Mokshada Ekadashi 2022: Know date, shubh muhurat, significance, puja vidhi

Mokshada Ekadashi Vrat 2022 -

मोक्षदा एकादशी व्रत मार्गशीष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। मोक्षदा एकादशी व्रत भगवान विष्णु को अति प्रिय है और कहते है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का पारण करता है वो मृत्यु के बाद सीधा बैकुंठ धाम जाता है। मोक्षदा एकादशी को मोक्ष दिलाने वाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इससे व्रत रखने वाला सभी मोह बंधनों से मुक्त होता है। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला व्रत ओर कोई नहीं है। मोक्षदा एकादशी पर श्रीहरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। आईए जानते है मोक्षदा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पारण का शुभ समय क्या है?

 

मोक्षदा एकादशी 2022 तिथि

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 03 दिसंबर 2022, दिन शनिवार को प्रात: 05 बजकर 39 मिनट पर हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 04 दिसंबर रविवार को प्रात: 05 बजकर 34 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर मोक्षदा एकादशी का व्रत 03 दिसंबर को रखा जाएगा।

 

मोक्षदा एकादशी व्रत पारण समय 

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत के पारण का समय 04 दिसंबर को दोपहर 01 बजकर 20 मिनट से दोपहर 03 बजकर 27 मिनट तक है।

 

मोक्षदा एकादशी का महत्व

मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही जो भी जातक पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है, उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

 

मोक्षदा एकादशी व्रत में इन नियमों का रखें ध्यान

जो लोग मोक्षदा एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, उन्हें इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

मोक्षदा एकादशी को पूरे दिन व्रत रखकर, रात्रि में जागरण करते हुए श्री हरि विष्णु का स्मरण करना चाहिए।

 

एकादशी व्रत को कभी हरि वासर समाप्त होने से पहले पारण नहीं करना चाहिए।

 

शास्त्रों में द्वादशी समाप्त होने के बाद व्रत का पारण करना पाप के समान माना जाता है।

 

यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो रही हो तो इस स्थिति में सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

 

द्वादशी तिथि के दिन प्रातः पूजन व ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।

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जितिया व्रत कथा -

नर्मदा नदी के पास “कंचनबटी” नाम का एक नगर हुआ करता था, वहां राजा मलयकेतु का शासन था। कंचनबटी नगर के पास बालुहटा नामक जगह थी, जिसके पास में एक बड़ा-सा पेड़ था। उस पेड़ के नीचे एक चील और एक गीदड़ रहता था। दोनों में गहरी दोस्ती थी। महिलाओं को जितिया व्रत रखता देख उन दोनों ने भी प्रण लिया कि वो भी इस व्रत को रखेंगे। चील और गीदड़ ने श्री जीऊतवाहन भगवान को मन में याद कर कहा कि “हम आपकी पूजा और व्रत पूरी विधि के साथ करेंगे”… व्रत का दिन आते ही चील औऱ गीदड़ दोनों ने व्रत आऱंभ किया, लेकिन पास में ही किसी धनवान व्यापारी की मौत हो गई थी और उसका अंतिम संस्कार करने लिए उसे बालुहटा लाया गया।

 

व्रत के दिन गीदड़ ने मरे हुए व्यक्ति को देखा, तो उसके मन में उस मांस को खाने की अभिलाशा जगी। वो खुद को रोक नहीं पाया और मांस खाकर व्रत खंडित कर दिया। उस व्यापारी के शव को चील ने भी देखा था, लेकिन उसने व्रत के कारण उसे नहीं खाया। इसके कुछ समय पश्चात चील और गीदड़ दोनों का अगला जन्म हुआ जिसमें वो दोनों कंचनवटी के भास्कर नामक ब्राह्मण के घर में बेटी के रूप में पैदा हुई। चील का जन्म बड़ी बहन नाम शीलवती और गीदड़ का जन्म उसकी छोटी बहन नाम कपुरावती के रूप में हुआ। शीलवती (बड़ी बहन) की शादी बुद्धिसेन नामक लड़के से हुई और कपुरावती (छोटी बहन) की शादी कंचनवटी के राजा मलयकेतु से हुई।

 

बड़ी बहन शीलवती को 7 पुत्र हुए, तो वहीं छोटी बहन कपुरावती को संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाया। कपुरावती के घर जितने भी संतान हुए वे उसी दिन मर जाते। ऐसा होते-होते कपुरावती काफी परेशान हो गई। शीलवती के सातों पुत्र कपुरावती के महल में कार्य करते थे, लेकिन कपुरावती ने जलन के कारण अपने पति को कह कर बड़ी बहन के सातों पुत्रों के सर कटवाकर उन्हें लाल रंग के कपड़े से ढक कर एक बर्तन में अपनी बड़ी बहन के घर भिजवा दिए।

 

भगवान जीऊतवाहन ये सारी प्रक्रिया देख रहे थे। उन्होंने रास्ते में ही सातों भाइयों के सिर को धड़ से जोड़ा और अमृत पिलाकर जिंदा कर दिया और बर्तन में भगवान जीऊतवाहन ने फल भर दिए। उधर, कुपरावती अपनी दीदी के घर से शोक समाचार मिलने का इंतजार कर रही थी, जब संदेश नहीं आया, तो वो खुद ही शीलवती के घर चली गई, वहां अपनी दीदी के सारे बेटों को जिंदा देख हैरान रह गई। कुपरावती ने अपनी बड़ी बहन वो सारी बात बताई जो उसने उनके बेटों के साथ की थी। बड़ी बहन शीलवती ने अपनी छोटी बहन कुपरावती को उसके पिछले जन्म के बारे सारी बात बताई और उसी पेड़ को पास ले गई, जहां वो दोनों पहले रहा करते थे। कुपरावती का व्रत खंडित होने के कारण ये सारी दिक्कते उसके जीवन में आई। इस बात का कुपरावती को बड़ा पछतावा हुआ और उसने उसी समय अपना दम तोड़ दिया। कुपरावती के पति को जब जानकारी मिली तो उसने अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार उसी पेड़ के नीचे किया। जितिया व्रत कथा से हमें यहीं सीख मिलती है कि बुरे कर्म कभी पिछा नहीं छोड़ते, उसका फल भोगना ही पड़ता है।

