देवी सती के आत्मदाह की कई प्रौराणिक कथाओं के बारे में सुना होगा.. भगवान शिव के अपमान में देवी सती ने अग्नि स्नान कर लिया था.. जिसके बाद भगवान शिव देवी सती की जलती दाह को लेकर पूरे पृथ्वी के चक्कर काटे, जिस बीच भगवान विष्णु ने शिव के दुख को दूर करने के लिए देवी सती के शरीर के टुकड़े अपने सुदर्शन चक्र से कर दिए.. अब ऐसे में देवी सती के शरीर के जितने भी भाग हुए वे अलग अलग दिशाओं में जा गिरे, जिसे हम शक्ति के नाम से शक्तिपीठ कहते है.. देवी सती के शरीर के एक अंग भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में जा गिरा.. जहां सुंगधा नदी के तट के पास स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है. शैव धर्म में यह एक महत्वपूर्ण घटना है जिसके परिणामस्वरूप सती देवी के स्थान पर श्री पार्वती का उदय हुआ और शिव को गृहस्थश्रमी (गृह धारक) बना दिया जिससे गणपति और सुब्रह्मण्य की उत्पत्ति हुई।
देवी सती के शरीर के अंग 51 हुए, जिसे 51 शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता हैं, जो संस्कृत के 51 अक्षरों से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक मंदिर में शक्ति और कालभैरव के मंदिर हैं और ज्यादातर प्रत्येक मंदिर शक्ति और कालभैरव के अलग-अलग नामों से जाना गया.. कहते हैं सुंगधा या सुनंदा स्थान पर सती माता की नासिका या नाक गिरी थी. यहां की देवी सुनंदा और शिव त्र्यम्बक के नाम से प्रसिद्ध हैं, इसलिए इस पीठ को सुनंदा पीठ भी कहा जाता है.
अलौकिक है मंदिर की बनावट
यह मंदिर पत्थर का बना हुआ है. मंदिर की पत्थर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की तस्वीर ख़ूबसूरती से प्रदर्शित की गई हैं. शिव चतुर्दशी पर यहाँ मेला लगता है. इसके अलावा नवरात्र पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. शिव रात्रि के समय मंदिर में विशाल आरती का आयोजन किया जाता है.. कहते है सुनंदा शक्तिपीठ का वर्णन ज्यादातर कहीं उपलब्ध नहीं कराया गया, जिस वजह से शिव और देवी पार्वती के भक्तों को मंदिर के बारे में पता नहीं है..
ऐसा है देवी का स्वरूप
सुनंदा शक्तिपीठ में स्थापित देवी सती की जो पुरानी मूर्ति थी, वो अब चोरी हो चुकी है. उसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित की गई है. प्राचीन मूर्ति अब तक अज्ञात है. वर्तमान में देवी उग्रतारा की मूर्ति है, जिन्हें सुगंध की देवी के रूप में पूजा जाता है.
मंदिर की प्रचलित कथा
शिकारपुर गांव में पंचानन चक्रवर्ती नाम के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहते थे. एक बार उनके सपने में, मां काली ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मैं सुगंधा के गर्भ में शिलारूप में हूँ, तुम मुझे वहां से निकाल कर ले आओ और मेरी पूजा करो. पंचानन चक्रवर्ती ने ऐसा ही किया. वो सपने में आये स्थान पर गया, वहां से मूर्ति लाकर स्थापित की और पूजा करना शुरू कर दिया. इसके बाद वहां के स्थानीय लोग भी आने लगे और मां की पूजा करने लगे. इस तरह से ये पवित्र स्थान लोकप्रिय हुआ.
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