सांपों की जीभ क्यों होती है कटी हुई?

सांपों की जीभ क्यों होती है कटी हुई -

ये तो हम सभी जानते है कि सांप की जीभ आगे से दो हिस्सों में बटी हुई होती है, किंतु ये ऐसी क्यों होती है इसका वर्णन महाभारत में उल्लेखित है.. वेदव्यास रचित महाभारत में इससे सम्बंधित एक बहुत ही रोचक कथा है जो इस प्रकार हैं.

 

महाभारत के अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं.. इनमें से कद्रू भी एक थी.. सभी नाग कद्रू की संतान थी.. महर्षि कश्यप की एक अन्य पत्नी का नाम विनता था, पक्षीराज गरुड़ विनता के ही पुत्र थे.. एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद घोड़ा देखा, उसे देखकर कद्रू ने कहा कि इस घोड़े की पूंछ काली है और विनता ने कहा कि घोड़े की पूंछ सफेद है.. इस बात पर दोनों में शर्त लगी.. तब कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटा कर घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे उसकी पूंछ काली नजर आए और वह शर्त जीत जाए.

 

कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया, तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो.. श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी.. शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई.

 

जब गरुड़ को पता चला कि उनकी मां दासी बन गई है तो उन्होंने कद्रू और उनके सर्प पुत्रों से पूछा कि तुम्हें मैं ऐसी कौन सी वस्तु लाकर दूं जिससे कि मेरी माता तुम्हारे दासत्व से मुक्त हो जाए.. तब सर्पों ने कहा कि तुम हमें स्वर्ग से अमृत लाकर दोगे तो तुम्हारी माता दासत्व से मुक्त हो जाएगी.

 

अपने पराक्रम से गरुड़ स्वर्ग से अमृत कलश ले आए और उसे कुशा यानि एक प्रकार की धारदार घास पर रख दिया.. अमृत पीने से पहले जब सर्प स्नान करने गए तभी देवराज इंद्र अमृत कलश लेकर पुन: स्वर्ग लौट गए.. यह देखकर सांपों ने उस घास को चाटना शुरू कर दिया जिस पर अमृत कलश रखा था, सर्पौं को लगा कि इस स्थान पर थोड़ा अमृत का अंश अवश्य होगा, लेकिन घास नौकीली होने के कारण सभी सर्पो के जीभ के दो टुकड़े हो गए.

किस समय बैठती है विद्या देवी सरस्वती हमारी जुबान पर?

विद्या देवी सरस्वती -

हम अक्सर अपने बड़े बुजुर्गों के मुंह से सुनते हैं कि हमें हमेशा शुभ और सकारात्मक बातें करनी चाहिए. बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि किसी भी मनुष्य को अपशब्द और नकारात्मक बातें नहीं करनी चाहिए क्योंकि क्या पता उस समय उनके मुंह पर मां सरस्वती विराजमान हो और वह नकारात्मक बातें सच हो जाए… आइए जानते है कि क्या ऐसा सच में संभंव होता है? यदि होता है तो किस समय माता सरस्वती हमारी जुबान पर आसीन होती है? यह बात केवल कोरी कल्पना नहीं है और ऐसा वास्तव में देखा गया है.

 

जैसा कि हम सभी जानते हैं माता सरस्वती बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी है. वह शब्द की माधुर्य और ज्ञानवती है. वीणा वादिनी सरस्वती ने ही सर्वप्रथम सृष्टि में स्वर भरे हैं, ऐसी मान्यता है कि माता सरस्वती से सर्वप्रथम “स” स्वर की उत्पत्ति हुई और इसी वजह से संसार के सभी नदी, नालों और पक्षियों को आवाज मिली.

 

यह भी बेहद लोकप्रिय मान्यता है कि पूरे 1 दिन यानी 24 घंटे में एक समय ऐसा आता है जब प्रत्येक मनुष्य के जुबान पर माता सरस्वती स्वयं आसीन होती है. इस विषय में ऐसा कहा जाता है कि इस समय उपरांत जो भी शब्द मनुष्य बोलता है वह सच हो जाते हैं.

