Five mysterious temples of Lord Shiva –

Five mysterious temples of Lord Shiva -

भोलेशंकर की महिमा को समझ पाना किसी के वश की बात नहीं, क्योंकि धर्मशास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है. बात करें वर्तमान समय की तो शिव भक्त शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते है। शिव मंदिर में जा कर जलाभिषेक करना हो या फिर कावंड़ यात्रा से शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करना हो। हम इस लेख के जरिए बात करेंगे शिव के उन मंदिरों के बारें में जो रहस्यमई भी है और उनमें मिलने वाली विचित्र चीजें आपको शिव के वास्तविकता के बारे में सोचने पर मजबूर कर देंगी।

 

इस मंदिर का रहस्य समझ से परे

 

गढ़मुक्तेश्वर स्थित प्राचीन गंगा मंदिर का भी रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया हैं. मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर प्रत्येक वर्ष एक अंकुर उभरता है. जिसके फूटने पर भगवान शिव और अन्य देवी-देवताओं की आकृतियां निकलती हैं. इस विषय पर काफी रिसर्च वर्क भी हुआ लेकिन शिवलिंग पर अंकुर का रहस्य आज तक कोई समझ नहीं पाया है. यही नहीं मंदिर की सीढ़ियों पर अगर कोई पत्थर फेंका जाए तो जल के अंदर पत्थर मारने जैसी आवाज सुनाई पड़ती है. ऐसा महसूस होता है कि जैसे गंगा मंदिर की सीढ़ियों को छूकर गुजरी हों. यह किस वजह से होता है यह भी आज तक कोई नहीं जान पाया हैं.

 

तपते पहाड़ पर AC जैसी ठंडक वाला शिव मंदिर

 

टिटलागढ़ उड़ीसा का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता है. इसी जगह पर एक कुम्हड़ा पहाड़ है, जिसपर स्थापित है यह अनोखा शिव मंदिर. पथरीली चट्टानों के चलते यहां पर प्रचंड गर्मी होती है, लेकिन मंदिर में गर्मी के मौसम का कोई असर नहीं होता है. यहां AC से भी ज्यादा ठंड होती है. हैरानी का विषय यह है कि यहां प्रचंड गर्मी के चलते मंदिर परिसर के बाहर भक्तों के लिए 5 मिनट खड़ा होना भी दुश्वार होता है, लेकिन मंदिर के अंदर कदम रखते हैं. AC से भी ज्यादा ठंडी हवाओं का अहसास होने लगता है. हालांकि यह वातावरण केवल मंदिर परिसर तक ही रहता है. बाहर आते ही प्रचंड गर्मी परेशान करने लगती है. इसके पीछे क्या रहस्य है आज कर कोई नहीं जान पाया है.

 

शिव के इस मंदिर में गूंजती है सरगम

 

तमिलनाडु में 12वीं सदी में चोल राजाओं ने ‘ ऐरावतेश्वर मंदिर’ का निर्माण करवाया था. बता दें कि यह बेहद ही अद्भुत मंदिर है. यहां की सीढ़ियों पर संगीत गूंजता है. बता दें कि इस मंदिर को बेहद खास वास्तुशैली में बनाया गया है. मंदिर की खास बात है तीन सीढ़ियां. जिनपर जरा सा भी तेज पैर रखने पर संगीत की अलग-अलग ध्वनि सुनाई देने लगती है, लेकिन इस संगीत के पीछे क्या रहस्य है, इसको कोई नहीं जान पाया. ये मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है. मंदिर की स्थापना को लेकर स्थानीय किवंदतियों के अनुसार यहां देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी ऐरावत ने शिव जी की पूजा की थी. इस वजह से इस मंदिर का नाम ऐरावतेश्वर मंदिर हो गया. यह भी उल्लेख मिलता है कि मृत्यु के राजा यम जो कि एक ऋषि द्वारा शापित थे और शरीर जलन से पीड़ित थे. इसके बाद वह इसी मंदिर में आए परिसर में बने पवित्र जल से स्नान कर भोलेनाथ की पूजा की. इसके बाद वह पूर्ण रुप से स्वस्थ हो गए. यही वजह है कि मंदिर में यम की भी छवि अंकित है. यह मंदिर महान जीवंत चोल मंदिरों के रुप में जाना जाता है, साथ ही इसे यूनेस्को की ओर से वैश्विक धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है.