Tuesday Fast Story and its Significance (Mangalvar Vrat Katha)

Mangalvar Vrat Katha -

ऋषिनगर गांव में एक केशवदत्त नामक ब्राहम्ण अपनी पत्नी अंजली के साथ बहुत ही सुख से रहता था। गांव के सभी लोग केशवदत्त का बहुत सम्मान करते थे। केशवदत्त के पास खूब धन-संपत्ति थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी और इसी बात से दोनों पति-पत्नी दुखी थे। पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों ने हनुमान जी की पूजा करने का निर्णय लिया और उसे बखूबी निभाया भी।

ब्राह्मण हर मंगलवार को जंगल में हनुमान जी की पूजा करते थे और पत्नी घर में ही महावीर का व्रत रखा करती थी। दोनों शाम को बजरंग बली को भोग लगाकर व्रत खोलते थे। ब्राह्मण और उसकी पत्नी को हनुमान जी की पूजा करते-करते कई साल बीत गए, लेकिन उन्हें संतान नहीं हुई। एक समय आया जब ब्राह्मण निराश हो गया, लेकिन ब्राहम्ण ने बजरंग बली पर अपना विश्वास टूटने नहीं दिया। दोनों पति-पत्नी विधिवत व्रत रखते रहे।

एक मंगलवार ब्राहम्ण पत्नी अंजली हनुमान जी को भोग लगाना भूल गई और दिन ढलने के बाद खुद भी बिना भोजन किए सो गई। उस दिन ब्राह्मण की पत्नी ने प्रण लिया कि वो अब अगले मंगलवार को भोग लगाने के बाद ही अन्न का दाना खाएगी। बिना कुछ खाए-पिए किसी तरह से छह दिन निकले। मंगलवार का दिन आया और कमजोरी के चलते वो घर में ही बेहोश हो गई।

हनुमान जी, अंजली की निष्ठा देखकर प्रसन्न हो गए। बेहोशी की अवस्था में ही ब्राह्मणी अंजली को हनुमान जी ने दर्शन दिए और कहा, “पुत्री उठो, तुम हर मंगलवार पूरी निष्ठा के साथ मेरा व्रत करती हो। मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत खुश हूं। इस बात से खुश होकर मैं तुम्हारी मनोकामना पूरी करने का वरदान देता हूं। तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी, जो तुम्हारा खूब ध्यान रखेगा। इतना कहकर बजरंगबली वहां से अंतर्धान हो गए।

तभी अंजलि उठी और भोजन तैयार करके उसने सबसे पहले हनुमान जी को भोग लगाया। इसके बाद खुद भी भोजन किया। जब ब्राहम्ण केशवदत्त घर लौटा, तो ब्राह्मणी ने उसे पूरी बात बताई। पुत्र वरदान की बात सुनकर ब्राह्मण को यकीन नहीं हुआ और वह अपनी पत्नी पर शक करने लगा। उसने अपनी पत्नी को बोला, “तुम झूठ बोल रही हो, तुमने मेरे साथ धोखा किया है।

 

कुछ समय बाद ब्राह्मण के घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। दोनों ने उसका नाम हनुमान जी के नाम पर मंगल प्रसाद रखा। ब्राह्मण को हमेशा यही लगता था कि उसकी पत्नी ने उसे झूठी कहानी सुनाई और उसके साथ छल किया है। यह सोचकर वो बच्चे को मारने की साजिश रचने लगा।

 

एक दिन मौका देखकर ब्राह्मण केशवदत्त कुएं पर नहाने गए और अपने पुत्र को भी साथ ले गया। मौका देखकर ब्राहम्ण केशवदत्त ने अपने ही पुत्र को कुएं में फेंक दिया। ब्राह्मण के घर लौटने पर जब पत्नी ने उससे पूछा, “मंगल कहा रह गया। वो भी तो आपके साथ गया था।” तो पत्नी के सवाल सुनकर ब्राह्मण पहले थोड़ा घबराया और फिर बोला कि मंगल उसके साथ नहीं था। तभी अचानक पीछे से मंगल मुस्कराते हुए सामने आया। यह देखकर ब्राह्मण दंग रह गया।

 

केशवदत्त को रात को यह सोच सोचकर नींद नहीं आई कि मंगल दास कैसे घर वापस आया। उसी रात बजरंगबली ने ब्राह्मण केशवदत्त को सपने में दर्शन दिए। हनुमान जी ने कहा, “मेरे प्रिय पुत्र! मंगल तुम दोनों का ही बेटा है। मैंने तुम्हारी और तुम्हारी पत्नी की भक्ति से खुश होकर तुम्हारी मनोकामना को पूरा किया था। अपने पुत्र मंगल दास को अपना लो और अपनी पवित्र पत्नी पर शक करना छोड़ दो।” सुबह उठकर ब्राह्मण ने सबसे पहले अपने बेटे को गले लगाया। फिर अपनी पत्नी से माफी मांगी। उसके बाद ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को बताया कि वो किस तरह उसपर शक किया करता था और मंगल दास को अपना पुत्र नहीं मानता था। ब्राह्मण की पत्नी ने उसे माफ कर दिया और तीनों साथ में खुशी-खुशी रहने लगे।