ये तो हम सभी जानते है कि सांप की जीभ आगे से दो हिस्सों में बटी हुई होती है, किंतु ये ऐसी क्यों होती है इसका वर्णन महाभारत में उल्लेखित है.. वेदव्यास रचित महाभारत में इससे सम्बंधित एक बहुत ही रोचक कथा है जो इस प्रकार हैं.
महाभारत के अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं.. इनमें से कद्रू भी एक थी.. सभी नाग कद्रू की संतान थी.. महर्षि कश्यप की एक अन्य पत्नी का नाम विनता था, पक्षीराज गरुड़ विनता के ही पुत्र थे.. एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद घोड़ा देखा, उसे देखकर कद्रू ने कहा कि इस घोड़े की पूंछ काली है और विनता ने कहा कि घोड़े की पूंछ सफेद है.. इस बात पर दोनों में शर्त लगी.. तब कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटा कर घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे उसकी पूंछ काली नजर आए और वह शर्त जीत जाए.
कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया, तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो.. श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी.. शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई.
जब गरुड़ को पता चला कि उनकी मां दासी बन गई है तो उन्होंने कद्रू और उनके सर्प पुत्रों से पूछा कि तुम्हें मैं ऐसी कौन सी वस्तु लाकर दूं जिससे कि मेरी माता तुम्हारे दासत्व से मुक्त हो जाए.. तब सर्पों ने कहा कि तुम हमें स्वर्ग से अमृत लाकर दोगे तो तुम्हारी माता दासत्व से मुक्त हो जाएगी.
अपने पराक्रम से गरुड़ स्वर्ग से अमृत कलश ले आए और उसे कुशा यानि एक प्रकार की धारदार घास पर रख दिया.. अमृत पीने से पहले जब सर्प स्नान करने गए तभी देवराज इंद्र अमृत कलश लेकर पुन: स्वर्ग लौट गए.. यह देखकर सांपों ने उस घास को चाटना शुरू कर दिया जिस पर अमृत कलश रखा था, सर्पौं को लगा कि इस स्थान पर थोड़ा अमृत का अंश अवश्य होगा, लेकिन घास नौकीली होने के कारण सभी सर्पो के जीभ के दो टुकड़े हो गए.
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