 

यहां भोलेनाथ ने कराया था राजा को बोध

 

बोधेश्वर महादेव मंदिर की अद्भुत कथा है, कथा मिलती है कि नेवल के राजा को पंचमुखी शिवलिंग, नंदी और नवग्रह स्थापित करने का बोध स्वयं भोलेनाथ ने कराया था. इसी के चलते मंदिर का नाम भी बोधेश्वर महादेव मंदिर पड़ा. कहा जाता है कि जब राज्यकर्मी रथ पर शिव, नंदी और नवग्रह को लेकर जा रहे थे तभी वह रथ राजधानी में प्रवेश करते ही भूमि में धसने लगा. इसके बाद तमाम प्रयास किए गये लेकिन रथ नहीं निकल सका. फिर राजा ने उसी स्थान पर सभी प्रतिमाओं की स्थापना करवा दी. तभी से ही भक्त बोधेश्वर मंदिर में असाध्य बीमारियों की अर्जियां लगाने पहुंचने लगे. कहा जाता है कि इस शिवलिंग के सच्चे मन से स्पर्श मात्र से ही भक्तों की बीमारियां दूर हो जाती हैं. यही नहीं भोले के पंचमुखी शिवलिंग मंदिर में अर्धरात्रि में दर्जनों सांप पंचमुखी शिवलिंग को स्पर्श करने आते हैं. फिर वापस जंगल में ही लौट जाते हैं. कहा जाता है कि आज तक इन सापों ने किसी भी स्थानीय नागरिक को कोई क्षति नहीं पहुंचाई है. वह केवल शिवलिंग को स्पर्श करके वापस लौट जाते हैं.

 

अद्भुत है तमिलनाडु का यह मंदिर

 

तमिलनाडु में बसा बृहदीश्वर मंदिर भी अद्भुत है. यहां स्थापित शिवलिंग का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है. बता दें कि इस मंदिर में प्रवेश द्वार पर ही बाबा नंदी स्थापित हैं. उनकी मूर्ति भी एक ही पत्थर से निर्मित है. इस मंदिर का आर्किटेक्ट बेहद शानदार है. यहां लाइट बंद होने के बाद भी भक्त शिवलिंग के दर्शन कर सकते हैं. इसके पीछे का कारण यह है कि यहां पर सूर्य की रोशनी सीधे नंदी बाबा पर पड़ती है. उसका रिफ्लेक्शन सीधे शिवलिंग पर पड़ता है और इस तरह से शिवलिंग साफ-साफ नजर आता है.

 

शिवजी का यह मंदिर भी है रहस्यमई

 

छत्तीसगढ़ के मरोदा गांव में भोलेनाथ का एक अनोखा मंदिर स्थित है. इस मंदिर का नाम भूतेश्वर मंदिर है. मंदिर में स्थापित शिवलिंग का आकार हर दिन 6 इंच से 8 इंच बढ़ता है. बता दें कि इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जल लहरी भी दिखाई देती है. जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है. यहीं स्थान भूतेश्वरनाथ भकुरा महादे के नाम से जाना जाता है. ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. पुराणों में भी इस भूतेश्वर नाथ शिवलिंग को देखने के लिए यूं तो यहां हर समय ही मेला लगा रहता है लेकिन सावन में यहां लंबी कतारें लगती हैं.

19 Avatars of Lord Shiva

All 19 Avatars of Lord Shiva -

सतयुग से कलयुग तक भगवान विष्णु ने पाप को नष्ट करने के लिए और धर्म स्थापित करने के लिए अनेकों अवतार लिए, उन्हीं के साथ शेष नाग ने भी अपने समय में अलग-अलग अवतार से भगवान विष्णु की सहायता की.. इन सभी के बीच क्या आप ये जानते है कि भोलेनाथ जो भगवान विष्णु को अपना अराध्य मानते है उन्होनें कितने अवतार लिए? शिव ने अपने ही जीवन चक्र को चलाने के लिए भी अनेकों अवतार लिए जो इस कहानी में वर्णित है.

 

  1. वीरभद्र अवतार भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था… जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया… उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रकट हुए… शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया…
  1. पिप्पलाद अवतार मानव जीवन में भगवान शिव के इस अवतार का बड़ा महत्व है… शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका… ये अवतार शिव का दूसरा अवतार था…
  1. नंदी अवतार भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं… भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है… नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है।
  1. भैरव अवतार शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है।
  1. अश्वत्थामा महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे… ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं… शिवमहापुराण के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है…
  1. शरभावतार शरभावतार भगवान शंकर का छटा अवतार है… शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी का है.. पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था… इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था।
  1. गृहपति अवतार भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति अवतार… विश्वानर नाम के मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती की इच्छा थी कि उन्हें शिव के समान पुत्र प्राप्ति हो… मुनि विश्वनार ने काशी में भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की और घोर तप किया… उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए… कहते हैं, पितामह ब्रह्म! ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।
  1. ऋषि दुर्वासा भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया… उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया…
  1. हनुमान जी भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है… इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धारण किया था…
  1. वृषभ अवतार भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था… इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था…
  1. यतिनाथ अवतार भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था… उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े…
  1. कृष्णदर्शन अवतार भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है… इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है।
  1. अवधूत अवतार भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था।
  1. भिक्षुवर्य अवतार भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर का काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।
  1. सुरेश्वर अवतार भगवान शंकर का सुरेश्वर यानि इंद्र अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है… इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया…
  1. किरात अवतार इस अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी…
  1. सुनटनर्तक अवतार पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।
  1. ब्रह्मचारी अवतार दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी  को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया।
  2. यक्ष अवतार – यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था।

