भगवान शंकर का विवाह सर्वप्रथम प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से हुआ फिर जब वे यज्ञकुंड में कूदकर भस्म हो गई, तब उन्होनें दूसरा जन्म लिया और हिमवान की पुत्री पार्वती कहलाई. कहते है कि गंगा, काली और उमा भी शिव की पत्नियां थीं, लेकिन वास्तव में शिव के साथ पार्वती का ही नाम लिया जाता है.
भगवान शिव ने पार्वती से विवाह करने के बाद कार्तिकेय नाम का एक पुत्र प्राप्त किया. भगवान गणेश तो माता पार्वती के उबटन से बने थे. सुकेश नामक एक अनाथ बालक को शिव-पार्वती ने पाला था. जलंधर शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था. अय्यप्पा शिव और मोहिनी के संयोग से जन्मे थे. भूमा उनके ललाट के पसीने की बूंद से जन्मे थे. अंधक और खुजा नामक 2 पुत्र और थे जिसके बारे में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता है. शिव पुराण में भगवान शिव के परिवार का पूर्ण रुप से और विस्तार में उल्लेख मिलता है.
शिव के प्रमुख 7 शिष्य है जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है. इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई. शिव ने ही गुरू और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी. शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्त्राक्ष, महेंद्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे. शिव के शिष्यों में वशिष्ठ और अगस्त्य मुनि का नाम भी लिया जाता है.
बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था. उन्होनें पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों को उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर.
कई पुराणों के अनुसार भगवान शंकर को शिव इसलिए कहते हैं कि वे निराकार शिव के समान हैं. निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के 2 नाम बताते हैं. असल में दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं. शंकर को हमेशा तपस्वी रुप में दिखाया जाता है, कई जगह तो शंकर तो शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है. अत: शिव और शंकर 2 अलग-अलग सत्ताएं है. माना जाता है कि महेश यानि की नंदी और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं. रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं. इस तरह से शिव के अलग अलग अस्तित्व बताएं जाते है.
भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं, वे सतयुग में समुद्र मंथन के समय भी थे और त्रेता के राम के समय भी. द्वापर युग की महाभारत काल में भी शिव थे और कलिकाल में विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है. भविष्य पुराण के अनुसार राजा हर्षवर्धन को भगवान शिव ने मरुभूमि पर दर्शन दिए थे. कलियुग में भगवान शिव के दर्शन का उल्लेख भविष्य पुराण में बताया गया है, लेकिन कहीं भी इसका उल्लेख किया नहीं जाता हैं.
भारत के असुर, दानव, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, आदिवासी और सभी वनवासियों के आराध्य देव शिव ही हैं, कहा जाता है कि शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है. सभी दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपात, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव धर्म से जुड़े हुए हैं. चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की ही परंपरा से ही माने जाते है।
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