क्या वाकई अक्रूर जी ने देखा श्रीकृष्ण का दिव्य रूप?

अक्रूर जी और श्री कृष्ण की कहानी -

बात उस समय की है जब श्री कृष्ण का जन्म नहीं हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु की आकाशवाणी को सुनकर अपने पिता राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया और खुद राजा बन बैठा… अक्रूर जी उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे। रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे और इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका… इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण अपना गुरु भी मानते थे।

 

जब कंस ने नारद मुनी के मुंह से सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर को अपने पास बुलाया, उसने अक्रूर के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया… अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को अपना परिचय दिया और कंस के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में उन्हें बताया… साथ ही आकाशवाणी के बारे में भी श्रीकृष्ण को बताया कि उन्हीं के हाथों कंस का वध होगा।

 

अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पड़े. रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में काफी जानकारियां दी. इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था. मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण और कंस का मलयुद्ध हुआ जिसमें श्रीकृष्ण के द्वारा कंस का वध हुआ और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बैठा दिया और अक्रूर को हस्तिनापुर भेज दिया.

 

कुछ समय के बाद कृष्ण ने अपनी द्वारका नगरी का निर्माण किया. द्वारका में अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए, जिसमें लिखा था कि पांडवों का कौरवों के साथ युद्ध होने वाला है जिसमें उन्हें श्रीकृष्ण की सहायता चाहिए. इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सके।

 

कहा जाता है कि अक्रूर जी के पास एक स्यमंतक नामक मणि थी. वह मणि सूर्य देव के द्वारा प्रकट की गई थी, स्यमंतक मणि जिस भी जगह रहती थी, वहां पर कभी भी अकाल नहीं पड़ता था। महाभारत के युद्ध के बाद अक्रूर जी श्री कृष्ण के साथ द्वारका आ गए थे. जब तक अक्रूर जी द्वारका में रहे, तब तक वहां खेतों में अच्छी फसल होती रही, लेकिन उनके जाते ही वहां अकाल पड़ गया। द्वारिकावासियों को लगा कि श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि चुराई है जिससे उन्होनें कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा दिया. मणि को वापस लाने के लिए श्री कृष्ण ने अक्रूर जी से वापस द्वारका आने का आग्रह किया और नगरवासियों के सामने स्यमंतक मणि दिखाई, जिसके बाद श्री कृष्ण पर लगा स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप गलत साबित हुआ। वे मणि द्वारका में छोड़ अक्रूर जी ब्रह्म तत्व में लीन हो गए थे। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के दिव्य दर्शन अर्जून के बाद अक्रूर जी ने ही किए थे और उसके बाद ही उन्होनें कंस का साथ छोड़ श्रीकृष्ण का साथ दिया था.

Vastu Tips For Temple

Vastu Tips For Temple -

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है. लगभग हर घर में रोजाना सुबह और शाम के समय में पूजा की जाती है. इससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, लेकिन कई बार रोजाना पूजा-पाठ करने के बावजूद भी घर में अशांति रहती है और शुभ फल की प्राप्ति भी नहीं होती. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. वास्तु के अनुसार, अधिकतर लोग पूजा-पाठ करते समय कई तरह की गलतियां करते हैं.

 

वास्तु के अनुसार

वास्तु शास्त्र में कई ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन सफल हो सकता है. वास्तु में कुछ गलतियों का भी जिक्र किया गया है जिसे करने से व्यक्ति के जीवन में मुसीबतें बढ़ सकती हैं. वास्तु में पूजा-पाठ के कुछ नियमों के बारे में भी बताया गया है. बहुत से लोग पूजा-पाठ के दौरान जाने-अंजाने में कई गलतियां कर देते हैं जिससे देवी-देवता आपसे नाराज भी हो सकते हैं. ये गलतियां आपके व्यक्तिगत जीवन और घर की सुख-शांति पर असर डालती हैं. ऐसे में आज हम आपको मंदिर और पूजा-पाठ से जुड़ी ऐसी गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं जो अशांति और सुख-समृद्धि की हानि का कारण बन सकती हैं. आइए जानते हैं उनके बारे में- 

 

जमीन पर ना रखें शिवलिंग

शिवलिंग भगवान भोलेनाथ का प्रतीक है. माना जाता है कि भोलेनाथ में इस पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा समाहित है. ऐसे में शिवलिंग को भूलकर भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. शिवलिंग को हमेशा पूजास्थल में साफ जगह पर रखना चाहिए. 

 

यहां ना रखें दीया

पूजा करते समय दीया जरूर जलाया जाता है. ऐसा करना काफी शुभ माना जाता है. ऐसे में दीपक को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. दीपक को हमेशा थाली में किसी स्टैंड पर रखना चाहिए. 

 

शालिग्राम को ना रखें जमीन पर

हिंदू धर्म में शालिग्राम को बेहद पूजनीय माना गया है. शालिग्राम का प्रयोग भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है. शिव भक्त पूजा करने के लिए शिवलिंग के रूप में शालिग्राम का इस्तेमाल करते हैं. भगवान विष्णु की पूजा में भी शालिग्राम का खास महत्व होता है. जिस घर में भी शालिग्राम स्थापित किया जाता है वहां सुख और समृद्धि अपने आप ही आने लगती है, लेकिन इसे जमीन पर रखने से आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है. कभी भी शालिग्राम को जमीन पर नहीं रखना चाहिए. 

