Manikarnika Ghat Varanasi | History & Interesting Facts

Manikarnika Ghat Varanasi -

भारत देश में धार्मिक स्थलों में कुछ स्थल ऐसे भी मौजूद ही जो रहस्यमयी है, जिनका वर्णन कर पाना मुश्किल होता है। इन सभी स्थलों के पीछे एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा अवश्य सुनने को मिलती है। इन्हीं में से एक है काशी के 84 घाटों में विश्व प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट, जहां साल भर चिताओं की अग्नि से घाट रोशन रहता है। मणिकर्णिका घाट को मोक्ष स्थली या शिव स्थली के नाम से भी जाना जाता है।

 

भगवान शिव का प्रिय स्थान काशी अपने आप में एक दिव्य है। कहते है मणिकर्णिका घाट में यदि किसी मनुष्य की चिता जलाई जाती है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है। मणिकर्णिका घाट में भगवान शिव मरने वालों के कान में तारक मंत्र बोलते है जिसके बाद वे सीधा स्वर्ग के द्वार पर पहुंचते है।

मणिकर्णिका घाट का दृश्य अग्नि का रूप लिए नजर आता है, क्योंकि यहां 365 दिन और 24 घंटे चिताएं जलती रहती है। प्रतिदिन इस घाट पर 200 से 300 शव जलाए जाते है, घाट के पास ही भगवान शिव और माता पार्वती का मंदिर है, जहां शव के साथ आने वाले लोग पहले भगवान शिव के दर्शन कर फिर अंतिम क्रिया के लिए शव को लेकर जाते है। कहते है कि इस घाट की अग्नि कभी शांत नहीं होती। सनातन धर्म में पवित्र स्थलों के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। तो चलिए जानते है मणिकर्णिका घाट की पौराणिक कथा।

 

पहली कथा –  कथा के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु ने हजारों वर्ष तक इसी घाट पर भगवान शिव की आराधना की थी। विष्णु जी ने शिवजी से वरदान मांगा कि सृष्टि के विनाश के समय में भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान शिव और माता पार्वती विष्णु जी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर यहां आए थे। तभी से मान्यता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

दूसरी कथा – यदि बात करें दूसरी कथा की तो, भगवान विष्णु ने भगवान शिव-पार्वती के लिए यहां स्नान कुंड का निर्माण भी किया था, जिसे मणिकर्णिका कुंड के नाम से जाना जाता है। माता पार्वती जब कुंड में स्नान के लिए गई तो उनका कर्ण फूल कुंड में गिर गया, जिसे महादेव ने ढूंढ कर निकाला। देवी पार्वती के कर्णफूल के नाम पर इस घाट का नाम मणिकर्णिका कुंड रखा।

 

तीसरी कथा – तीसरी प्रचलित कथा के अनुसार जब देवी सती ने अग्नि स्नान कर लिया था, तब भगवान शिव ने देवी सती के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार इसी कुंड पर आकर किया था, जिसे महाश्मशान के नाम से जाना जाता है।

 

मोक्ष की चाह रखने वाला इंसान जीवन के अंतिम पड़ाव में यहां आने की कामना करता है। तो वहीं इससे जुड़ी एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं। मौत के मातम के बीच वे नाचती-गाती हैं और नाचते हुए वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनको अगले जन्म में ऐसा जीवन ना मिले।

 

मणिकर्णिका घाट पर शवों के मोक्ष की अंतिम क्रिया, श्राद्ध आदि भी किया जाता है।