 

मित्रों धर्म पुराणों के अनुसार रात्रि के 3:10 से 3:15 के 5 मिनट यह ऐसे होते हैं जो प्रत्येक मनुष्य की जुबान पर माता सरस्वती स्वयं होती है. अब आप सोचेंगे, कि इस समय तो कोई जागता ही नहीं है… तो इस बात का क्या आशय हुआ? लेकिन ऐसा नहीं है यह वह चरम सीमा समय है जब हमें किसी भी परिस्थिति में किसी प्रकार के अपशब्द या नकारात्मक बातों का वर्णन नहीं करना है. लेकिन इसका असर प्रातः काल तक रहता है इसलिए आपको प्रातः कालीन यानी कि सूर्योदय से पहले और सूर्योदय के कुछ समय बाद भी किसी प्रकार के एक शब्द या नकारात्मक बातों का वर्णन नहीं करना है. यदि आप किसी के लिए बुरा कह रहे है तो वे सच हो जाता है… किंतु वहीं नकारात्मक शब्द पुन: लौटकर वापस आपके पास ही आते है.

 

यदि आप इस समय के उपरांत बिना कुछ इस्छा के मां सरस्वती का स्मरण कर ले, तो मां सरस्वती अत्यधिक प्रसन्न होकर आपको शुभ कार्यों के लिए आशीर्वाद देकर जाती है… इस समय के उपरांत बहुत से पंडित, ऋषि-मुनि यज्ञ कर रहे होते है, यज्ञ के दौरान ऋषि-मुनि जिस भी देवता का आवाहन करते है वे प्रकट हो जाते है.

 

तो यदि आप भी मां सरस्वती का आशीर्वाद चाहते है तो बताएं गए समय पर उनको याद करें और मनवांछित फल की प्राप्ति करें.

श्री कृष्ण और सुखिया मालिन की कहानी

श्री कृष्ण और सुखिया मालिन की कहानी -

ये बात उस समय की है जब श्रीकृष्ण बालक के रूप में थे. श्रीकृष्ण का मनमोहक चेहरा देखने के लिए दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते थे. मईया यशोदा हमेशा नन्हें बालक कान्हा की नजर उतारती रहती थी. ब्रजधाम, मथुरा, बरसाना के लोग कान्हा के सुंदर रूप का ही वर्णन करते रहते थे. ब्रजधाम में एक सुखिया नाम की मालिन आती थी. वह फल, फूल और सब्जी बेचकर अपना गुजारा किया करती थी. ब्रजधाम में सुखिया जब भी गोपियों से मिलती, तो वो उनसे नन्दलाला के बारे में पूछा करती थीं. बाल कृष्ण की लीला सुनने में सुखिया को बहुत आनंद आता था. उसका मन भी बाल कृष्ण के दर्शन करने को तरसता था. सुखिया, श्री कृष्ण को देखने के लिए घंटों तक नन्द बाबा के महल के सामने खड़ी रहती थी, लेकिन उसे श्री कृष्ण के कभी दर्शन नहीं हो पाते थे और शाम होते ही वे निराश होकर वापस अपने घर चली जाती. रात को खाना खाते वक्त भी वे नन्दलाला के बारे में सोचा करती थी.

 

भगवान कृष्ण तो अंतर्यामी हैं, उन्हें तो सब पता चल ही जाता था. जब उन्हें पता चला कि सुखिया उनकी परम भक्त है, तो उन्होंने सुखिया को दर्शन देने का निर्णय लिया. अगले दिन सुखिया ने नन्द महल के सामने आवाज दी, “फल ले लो फल”… सुखिया की आवाज सुनकर श्री कृष्ण दौड़े चले आए. नन्दलाल को अपने सामने देखकर सुखिया की खुशी का कोई ठिकाना न रहा. सुखिया ने नन्हे कृष्ण को बहुत से फल दे दिए. नन्दलाल उस समय बहुत छोटे थे तो उनके हाथ में फल नहीं आ पाते थे, फिर भी श्रीकृष्ण को सुखिया का परम प्रेम बेहद ही पसंद आया.

 

फल की कीमत चुकाने के लिए श्री कृष्ण बार-बार महल के अंदर जाते और मुट्ठी भर कर अनाज लाने की कोशिश करते, लेकिन सारा अनाज रास्ते में ही बिखर जाता था. सुखिया को भगवान कृष्ण दो चार दाने ही दे पाए. सुखिया के मन में इस बात का कोई मलाल न था. वह तो बहुत खुश थी कि आज उसने अपने हाथों से भगवान को फल दिए और उन्होंने वो फल खाए.

