Mata Mansa Devi Temple | Places of Interest

मनसा देवी मंदिर -

देवी दुर्गा के दर्शन के लिए भक्त कहां कहां नहीं पहुंचते.. नवरात्र के पावन पर्व पर मंदिरों में लाखों की तादाद देखने को मिलती है.. आज हम जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे है वह एक सिद्ध मंदिर है जहां पर भक्त अपनी मुरादे खुद देवी को बताने के लिए दूर-दूर से आते है.. पंचकूला में स्थित सालों पुराना सिद्ध मंदिर, जिसे माता मनसा देवी के नाम से जाना जाता है.. माता मनसा देवी का मंदिर बड़ा ही प्रभावशाली है, क्योंकि यहां भक्त यदि अपने मन की बात ना भी कहे तो भी माता मनसा देवी उसकी मनोकामना पूर्ण कर देती है, क्योंकि माता को केवल भक्त के प्रेम की लालसा होती है.. इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि यहां चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रों में भव्य मेला लगता है, जिसमें लाखों की तादाद में श्रध्दालु माता मनसा देवी के दर्शन के लिए आते हैं.. यहां लोग माता से अपनी मनोकामना को पुरा करने के लिए आशिर्वाद लेते हैं.. माना जाता है कि माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है।

 

माता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्ध शक्तिपीठों का.. माता मनसा देवी के सिद्ध शक्तिपीठ पर बने मदिंर का निर्माण मनीमाजरा के राजा गोपाल सिंह ने अपनी मनोकामना पूरी होने पर लगभग पौने दो सौ साल पहले बनवाया था, मंदिर के निर्माण में चार साल लगे..

 

मंदिर की नक्काशी सफेद संगमरमर से की गई है.. मंदिर के मुख्य द्वार से ही माता की मूर्ति दिखाई देती है.. मूर्ति के आगे तीन पिंडियां हैं, जिन्हें मां का रूप ही माना जाता है, ये तीनों पिंडियां महालक्ष्मी, मनसा देवी और सरस्वती देवी के नाम से जानी जाती हैं.. मंदिर की परिक्रमा पर गणेश, हनुमान, द्वारपाल, वैष्णवी देवी, भैरव की मूर्तियां एवं शिवलिंग स्थापित है..

 

मंदिर का रहस्य, 3 किमी लम्बी गुफा

मनसा देवी का मंदिर पहले मां सती के मंदिर के नाम से जाना जाता था.. कहा जाता है कि जिस जगह पर आज मां मनसा देवी का मंदिर है, यहां पर सती माता के मस्तक के आगे का हिस्सा गिरा था.. मनीमाजरा के राजा गोपालदास ने अपने किले से मंदिर तक एक गुफा बनवाई थी, जो लगभग 3 किलोमीटर लंबी है.. वे रोज इसी गुफा से मां सती के दर्शन के लिए अपनी रानी के साथ जाते थे। जब तक राजा दर्शन नहीं करते थे, तब तक मंदिर के कपाट नहीं खुलते थे।

 

मनसा देवी की कथा और महत्व

मनसा देवी मंदिर के साथ कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। मनसा देवी की कथा की बार करें तो यह हमे उस समय ले जाती है जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह किया था। उनके विवाह के कुछ समय पश्चात दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव जी को अपमानित करने के लिए उन्हें छोड़कर बाकी सभी देवी देवतायों को आमंत्रित किया। लेकिन उसके बाबजूद देवी सती उस यज्ञ में पहुच जाती है जहाँ उनको और शिव जी को आपमान क्या जाता है और अपने पति के खिलाफ अपने पिता के शब्दों को बर्दाश्त करने में सक्षम नहीं होने पर देवी सती उसी अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दे देती है, लेकिन जब इस घटना की सूचना शिव जी को मिलती है तो वह दुखी और क्रोधित हो जाते है और वीरभद्र को पैदा करके संहार करते हुए दक्ष का वध कर देते है। उसके बाद देवी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगते है जिससे ब्रम्हांड पर सर्वनाश का खतरा मडराने लगता है। इसी से चिंतित होकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर के टुकड़े कर देते है जो जाकर धरती के अलग अलग हिस्सों में गिरते है। और बाद में देवी सती के शरीर के गिरे उन्हें टुकडो वाली जगहों पर उनके सम्मान में एक शक्ति पीठ का निर्माण किया जाता है। ठीक उसी प्रकार माना जाता है इस स्थान पर देवी सती का सर गिरा था जिनके सम्मान में यहाँ मनसा देवी मंदिर की स्थापना की गयी थी।