शनिदेव साक्षात रुद्र हैं। शनिदेव का शरीर क्रांति इन्द्रनील मणि के समान है। यदि बात करें शनिदेव के स्वरूप की तो, भगवान शनिदेव के शीश पर स्वर्ण मुकूट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। शनिदेव की सवारी गिद्द को कहा जाता है। भगवान शनिदेव हाथों में धनुष-बाण, त्रिशुल और वरमुद्रा धारण करते है। भगवान शनिदेव सूर्यदेव और छाया के पुत्र हैं। वे क्रूर ग्रह माने जाते है। भगवान शिव ने शनिदेव को नवग्रहों में न्यायधीश का कार्य सौंपा है। किंतु वास्तविकता में भगवान शनिदेव जितने भयावह दिखते है या जितना भयावह वर्णन उनका लिखित में मिलता है, वे वास्तव में खुद इनके सामने भयभीत होते है, कौन है वो 5 देव चलिए जानते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव भगवान सूर्य और उनकी दूसरी पत्नी छाया के पुत्र हैं। बताया जाता है कि एक बार गुस्से में सूर्यदेव ने अपने ही पुत्र शनिदेव को श्राप देकर उनका घर भस्म कर दिया था, जिसके बाद शनिदेव अपने पिता भगवान सूर्य नारायण से डरते है। भगवान सूर्य को मनाने के लिए शनिदेव ने उनकी तिल से पूजा की, जिसके बाद सूर्य देव अपने पुत्र से प्रसन्न हुए। इस कार्य के बाद कहते है कि जो कोई भी भगवान सूर्य और शनिदेव की तिल से पूजा करता है, भगवान की कृपा उसपर सदैव रहती है।
एक कथा के अनुसार जब शनिदेव खुद अत्यधिक क्रोधिक होकर आमजन को नुकसान पहुंचा रहे थे, तो ये देखकर हनुमान जी को क्रोध आया और उन्होनें भगवान शनिदेव से युद्ध किया। पवनपुत्र हनुमान खुद इतने बलशाली है कि उनके आगे किसी की नहीं चलती। शनिदेव को सही मार्ग दिखाने के लिए उन्होनें युद्ध में उनको पराजित कर दिया, जिसके बाद शनिदेव ने हनुमान जी से क्षमा मांगी और क्रोध में गलत निर्णय ना लेने का वचन दिया। इसके बाद से कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति पर शनिदोष है तो वे नियमित रूप से हनुमान जी की पूजा करें, जिस कारण शनिदेव की ग्रहदशा का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
कहते है जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब उनके दर्शन करने के लिए शनिदेव धरती पर अपना भेस बदलकर आए थे, किंतु उनकी आंखें अत्यंत लाल और चेहरा डराने वाला था, जिस कारण गोकुल के वासियों ने उनके श्रीकृष्ण के दर्शन करने से मना कर दिया। शनिदेव श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त माने जाते है। जब उनके दर्शन नहीं हुए तो उन्होनें अपने आप को कोकिला वन में बंद कर श्रीकृष्ण से मिलने के लिए तपस्या का प्रण लिया। अनेकों वर्षों को पश्चात जब उनकी तपस्या से श्रीकृष्ण प्रसन्न हुए तो शनिदेव को कोकिला वन में दर्शन दिए। तब से शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों पर कृपा करते है।
पौराणिक कथाओं की मानें तो शनिदेव पीपल से भी डरते है, इसलिए शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाने से और पिप्लाद मुनि का नाम लेने से भगवान शनिदेव की वक्र दृष्टि शनिदेव पर नहीं पड़ती ।
कहते हैं कि शनिदेव खुद अपनी पत्नी से भय खाते हैं, इसलिए ज्योतिषशास्त्र में शनि की दशा में शनि पत्नी के नाम का मंत्र जपना से शनिदेव प्रसन्न होते है और इसे उपाय के रूप में भी माना जाता है। कथा के अनुसार एक समय, शनिदेव की पत्नी ऋतु स्नान करके शनि महाराज के पास आई, किंतु शनिदेव अपने ईष्ट देव श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन थे और उन्होनें अपनी पत्नी की ओर नहीं देखा, जिस कारण क्रोधित होकर पत्नी ने श्राप दे दिया।
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