवरी, शुक्रवार- मासिक शिवरात्रि

शिवरात्रि शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है. सनातन पंचाग के अनुसार हर महीने कृष्ण पक्ष के 14वें दिन को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. यह पर्व न केवल उपासक को अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है, बल्कि उसे क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान और लालच जैसी भावनाओं को रोकने में भी मदद करता है.

 

21 जनवरी, शनिवार- मौनी अमावस्या/माघ अमावस्या

सनातन पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या कहते हैं. इस दिन मनुष्य को मौन रहना चाहिए और गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों, जलाशय अथवा कुंड में स्नान करना चाहिए. धार्मिक मान्यता के अनुसार मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है. इसलिए इस दिन मौन रहकर व्रत करने वाले व्यक्ति को मुनि पद की प्राप्ति होती है.

 

26 जनवरी, गुरुवार- बसंत पंचमी

बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है. आज ही के दिन से भारत में वसंत ऋतु का आरम्भ होता है. इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है. बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है. इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है.

Vastu Tips for Bad Habit

ये आदतें लाती है बदनसीबी -

हर व्यक्ति की अपनी अलग-अलग आदतें होती है. अच्छी आदतों से सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. वहीं बुरी आदतों के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

 

ज्योतिषियों के मुताबिक व्यक्ति की कुंडली में जिन ग्रहों का ज्यादा या कम प्रभाव होता है उसी के कारण व्यक्ति के आदतें अच्छी और बुरी हो जाती है. जिस ग्रह का प्रभाव अच्छा होता है उसी हिसाब से आदतें भी अच्छी हो जाती हैं और जिन ग्रहों का प्रभाव बुरा होता है उसी हिसाब से आदतें भी बुरी हो जाती हैं. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति की आदतों के हिसाब से ही ग्रह कमजोर या मजबूत हो जाते हैं. बुरी आदतों के कारण कई बार हमारे मजबूत ग्रह भी खराब हो जाते हैं. 

 

ऐसे में जरूरी है कि आप ऐसी आदतें अपनाएं जिससे आपके ग्रह कमजोर होने के बजाय मजबूत बनें. इसके लिए जरूरी है कि जो ग्रह आपकी कुंडली में कमजोर हैं उसकी आदतें ना अपनाएं बल्कि ऐसी आदतें अपनाएं जिससे वो ग्रह मजबूत हो सके और उनका फायदा आपको अपने जीवन में मिल सके. आइए जानते हैं किन आदतों की वजह से बिगड़ सकता है आपका भाग्य, आईए जानते है.

 

पैर हिलाना- अगर आप बैठे-बैठे पैर हिलाते हैं तो इसका मतलब ये है कि आपके मन में कोई बात लगातार चल रही है यानी आप किसी चीज के बारे में लगातार सोच रहे हैं. इसका मलतब होता है कि आपका चंद्रमा कमजोर है. ऐसे में जो लोग खाली बैठे हुए पैर हिलाते हैं वह मानसिक रूप से कमजोर होते हैं और इन्हें तनाव लेने की आदत होती है. अगर आप पैर हिलाने की आदत को ठीक कर लेते हैं तो इससे आपकी मानसिक स्थिति ठीक होती है.

 

नाखून चबाना- बहुत सारे लोगों में आपने नाखून चबाने की आदत देखी होगी. जो लोग नाखून चबाते हैं उनका सूर्य कमजोर होने लगता है और इन लोगों को आंखों की समस्या का सामना करना पड़ता है. अगर आप इस आदत को ठीक कर लेते हैं तो आपका मान-सम्मान बढ़ेगा और आपकी सेहत में भी सुधार होगा.

 

सिस्टम फॉलो ना करना- जो लोग जूते चप्पल, कपड़े, घर और किताबों को सिस्टम से नहीं रखते, उनका शनि काफी कमजोर होता है. ऐसे लोगों को रोजगार में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है. साथ ही ऐसे लोगों के घर में चोरी जैसी घटनाएं भी घटित होती है. इस आदत को छोड़ने से रोजगार में स्थिरता आती है. ऐसे में अगर आप अपनी चीजों को अच्छे से रखेंगे तो इससे आपका करियर बेहतर होता है और घर के बच्चों की शरारतें काफी कम हो जाएंगी.