Jivitputrika Vrat : Do You Know The Story Behind This Fast

जितिया व्रत कथा -

नर्मदा नदी के पास “कंचनबटी” नाम का एक नगर हुआ करता था, वहां राजा मलयकेतु का शासन था। कंचनबटी नगर के पास बालुहटा नामक जगह थी, जिसके पास में एक बड़ा-सा पेड़ था। उस पेड़ के नीचे एक चील और एक गीदड़ रहता था। दोनों में गहरी दोस्ती थी। महिलाओं को जितिया व्रत रखता देख उन दोनों ने भी प्रण लिया कि वो भी इस व्रत को रखेंगे। चील और गीदड़ ने श्री जीऊतवाहन भगवान को मन में याद कर कहा कि “हम आपकी पूजा और व्रत पूरी विधि के साथ करेंगे”… व्रत का दिन आते ही चील औऱ गीदड़ दोनों ने व्रत आऱंभ किया, लेकिन पास में ही किसी धनवान व्यापारी की मौत हो गई थी और उसका अंतिम संस्कार करने लिए उसे बालुहटा लाया गया।

 

व्रत के दिन गीदड़ ने मरे हुए व्यक्ति को देखा, तो उसके मन में उस मांस को खाने की अभिलाशा जगी। वो खुद को रोक नहीं पाया और मांस खाकर व्रत खंडित कर दिया। उस व्यापारी के शव को चील ने भी देखा था, लेकिन उसने व्रत के कारण उसे नहीं खाया। इसके कुछ समय पश्चात चील और गीदड़ दोनों का अगला जन्म हुआ जिसमें वो दोनों कंचनवटी के भास्कर नामक ब्राह्मण के घर में बेटी के रूप में पैदा हुई। चील का जन्म बड़ी बहन नाम शीलवती और गीदड़ का जन्म उसकी छोटी बहन नाम कपुरावती के रूप में हुआ। शीलवती (बड़ी बहन) की शादी बुद्धिसेन नामक लड़के से हुई और कपुरावती (छोटी बहन) की शादी कंचनवटी के राजा मलयकेतु से हुई।

 

बड़ी बहन शीलवती को 7 पुत्र हुए, तो वहीं छोटी बहन कपुरावती को संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाया। कपुरावती के घर जितने भी संतान हुए वे उसी दिन मर जाते। ऐसा होते-होते कपुरावती काफी परेशान हो गई। शीलवती के सातों पुत्र कपुरावती के महल में कार्य करते थे, लेकिन कपुरावती ने जलन के कारण अपने पति को कह कर बड़ी बहन के सातों पुत्रों के सर कटवाकर उन्हें लाल रंग के कपड़े से ढक कर एक बर्तन में अपनी बड़ी बहन के घर भिजवा दिए।

 

भगवान जीऊतवाहन ये सारी प्रक्रिया देख रहे थे। उन्होंने रास्ते में ही सातों भाइयों के सिर को धड़ से जोड़ा और अमृत पिलाकर जिंदा कर दिया और बर्तन में भगवान जीऊतवाहन ने फल भर दिए। उधर, कुपरावती अपनी दीदी के घर से शोक समाचार मिलने का इंतजार कर रही थी, जब संदेश नहीं आया, तो वो खुद ही शीलवती के घर चली गई, वहां अपनी दीदी के सारे बेटों को जिंदा देख हैरान रह गई। कुपरावती ने अपनी बड़ी बहन वो सारी बात बताई जो उसने उनके बेटों के साथ की थी। बड़ी बहन शीलवती ने अपनी छोटी बहन कुपरावती को उसके पिछले जन्म के बारे सारी बात बताई और उसी पेड़ को पास ले गई, जहां वो दोनों पहले रहा करते थे। कुपरावती का व्रत खंडित होने के कारण ये सारी दिक्कते उसके जीवन में आई। इस बात का कुपरावती को बड़ा पछतावा हुआ और उसने उसी समय अपना दम तोड़ दिया। कुपरावती के पति को जब जानकारी मिली तो उसने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार उसी पेड़ के नीचे किया। जितिया व्रत कथा से हमें यहीं सीख मिलती है कि बुरे कर्म कभी पिछा नहीं छोड़ते, उसका फल भोगना ही पड़ता है।

Who is Dhumavati Devi and how popular is her worship?

