How Lord Krishna Crush the Pride of Satyabhama?

Shri Krishna And Satyabhama Story -

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे, तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था। बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थी। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थी?

 

द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है। तभी गरूड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है? इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया औऱ वे भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है, क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?

 

भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट करने का समय आ गया है, ऐसा सोचकर उन्होनें गरूड़ से कहा कि हे गरूड़। तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे है। गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।

 

इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं औऱ स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।

मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।

 

भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए। गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ। भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे है। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।

 

हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं। गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा?  फिर गरूड़ अकेले ही महल पहुंच गए. महल पहुंचकर गरूड़ देखते है कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे है। गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया।

 

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र, तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?  क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं? हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया। हनुमान ने कहा कि प्रभु, आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें। ये सुनकर भगवान मन ही मन मुस्कुराने लगे।

 

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया- हे प्रभु। आज आपने माता-सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है? अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ जी तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था। वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए। इस प्रकार श्री कृष्ण ने एक ही बार में तीनों का अंहकार खत्म किया.

Secret Story About Bhagwan Rama And Hanuman

Hanuman Katha -

हनुमान जी को भगवान राम का सबसे प्रिय भक्त माना जाता है. हनुमान जी भगवान राम से बहुत प्रेम करते है. जब श्री राम अयोध्या के राजा बने तब हनुमान जी दिन रात उनकी सेवा में लगे रहते थे. एक दिन की बात है, श्री राम जी के दरबार में एक सभा चल रही थी. उस सभा में सभी वरिष्ठ गुरु और देवतागण मौजूद थे. चर्चा का विषय था कि राम ज्यादा शक्तिशाली हैं या राम का नाम. सभा में जितने लोग मौजूद थे उन्होनें राम को अधिक शक्तिशाली बताया और नारद मुनि का कहना था कि राम नाम में ज्यादा ताकत है. नारद मुनि की बात कोई सुन नहीं रहा था लेकिन हनुमान जी इस चर्चा के दौरान चुपचाप बैठे हुए सब सुन रहे थे. उन्होनें किसी की बात में हस्तक्षेप नहीं किया.

 

जब सभा खत्म हुई, तो नारद मुनि ने हनुमान जी से कहा कि ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर वो सब ऋषि मुनियों को नमस्कार करें. हनुमान जी ने नारद मुनि से पूछा, कि ऋषि विश्वामित्र को नमस्कार क्यों न करूं? नारद मुनि ने जवाब दिया, ऋषि विश्वामित्र पहले राजा हुआ करते थे, इसलिए उन्हें ऋषियों में मत गिनो.

 

नारद जी कहने पर हनुमान जी ने ऐसा ही किया. हनुमान जी सबको नमस्कार कर चुके थे और उन्होंने विश्वामित्र को नमस्कार नहीं किया. इस बात पर ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गए और उन्होंने श्री राम से कहा कि इस गलती के लिए हनुमान को मौत की सजा दि जाएं. श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र का आदेश नहीं टाल सकते थे, इसलिए उन्होंने हनुमान को मारने का निश्चय कर लिया.

 

हनुमान जी ने नारद मुनि से इस संकट का समाधान पूछा. नारद मुनि ने कहा,  कि आप बेफिक्र होकर राम नाम का जाप करना शुरू करें. हनुमान जी ने नारद मुनि के कहे अनुसार राम नाम का जाप करना शुरू कर दिया. वो आराम से बैठकर राम नाम का जाप करने लगे. श्रीराम ने हनुमान पर अपना धनुष बाण तान दिया. साधारण तीर हनुमान जी का बाल भी बांका न कर पाएं. जब हनुमान जी पर श्री राम के तीरों का कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने ब्रह्माण्ड के सबसे शक्तिशाली शस्त्र ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, लेकिन राम नाम जपते हुए हनुमान पर ब्रह्मास्त्र का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा. बात को बढ़ता देख नारद मुनि ने ऋषि विश्वामित्र से हनुमान जी को क्षमा करने को कहा. जब ऋषि विश्वामित्र ने देखा की राम नाप का जाप करते हुए हनुमान को खुद श्रीराम के बाण के तीर छु भी नहीं पा रहे तो उन्होनें नारद मुनि के कहे अनुसार हनुमान जी को क्षमा कर दिया और एक उदाहरण पेश किया कि श्रीराम से बड़ा श्रीराम का नाम है.