 

सुखिया मुस्कुराती हुई अपने घर पहुंची. उसकी फल की टोकरी खाली थी, क्योंकि वो सारे फल श्री कृष्ण को दे आई थी. घर जाकर उसने टोकरी अपने सिर से उतारी तो पाया कि उसकी टोकरी हीरे जवाहरात से भरी हुई है. सुखिया समझ गई कि यह भगवान की लीला है. उसने मन ही मन बाल गोपाल को धन्यवाद दिया. इस तरह श्री कृष्ण ने अपनी परम भक्त सुखिया का उद्धार किया.

कैसे प्राप्त हुआ भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र?

भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति -

एक बार की बात है, राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था… कोई भी धार्मिक कार्य करना मुश्किल हो गया था… राक्षसों ने पूरी पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था… राक्षस स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमाना चाहते थे, देवराज इंद्र उस समय स्वर्ग के राजा थे, वो स्वर्ग के सभी देवतागणों को लेकर भगवान विष्णु के पास गए… उन्होनें भगवान विष्णु से प्रार्थना की और कहा कि हे प्रभु, आप ही हमें राक्षसों के प्रकोप से मुक्ति दीजिए… भगवान विष्णु देवताओं की दशा देख भी रहे थे और सब समझ भी रहे थे, उन्हें ज्ञात था कि इस समस्या का समाधान वो खुद नहीं बल्कि भगवान शिव कर सकते है.

 

भगवान विष्णु, भगवान शिव को अपना आराध्य मानते है और भगवान शिव, भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते है… देवताओं के सहायता करने के लिए भगवान विष्णु ने हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर भगवान शिव की घोर तपस्या में विलीन हो गए… भगवान विष्णु, भगवान शिव के एक हजार नामों का जाप करने लगे, हर नाम के साथ उन्होने एक कमल का फूल चढ़ाने का संकल्प लिया… ये सब देख भगवान शिव ने सोचा कि क्यों ना आज मैं अपने आराध्य भगवान विष्णु की परीक्षा लूं, उन्हें ज्ञात था कि देवताओं पर मुसीबत आई है और भगवान विष्णु उनकी सहायता के लिए मेरा तप कर रहे है.

 

भगवान शिव ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए एक हजार कमल के फूल में से एक कमल का फूल गायब कर दिया… भगवान विष्णु शिव की तपस्या में लीन होने के कारण उन्हें इस बात की अनुभूति नहीं हुई और वो तपस्या करते रहे… भगवान विष्णु तपस्या करते समय भगवान शिव का एक नाम पुकारते और एक कमल का फूल चढ़ाते, जब अंतिम नाम की बारी आई तो भगवान विष्णु ने देखा कि कमल एक कम पढ़ गया, अगर कमल नहीं चढ़ाते तो उनकी तपस्या और संकल्प भंग हो जाएगा, इसलिए भगवान विष्णु ने कमल की जगह अपनी एक आंख चढ़ा दी.

 

भगवान शिव ने जब भगवान विष्णु जी की इस भक्ति को देखा, तो भावुक हो गए और प्रसन्न होकर प्रकट हुए, भगवान शिव ने भगवान विष्णु जी को वरदान मांगने को कहा… भगवान विष्णु ने कहा कि हे आराध्य, आप सब जानते है, राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण किया है उनका संहार करने के लिए आप ही अजय शस्त्र प्रदान कर सकते है, वरदान के रूप में मुझे वो शस्त्र दीजिए… भगवान शिव ने विष्णु जी को अजय शस्त्र के रूप में सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जिससे भगवान विष्णु ने सभी राक्षसों का वध उस चक्र के माध्यम से किया… सुदर्शन चक्र एकमात्र ऐसा शस्त्र है जिससे किसी भी राक्षस को मारा जा सकता है, सभी शस्त्रों का स्वामी है सुदर्शन चक्र.

शेर कैसे बना मां दुर्गा का वाहन?