 

मूर्ति को जमीन पर ना रखें

मंदिर की साफ-सफाई करते समय अधिकतर लोग मूर्ति समेत सभी चीजों को जमीन पर रख देते हैं फिर सफाई करते हैं. आपको बता दें कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. मंदिर की सफाई करते समय मूर्ति को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. ऐसा करने से भगवान का अपमान होता है और आपके घर की शांति भंग हो सकती हैं. मंदिर की साफ-सफाई करते समय मूर्तियों को हमेशा किसी कपड़े या थाली में रखें. 

 

शंख का पूजा-पाठ में कितना महत्व

हिंदू धर्म में शंख का विशेष महत्व होता है. धार्मिक अवसरों पर शंख बजाना काफी शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिस घर के पूजा स्थल में शंख रहता है और प्रतिदिन बजाया जाता है, वहां पर मां लक्ष्मी का वास बना रहता है. साथ ही यह भी माना जाता है कि शंख की मंगल ध्वनि से नकारात्मक उर्जा दूर हो जाती है. माता लक्ष्मी की पूजा शंख के बिना अधूरी मानी जाती है. ऐसे में इसे जमीन पर रखने से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और धन की हानि भी होती है. 

 

सोने के गहने पर रखें सावधानी

आपको बता दें कि सोने के गहने मां लक्ष्मी का रूप माने जाते हैं जो भगवान विष्णु को अति प्रिय होते हैं. ऐसे में सोने के गहनों को भूलकर भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए इससे देवी-देवताओं का अपमान माना जाता है. साथ ही पैरों में भी कभी सोने के आभूषण नहीं पहनने चाहिए. यह शुभ नहीं माना जाता है. सोने के गहनों को हमेशा किसी कपड़े में लपेटकर रखना चाहिए.

Story About Akrura, A Great Devotee Of Lord Krishna

Shri Krishna Aur Akrur Story -

बात उस समय की है जब श्री कृष्ण का जन्म नहीं हुआ था। कंस ने अपनी मृत्यु की आकाशवाणी को सुनकर अपने पिता राजा उग्रसेन को बंदी बना लिया और खुद राजा बन बैठा. अक्रूर जी उन्हीं के दरबार में मंत्री के पद पर आसीन थे। रिश्ते में अक्रूर जी वासुदेव के भाई थे और इस नाते से वह श्री कृष्ण के काका. इतना ही नहीं अक्रूर जी को श्रीकृष्ण अपना गुरु भी मानते थे।

 

जब कंस ने नारद मुनी के मुंह से सुना कि कृष्ण वृंदावन में रह रहे हैं, तो उन्हें मारने के विचार से कंस ने अक्रूर को अपने पास बुलाया, उसने अक्रूर के हाथ निमंत्रण भेज कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम को मथुरा बुलाया. अक्रूर जी ने वृंदावन पहुंचकर श्री कृष्ण को अपना परिचय दिया और कंस के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के बारे में उन्हें बताया. साथ ही आकाशवाणी के बारे में भी श्रीकृष्ण को बताया कि उन्हीं के हाथों कंस का वध होगा।

 

अक्रूर जी की बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम उनके साथ कंस के उत्सव में शामिल होने के लिए निकल पड़े. रास्ते में अक्रूर जी ने कृष्ण और बलराम को कंस के बारे में और युद्धकला के बारे में काफी जानकारियां दी. इस वजह से श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था. मथुरा पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण और कंस का मलयुद्ध हुआ जिसमें श्रीकृष्ण के द्वारा कंस का वध हुआ और मथुरा के सिंहासन पर वापस राजा उग्रसेन को बैठा दिया और अक्रूर को हस्तिनापुर भेज दिया.

 

कुछ समय के बाद कृष्ण ने अपनी द्वारका नगरी का निर्माण किया. द्वारका में अक्रूर जी पांडवों का संदेश लेकर आए, जिसमें लिखा था कि पांडवों का कौरवों के साथ युद्ध होने वाला है जिसमें उन्हें श्रीकृष्ण की सहायता चाहिए. इस पर कृष्ण ने पांडवों का साथ दिया, जिससे वो महाभारत का युद्ध जीत सके।

 

कहा जाता है कि अक्रूर जी के पास एक स्यमंतक नामक मणि थी. वह मणि सूर्य देव के द्वारा प्रकट की गई थी, स्यमंतक मणि जिस भी जगह रहती थी, वहां पर कभी भी अकाल नहीं पड़ता था। महाभारत के युद्ध के बाद अक्रूर जी श्री कृष्ण के साथ द्वारका आ गए थे. जब तक अक्रूर जी द्वारका में रहे, तब तक वहां खेतों में अच्छी फसल होती रही, लेकिन उनके जाते ही वहां अकाल पड़ गया। द्वारिकावासियों को लगा कि श्रीकृष्ण ने स्यमंतक मणि चुराई है जिससे उन्होनें कृष्ण पर चोरी का आरोप लगा दिया. मणि को वापस लाने के लिए श्री कृष्ण ने अक्रूर जी से वापस द्वारका आने का आग्रह किया और नगरवासियों के सामने स्यमंतक मणि दिखाई, जिसके बाद श्री कृष्ण पर लगा स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप गलत साबित हुआ। वे मणि द्वारका में छोड़ अक्रूर जी ब्रह्म तत्व में लीन हो गए थे। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के दिव्य दर्शन अर्जून के बाद अक्रूर जी ने ही किए थे और उसके बाद ही उन्होनें कंस का साथ छोड़ श्रीकृष्ण का साथ दिया था.