Vrishabh Avatar of Lord Shiva -
धर्म की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने अनेकों अवतार लिए, इसी के साथ भगवान शिव ने भी धर्म की रक्षा में भाग लेते हुए कई अवतार लिए. धर्म ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव के 19वें अवतार वृषभ अवतार है, जो देवताओं की रक्षा करने के लिए जन्में थे.. जहाँ भगवान शिव ने कई अवतार दानवों का विनाश करने के लिए लिये थे वही वृषभ अवतार, विष्णु पुत्रों का संहार करने के लिए लिया था. आइए जानते है आखिर क्यों भगवान शिव को विष्णु पुत्रों का संहार करने की जरुरत पड़ी।
शिवजी के वृषभ अवतार की पौराणिक कथा
समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश उत्पन्न हुआ तो उसे दैत्यों की नजर से बचाने के लिए श्री हरि विष्णु ने अपनी माया से बहुत सारी अप्सराओं की उत्पत्ति की. दैत्य अप्सराओं को देखते ही उन पर मोहित हो गए और उन्हें जबरन उठाकर पाताल लोक ले गए, और वहां बंधी बना कर अमृत कलश को पाने के लिए वापिस आए तो समस्त देव अमृत का सेवन कर चुके थे।
जब दैत्यों को इस घटना का पता चला तो उन्होंने पुन: देवताओं पर युद्ध किया, लेकिन अमृत पीने से देवता अजर-अमर हो चुके थे, जिस कारण दैत्यों को हार का सामना करना पड़ा। दैत्यों ने स्वयं को सुरक्षित करने के लिए वह पाताल की ओर भागने लगे। दैत्यों के संहार के लिए हुए श्री हरि विष्णु उनके पीछे-पीछे पाताल लोक जा पहुंचे और वहां समस्त दैत्यों का विनाश कर दिया।
दैत्यों का नाश होते ही अप्सराएं मुक्त हो गई, जब उन्होंने मनमोहिनी मूर्त वाले श्री हरि विष्णु को देखा तो वे उन पर मोहित हो गई और उन्होंने भगवान शिव से श्री हरि विष्णु को उनका स्वामी बन जाने का वरदान मांगा। अपने भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव सदैव तत्पर रहते हैं, उन्होंने अपनी माया से श्री हरि विष्णु को अपने सभी धर्मों व कर्तव्यों को भूल अप्सराओं के साथ पाताल लोक में रहने के लिए कहा। श्री हरि विष्णु पाताल लोक में निवास करने लगे। उन्हें अप्सराओं से कुछ पुत्रों की प्राप्ति भी हुई लेकिन वह पुत्र राक्षसी प्रवृति के थे। उन्होनें अपनी क्रूरता से तीनों लोकों में कोहराम मचा दिया। उनके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के समक्ष गए व उनसे श्री हरि विष्णु के पुत्रों का संहार करने की प्रार्थना की।
देवताओं को विष्णु पुत्रों के आतंक से मुक्त करवाने के लिए भगवान शिव एक बैल यानि कि ‘वृषभ’ के रूप में पाताल लोक पहुंचे और वहां जाकर भगवान विष्णु के सभी पुत्रों का संहार कर डाला, ये देख श्री हरि विष्णु क्रोधित हो उठे और भगवान शिव रूपी वृषभ पर आक्रमण कर दिया लेकिन उनके सभी वार निष्फल हो गए।
मान्यता है कि शिव व विष्णु, दिव्य रूप है, इसलिए बहुत समय तक युद्ध चलने के बाद भी दोनों में से किसी को भी न तो हानि हुई और न ही कोई लाभ। अंत में जिन अप्सराओं ने श्री हरि विष्णु को अपने वरदान में बांध रखा था उन्होंने उन्हें मुक्त कर दिया.. इसके बाद जब श्री हरि विष्णु को इस घटना का बोध हुआ तो उन्होंने भगवान शिव की स्तुति की।
भगवान शिव के कहने पर श्री हरि विष्णु विष्णुलोक लौट गए.. भगवान विष्णु पाताल लोक से जाने से पहले अपना सुदर्शन चक्र वहीं छोड़ गए, जिसके बाद विष्णुलोक में भगवान विष्णु ने शिव की स्तुति कर उनके एक और सुदर्शन चक्र की प्राप्ति की.