मां दुर्गा का वाहन -

शेर का मां दुर्गा का वाहन बनने की कहानी तब शुरू होती है, जब देवी पार्वती घोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में पाने की कोशिश कर रही थी… सालों तक तप करने के बाद माता पार्वती को भोले भंडारी अपनी पत्नी के रूप में अपना लेते है… इसी बीच तपस्या की वजह से मां पार्वती का रंग काफी काला पड़ जाता था… एक दिन ऐसे ही बातचीत के दौरान भगवान शिव मां पार्वती को काली कह देते है, ये बात उन्हें पसंद नहीं आती… मां पार्वती नाराज होकर दोबारा तप करने के लिए चली जाती है.

 

माता पार्वती जब तपस्या कर रही थी, उसी समय वहां एक शेर घूमते-घूमते आ जाता है, माता को खाने की इच्छा रखने वाला शेर माता का तप पूर्ण होने की प्रतिक्षा करता है… समय बीतता जाता है और शेर इंतजार ही करता है… सालों बीत जाते है शेर को देवी का इंतजार करते-करते… जब भी वह देवी को खाने की इच्छा लेकर उनके पास जाता, तो उनके तप की तेज की वजह से वह पीछे हट जाता… कई बार कोशिशों के बावजूद भी शेर माता के नजदीक नहीं जा पाता और हार कर कोने में बैठ जाता है… माता पार्वती के कठोर तप से खुश होकर भगवान शिव प्रकट होते है और मां से मन चाहा वर मांगने को कहते है.

 

माता पार्वती कहती है, कि मुझे पहले की तरह अपना गोरा रंग वापस चाहिए… माता पार्वती के इस वर को भगवान शिव पूर्ण करते है…आशीर्वाद मिलते ही माता पार्वती नहाने के लिए चली जाती है, उनके नहाते ही उनके शरीर से एक और देवी का जन्म हो जाता है, जिनका नाम कौशिकी पड़ता है… नहाते समय उनके शरीर से काला रंग निकल जाता है और माता पार्वती का रंग पहले की तरह साफ हो जाता है… इसी वजह से माता पार्वती का नाम मां गौरी भी रखा जाता है… नहाने के कुछ देर बाद जब माता पार्वती बाहर आती है, तो उनकी नजर शेर पर पड़ती है, जो माता को खाने की प्रतिक्षा में भूखा ही एक कोने में बैठा था.

 

माता पार्वती भगवान शिव के पास जाती है और उनसे वरदान मांगती है… माता पार्वती कहती है कि हे नाथ… ये शेर सालों से मुझे भोजन के रूप में ग्रहण करने के लिए इंतजार कर रहा था, जितना तप मैंने किया है, उतना ही तप मेरे साथ इस शेर ने भी किया है… इसी वजह से आप इस शेर को वरदान के रूप में मेरी सवारी बना दीजिए… भगवान शिव ने माता पार्वती की इस बात से प्रसन्न होकर शेर को उनकी सवारी बना दी… आशीर्वाद मिलने के बाद माता शेर पर सवार हो गई और तभी से उनका नाम मां शेरावाली और मां दुर्गा पड़ गया.

Why 2023 Will Be The Worst Year EVER???

साल 2023 का रहस्य -

नए साल का उत्सव हर कोई मनाता है, नए साल में क्या कुछ नया करना है इसकी तैयारी (प्लानिंग) हर कोई करता है, नए साल में लोग प्रण लेते है, कि जो पिछले साल रह गया वो अगले साल कर लेंगे, लेकिन नए साल के अंकों का अनुमान सकारात्मक रहेगा या नकारात्मक ये कोई नहीं समझ पाता.. जी हां हम बात कर रहे है साल के अंकों का, जो एक अलग ही संदेश लेकर आता है, ज्योतिष इस गणना को जान और समझ पाते है किंतु आम व्यक्ति नहीं समझ पाता.