Dhumavati Devi Story -

देवी पार्वती की पूजा हर सुहागन स्त्री अपने सुहाग की रक्षा और सौभाग्य वृद्धि के लिए करती हैं। लेकिन देवी पार्वती का ही एक ऐसा रूप है जिनकी पूजा करने से सुहागन स्त्रियां डरती हैं। इसकी एक बड़ी वजह है। दरअसल देवी पार्वती अपने इस रूप में एक विधवा स्त्री की तरह दिखती हैं और वैधव्य का प्रतीक मानी जाती हैं। सुहाग पर वैधव्य का प्रभाव ना हो इसलिए ही सुहागन स्त्रियां इनकी पूजा नहीं करती हैं। हलांकि दूर से इनके दर्शन करती हैं। देवी पार्वती के इस स्वरूप को धूमावती के नाम से जाना जाता है।

 

देवी पार्वती सुहागन से विधवा कैसे बनीं और क्यों धूमावती कहलाईं इसकी अजब-गजब कथा है। एक बार देवी पार्वती को बहुत तेज भूख लगती है और वह भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं। महादेव देवी पार्वती से कुछ समय प्रतीक्षा करने को कहते हैं। भगवान शिव भोजन की तलाश में निकलते हैं। धीरे-धीरे समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती है। देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं। भूख से व्याकुल पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं।

 

शिव को निगलते ही देवी पार्वती का स्वरूप विधवा जैसा हो जाता है। दूसरी ओर शिव के गले में मौजूद भयंकर विष के कारण देवी पार्वती का शरीर धुंआ जैसा हो जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत विकृत और श्रृंगार विहीन दिखने लगता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी, धुएं से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। शंकर भगवान कहते हैं कि मुझे निगलने के कारण अब आप विधवा हो गई हैं इसलिए देवी अब आप इसी स्वरूप में पूजी जाएंगी। इस वजह से माता को धूमावती के नाम से जाना जाता है।

 

देवी धूमावती के साथ भगवान शिव की लीला

 

देवी पार्वती के इस स्वरूप के पीछे एक कथा यह भी है कि देवी पार्वती के मन में एक बार विधवा कैसी होती है यह जानने का विचार जगा और भगवान शिव से कहने लगीं कि वह वैधव्य को महसूस करना चाहती हैं। देवी पार्वती की इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए ही भगवान शिव ने यह लीला रची थी जिसमें उलझकर देवी पार्वती ने स्वयं ही महादेव को निगल लिया।

 

भयंकर स्वरूप देख डर जाते है लोग

 

माता धूमावती का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है। धार्मिक मान्यता है कि शंकर भगवान को खाने के कारण माता पार्वती विधवा हो गई थीं, इसलिए माता धूमावती का यह स्वरूप विधवा का है। केश बिखरे हुए हैं। माता धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश खुले रहते हैं। इनके रथ के ध्वज पर कौए का चिह्न है। इन्होंने हाथ में सूप धारण किया हुआ है। कौआ माता धूमावती का वाहन माना जाता है।

How Lord Krishna Crush the Pride of Satyabhama?

Shri Krishna And Satyabhama Story -

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे, तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थी। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थी?

 

द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरूड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया औऱ वे भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?

 

भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है, ऐसा सोचकर उन्होनें गरूड़ से कहा कि हे गरूड़। तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे है। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।

 

इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं औऱ स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।

मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।

 

भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ। भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे है। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।

 

हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा?  फिर गरूड़ अकेले ही महल पहुंच गए. महल पहुंचकर गरूड़ देखते है कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे है। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया।

 

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र, तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?  क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु, आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। ये सुनकर भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे।

 

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया- हे प्रभु। आज आपने माता-सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है? अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ जी तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। इस प्रकार श्री कृष्ण ने एक ही बार में तीनों का अंहकार खत्म किया.

श्री कृष्ण को क्यों लगा गौ हत्या का पाप?