 

बेडरूम और बाथरूम की सफाई ना करना- जो लोग अपने बेडरूम और बाथरूम में साफ सफाई नहीं रखते, ऐसे लोगों का शुक्र काफी कमजोर होता है. ऐसे में जरूरी है कि आप इन जगहों की सफाई का खास ख्याल रखें. इससे आपको काम में सफलता नहीं मिलती है.ऐसा करने वाले घर में रहने वाले सदस्‍य मानसिक तनाव का शिकार होते हैं.

 

पशु-पक्षियों को दाना ना डालना- पेड़-पौधों को अगर आप जल नहीं देते या पशु-पक्षियों को दाना या चारा नहीं खिलाते तो इससे आपका बुध कमजोर होता है और जिससे आपको कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं.

 

जूठे बर्तन- खाना खाने के बाद बहुत से लोग बर्तनों को रख देते हैं और अगले दिन या सुबह के समय में साफ करते हैं. कहा जाता है कि इससे चंद्रमा और शनि रुष्ट हो जाते है. जिसके कारण आपकी सफलता रुक जाती है.

Manikarnika Ghat Varanasi | History & Interesting Facts

Manikarnika Ghat Varanasi -

भारत देश में धार्मिक स्थलों में कुछ स्थल ऐसे भी मौजूद ही जो रहस्यमयी है, जिनका वर्णन कर पाना मुश्किल होता है। इन सभी स्थलों के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा अवश्य सुनने को मिलती है। इन्हीं में से एक है काशी के 84 घाटों में विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट, जहां साल भर चिताओं की अग्नि से घाट रोशन रहता है। मणिकर्णिका घाट को मोक्ष स्थली या शिव स्थली के नाम से भी जाना जाता है।

 

भगवान शिव का प्रिय स्थान काशी अपने आप में एक दिव्य है। कहते है मणिकर्णिका घाट में यदि किसी मनुष्य की चिता जलाई जाती है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है। मणिकर्णिका घाट में भगवान शिव मरने वालों के कान में तारक मंत्र बोलते है जिसके बाद वे सीधा स्वर्ग के द्वार पर पहुंचते है।

मणिकर्णिका घाट का दृश्य अग्नि का रूप लिए नजर आता है, क्योंकि यहां 365 दिन और 24 घंटे चिताएं जलती रहती है। प्रतिदिन इस घाट पर 200 से 300 शव जलाए जाते है, घाट के पास ही भगवान शिव और माता पार्वती का मंदिर है, जहां शव के साथ आने वाले लोग पहले भगवान शिव के दर्शन कर फिर अंतिम क्रिया के लिए शव को लेकर जाते है। कहते है कि इस घाट की अग्नि कभी शांत नहीं होती। सनातन धर्म में पवित्र स्थलों के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। तो चलिए जानते है मणिकर्णिका घाट की पौराणिक कथा।

 

पहली कथा –  कथा के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु ने हजारों वर्ष तक इसी घाट पर भगवान शिव की आराधना की थी। विष्णु जी ने शिवजी से वरदान मांगा कि सृष्टि के विनाश के समय में भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान शिव और माता पार्वती विष्णु जी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर यहां आए थे। तभी से मान्यता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

दूसरी कथा – यदि बात करें दूसरी कथा की तो, भगवान विष्णु ने भगवान शिव-पार्वती के लिए यहां स्नान कुंड का निर्माण भी किया था, जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है। माता पार्वती जब कुंड में स्नान के लिए गई तो उनका कर्ण फूल कुंड में गिर गया, जिसे महादेव ने ढूंढ कर निकाला। देवी पार्वती के कर्णफूल के नाम पर इस घाट का नाम मणिकर्णिका कुंड रखा।

 

तीसरी कथा – तीसरी प्रचलित कथा के अनुसार जब देवी सती ने अग्नि स्नान कर लिया था, तब भगवान शिव ने देवी सती के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार इसी कुंड पर आकर किया था, जिसे महाश्मशान के नाम से जाना जाता है।

 

मोक्ष की चाह रखने वाला इंसान जीवन के अंतिम पड़ाव में यहां आने की कामना करता है। तो वहीं इससे जुड़ी एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं। मौत के मातम के बीच वे नाचती-गाती हैं और नाचते हुए वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनको अगले जन्म में ऐसा जीवन ना मिले।

 

मणिकर्णिका घाट पर शवों के मोक्ष की अंतिम क्रिया, श्राद्ध आदि भी किया जाता है।