 

ज्योतिषी गणना के मुताबिक देखा जाएं तो 2023 = 2+0+2+3 = कुल 7 अंकों का बनता है.. 7वां अंक आमतौर पर छाया ग्रह केतु को दर्शाता है.. केतु ग्रह एक रूप में स्वरभानु नामक दानव के सिर का धड़ है.. यह सिर समुद्र मन्थन के समय मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने काट दिया था और इसे एक छाया ग्रह के तौर पर देखा जाता है.. माना जाता है कि इसका लोगों के जीवन और पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव रहता है.. कुछ मनुष्यों के लिये ये ग्रह प्रसिद्धि पाने का सहायक होता है.. केतु ग्रह की छवि की बात करें तो, ये सिर पर कोई रत्न या तारा लिये हुए दर्शया जाता है, जिसमें से रहस्यमयी प्रकाश निकल रहा होता है.. केतु ग्रह को अच्छाई और बुराई दोनों के रुप से जोड़ा जाता है.. जन्म के समय कुंडली में केतु ग्रह की स्थिति पर निर्भर करता है, कि ग्रहों का योग शुभ है या अशुभ.. अब 2023 का योग 7 है, इसलिए इस वर्ष गुप्त यानि की छुपे हुए शत्रुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और ग्रह की स्थिति के आधार पर व्यक्ति ऐसे समय सफल भी होते हैं.. शत्रुओं की सफलता के साथ-साथ ये साल गुप्त रोगों में, कर्जों में वृद्धि भी करेगा.. तंत्र और मन्त्र में भी वृद्धि के आसार होंगे, क्योंकि ये भी गुप्त क्रियाएं, यानि गुप्त कार्य हैं.. कुल मिलाकर इस वर्ष किसी भी प्रकार की छिपी हुई गतिविधियों में वृद्धि होगी.

 

निवारण कैसे करें/ कैसे बचें?

सभी ग्रहों की तरह केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के उपाय भी हैं.. कहते है काला कुत्ता, ग्रह केतु का प्रिय है, उन्हें प्रसन्न करने के लिए काले कुत्ते को दूध पिलाएं या खाना खिलाएं और यह कार्य सूर्यास्त के बाद करना चाहिए या आप सूर्यास्त के बाद केतु बीज मंत्र – ॐ स्रां श्रीं स्रौं सः केतवे नमः का 108 बार जाप कर सकते हैं.

Temples which inspired design of Indian Parliament

चौसठ योगिनी मंदिर -

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। यहां पर कई प्राचीन और चमत्कारी मंदिर हैं। इनमें कई मंदिर बेहद रहस्यमयी हैं जिनमें मध्य प्रदेश का चौसठ योगिनी मंदिर भी शामिल है। भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं। ओडिशा और मध्य प्रदेश में दो मंदिर हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्राचीन और रहस्यमयी है। भारत के सभी चौसठ योगिनी मंदिरों में यह इकलौता मंदिर है जो अभी तक स्थित और देखने में ठीक है। मुरैना में स्थित यह मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए दुनियाभर में जाना जाता था। इस रहस्यमयी मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहते थे। यहां पर दुनियाभर से लाखों तांत्रिक तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने के लिए आते थे। आईए जानते हैं मरैना में स्थित प्राचीन और रहस्यमयी चौसठ योगिनी मंदिर के बारे में।

 

मध्यप्रदेश का प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर गोलाकार है और इसमें 64 कमरे हैं। इन सभी 64 कमरों में भव्य शिवलिंग स्थापित है। मितावली गांव में बना यह रहस्यमयी मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस अद्भुत मंदिर का निर्माण करीब 100 फीट की ऊंचाई पर किया गया है और पहाड़ी पर स्थित यह गोलाकार मंदिर किसी उड़न तश्तरी की तरह नजर आता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर के बीच में एक खुले मंडप का निर्माण किया गया है जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 700 साल पुराना है। 

 

इस मंदिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने 1323 ई में करवाया था। इस मंदिर में सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा दी जाती थी जिसका यह मुख्य केंद्र था। कहा जाता है कि यह भगवान शिव का मंदिर है जिसकी वजह से लोग तंत्र-मंत्र सीखने के लिए यहां आते थे।

 

चौसठ योगिनी मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग और देवी योगिनी की मूर्ति स्थापित थी जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम चौसठ योगिनी रखा गया था। कहते है कि इस मंदिर से कई मूर्तियां चोरी हो गई थी, जिसके चलते अब बची मूर्तियों को दिल्ली स्थित संग्राहलय में रख दिया गया है। 101 खंभों वाले इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्राचीन ऐतिहसिक स्मारक घोषित किया हुआ है।

 