Shri Krishna Story -

यह बात उस समय की है जब कृष्ण नन्हे से बालक थे. वह अपने नन्द बाबा की गाय-भैंसों को चराया करते थे. उस समय मामा कंस बाल कृष्ण को मारने का प्रयास करते रहते थे. एक बार कंस ने बाल कृष्ण को मारने के लिए अरिष्टासुर नाम के एक राक्षस को भेजा. अरिष्टासुर, श्री कृष्ण की ताकत को जानता था, इसलिए उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए अलग तरीका अपनाया।

 

अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप बनाया और गाय के झुंड में शामिल हो गया। झुंड में शामिल होकर वह कृष्ण को मारने का मौका देखने लगा। जब उसे श्री कृष्ण पर वार करने का कोई मौका नहीं मिला, तो उसने कृष्ण के दोस्तों को मारना शुरू कर दिया। जब श्री कृष्ण ने अपने बाल सखाओं की यह हालत देखी, तो उन्हें पता चल गया कि यह किसी राक्षस का काम है। फिर क्या था, भगवान कृष्ण ने गाय रूपी अरिष्टासुर की टांग पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया, जिससे उसकी मौत हो गई.

 

जब राधा रानी को इस घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने कहा, “कान्हा तुमने गोहत्या की है, जो घोर पाप है. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए तुम्हें सारे तीर्थों की यात्रा करनी होगी.  “श्री कृष्ण को राधा की बात सही लगी, लेकिन सभी तीर्थों की यात्रा करना लगभग नामुमकिन था. इस समस्या का समाधान पाने के लिए श्री कृष्ण नारद मुनि के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का समाधान पूछा, नारद मुनि ने कहा,  प्रभु आप सब तीर्थों को यह आदेश दो कि वे पानी के रूप में आपके पास आ जाएं. फिर आप उस पानी में स्नान कर लेना, इससे आपके ऊपर से गोहत्या का पाप उतर जायेगा”. श्री कृष्ण ने ऐसा ही किया, उन्होंने सारे तीर्थों को बृजधाम बुलाया और पानी के रूप में एक कुंड में भर लिया. इस कुंड को श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से खोद कर बनाया था. सभी तीर्थों का पानी, बनाए गए कुंड में रख दिया और स्नान करने के बाद श्री कृष्ण के ऊपर से गोहत्या का पाप उतर गया.

 

ऐसा कहा जाता है कि मथुरा से कुछ दूरी पर एक गांव है, जिसका नाम अरिता है. इस गांव में आज भी श्री कृष्ण के द्वारा बनाया गया कुंड मौजूद है।

Why should we read the Shiv Puran?

शिव पुराण की महिमा -

भगवान शिव को भोले के रूप में भी जाना जाता है। शिव भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए तमाम तरह के उपाय करते है, किंतु क्या आप जानते है? शिव को प्रसन्न करने के लिए केवल उनके नाम का स्मरण ही पर्याप्त है। भगवान शिव अपने प्रिय भक्तों पर कृपा करने के लिए उनके द्वारा प्रकट प्रेम और दया ही देखते है। शिव पुराण में भी लिखित है, कि यदि शिव को प्रसन्न करना है तो केवल उनके नाम का जाप या शिव पुराण का पाठ ही काफी है। सोमवार का दिन भगवान शिव और देव चंद्रमा के रुप में पूजा जाता है, कहते है भगवान शिव ने चंद्रमा पर विशेष कृपा की, और उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया। चंद्रमा को श्राप से मुक्त कर उन्हें निरोगी और सुंदर काया का वरदान दिया, इसलिए भगवान शिव और चंद्रमा का पूजन काफी लाभकारी सिद्ध होता है। आईए अब आपको बताते है शिव पुराण पढ़ने के क्या-क्या फायदे होते है।

 

शैव मत संप्रदाय के लिए यह पवित्र ग्रंथ है। इस धार्मिक ग्रंथ में शिव महिमा का वर्णन है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिव पुराण का पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। शिव पुराण को करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है, यदि कोई दुश्मन आपको नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहा है तो वह अपने आप ही शांत हो जाता है। यदि दांपत्य जीवन में संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा है तो शिव पुराण का पाठ करने से जल्द ही संतान सुख प्राप्त होता है, क्योंकि एक प्रचलित कथा के अनुसार जब जामवंती ने श्रीकृष्ण से संतान की इच्छा प्रकट की, तब श्रीकृष्ण ने शिव की तपस्या कर सांब को प्राप्त किया, इसलिए निसंतान भी शिव पुराण का पाठ कर महादेव से आशीर्वाद ले सकते है। यदि किसी के कार्यों में बाधा आती है तो शिव पुराण का पाठ करें।

 

सोमवार के दिन शिव पूजा में शिव पुराण का पाठ किया जाए तो भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं, लेकिन कई बार हम अज्ञानतावश शिव पुराण को पढ़ते समय सावधानी नहीं बरतते हैं, जिसका वास्तविक फल हमें प्राप्त नहीं हो पाता है। इसलिए शिव पुराण को पढ़ते समय हमें कुछ जरूरी सावधानियां अवश्य ही बरतनी चाहिए। 

 

शिव पुराण को पढ़ने के नियम

  1. शिव पुराण को पढ़ने से पहले मन और तन दोनों ही शुद्ध होने चाहिए।
  2. स्नान के बाद नए एवं साफ वस्त्र धारण करें
  3. किसी के प्रति कोई द्वेश ना रखें
  4. किसी भी व्यक्ति का अनादर ना करें
  5. सात्विक आहार ग्रहण करें, तामसिक आहार और पदार्थ का त्याग करें
  6. किसी की निंदा, चुगली या किसी भी तरह का पाप ना करें
  7. शिव पुराण का पाठ करने से पहले या बाद में किसी का दिल ना दुखाएं।

क्या वाकई अक्रूर जी ने देखा श्रीकृष्ण का दिव्य रूप?

अक्रूर जी और श्री कृष्ण की कहानी -

बात उस समय की है जब श्री कृष्ण का जन्म नहीं हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु की आकाशवाणी को सुनकर अपने पिता राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया और खुद राजा बन बैठा… अक्रूर जी उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे। रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे और इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका… इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण अपना गुरु भी मानते थे।

 

जब कंस ने नारद मुनी के मुंह से सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर को अपने पास बुलाया, उसने अक्रूर के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया… अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को अपना परिचय दिया और कंस के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में उन्हें बताया… साथ ही आकाशवाणी के बारे में भी श्रीकृष्ण को बताया कि उन्हीं के हाथों कंस का वध होगा।

 

अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पड़े. रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में काफी जानकारियां दी. इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था. मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण और कंस का मलयुद्ध हुआ जिसमें श्रीकृष्ण के द्वारा कंस का वध हुआ और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बैठा दिया और अक्रूर को हस्तिनापुर भेज दिया.

 

कुछ समय के बाद कृष्ण ने अपनी द्वारका नगरी का निर्माण किया. द्वारका में अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए, जिसमें लिखा था कि पांडवों का कौरवों के साथ युद्ध होने वाला है जिसमें उन्हें श्रीकृष्ण की सहायता चाहिए. इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सके।

 

कहा जाता है कि अक्रूर जी के पास एक स्यमंतक नामक मणि थी. वह मणि सूर्य देव के द्वारा प्रकट की गई थी, स्यमंतक मणि जिस भी जगह रहती थी, वहां पर कभी भी अकाल नहीं पड़ता था। महाभारत के युद्ध के बाद अक्रूर जी श्री कृष्ण के साथ द्वारका आ गए थे. जब तक अक्रूर जी द्वारका में रहे, तब तक वहां खेतों में अच्छी फसल होती रही, लेकिन उनके जाते ही वहां अकाल पड़ गया। द्वारिकावासियों को लगा कि श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि चुराई है जिससे उन्होनें कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा दिया. मणि को वापस लाने के लिए श्री कृष्ण ने अक्रूर जी से वापस द्वारका आने का आग्रह किया और नगरवासियों के सामने स्यमंतक मणि दिखाई, जिसके बाद श्री कृष्ण पर लगा स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप गलत साबित हुआ। वे मणि द्वारका में छोड़ अक्रूर जी ब्रह्म तत्व में लीन हो गए थे। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के दिव्य दर्शन अर्जून के बाद अक्रूर जी ने ही किए थे और उसके बाद ही उन्होनें कंस का साथ छोड़ श्रीकृष्ण का साथ दिया था.

Why did Lord Krishna ask for the dust of Radha’s feet?

Shri Krishna And Radha Rani Story -

राधा और कृष्ण के प्रेम के बारे में कौन नहीं जानता है। कहते हैं कि कृष्ण और राधा का विवाह नहीं हो पाया था, लेकिन दोनों में इतना प्रेम था कि आज भी दोनों का नाम एक साथ लिया जाता है। श्री कृष्ण का राधा के लिए प्रेम और राधा का श्री कृष्ण के लिए समर्पण देखते ही बनता था। शायद इसलिए अपने आपको सबसे बड़ा भक्त कहने वाले नारद मुनी को राधा से जलन होने लगी थी। यह बात श्री कृष्ण अच्छी तरह से जानते थे।

 

एक दिन राधा के बारे में बात करने के लिए नारद मुनी श्री कृष्ण के पास आए। यह बात श्री कृष्ण को पता चल गई थी। जैसे ही नारद मुनी वहां पहुंचे, तो श्री कृष्ण उन्हें देखकर अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। नादर मुनी ने श्री कृष्ण से पूछा कि क्या हुआ प्रभु आप ऐसे अपने सिर को पकड़ कर क्यों बैठे हैं।

 

श्री कृष्ण ने कहा, “हे नारद मुनी, मेरा सिर दर्द कर रहा है।” नारद मुनी ने पूछा, “प्रभु इसको दूर करने का उपाय क्या है?”