बताया जाता है कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के आधार पर ही भारतीय संसद को बनवाया था, लेकिन यह बात ना किसी किताब में लिखी गई है और ना ही संसद की वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी दी गई है। भारतीय संसद न सिर्फ इस मंदिर से मिलती है बल्कि इसके अंदर लगे खंबे भी मंदिर के खंभों की तरह ही दिखते हैं।

 

स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी यह मंदिर भगवान शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका है। इस मंदिर में किसी को भी रात में रुकने की अनुमित नहीं है। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध चौसठ योगिनी मंदिर में भगवान शिव की योगिनियों को जागृति करने का कार्य होता था। मान्याता है कि चौसठ योगिनी मंदिर में मां काली का अवतार हैं। घोर नाम के राक्षस के साथ युद्ध लड़ते हुए माता आदिशक्ति काली ने इस रुप को धारण किया था। यह रहस्यमयी मंदिर इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी मशहूर है।

Vastu Tips for Bad Habit

ये आदतें लाती है बदनसीबी -

हर व्यक्ति की अपनी अलग-अलग आदतें होती है. अच्छी आदतों से सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. वहीं बुरी आदतों के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

 

ज्योतिषियों के मुताबिक व्यक्ति की कुंडली में जिन ग्रहों का ज्यादा या कम प्रभाव होता है उसी के कारण व्यक्ति के आदतें अच्छी और बुरी हो जाती है. जिस ग्रह का प्रभाव अच्छा होता है उसी हिसाब से आदतें भी अच्छी हो जाती हैं और जिन ग्रहों का प्रभाव बुरा होता है उसी हिसाब से आदतें भी बुरी हो जाती हैं. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति की आदतों के हिसाब से ही ग्रह कमजोर या मजबूत हो जाते हैं. बुरी आदतों के कारण कई बार हमारे मजबूत ग्रह भी खराब हो जाते हैं. 

 

ऐसे में जरूरी है कि आप ऐसी आदतें अपनाएं जिससे आपके ग्रह कमजोर होने के बजाय मजबूत बनें. इसके लिए जरूरी है कि जो ग्रह आपकी कुंडली में कमजोर हैं उसकी आदतें ना अपनाएं बल्कि ऐसी आदतें अपनाएं जिससे वो ग्रह मजबूत हो सके और उनका फायदा आपको अपने जीवन में मिल सके. आइए जानते हैं किन आदतों की वजह से बिगड़ सकता है आपका भाग्य, आईए जानते है.

 

पैर हिलाना- अगर आप बैठे-बैठे पैर हिलाते हैं तो इसका मतलब ये है कि आपके मन में कोई बात लगातार चल रही है यानी आप किसी चीज के बारे में लगातार सोच रहे हैं. इसका मलतब होता है कि आपका चंद्रमा कमजोर है. ऐसे में जो लोग खाली बैठे हुए पैर हिलाते हैं वह मानसिक रूप से कमजोर होते हैं और इन्हें तनाव लेने की आदत होती है. अगर आप पैर हिलाने की आदत को ठीक कर लेते हैं तो इससे आपकी मानसिक स्थिति ठीक होती है.

 

नाखून चबाना- बहुत सारे लोगों में आपने नाखून चबाने की आदत देखी होगी. जो लोग नाखून चबाते हैं उनका सूर्य कमजोर होने लगता है और इन लोगों को आंखों की समस्या का सामना करना पड़ता है. अगर आप इस आदत को ठीक कर लेते हैं तो आपका मान-सम्मान बढ़ेगा और आपकी सेहत में भी सुधार होगा.

 

सिस्टम फॉलो ना करना- जो लोग जूते चप्पल, कपड़े, घर और किताबों को सिस्टम से नहीं रखते, उनका शनि काफी कमजोर होता है. ऐसे लोगों को रोजगार में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है. साथ ही ऐसे लोगों के घर में चोरी जैसी घटनाएं भी घटित होती है. इस आदत को छोड़ने से रोजगार में स्थिरता आती है. ऐसे में अगर आप अपनी चीजों को अच्छे से रखेंगे तो इससे आपका करियर बेहतर होता है और घर के बच्चों की शरारतें काफी कम हो जाएंगी.