 

तब श्री कृष्ण ने कहा, “अगर मैं अपने सबसे बड़े भक्त का चरणामृत पी लूं, तो इसे दूर किया जा सकता है।” तब नारद मुनी सोचने लगे कि सबसे बड़ा भक्त तो मैं हूं, लेकिन अगर में अपना चरणामृत दूंगा, तो मुझे नरक जाने जितना पाप लगेगा। मैं प्रभु को अपना चरणामृत नहीं दे सकता।

 

कुछ देर सोचने के बाद उनके मन में राधा का विचार आया और वे सोचने लगे कि लोग राधा को भी तो श्री कृष्ण का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं, इसलिए क्यों न उनके पास जाकर पूछा जाए। ऐसा सोचकर वह राधा के पास गए और उन्हें सारी बात बता दी।

 

राधा ने जैसे ही सुना एक बर्तन में अपने पैर धोकर चरणामृत नारद मुनी को देते हुए कहा, “हे मुनीराज मुझे नहीं पता कि मैं उनकी कितनी बड़ी भक्त हूं, लेकिन मुझे यह पता है कि श्री कृष्ण को अपना चरणामृत देने से मुझे नरक में जाने जितना पाप लगेगा और मुझे नरक जितनी यातना सहन करनी पड़ेगी। मुनीवर वह सब मैं सहन कर सकती हूं, लेकिन अपने स्वामी को पीड़ा में नहीं देख सकती। यह चरणामृत ले जाकर आप उन्हें दे दें।”

 

राधा की बात सुनकर नारद मुनी का सारा घमंड चूर-चूर हो गया और उनको पता चल गया कि राधा ही सबसे बड़ी भक्त हैं और श्री कृष्ण ने यह लीला मुझे समझाने के लिए ही रची थी। जब नारद मुनी राधा के पास से वापस आ रहे थे, तो उनके मुख से केवल राधा के नाम की ही धुन सुनाई दे रही थी।

 

जब वे श्री कृष्ण के पास पहुंचे, तो देखा कि श्री कृष्ण उनको देखकर केवल मुस्कुराए जा रहे हैं और नारद मुनी ने भी सारी बात को समझ कर उन्हें प्रणाम करते हुए कहा “राधे-राधे।”

Festival Of Naag Diwali 2022

Naag Panchami 2022 -

नाग पंचमी की पौराणिक कथा में बहनों का महत्व अधिक माना जाता है। दरअसल काफी सालों पहले एक नगर में सेठ के 7 पुत्र थे और उस सेठ ने अपने सभी पुत्रों को अच्छे संस्कार देकर पाला पोसा था। सेठ ने सभी सातों पुत्रों का विवाह समय रहते कर दिया था। सातों बहुए भी काफी संस्कारी थी, लेकिन उन सब में सबसे छोटी वाली बहु अधिक संस्कारी, ज्ञानी और बुद्धिमान थी। एक दिन सबसे बड़ी वाली बहु ने अपनी सभी देवरानियों को घर को लोपने के लिए पीली मिट्टी जंगल से लाने के लिए कहा। जेठानी समेत सभी देवरानी जंगल के लिए निकल गए और खुरपी से मिट्टी खोदना चालू कर दिया।

 

मिट्टी निकालते समय बड़ी बहू ने एक नाग को देखा और खुरपी लेकर उसे मारने के लिए उठी, ये देख सबसे छोटी वाली बहू ने अपनी जेठानी को रोका और कहने लगी कि उसकी कोई गलती नहीं है, हम ही जंगल में उसके स्थान पर आए है। सबसे छोटी वाली बहू ने नाग से माफी मांगी औऱ कहा कि आप एक जगह पर बैठ जाइए, मैं आपके लिए दूध लेकर आती हूं, लेकिन घर के कामों में व्यस्त होने के कारण छोटी बहू भूल गई… अचानक रात को सबसे छोटी वाली बहू को याद आया कि उसने नाग को इंतजार करने के लिए बोला था। वो तुरंत दूध लेकर नाग के पास गई, तो देखा कि नाग उसी जगह पर प्रतीक्षा कर रहा था। सबसे छोटी वाली बहू ने नाग से कहा… कि भैया मुझे क्षमा करें, मैं आपके पास आना भूल गई। ये सुनकर नाग ने कहा कि तुमने मुझे भैया कहा है इसलिए मैं तुमहें क्षमा करता हूं। नहीं तो अबतक मैं तुम्हें डस चुका होता। आज के बाद में तुम हमेशा के लिए मेरी बहन रहोगी। अब तुम अपने भाई से कोई वरदान मांग लो। मैं तुमसे बहुत खुश हूं।’

 

इतना सब सुनने के बाद छोटी बहु ने नाग को बोला, ‘मेरा कोई भी सगा भाई नहीं है, इसलिए मैंने आपको भाई कहा… अब से आप मेरे भाई हो औऱ मेरी रक्षा करना आपका फर्ज है। बस यही वरदान मुझे आपसे चाहिए।’ इतना कह कर छोटी बहू वापस अपने घर आ गई, कुछ समय बाद सभी बहुए अपने-अपने मायके जा रही थी औऱ सबसे छोटी वाली बहु को कहा कि तुम्हारा तो कोई भाई ही नहीं है तुम कहा जाओगी? ये बात सुनकर छोटी बहु दुखी हो गई और रोने लगी… बहन को दुखी देख नाग मनुष्य का रूप लेकर अपनी बहन के घर आय़ा और सेठ को कहा कि मैं अपनी बहन को कुछ दिनों के लिए अपने घर ले जाने आया हूं, आप उसको जाने की अनुमति दे। सेठ जी ने कहा कि छोटी बहु का कोई भाई नहीं है, तो तुम उसको अपनी बहन क्यों बता रहे हो, तभी नाग ने कहा कि मैं दूर का भाई हूं, इसलिए अपनी बहन को ले जाने आया हूं। सेठ जी ने छोटी बहू को जाने की अनुमति दे दी। नाग ने अपनी बहन से पूछा कि तुम मुझे भूल तो नहीं गई हो ना?  तो बहन ने कहा कि आपको मैं कैसे भूल सकती हूं आपने तो मुझे अपनी बहन माना है और उसी का मैं पालन कर रही हूं… नाग अपनी बहन को लेकर अपनी माता के पास गया और कहा कि मां ये मेरी  बहन है औऱ हमारे पास कुछ समय के लिए रहने आई है। मां ने खुशी-खुशी उसको अपने साथ रखा और खूब प्यार दिया। एक बार नाग की मां नाग को दूध पिला रही थी, तभी छोटी बहु ने कहा कि अब से ये कार्य मैं करूंगी, तभी मां ने खुश होकर ये कार्य उसको सौप दिया… छोटी बहु को पता नहीं था कि उसका भाई गर्म दूध नहीं पिता है और भूलवश उसने अपने भाई को गर्म दूध दे दिया जिसके कारण उसका फन्न जल गया। ये देख नाग की मां को गुस्सा आय़ा और उसने छोटी बहू को डसना का सोचा, ये देख नाग ने अपनी मां को समझाया कि उसे ये नहीं पता था, उसकी बहन से भूल हुई है। फिर नाग की मां का गुस्सा शांत हुआ और उसने छोटी बहू को घर जाते समय काफी धन दिया… जब सभी बहुओं ने देखा कि छोटी बहु को खूब सारा धन मिला, तो वो आश्चर्यचकित रह गई… थोड़ी देर बाद छोटी बहू का भाई अपनी बहन के लिए एक सुंदर सा हार लेकर आया, जिसको देखकर सब हैरान रह गए… उस हार के चर्चे पूरे गांव में फैल गए थे… तभी उस गांव की रानी ने वो हार अपने महल में लाने के लिए, सैनिक सेठ के घर जाकर उस हार को लेकर रानी को दे दिया…

 

अपने भाई का दिया हार, किसी ओर को देने के बाद वो खूब रोई और ये देखकर नाग ने उस हार को सांप में बदल दिया… रानी ने तुरंत वो हार अपने गले से निकालकर फेक दिया और उस सेठ को बुलाने का आदेश दिया… सेठ और छोटी बहू दोनों महल गए, जिसके बाद हार के बारें में छोटी बहु ने कहा कि ये मुझे मेरे नाग भाई ने दिया है अगर कोई दूसरा इसको धारण करेगा तो ये सांप में बदल जाएगा… इतना सुनने के बाद रानी के उस सर्प को पहनने के लिए कहा… जैसे ही छोटी बहु ने वो सर्प को अपने गले में पहना, तो वो वापस हार बन गया… ये देख रानी को यकीन हुआ और उसने छोटी बहु को वो हार वापस कर दिया और खूब धन देकर भेजा… तभी नाग देवता प्रकट हुए और कहा कि ये मेरी बहन है अगर किसी ने उसे दुखी किया तो मैं उस को डस कर मार दूंगा… तभी से ये प्रथा चलती आ रही है कि जो भी महिला नाग देवता की पूजा पूरी श्रद्धा से करती है नाग देवता उनको रक्षा सदैव करते है…