 

बेडरूम और बाथरूम की सफाई ना करना- जो लोग अपने बेडरूम और बाथरूम में साफ सफाई नहीं रखते, ऐसे लोगों का शुक्र काफी कमजोर होता है. ऐसे में जरूरी है कि आप इन जगहों की सफाई का खास ख्याल रखें. इससे आपको काम में सफलता नहीं मिलती है.ऐसा करने वाले घर में रहने वाले सदस्‍य मानसिक तनाव का शिकार होते हैं.

 

पशु-पक्षियों को दाना ना डालना- पेड़-पौधों को अगर आप जल नहीं देते या पशु-पक्षियों को दाना या चारा नहीं खिलाते तो इससे आपका बुध कमजोर होता है और जिससे आपको कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं.

 

जूठे बर्तन- खाना खाने के बाद बहुत से लोग बर्तनों को रख देते हैं और अगले दिन या सुबह के समय में साफ करते हैं. कहा जाता है कि इससे चंद्रमा और शनि रुष्ट हो जाते है. जिसके कारण आपकी सफलता रुक जाती है.

Manikarnika Ghat Varanasi | History & Interesting Facts

Manikarnika Ghat Varanasi -

भारत देश में धार्मिक स्थलों में कुछ स्थल ऐसे भी मौजूद ही जो रहस्यमयी है, जिनका वर्णन कर पाना मुश्किल होता है। इन सभी स्थलों के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा अवश्य सुनने को मिलती है। इन्हीं में से एक है काशी के 84 घाटों में विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट, जहां साल भर चिताओं की अग्नि से घाट रोशन रहता है। मणिकर्णिका घाट को मोक्ष स्थली या शिव स्थली के नाम से भी जाना जाता है।

 

भगवान शिव का प्रिय स्थान काशी अपने आप में एक दिव्य है। कहते है मणिकर्णिका घाट में यदि किसी मनुष्य की चिता जलाई जाती है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है। मणिकर्णिका घाट में भगवान शिव मरने वालों के कान में तारक मंत्र बोलते है जिसके बाद वे सीधा स्वर्ग के द्वार पर पहुंचते है।

मणिकर्णिका घाट का दृश्य अग्नि का रूप लिए नजर आता है, क्योंकि यहां 365 दिन और 24 घंटे चिताएं जलती रहती है। प्रतिदिन इस घाट पर 200 से 300 शव जलाए जाते है, घाट के पास ही भगवान शिव और माता पार्वती का मंदिर है, जहां शव के साथ आने वाले लोग पहले भगवान शिव के दर्शन कर फिर अंतिम क्रिया के लिए शव को लेकर जाते है। कहते है कि इस घाट की अग्नि कभी शांत नहीं होती। सनातन धर्म में पवित्र स्थलों के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। तो चलिए जानते है मणिकर्णिका घाट की पौराणिक कथा।

 

पहली कथा –  कथा के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु ने हजारों वर्ष तक इसी घाट पर भगवान शिव की आराधना की थी। विष्णु जी ने शिवजी से वरदान मांगा कि सृष्टि के विनाश के समय में भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान शिव और माता पार्वती विष्णु जी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर यहां आए थे। तभी से मान्यता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

दूसरी कथा – यदि बात करें दूसरी कथा की तो, भगवान विष्णु ने भगवान शिव-पार्वती के लिए यहां स्नान कुंड का निर्माण भी किया था, जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है। माता पार्वती जब कुंड में स्नान के लिए गई तो उनका कर्ण फूल कुंड में गिर गया, जिसे महादेव ने ढूंढ कर निकाला। देवी पार्वती के कर्णफूल के नाम पर इस घाट का नाम मणिकर्णिका कुंड रखा।

 

तीसरी कथा – तीसरी प्रचलित कथा के अनुसार जब देवी सती ने अग्नि स्नान कर लिया था, तब भगवान शिव ने देवी सती के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार इसी कुंड पर आकर किया था, जिसे महाश्मशान के नाम से जाना जाता है।

 

मोक्ष की चाह रखने वाला इंसान जीवन के अंतिम पड़ाव में यहां आने की कामना करता है। तो वहीं इससे जुड़ी एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं। मौत के मातम के बीच वे नाचती-गाती हैं और नाचते हुए वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनको अगले जन्म में ऐसा जीवन ना मिले।

 

मणिकर्णिका घाट पर शवों के मोक्ष की अंतिम क्रिया, श्राद्ध आदि भी किया जाता है।

Mrityu Aane Ke Sanket Jaane

मृत्यु आने के संकेत -

मृत्यु एक परम सत्य है। सहीं समय और नियति के अनुसार मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु और सामान्य मृत्यु में भी मनुष्य का समय निश्चित होता है। अकाल मृत्यु में व्यक्ति की उम्र पूर्ण होने से पूर्व ही वे मृत्यु को प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु में गंभीर बिमारी के कारण मृत्यु आना, किसी दुर्घटना में मृत्यु को प्राप्त होना, बुरे कर्म के कारण मृत्यु आना या किसी दुश्मन द्वारा मारे जाने पर मृत्यु को प्राप्त होना आदि। सामान्य मृत्यु में मनुष्य बिना किसी बिमारी या आपदा के मृत्यु को प्राप्त होता है, इसमें मनुष्य नियति द्वारा निश्चित एक उम्र और समय में अपना शरीर त्यागता है।

 

शिव पुराण में मृत्यु आने के संकेत

धार्मित ग्रंथों में युगों का जिस तरह बखान किया गया है उसी प्रकार शिव पुराण में भगवान शिव द्वारा मृत्यु आने के संकेतों को बताया गया है। इस बात का वर्णन स्वयं काल ने किया है, क्योंकि मृत्यु आने के संकेतों को मनुष्य पहचाने और वे सही कर्म की ओर अग्रसर हो जाएं। धर्म के मार्ग पर चलने वाले अपनी निश्चित समय-सीमा को पूरा करके ही मृत्युलोक को त्यागते है। वहीं अर्धम पर चलने वाले छल, लालसा, मोह, चोरी, द्वेष आदि में पड़ कर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते है। अब जानते है मृत्यु आने से पहले कौन-से संकेत हमें मिलते है।

 

  1. आसमान में सप्तऋषि ना दिखना

किसी मनुष्य को आसमान में सप्तऋषि यानि सात तारे मनुष्य को ना दिखाई दे, तो मृत्यु का संकेत मिलता है। ऐसे मनुष्य की मृत्यु आने वाले 5 से 6 महीने के अंदर हो जाती है।

 

  1. दिशाएं समझ ना आना

सूर्य और चंद्रमा के उदय और अस्त होने की दिशाएं यदि मनुष्य को समझ ना आएं तो वे मृत्यु के करीब माना जाता है। चारों दिशाओं में जब मनुष्य भ्रमित होने लगे और दिशाओं को समझने में बार-बार गलती करने लगे तो ये मृत्यु का संकेत है।

 

  1. शरीर का रंग फीका पड़ना

मनुष्य की मृत्यु जब पास आती है, तो शरीर का संचालन धीमा होने लगता है। शरीर पूर्ण रूप से कार्य करना बंद कर देता है। शरीर का रंग फीका पड़ने यानि की पीला पड़ने लगता है। बालों का झड़ना, ह्रदय धीमा पड़ना, सोचने की क्षमता कम होना आदि शरीर में काफी बदलाव देखने को मिलते है। ये आने वाली मृत्यु का संकेत माना जाता है।

 

  1. तारों का अदृश्य होना

मृत्यु के नजदीक आने पर मनुष्य को आसमान में तारे नहीं दिखते है, ध्रुव तारे को भी ना देख पाना एक तरह का संकेत माना जाता है। आसमान नीले की जगह लाल दिखना ये अकाल मृत्यु का संकेत होता है, ऐसे में व्यक्ति के पास कुछ ही समय शेष होता है, क्योंकि लाल आसमान का दिखना यमराज के आने का आगमन दिखना कहलाता है।

 

  1. परछाई ना दिखना

मृत्यु निकट है उसका एक संकेत परछाई ना दिखना है। धूप में, शीशे में, पानी में, तेल, घी, शाम के वक्त चलते समय सड़क पर परछाई का ना दिखना जल्द मृत्यु का संकेत है।

 

  1. नीली मक्खियां दिखना

मक्खियां का आस-पास घूमना एक आम बात है और आमतौर पर मक्खियों का रंग काला होता है, किंतु नीली मक्खियां जब आपको घेर ले तो ये एक अकाल मृत्यु का संकेत माना जाता है।